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पाञ्चजन्य ब्यूरो
नवंबर को दिल्ली के इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में स्वर्गीय श्री अशोक सिंहल की स्मृति में एक श्रद्धांजलि सभा आयोजित की गई। इसमें राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, बौद्ध गुरु परमपावन दलाई लामा सहित धर्म-अध्यात्म, समाज और राजनीति से जुड़ी कई हस्तियों द्वारा प्रेषित शोक संदेशों के वाचन के बाद विभिन्न संगठनों एवं आयामों से जुड़ी लोगों ने अशोक जी के प्रति अपने भाव पूर्ण विचार व्यक्त किए।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने कहा कि मेरा अशोक जी से सीधा प्रगाढ़ संबंध नहीं था, लेकिन नागपुर के प्रांत प्रचारक होने के नाते बेंगलुरू में एक संघ शिक्षा वर्ग में मैं गया था। उसमें दिल्ली प्रांत प्रचारक होने के नाते अशोक जी भी उपस्थित थे और उसी बैठक में उन्हें विहिप का दायित्व दिया गया था। एक बार जब मुझे इंग्लैंड भेजा गया तो वहां मैंने देखा बीबीसी ने अशोक जी का एक साक्षात्कार लिया। साक्षात्कारकर्ता प्रश्न पूछ रहे थे। तब अशोक जी ने कहा मुझे प्रश्नों के उत्तर नहीं देने। मैं तो यहां अपनी बात रखने आया हूं और आधे घंटे में उन्होंने जो तत्व की बातें रखीं, वे बड़े महत्व की थीं। श्री अशोक सिंहल ईश्वरीय शक्ति से युक्त थे। 10 नवंबर को उन्होंने मुझे मेदान्ता अस्पताल में बुलाया था। उन्हें देखकर मुझे भी अभास हुआ कि अब शायद अशोक जी स्वयं को अंतिम यात्रा की तरफ जाता मान बैठे हैं। इस दौरान करीब एक घंटे तक हमारी बातचीत हुई। इसमें 40 मिनट उन्होंने श्रीराम जन्मभूमि और वेदों के संरक्षण की बात कही। मर्यादा का नाम ही धर्म है और उनमें मर्यादा कूट-कूटकर भरी थी। वे कहते थे सब कुछ ईश्वर करवा रहा है, मैं तो बस निमित्त हूं। अशोक जी का संकल्प एक-एक व्यक्ति का संकल्प है।
राष्ट्रधर्म के पूर्व संपादक एवं विहिप के वरिष्ठ नेता श्री वीरेश्वर द्विवेदी ने कहा कि अशोक जी ने अपने आचरण के द्वारा राम मंदिर सहित हिन्दू अस्मिता की रक्षा के लिए जो भी आंदोलन चलाया उसे साकार एवं जीवंत सिद्ध किया। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के भाषणों से वे बहुत प्रभावित रहे।
वरिष्ठ पत्रकार श्री रामबहादुर राय ने कहा कि अशोक जी का व्यक्तित्व असाधारण था और उन्होंने विहिप को एक प्रभावी संगठन का स्वरूप दिया। उन्हें भारतीय राजनीति में धर्म को पुन: प्रतिष्ठित करने का श्रेय दिया जाएगा। उन्होंने भारतीय राजनीति की दशा और दिशा बदली।
हालैंड से पधारे राजा लुईस ने कहा कि अशोक जी वैदिक युग के ज्ञान विज्ञान को भारत और विश्व में फैलाने के लिए
प्रतिबद्ध रहे।
परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश के मुनि चिदानंद महाराज ने कहा कि अशोक जी जीवन की पहली सांस से लेकर अंतिम सांस तक राम मंदिर के लिए ही जिये। राम मंदिर और राष्ट्र मंदिर दोनों उनके मन में थे। अशोक जी एकमुखी रुद्राक्ष के पर्याय कहे जा सकते हैं जो दुर्लभ ही होते हैं।
