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पाठकों के पत्र :संघ संस्कार से समाज-परिष्कार

by
Nov 30, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 30 Nov 2015 13:18:08

आवरण कथा ‘राष्ट्रीय एकता के सूत्र’ से प्रतीत होता है कि डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ रूपी जो पौधा लगाया था, आज वह विशाल वट वृक्ष का रूप ले चुका है। नागपुर में विजयादशमी के दिन सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत द्वारा दिया गया उद्बोधन संपूर्ण राष्ट्र के लिए प्रेरणादायी है। उन्होंने अपने उद्बोधन में जो सूत्र बताये वह भारत की एकता अखंडता को जोड़े रखने के लिए जरूरी हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आज देश में समाज जागरण का कार्य कर रहा है और देश के लोग ही नहीं बल्कि विदेशी इसे जानने और समझने के लिए लालायित हैं।

—कृष्ण वोहरा, जेल मैदान, सिरसा (हरियाणा)

 

ङ्म राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आज विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन है। यह संगठन भारतवर्ष के हर क्षेत्र में प्रत्येक व्यक्ति के अंदर हिन्दू होने का गर्व पैदा करता है। संघ की प्राथमिकता में सदैव राष्ट्र रहा है। संघ का स्वयंसेवक नि:स्वार्थ भाव से मातृभूमि की सेवा के लिए संघ पथ पर चलता है। यहीं से स्वयंसेवक के मन में अपने समाज और राष्ट्र के लिए कुछ करने का जज्बा उत्पन्न होता है और वह लग जाता है मातृभूमि की सेवा में। देश ही नहीं विश्व ने देखा है कि संघ की पद्धति और उसके कार्य करने का तरीका विल्कुल भिन्न है। किसी भी आपदा में स्वयंसेवक सेवा के उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। उनके मन में नर सेवा नारायण सेवा का भाव होता है।

—डॉ. टी.एस. पाल, चंदौसी, संभल (उ.प्र.)

ङ्म संघ ने 90 वर्ष पूर्ण किए हैं। लेकिन 90 वर्षोंं में ही संघ ने राष्ट्र की युवा शक्ति को एकजुट कर राष्ट्रहित में न्योछावर होने का जो सूत्र प्रदान किया वह सूत्र अब राष्ट्र के लिए वरदान बन चुका है। विजयादशमी पर सरसंघचालक ने जो भी कहा उसमें राष्ट्र के ठोस व दूरगामी सिद्धांतों की अनुगूंज स्पष्ट रूप से सुनाई देती है। अच्छी-बुरी हर परिस्थिति में पुरजोर संघर्ष करते हुए राष्ट्र विकास और सम्मान कैसे प्राप्त करे यह सूत्र इस उद्बोधन में थे। न सफलता का अहंकार है और न असफलता से निराशा। सिर्फ अंतिम व्यक्ति के उत्थान का ही संकल्प संघ लिए हुए है। युद्ध, दुर्घटना, हादसा, आपदा की हर संकटकालीन घड़ी में मानवता को जिलाने का अभूतपूर्व योगदान संघ के संबल से ही संभव हुआ है। संघ के कितने भी आलोचक हों या उसकी कितनी भी आलोचनाएं हों पर राष्ट्र के सत्यपथ पर अग्रसर स्वयंसेवकों का पथ संचलन न रुकने वाला है और न डिगने वाला।

—हरिओम जोशी, चतुर्वेदी नगर, भिण्ड (म.प्र.)

ङ्म नि:स्वार्थ सेवा का अगर कोई उदाहरण आज के समय में है तो वह है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। तड़क-भड़क, राजनीति, शोहरत, शक्ति, धन, स्वार्थ, वैमनस्य, ईर्ष्या आदि चीजों से एकदम किनारा यही, इसकी पहचान है। बड़े ही शान्त तरीके से समाज का एक अंग बनकर राष्ट्र रक्षा और धर्म रक्षा के कार्य में लगा हुआ है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में कार्यकर्ता से लेकर अपना सर्वस्व जीवन न्योछावर कर चुके प्रचारक तक एक तपस्या कर रहे हैं। इसलिए समाज की जिम्मेदारी बनती है कि संघ के दिशा निर्देश पर चलकर हम अपने समाज और राष्ट्र के कल्याण में सहभागी हों।

—शशांक शर्मा, झांसी (उ.प्र.)

