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हरियाणा में गोधन संरक्षण और संवर्धन कानून पर विधानसभा में भाजपा सरकार द्वारा पारित विधेयक पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने मुहर लगा दी है। इसके बाद हरियाणा में गोहत्या, गोमांस का सेवन करना और बेचना पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया गया है। इस कानून का उल्लंघन करने वाले के लिए सख्त सजा का प्रावधान है। गोहत्या करने वाले को 10 वर्ष और गोमांस खाने वाले को 5-5 वर्ष तक की सजा हो सकती है। साथ ही जुर्माना भी लगाया जाएगा। भाजपा सरकार ने देसी गायों को बचाने और गोपालन को बढ़ावा देने के लिए गो संवर्धन-गो सरंक्षण कानून बनाया था। इसे मार्च, 2015 में विधानसभा सत्र के दौरान पारित किया गया और राष्ट्रपति ने इस कानून को स्वीकृति दे दी है। सरकार का कहना है कि गोपालन करना किसान के हित में है। इससे किसान की आर्थिक समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है, लेकिन कुछ लोग निजी स्वार्थ की आपूर्ति के लिए गोतस्करी मंे संलिप्त हो जाते हैं। इसी कारण पिछले कई वषार्ें से गोधन को भारी नुकसान हो रहा था और राज्य की पूर्व सरकार की नीतियां भी इसके संरक्षण के लिए पर्याप्त नहीं थीं। इस कानून के लागू होने से जहां संरक्षण बेहतर होगा, वहीं सरकार की संवर्धन नीति भी किसानों को गोपालन के लिए प्रेरित करेगी।
नस्ल सुधार के लिए 77 करोड़ रुपए
राज्य में जहां गोधन सरंक्षण व संवर्धन कानून को लागू करने में सरकार ने अपनी प्रतिबद्धता दिखाई है। वहीं सरकार परम्परागत देसी गाय की नस्ल को सुधारने की दिशा में कार्य कर रही है। सरकार की योजना है कि नस्ल सुधार के बाद गाय की दुधारु क्षमता बेहतर हो जाएगी।
इससे किसान भी गोपालन में रुचि लेंगे। इसी योजना को क्रियान्वित करने के लिए सरकार ने 77 करोड़ रुपए की राशि निर्धारित की है। साथ ही देसी गायों की डेरी खोलने पर किसान को अनुदान राशि मुहैया कराने की भी योजना बनाई है और सभी 364 गोशालाओं में गाय के लालन-पालन को बेहतर करने के लिए आर्थिक मदद देने की बात कही गई है।
मुख्यमंत्री मनोहर लाल के अनुसार राज्य सरकार किसानों को सम्पन्न बनाना चाहती है। हरित क्रांति के साथ-साथ श्वेत क्रंाति को भी बढ़ावा देना सरकार का लक्ष्य है और गाय श्वेत क्रांति के लिए सबसे अनुकूल दुधारु पशु है। गाय का दूध सर्वाधिक पौष्टिक और स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद है। उनका कहना है कि पारित कानून गोधन की सुरक्षा के लिए कारगर साबित होगा। देश के 24 राज्यों में गोहत्या पर प्रतिबंध लगा है, लेकिन हरियाणा में लागू कानून सभी राज्यों के कानूनों की तुलना में कठोर हैं। -डॉ. गणेश दत्त वत्स
फिर अपना प्राचीन स्वरूप पाएगी सरस्वती!
राष्ट्रीय समाज विज्ञान परिषद् व हरियाणा सरस्वती धरोहर विकास बोर्ड की ओर से भारतीय समाज विज्ञान चिंतन में सरस्वती नदी का महत्व विषय पर 15 नवम्बर को राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई। पिछले दिनों जब सरस्वती नदी के जलप्रवाह को धरा के नीचे खोजने का प्रयास किया गया तो सार्थक परिणाम मिले।
हरियाणा के कृषि मंत्री ओम प्रकाश धनखड़ ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कहा कि अब तक सरस्वती नदी के अस्तित्व को केवल काल्पनिक माना जा रहा था, लेकिन सरस्वती विकास बोर्ड ने जब इसके जलप्रवाह को धरा के नीचे खोजने का अभियान शुरू किया तो परिणाम सार्थक नजर आने लगे। पिछले दिनों मुगलों वाली जिला यमुनानगर में सरस्वती का उद्गम हुआ तो लोगों की खुशी का ठिकाना न रहा। उन्हांेने कहा कि नासा के वैज्ञानिकांे एवं इसरो उपग्रह ने भी इस बात की पुष्टि कई वर्ष पूर्व कर दी थी कि एक धारा पृथ्वी की जमीन के नीचे नजर आई है और यह सरस्वती नदी होने का प्रमाण दिखाती है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार एक योजनाबद्ध तरीकेे से सरस्वती के उद्गम को सभी के सामने लाकर रहेगी।
इसके मद्देनजर आदि बद्री से पिहोवा होते हुए सरस्वती का पौराणिक स्वरूप बहाल करने की योजना पर काम शुरू हो चुका है और सरकार ने वर्तमान बजट में 50 करोड़ रुपए जारी किए हैं। इसमें से कुछ राशि पिहोवा में सरस्वती तीर्थ के विकास पर खर्च की जाएगी। सरस्वती धरोहर विकास बोर्ड के उपाध्यक्ष प्रशांत भारद्वाज ने कहा कि दुनिया की हर नदी किसी न किसी परम्परा या आस्था से जुड़ी है। केवल सरस्वती ऐसी नदी है जिसका संबंध सीधा ज्ञान से है और सरकार का प्रयास है कि सरस्वती नदी की निर्मल जलधारा पृथ्वी के धरातल पर बहे। इस अवसर पर इग्नू विश्वविद्यालय के उपकुलपति सुभाष यादव, प्रो़ नागेश्वर राव, डी. ए. वी. कॉलेज के प्राचार्य कामदेव एवं महाराजा अग्रसैन विश्वविद्यालय के उपकुलपति प्रो. एस. पी. बंसल एवं हरियाणा एस. एस. बोर्ड के अध्यक्ष भारत भूषण भारती सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।
संगोष्ठी में इस बात पर भी चिंतन किया गया कि शोध मंे जो भूगर्भ में 300 मीटर नीचे एक जल प्रवाह है जिसका उद्गम आदि बद्री से लेकर गुजरात के कच्छ तक है। निसंदेह यह सरस्वती नदी ही है और अब भारत ही नहीं विश्व के अनेक इतिहासकार व शोधकर्ता इस बात पर एकमत नजर आने लगे हैं कि भारतीय दर्शनशास्त्र व वेदों में लिखे गए शब्द अकाट्य सत्य हैं।
– प्रतिनिधि
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