राज्यसभा सांसद श्री तरुण विजय ने कहा कि अयोध्या आंदोलन का स्मरण करते ही जन-जन के मन में अशोक जी उतरने लगते हैं। वे निश्चय के पक्के थे। स्वर्गीय नानाजी देशमुख कहा करते थे कि जिनको हम वंचित और अस्पृश्य कहते हैं वे हिंदू धर्म के अग्रणी रक्षक हैं। इस भाव को अशोक जी ने साक्षात जीवंत किया। कम्बोडिया और थाईलैंड में प्राचीन गणेश मंदिर, जिसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर में शामिल किया है, पर जब विवाद हुआ तो अशोक जी ने इस बड़ी चिंता को सांसद बनने पर मुझे बताया। आज वह मामला भारत सरकार के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में चल रहा है। अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर का निर्माण हो, यह अशोक जी की प्रथम और अंतिम इच्छा थी। उसे पूरा करके ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दी जा सकती है।
विहिप के अंतरराष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री ओमप्रकाश सिंहल ने कहा कि जिस प्रकार राजा दशरथ दैवीय स्वरूप में अयोध्या में राम के राज्याभिषेक देखने आए थे, उसी प्रकार हमारे अशोक जी भी अयोध्या में भव्य राम मंदिर देखने आएंगे।
राजनेता व संत श्री सतपाल महाराज ने कहा कि परमारथ के लिए ही अशोक जी जैसे महामानव जन्म लेते हैं। हम लोग इतिहास पढ़ते हैं और कुछ लोग इतिहास लिखते हैं लेकिन अशोक जी ने इतिहास बनाया भी और भावी पीढ़ियों के लिए लिखा भी।
बद्रीभगत झंडेवालान मंदिर समिति के अध्यक्ष श्री नवीन कपूर ने कहा कि अशोक जी कर्मयोगी थे। मां झंडेवाली के मंदिर के सौंदर्य, उसके संरक्षण और संचालन में उनकी भूमिका उल्लेखनीय है। उन्होंने इसके माध्यम से आध्यात्मिक, धार्मिक आस्था के साथ-साथ समाज में निर्बल लोगों, असहायों और अनाथों के लिए भरपूर सेवाकार्यों का एक प्रभावी योजनातंत्र तैयार किया। जिसका लाभ लाखों लोगों को प्राप्त हो रहा है।
नामधारी पंथ के संत जसपाल सिंह ने कहा कि नामधारी समाज के गुरु जगदीश जी का अशोक जी के साथ आत्मीय संबंध रहा। न्यूयार्क में हुए विश्व शांति सम्मेलन में अशोक जी की सहभागिता से नामधारी समाज ने अपूर्व गौरव महसूस किया था।
विहिप के पूर्व अध्यक्ष श्री विष्णुहरि डालमिया ने कहा कि 1979 में विहिप द्वारा आयोजित हिंदू सम्मेलन में स्वागताध्यक्ष की भूमिका मिलने के बाद वर्ष 2005 तक अशोक जी ने जो दायित्व दिया वह हमने पूरा किया। मेरे जीवन में ऐसा अद्भुत चरित्र दूसरा नहीं रहा।
वात्सल्य ग्राम की संचालिका दीदी मां साध्वी ऋतंभरा ने कहा कि अशोक जी संत की परंपरा के व्यक्तित्व थे। ऐसे व्यक्तित्व पूरी संस्था व संगठन के पर्याय बन जाते हैं। वे जब बोलते थे तो लगता था कि मां भारती अपनी पीड़ा को अशोक जी की वाणी में व्यक्त कर रही है। श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन को सबने देखा, माथे पर रक्त की धारा को तौलिए से पोंछते हुए चरण नहीं रोके… राम कारज के निमित्त वे आगे बढ़ते रहे। उनका अंतिम संकल्प था केवल राम मंदिर का निर्माण।
भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अमित शाह ने कहा कि अशोक जी की प्रेरणा से देशभर में बहुत बड़ा जनांदोलन चला। वे आदर्श स्वयंसेवक, प्रचारक, उत्कृष्ट राष्ट्रभक्त और सनातन धर्म के संवाहक थे। धर्मप्रवण, सेवा व देशभक्ति के गुणों से पल्लवित थे। अशोक जी जैसे श्रेष्ठ व्यक्ति समाज, धर्म व राजनीति को दिशा देने के लिए सदैव याद किए जाते रहेंगे।
भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने कहा कि अशोक सिंहल जी के साथ एक सहयात्री के रूप में छह दशक से भी अधिक का समय निकालने पर मुझे गर्व है। जब मैं प्रयाग विश्वविद्यालय में पढ़ रहा था, रज्जू भैय्या हमारे साथ थे। उन्होंने हमें पढ़ाया भी और संघ कार्य से भी जोड़े रखा। अशोक जी शाखा में गीत गाते थे। उनके गीतों में माधुर्यता और ओज का भाव रहता था। आध्यात्मिकता के संस्कार उनमें विद्यमान थे और यही आंदोलन में काम आए। ‘कृण्वन्तो विश्वमार्यम’ समूचा विश्व आध्यत्मिक समाज बने, विश्व बंधुत्व की दिशा भारत ही दे सकता है- इस भाव को ही अशोक जी ने आगे बढ़ाया। हम सूर्य तो नहीं बन सकते, लेकिन दीए बनकर अंधकार को तो दूर कर ही सकते हैं। राम भारत में हैं और भारत राम में हैं। इस भाव को विश्वभर में फैलाने का काम अशोक सिंहल जी ने किया। एकता, बंधुत्व, स्थायित्व और अपनी शक्तियों को संचित कर संस्कृति और इतिहास गौरव को नई पीढ़ी को बताने का काम अशोक जी ने किया। भारत विश्वगुरु था और रहेगा, ऐसा साहस अशोक जी जैसे योद्धा ही दिखा सकते थे। अशोक जी की प्रबल धारणा थी कि शंकाग्रस्त लोग कभी आगे नहीं बढ़ सकते। वेदपाठशालाओं, गो, गंगा और देववाणी के प्रति उनकी दृष्टि व्यापक थी। सारे लोगों को एक मंच पर लाना कोई मामूली बात नहीं। अशोक जी के जाने के बाद आज वैचारिक अंतराल को भरने का समय है।
विहिप के अन्तरराष्टीय कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. प्रवीण तोगड़िया ने कहा कि हिन्दू हृदय सम्राट और हिन्दुओं के गौरव के पुरोधा अशोक सिंहल जी ने विहिप को घर-घर, गांव-गांव पहुंचाया। राम मंदिर के पुरोधा अशोक जी सेनापति और संत दोनों ही थे। पश्चिम के दर्शन की ओर भागती भारतीय राजनीति से धर्म की विदाई हो रही थी। अशोक जी ने ऐसे समय में धर्म की पुन: स्थापना की। उनका स्वप्न छुआछूत-मुक्त भारत था। काशी में शंकराचार्य के साथ सहभोज का मामला हो अथवा 15 वर्ष पहले प्रारंभ की गई अविरल गंगा, निर्मल गंगा, एक लाख से अधिक कर्मकांडियों का प्रशिक्षण, हिंदू विजय दिवस का संकल्प, 1984 की धर्म संसद ये सब ऐतिहासिक उपलब्धियां हैं। उन्होंने अपना समूचा जीवन श्रीराम के निमित्त लगाया और देश में हिंदुओं का गौरव झुकने नहीं दिया। देश का समूचा हिंदू समाज अशोक जी के सपनों का राम मंदिर संसद के माध्यम से बनते हुए देखना चाहता है और हमें विश्वास है कि वह बनेगा।
