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दक्षिणी चीन सागर के विवादित क्षेत्र में गश्त करने को लेकर चीन और अमरीका के बीच लगातार तनाव की स्थिति बनी हुई है। गत 27 अक्तूबर को अमरीकी युद्धपोत 'यूएसएस लासेन' द्वारा दक्षिणी चीन सागर के विवादित क्षेत्र में गश्त करने पर दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया है। अमरीक के युद्ध पोत के वहां गश्त करता दिखाई देने पर चीन ने अमरीकी युद्धपोत के पीछे अपने पोत लगा दिए। चीन की तरफ से अमरीका के युद्धपोत को सीमा क्षेत्र से बाहर जाने की चेतावनी भी दी गई। चीन ने एक कदम आगे बढ़ते हुए चीन में अमरीका के राजदूत को तलब किया और कहा कि अमरीका चीन की सहनशीलता की परीक्षा न ले। अमरीका को चाहिए कि वह उसके द्वारा की गई गलतियों को फौरन रोके। चीन ने यह भी कहा कि अमरीका ऐसा कोई भी कदम न उठाए, जिससे चीन की संप्रभुता और सुरक्षा पर सवाल उठे।
जानकारी के अनुसार दक्षिण और पूर्व चीन समुद्र के काफी इलाके पर चीन वर्षों से अपना हक जताता है। दक्षिण-पूर्व एशिया के कई देश भी इस इलाके में स्थित स्प्रेटली आइलैंड, पैरासेल आइलैंड्स पर अपना दावा जताते रहते हैं। इस क्षेत्र में ऊर्जा के बड़े स्रोत हैं। इस क्षेत्र पर दावा जताने वाले देशों में ताइवान, फिलीपींस, वियतनाम और मलेशिया शामिल हैं। इस समुद्री रास्ते से हर साल 7 ट्रिलियन डॉलर का व्यवसाय किया जाता है। वर्ष 2013 के आखिर में चीन ने एक बड़े प्रोजेक्ट के तहत पानी में डूबे इस क्षेत्र को 'बनावटी द्वीप' में बदल दिया था। चीन दक्षिणी चीन सागर क्षेत्र में 12 समुद्री मील इलाके पर हक जताता है। वहीं अमरीका को लगता है कि चीन इस क्षेत्र में सैन्य गतिविधियां बढ़ा रहा है। यह इलाका दक्षिण चीन सागर में बने 'बनावटी द्वीप' के आसपास का ही है। अमरीका का कहना है कि 'बनावटी द्वीप' बनाने से किसी देश को उसकी सीमा तय करने की अनुमति नहीं मिलती है। समुद्र में नौवहन की स्वतंत्रता बनाए रखना आवश्यक है। अंतरराष्ट्रीय समुद्र कानून देशों को उनकी समुद्री सीमा से 12 समुद्री मील तक के क्षेत्र में अधिकार देता है। इसके बाहर का क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय माना जाता है। कोई भी देश इस सीमा के बाहर किसी क्षेत्र पर दावा नहीं कर सकता है। उल्लेखनीय है कि अमरीका ने 2013 और 2014 में भी इस क्षेत्र के आसपास गश्त की थी। दक्षिणी चीन सागर के इस विवादित क्षेत्र को लेकर दोनों देशों के बीच तभी से तनाव की स्थिति बनी हुई है।
गत 27 अक्तूबर को हुई इस ताजा घटना के बाद चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने कहा है कि यह गैरकानूनी है। अगर अमरीकी युद्धपोत हमारी सीमा में दाखिल हुआ है तो हम अमरीका को ऐसा करने से पहले दोबारा सोचने की सलाह देते हैं। यह चीन की संप्रभुता पर आक्रमण है। चीन की तरफ से इस बयान के आने के बाद व्हाइट हाउस के प्रवक्ता जॉस अर्नेस्ट ने भी पलटवार करते हुए कहा कि अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत जहां मर्जी होगी, हम वहां जहाज ले जाएंगे, फिर चाहे वह दक्षिण चीन सागर ही क्यों न हो। ल्ल
चीन की तरफ बढ़ रहा है नेपाल
सदैव से भारत का मित्र राष्ट्र रहा नेपाल चीन की गोद में बैठने को तैयार है। भारत को छोड़कर चीन की तरफ जाने की स्पष्ट बात बोलने के बाद नेपाल ने अब एक और कदम इस तरफ बढ़ा दिया है। अभी तक तेल खरीद व अन्य जरूरी ईंधनों के लिए के लिए नेपाल केवल भारत पर ही निर्भर था। भारत से ही नेपाल को तेल की आपूर्ति की जाती थी। अब नेपाल ने चीन से सभी प्रकार के ईंधन आयात करने के लिए पेट्रो चाइना के साथ सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं।
नेपाल लंबे समय से इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आईओसी) से तेल खरीदता आ रहा है। नेपाल का कहना है कि पिछले एक महीने से नेपाल में तेल की आपूर्ति न होने से वह ऐसा करने जा रहा है। भारत के स्पष्ट करने के बाद भी कि उसकी तरफ से कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया है नेपाल चीन की तरफ बढ़ने को तैयार दिखता है।
जानकारी के अनुसार नेपाल में नए संविधान के लागू होने के बाद मधेशियों को अनदेखा किए जाने के चलते नेपाल में जगह-जगह मधेशियों के आंदोलन हो रहे हैं। मधेशियों के आंदोलन की वजह से भारत-नेपाल सीमा पर नेपाल को आवश्यक वस्तुएं ले जाने वाले ट्रक फंसे हुए हैं। नेपाल मधेशियों के आंदोलन के लिए भारत को जिम्मेदार ठहरा रहा है। जबकि भारत इस मामले में अपनी स्थिति को पहले ही स्पष्ट कर चुका है। पेट्रो चाइना के साथ हुए समझौते के बाद चीन में नेपाल के राजदूत महेश मस्के ने नेपाली मीडिया को बताया कि सहमति होने से नेपाल के लिए चीन से ईंधन मंगाने का रास्ता साफ हो गया है। उल्लेखनीय है कि नेपाल हर वर्ष इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन से तकरीबन 130 करोड़ डॉलर का पेट्रोल खरीदता है। इसके अलावा दवाइयां, कपड़ों समेत अन्य जरूरी वस्तुएं भी भारत से नेपाल के लिए जाती हैं। तकरीबन दो महीने पहले भारत और नेपाल के अधिकारियों के बीच एक पेट्रोलियम पाइपलाइन समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। इससे पहले तक नेपाल ने कभी चीन से पेट्रोल नहीं खरीदा था। वहीं नेपाल के साथ तेल समझौता करने के बाद चीन ने नेपाल में भारत के साथ दोस्ताना बातचीत की तत्परता जाहिर की है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लू कांग ने पत्रकारों से कहा, 'भारत और नेपाल दोनों चीन के मित्रवत पड़ोसी हैं।' हम आशा करते हैं कि क्षेत्रीय स्थिरता के लिए सभी संबंधित देश एक साथ बैठकर दोस्ताना बातचीत कर सकते हैं ताकि आम सहमति पर पहुंचा सके। उल्लेखनीय है कि चीन वर्षों से नेपाल में अपनी पैठ जमाने की कोशिश कर रहा है। चीन चाहता है कि नेपाल के रास्ते दक्षिणी एशिया में अपने व्यापार को बढ़ाना चाहता है। इसके अलावा चीन की और भी कई अन्य महत्वाकाक्षाएं हैं।
-प्रस्तुति : आदित्य भारद्वाज
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