बेचैन साहित्यकार

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत उन्नति की ओर अग्रसर है। अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर देश को तेजी से उभरते विकासशील देश की पहचान मिली है। ऐसे समय में कुछ एक साहित्यकारों द्वारा पुरस्कार लौटाना एक सोची समझी राजनीति का एक हिस्साभर है। वर्तमान केन्द्र सरकार बदनाम हो, इसकी साख में गिरावट हो तथा जनता इसके विरुद्ध हो यही सोची-समझी चाल और षडयंत्र है। सेकुलर मानसिकता से भरेपुरे साहित्यकार, नयनतारा सहगल, अशोक वाजपेयी आदि को सत्ता परिवर्तन होने के बाद से ऐसा क्यों लगने लगा कि देश में असहिष्णुता का माहौल बन रहा है? वे एक घटना पर इतना क्यों उत्तेजित हैं? जबकि 1984 में हुए साम्प्रदायिक दंगों में हजारों का कत्लेआम किया गया, जिन्दा जलाया गया, उस समय उनका या ऐसी ही मानसिकता से भरे साहित्यकारों को पुरस्कार लौटाने का ख्याल क्यों नहीं आया?

—सतीश वर्मा, नारायणपुर (छ.ग.)

ङ्म         बदनाम होंगे पर नाम तो होगा, आज साहित्यकार कुछ इसी ढररे पर हैं। कुछ छद्म सेकुलरवादी साहित्यकार रंगकर्मी, लेखक पूर्वाग्रह से भरकर सरकार को घेर रहे हैं और विश्व स्तर पर बदनाम करने का वीणा उठाये हैं। ये वे लोग हैं जो समय-समय पर हिन्दुओं पर होते जुल्म पर अपना मुंह सिले रहते हैं।

—बी.एल.सचदेवा, आएएनए बाजार (नई दिल्ली)

महत्वपूर्ण योगदान

     लेख ‘राम कथा लिख जग को दीन्ही’ से यही लगता है कि अगर हिन्दुओं को रेत की कणों की तरह बिखेर दिया जाये तो केवल वाल्मीकी रामायण ही उन्हें संगठित कर चट्टान बनाने में समर्थ है। वीर सावरकर के ये शब्द हिन्दुओं के लिए रामायण के महत्व को बताने के लिए पर्याप्त हैं। भगवान श्रीराम को हिन्दुओं के रोम-रोम में समाहित करने वाले महर्षि वाल्मीकि की ऋषि परंपरा में अनेकों ऋषि-मुनियों का जन्म हुआ, लेकिन केवल वाल्मीकी ही आदिकवि के रूप में जाने गए। रामायण की रचना करके उन्होंने हिन्दू धर्म की रक्षा करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है क्योंकि इसी रचना के कारण आज भगवान राम के विषय में बच्चा-बच्चा जानता है।

—अश्वनी जांगड़ा, महम, रोहतक (हरियाणा)

ङ्म साहित्यकारों को जब पुरस्कार मिले होंगे तब शायद जितनी चर्चा नहीं हुई होगी उतनी आज पुरस्कार लौटाने पर हो रही है। उनके जर्जर हो चुके चेहरों पर मीडिया में आने पर कुछ रौनक दिखाई दे रही है। जिस समय सम्मान मिला उस समय इन साहित्यकारों को कोई नहीं जानता था लेकिन आज तो हर कोई इन्हें जान गया है। लोकतंत्र में अलोचना का स्थान है लेकिन पूर्वाग्रह का नहीं। देश की जनता इनके पूर्वाग्रह से भलीभांति परिचित है। वह यह भी जानती है कि यह लोग ऐसा इस समय क्यों कर रहे?  

—अतुल मोहन प्रसाद, बंगाली टोला, बक्सर (बिहार)

ङ्म         यह निर्विवाद है कि हिन्दू जीवनशैली एवं विचारधारा अपने मूल स्वरूप में सहिष्णु व क्षमाशील है। परन्तु जब से कांग्रेस ने केन्द्र से विदा ली है, रह रहकर उसे अपने अच्छे दिन याद आ रहे हैं। इसे सोचकर वह तड़प उठती है। इसी तड़प में उसे जो भी मन आता है वह बोलने लगती है। अपने शासनकाल में कांग्रेस ने सनातन धार्मवलंिवयों को अलग-थलग किया था। देशवासियों को सेकुलर बनाने की अपनी सुनियोजित शैली पर काम किया। इसीलिए सोनिया गांधी ने भी इस आग में घी का काम करते हुए राष्ट्रपति से मिलकर असहिष्णुता का राग अलाप दिया। उन्होंने ऐसा जताया जैसे स्थिति नियंत्रण से बाहर हो। देश की जनता को इनके षडयंत्रों को समझना चाहिए।