विहिप के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष श्री राघव रेड्डी ने कहा कि अशोक जी हम सबके गुरु थे। 19वीं शताब्दी में विश्वभर में भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार में जो भूमिका स्वामी विवेकानंद ने निभाई वही 21वीं शताब्दी में रामजन्म भूमि जागरण के माध्यम से अशोक जी ने हिन्दुत्व की यशोगाथा के रूप में विश्वभर में फैलाई। अशोक जी का दर्शन यह था कि यदि देश का एक संत एक भी गांव को अपना ले तो भारत की गरीबी और अभाव समाप्त हो सकते हैं।
श्री सनातन धर्म प्रतिनिधि सभा दिल्ली के अध्यक्ष स्वामी राघवानंद ने कहा कि अशोक जी के जीवन में एक विशेष तत्व था, उनके चेहरे पर कभी मायूसी नहीं रही। उनका जीवन आध्यात्मिक था और आध्यात्मिक व्यक्ति को कोई चिंता हो ही नहीं सकती। वह औरों की चिंताएं भी दूर करता है, यही गुण अशोक जी में था। श्रद्धांजलि सभा में अन्य विशिष्ट व्यक्तियों के अतिरिक्त राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहसरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल, श्री दत्तात्रेय होसबले, भाजपा के संगठन मंत्री श्री रामलाल, केंद्रीय मंत्री श्री वैंकेया नायडू, श्री रविशंकर प्रसाद, श्री जेपी नड्डा, डॉ. हर्षवर्धन, विहिप के अंतरराष्ट्रीय संगठन महामंत्री श्री दिनेशचंद्र, श्री दीनानाथ बत्रा, भाजपा नेता श्री श्याम जाजू, डॉ. अनिल जैन, सांसद प्रवेश वर्मा, श्री भूपेंद्र यादव सहित कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
श्रद्धांजलि सभा का संचालन विहिप के अंतरराष्टीय महामंत्री श्री चंपतराय ने किया।
साहस, शील, समर्पण तथा ओज के प्रतीक अशोक जी राष्ट्रजीवन की सुप्त चेतना जागरण के प्रतीक थे। साधारण से दिखने वाले असाधारण गुणों के धनी वे अपने सरल, सहज व मिलनसार स्वभाव के कारण देश-विदेश में हिंदुओं के सर्वमान्य नेतृत्वकर्ता बन गए। अशोक जी के दायित्व बदलते गए लेकिन सतत् साधना जारी रही। संपूर्ण देश में एकात्मता की अनुभूति कराने वाली एकात्मता यात्रा , गिरि कंदराओं, वनों, ग्रामों में बिखरे हुए हिन्दू समाज की चिंता, हिन्दू समाज के मानबिन्दु, मठ -मंदिर, तीर्थ वेद और संस्कृति की पुनर्प्रष्ठा । गोमाता की पीड़ा को समाज से जोड़ने एवं गोरक्षा के लिए जीवनबलिदानी लोगों को खड़ा करने का सत्कार्य, हजारों वर्षों से पददलित, स्व को विस्मृत किए हिन्दू समाज में आत्मगौरव की अनुभूति जागृत करने का कार्य अशोक जी की तपश्चर्या से ही संभव हुआ है।
-राजेन्द्र सिंह पंकज, केन्द्रीय मंत्री, विहिप
मेरा परिचय अशोक जी से 1982 में बंगाल में मुर्शिदाबाद में एक हिन्दू सम्मेलन में हुआ। स्वतंत्रता के बाद 10 हजार से भी अधिक लोगों की संख्या वाला यह पहला हिन्दू सम्म्ेलन था। पंजाब में आतंकवाद के समय हरिद्वार से हरमंदिर तक की जो संत यात्रा हुई थी उसमें भी उनका निकट सान्निध्य मिला उसके बाद 1995 में अयोध्या में अशोक जी के निकट संपर्क का सोभाग्य मिला जब मैं बंगाल से आंदोलन में शामिल हुआ था। बंगाल में सह संगठन मंत्री की जिम्म्दारी थी। फिर मुझे दिल्ली 2005 में बुलाया गया यह मेरे लिए एक सौभाग्य की बात थी। मैं उनकी अपेक्षा पर कितना खरा उतरा ये तो वे जानें, उनको जितनी बार देखा उनसे उतना ही आकर्षण बढ़ता गया।
