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गोपाल की भूमि भारत में शायद ही कोई ऐसा हो जो यह न जानता हो कि गाय भारत में पूज्य है, उसे माता मानकर पूजा जाता है। लेकिन तब भी कुछ सिरफिरे किस्म के लोग मैक्समूलर, ग्रिफ्फिथ और विल्सन सरीखे तथाकथित विद्वानों की अधकचरी व्याख्याओं को सिर-माथे रखकर गोमांस भक्षण करने को भारत की बहुलतावादी संस्कृति का मापदण्ड घोषित करने की हिमाकत करते हैं। उनके साथ सेकुलर मीडिया के झण्डाबरदार खड़े होकर सनातन संस्कृति को कठघरे में खड़ा करने में मशगूल हो जाते हैं। आजम खान, लालू यादव, शोभा डे, मार्कण्डेय काटजू और उनके जैसे साम्प्रदायिक उन्माद भड़काने वालों को यह घोषणा करने में रत्तीभर शर्म नहीं आती कि 'बीफ' खाने में कोई बुराई नहीं है।
जिस मुद्दे पर सब भारतीयों को एकजुट होकर दुनिया से गोवध बंद कराने के लिए खड़े होना चाहिए था उस पर आजम खान जैसे तत्व देश तोड़ने का रास्ता खोलने की राजनीति करते हैं। मां को 'मांस' समझने की मानसिकता भारत में अशांति और हिंसा का माहौल बना ही रही है। लेकिन यह सुखद है कि हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने गोहत्या पर रोक लगाने को कहा है। साथ ही न्यायालय ने केन्द्र सरकार से इस सम्बंध में 3 महीने में कानून बनाने को भी कहा है।
यहां हम गाय के महत्व, वेदों में उसके उच्च स्थान और उस पर हो रही ओछी राजनीति की कलई खोलता एक विशेष आयोजन प्रस्तुत कर रहे हैं।
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