— हिम्मत जोशी, अरुणोदय नगर, नागपुर (महा

आतंक का चेहरा

   लेख ‘इस्लाम का हत्यावाद’ से दुनिया को पता चल गया कि आइएस की विकृत मानसिकता क्या है। आज विश्व में जितने भी इस्लामिक देश हैं वह अपने ही अंदर लड़े-मरे जा रहे हैं या कहें कि गृहयुद्ध जैसे हालात हैं, इन जगहों पर। जिहादी इस्लाम के नाम पर रक्तपात कर रहे हैं। ताजा हमला पेरिस का है। आतंकियों ने सैकड़ों निर्दोर्षों को मौत के घाट उतार दिया। विश्व ने उनके इस रूप को देखा। जबकि इस मजहब के पैरोकार इस्लाम को शान्ति का मजहब कहते हैं। क्या इसे ही शान्ति कहते हैं?

—राममोहन चन्द्रवंशी, टिमरनी, जिला-हरदा (म.प्र.)

ङ्म क्या किसी ने देखा कि विश्व में इस्लाम के नाम पर जो खून खराबा, हत्या, लूट हो रही है उसका कोई विरोध हुआ? अगर हुआ भी तो वह सिर्फ खानापूर्ति तक सीमित रहा। मुसलमान जब अल्पसंख्यक होते हैं तब वे सेकुलर होने का दिखावा करते हैं लेकिन जब वे बहुसंख्यक हो जाते हैं तब वे गैर मुसलमानों को मौत के घाट उतार देते हैं। यह उनका असली चेहरा है। —दया बर्धिनी, आरपी रोड, सिकन्दराबाद (तेलंगाना)

पुरस्कृत पत्र

दोहरा मापदंड

आज देश में समाचार चैनलों और समाचार पत्रों की संख्या दिन -प्रतिदिन बढ़ रही है। लेकिन उनके बढ़ने में कोई समस्या नहीं है। समस्या उनके घटते स्तर की है। हर दिन उनके स्तर में गिरावट देखी जा सकती है। जो मन में आ रहा है वह बोल रहे हैं। सही को गलत दिखा रहे हैं और गलत को सही दिखा रहे हैं। गलत समाचार को तोरमरोड़ कर दिखाना इनका स्वभाव बनता जा रहा है। जैसे-मुस्लिम महिला को मकान किराये पर नहीं दिया गया, मुस्लिम होने के कारण उसे नौकरी पर नहीं रखा गया… आदि आदि। बिना सही तथ्यों की जानकारी के इस समाचार को कुछ मीडिया संस्थान ऐसे बढ़ा चढ़ाकर दिखाते हैं, जैसे किसी एक विशेष समुदाय पर संकट आ गया हो। जिन समाचारों का कोई उद्देश्य नहीं उसे बार-बार दिखाकर समाज को भ्रमित और एक तरीके से भड़काने की साजिश इनके द्वारा की जाती है। ओवैसी बंधुओं के बार-बार जहर उगलने वाले भाषण दिखाकर उन्माद फैलाने की कोशिश की जाती है। वहीं दूसरी ओर आतंकवादी याकूब मेमन को मुस्लिम होने के कारण फांसी दी जाती है, ऐसा भी कुछ मीडिया संस्थानों द्वारा प्रचारित किया जाता है। ऐसा लगता है कि मीडिया का भी एक तबका इस साजिश का हिस्सा है। कुछ पत्रकार तो पूर्वाग्रह से ही भरे हुए हैं और उन्हें ऐसे ही समाचार छापने और दिखाने एवं उसके बाद तथ्यों को तोरमरोड़कर पेश करने में महारथ हासिल हैं। वे बड़ी ही आसानी के साथ इन समाचारों को ऐसे पेश कर देते हैं जैसे यह सौ फीसद सही है। लेकिन इसके उल्ट वह सौ फीसद गलत ही होते हैं। लेकिन सामान्य जनता इनके षडयंत्र को नहीं समझ पाती और इनके बताये हुए शब्दों को ही सत्य मान लेती है। केन्द्र सरकार को समाचार चैनलों पर दिखाए जा रहे समाचारों और उनके शब्दों पर कड़ी नजर रखनी होगी। क्योंकि कहीं न कहीं यह भी जाने अनजाने समाज मेें असहिष्णुता फैला रहे हैं। इसलिए सरकार को चाहिए जो इस तरह का कार्य कर रहे हैं उनके खिलाफ कड़ी कार्यवाई करें और मीडिया के लिए ‘गाइड लाइन’ तय करें।

—भगवती प्रसाद थपलियाल        

प्रगति नगर, रिसाली, भिलाई नगर दुर्ग छ.ग.)

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