-करुणा प्रकाश, उत्तर क्षेत्र प्रमुख, विहिप
अशोक जी की वैश्विक दृष्टि थी, वैदिक विद्याओं के प्रति अपार श्रद्धा थी वेद के छात्रों को बुलाकर उनके सम्मुख वे स्वयं गीता और वेद पढ़ते थे। इलाहाबाद में वेद विद्यालय में शिक्षार्थियों को वे वेद का अच्छा शिक्षक बनने की प्रेरणा देते थे और ऐसा ही आग्रह रखते थे वेद के प्रति। इससे छात्रों में उत्साह व उमंग बना रहता था। उन्हीं के संरक्षण में लगभग 700 वैदिक छात्र तैयार हुए हैं देशभर में। स्वामी गोविंददेव गिरि जी महाराज के सान्निध्य में विहिप के लगभग 30-31 वेद विद्यालय हैं। वैदिक संस्थान प्रारंभ हो, इसके लिए कई बार मानव संसाधन विकास मंत्री से वैदिक विज्ञान संस्थान के लिए उन्होंने कहा भी, यह उनकी इच्छा थी। पूज्य सरसंघचालक जी को दो इच्छाएं- राममंदिर व वेद और वेद संरक्षण उन्होंने बताई थीं।
-हरिशंकर, वेद प्रसार आयाम, विहिप
इस युग के महानायक गोलोकवासी श्री अशोक सिंहल जी उसी प्रकार याद किये जाएंगे जिस प्रकार भगवान श्रीराम, योगेश्वर भगवान कृष्ण, बुद्ध, महावीर, चाणक्य, स्वमी दयानंद तथा डॉ. हेडगेवार चिरस्मरणीय हैं। समस्त मानव जाति के लिए वे आदर्श थे। वैदिक विश्व के निर्माण हेतु वे प्रतिबद्ध थे।
-आचार्य राधाकृष्ण मनोड़ी, केन्द्रीय मंत्री, विहिप
स्वातंत्र्योत्तर सांस्कृतिक स्वतंत्रता संग्राम के महानायक रहे अशोक जी सिंहल हमेशा अजेय स्वाभिमानी हिन्दू शक्ति प्रस्थापित करने के लिए संघर्ष करते रहे। आध्यात्मिक भारत के वे स्वप्नद्रष्टा थे, उत्तुंग राष्ट्रसंत को कोटि-कोटि नमन।
-मानवेन्द्र नाथ पंकज, संपादक ‘हिन्दू विश्व’
अशोक जी वेद के प्रचार के लिए कृतसंकल्प थे। 1980 से ही उनको निकट से देखने का सौभाग्य प्राप्त रहा। वे वे माध्यमिक स्तर पर इलाहाबाद सीवी कॉलेज के छात्र रहे थे और कई बार यहां आते रहे। महावीर भवन में स्थापित वेद विद्यालय को अशोक जी सांदीपनी वेद प्रतिष्ठान से मान्यता दिलाकर अंतरराष्टÑीय वेद अध्ययन केन्द्र बनाना चाहते थे।
-डॉ. हरिश्चन्द्र श्रीवास्तव
पूर्व प्राचार्य, सीवी इण्टर कॉलेज, इलाहाबाद
वे अपने आप में एक संस्था थे
भारत की जो आध्यात्मिक शक्तियां बिखरी हुई थीं उन सबको समाहित करके, संगठित करके एक लक्ष्य पर केन्द्रित करने का एकमेव श्रेय अशोक जी को ही जाता है। श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन में हम लोगों ने बहुत नजदीक से उनके नेतृत्व को देखा है। हिंदू समाज से जुड़े सभी विषयों पर हमेशा ही उनके मन में जो गहरी संवेदनशीलता थी। जीवन के संध्याकाल में भी उनके संकल्पों में युवावस्था जैसी ही दृढ़ता थी। अनेक अर्थों में वे विश्व हिन्दू परिषद के पर्याय बन गए थे। श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन का स्वर्णिम इतिहास हम सबके सामने है।
जीवनभर एक संन्यासी के समान हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए अपना क्षण-क्षण आहूत कर देने वाले हम सबके महान पथप्रदर्शक एवं हिन्दू हृदय सम्राट माननीय श्री अशोक जी सिंहल का देहावसान संपूर्ण विश्व के हिन्दू समाज की गहरी क्षति है। उन्होंने हिन्दू समाज के विरुद्ध होने वाले प्रत्येक अन्याय और अत्याचार का दृढ़तापूर्वक प्रतिकार किया। हिन्दुओं को जाति-पांति की सीमाओं से निकालकर एकात्मता के सूत्र में गूंथकर श्रीराम जन्मभूमि, अयोध्या के मुक्ति आंदोलन को प्रखरता के साथ उसकी सफलता तक पहुंचाने में उनका योगदान चिरकाल तक अविस्मरणीय रहेगा। माननीय अशोक जी सिंहल संपूर्ण हिंदू विश्व में एक विचारधारा बनकर सदैव जीवित रहेंगे। हिंदू समाज शेष विश्व को अपनी उदारता में समाकर मानव जाति के कल्याणार्थ कर्म करता रहे, यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
-दीदी मां साध्वी ऋतंभरा,वात्सल्य ग्राम वृंदावन
संगम में अस्थि विसर्जित
स्वर्गीय अशोक सिंहल का अस्थि कलश जब कुम्भ नगरी तीर्थराज प्रयाग पहुंचा तो हिन्दुत्व के पुरोधा को उनकी कर्मनगरी में श्रद्घासुमन अर्पित करने के लिए जनसैलाब उमड़ पड़ा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विहिप और भाजपा के कई दिग्गज भी स्व. अशोक सिंहल को अंतिम विदाई देने के लिए पहुंचे।
विहिप के अंतरराष्ट्रीय महामंत्री श्री चंपत राय समेत कई वरिष्ठ कार्यकर्ता अशोक सिंहल का अस्थि कलश लेकर प्रयागराज एक्सप्रेस से जब प्रयाग पहुंचे तो स्टेशन पर ही विहिप और भाजपा के कई नेता उपस्थित थे। स्टेशन से फूलों से सजाए गये वाहन में अस्थि कलश रखकर जानसेनगंज होते हुए रा.स्व. संघ के सिविल लाइन स्थित कार्यालय लाया गया। यहां भारी संख्या में उपस्थित स्वयंसेवकों द्वारा उन्हें श्रद्घासुमन अर्पित किए गए। इसके बाद अस्थि कलश को विहिप कार्यालय केसर भवन ले जाया गया, जहां एक श्रद्घांजलि सभा हुई। केसर भवन में श्रद्घांजलि सभा के बाद अस्थि कलश अशोक सिंहल के आवास महावीर भवन और तत्पश्चात विभिन्न मार्गों से होते हुए संगम पहुंचा जहां वैदिक मंत्रों के साथ त्रिवेणी में अस्थियों का विसर्जन किया गया। अस्थि कलश के साथ लोगों का हुजूम चल रहा था। इसमें संघ के क्षेत्र प्रचारक शिव नारायण, काशी प्रान्त प्रचारक अभय, विभाग प्रचारक मनोज, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत बाजपेयी, सांसद केशव मौर्य, सांसद विनोद सोनकर, पूर्व मंत्री डा. नरेंद्र सिंह गौर समेत कई लोग शामिल थे। अस्थि कलश वाहन में गुरुकुलों के विद्यार्थी स्तुतिवाचन कर रहे थे।
संत समाज ने केंद्र सरकार से मांग की है कि विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) के अंतरराष्ट्रीय संरक्षक रहे स्वर्गीय अशोक सिंहल के नाम से डाक टिकट जारी हो। श्रद्घांजलि सभा को सम्बोधित करते हुए राम जन्मभूमि न्यास के नेता व पूर्व सांसद डा. रामविलास वेदांती ने प्रस्ताव रखा कि हिन्दू हृदय सम्राट अशोक सिंहल के नाम पर भारत सरकार एक डाक टिकट जारी करे। संतों ने डा. वेदांती के प्रस्ताव का अनुमोदन किया और वहां उपस्थित लोकसभा संदस्य व विहिप के पूर्व संगठन मंत्री केशव मौर्य को अधिकृत किया कि वह संतों की मांग को केंद्र सरकार के सामने रखेंगे तथा उसे पूरा करायेंगे। श्रद्घांजलि सभा को जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि जी महाराज, सांसद केशव मौर्य, उप्र के पूर्व मंत्री डा. नरेंद्र कुमार सिंह गौर समेत कई लोगों ने सम्बोधित किया।
स्व. अशोक जी की अस्थियों का विसर्जन विभिन्न तारीखों पर अयोध्या, मथुरा, वाराणसी, चित्रकूट, कानपुर तथा गोरखपुर में किया जाएगा। इस दौरान सरयू नदी में भी अस्थि विसर्जन
किया जाएगा।
राजनीति में धर्म की प्रतिष्ठा की
18 नवंबर को निगम बोध घाट ( दिल्ली) पर एक मित्र ने पूछा विलक्षण किस अर्थ में थे अशोक सिंहल। इस पर मैंने कहा- कई अर्थ हैं शब्दकोष में विलक्षण, असाधारण, अनूठा। असंख्य लोगों का यह नजारा व्यक्ति रूप में हमें भान कराने के लिए काफी है। कुछ दिन पहले हमारे बीच, में अशोक जी सशरीर उपस्थित थे लेकिन अब वे आकाश में हैं। उन्होंने 1965 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के नाम से हिन्दू शब्द हटाने के लिए बाकायदा एक अधिनियम बनाया था। अशोक जी के नेतृत्व में हुए आंदोलन के चलते सरकार को अपने निर्णय को वापस लेना पड़ा, वहां युवा अशोक सरस्वती की धारा बन गए। छठे और सातवें दशक के छात्र आंदोलन में उत्तर प्रदेश में वे हमेशा पालक की भूमिका में रहे। आपातकाल में इंदिरा गांधी की पुलिस से बचते हुए वे लोकतंत्र की वापसी के आंदोलन में निरंतर सक्रिय रहे। आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि वे राजनीति में सक्रिय क्यों नहीं रहे। अगस्त क्रांति के एक तरुण सिपाही थे तो यह आश्चर्य स्वाभाविक है। राजनीति में प्रत्यक्ष न रहकर भी वे राजनीति की मुख्यधारा में बने रहे। अयोध्या आंदोलन से अगस्त क्रांति की ठंडी राख ने उनमें देशभक्ति का वैराग्य पैदा किया और वे संघ से जुड़े। संपन्न पारिवारिक परिस्थिति के बावजूद उनका फकीरी जीवन 1942 से ही शुरू हो गया था। उनका उत्तम काल 1980 में आया विहिप में एक युवा कार्यकर्त्ता के रूप में प्रवेश से, तब विहिप का भी कायाकल्प हुआ, वह होते हम सबने देखा। हमने पाया कि संघ का प्रकल्प विहिप अशोक जी के आते ही श्रीरामलीला स्थल बन गया। लोग जो नहीं जानते और देखते वह अशोक सिंहल की साधना है। इतना तो सभी जानते हैं कि मीनाक्षीपुरम में अशोक जी न होते तो हिन्दू उसको महान अवसर में नहीं बदल पाता। उन्हीं की प्रेरणा से विराट हिन्दू समाज जुड़ा, डा. गिरधारी लाल गोस्वामी और कर्ण सिंह, रामकृपाल सालवाले सरीखे बहुत से लोग साधु, संत, गृहस्थ हिन्दू समाज के सुधी एक मंच पर आए वहां से जो यात्रा चली वह अयोध्या के 1990 के रामजन्मभूमि आंदोलन तक चलती रही। इस आंदोलन पर पत्रकार भानुप्रताप शुक्ल ने टिप्पणी और रामकुमार भ्रमर ने कविता लिखी- ‘अशोक जी जाते, भाषण देते, पुलिस रहती पर वह पहचान नहीं पाती थी’, यह उस पूरे वर्णन का अत्यंत संक्षिप्त है जिसे भानुप्रताप जी ने बताया व अशोक जी ने पुष्टि की। वह अयोध्या आंदोलन अपनी मंजिल पर पहुंचे इसलिए अशोक जी को बार-बार स्मरण किया जाएगा। जब मैं अशोक सिंहल कहता हूं तो आप उन्हें सनातन परंपरा की निर्मल धारा मानें, जब हम अशोक जी कहते हैं तो उस चमत्कारी व्यक्तित्व को स्मरण करते हैं जिसको हमने देखा। उन दोनों अशोक से हिन्दू समाज और पूरी मानवता का शोक दूर हो सकेगा। जाते-जाते अशोक जी ने तीन काम किए मातृभूमि का गीत गाया, देशभक्ति पर पड़ी राख हटाई और राम मंदिर की कानूनी अड़चनों को दूर करने की योजना बनाई।
संत सा जीवन चरित्र अशोक जी का
बालकृष्ण उ. नाइक
अशोक जी के हृदय में संत- महात्माओं के प्रति सहज श्रद्घा का भाव था। संत शक्ति को समन्वित कर इनकी सात्विक ऊर्जा को राष्टÑ कार्य में लगाने की धुन अशोक जी में थी। मार्गदर्शक मंडल, धर्मसंसद इन संकल्पनाओं को साकार रूप प्रदान करने में अशोक जी की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
अगस्त, 2000 में न्यूयॉर्क में हुए ‘मिलेनियम वर्ल्ड पीस सम्मिट’ में भारत से शताधिक संत सहभागी हुए। नवम्बर, 1999 में सारनाथ में कांची कामकोटि पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी जयेन्द्र सरस्वती जी महाराज एवं विपश्यनाचार्य श्रद्घेय श्री सत्यनारायण गोयनका जी की संयुक्त विज्ञप्ति प्रसारित हुई। प्रयागराज महाकुंभ 2001 में जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी जयेन्द्र सरस्वती जी महाराज एवं महामहिम परमपावन श्री दलाई लामा जी का संयुक्त घोषणापत्र जारी हुआ। महाकुंभ 2013 में दलाई लामा के अनुगामी बौद्घों का, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्ध समिति द्वारा सिखों का एवं जैन साधकों के अलग-अलग शिविर लगना, एक ऐतिहासिक घटना थी। अशोक जी की संतों के प्रति विनम्र समर्पित श्रद्घा एवं राष्टÑ कार्य में संतों से पाथेय प्राप्त करने की लगन इन सब घटनाओं के मूल में रही। केन्द्रीय कार्यालय में रहने पर अशोक जी की दिनचर्या सुबह साढेÞ तीन बजे जागरण से प्रारंभ होती थी। सुनियोजित दिनक्रम में आसन- प्राणायाम- ध्यान- स्वाध्याय तो थे ही। समवेत् एकात्मता स्तोत्रादि के बाद अशोक जी शाखा में आते थे। तत्पश्चात्् अल्प अनौपचारिक वार्ता करते थे। गोमाता को हरी घास और गुड़-रोटी भी खिलाते थे। शरीर स्वास्थ्य की दृष्टि से आवश्यक व्यायाम, चिकित्सा, आहारादि भी दिनचर्या में समाहित रहते थे। दिन भर समष्टि कार्य से जुड़े कामों में व्यस्त रहते थे। वे संत-महात्माओं, विभिन्न संगठनों के कार्यकर्ताओं आदि से भी मिलते थे और सभी की बात ध्यान से सुनते थे।
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