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तकथाकथित सेकुलर मीडिया को मानो लंबे समय बाद वह खबर मिल गई, जिसका उन्हें इंतजार था। दिल्ली से सटे दादरी में एक उन्मादी भीड़ ने उकसावे में आकर एक मुसलमान व्यक्ति की हत्या कर दी। कारण बताया गया कि लोगों को गोवध का शक था। अगर इस समाचार में 'मुसलमान' और 'गोवध', दो शब्द हटा दिये जाएं तो यह खबर उत्तर प्रदेश के लिए रोज-रोज की बात हो जाएगी। एक ऐसा राज्य जहां कानून-व्यवस्था नाम की चीज नहीं है, जहां सत्ताधारी दल बाकायदा गुंडों को प्रश्रय देता है, जहां तुष्टीकरण के नाम पर कट्टरपंथियों को कुछ भी करने की छूट है, वहां ऐसा होना निश्चित रूप से कोई बड़ी बात नहीं है।
जैसी कि उम्मीद थी किसी पहले से लिखी-लिखाई पटकथा की तरह पूरा घटनाक्रम आगे बढ़ा। राज्य की कानून-व्यवस्था के प्रश्न पर प्रधानमंत्री से बयान जारी करवाने की जिद शुरू हो गई। विपक्ष से लेकर मीडिया तक ने पहली नजर में भाजपा और हिंदू संगठनों को दोषी ठहरा दिया। लेकिन जो सबसे आपत्तिजनक हुआ वो यह कि पूरे हिंदू धर्म की तुलना बर्बर इस्लामी आतंकवादियों के साथ शुरू कर दी गई। समाचार चैनलों ने भले ही यह बात अपने विचार के तौर पर नहीं कही हो, लेकिन कुछ तथाकथित सेकुलर विद्वानों और कठमुल्लाओं को लगभग हर चैनल पर ऐसी बातें बोलने का मौका दिया गया। ये वही विद्वान हैं जो देश में फैले मुस्लिम आतंकियों और तालिबान या आईएसआईएस जैसे संगठनों की करतूतों पर चुप रहते हैं।
कहने को मीडिया का एक नियम है कि जब भी कोई ऐसी सांप्रदायिक घटना होती है तो धर्म का नाम नहीं लेते। लेकिन कोई भी ऐसी घटना जिससे अल्पसंख्यक समुदाय को भड़काया जा सके, हिंदू धर्म को बदनाम किया जा सके और भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि बिगाड़ी जा सके, मीडिया अपना बनाया नियम ही भूल जाती है। इससे लोगों के मन में यह शक पनपता है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि मीडिया में कुछ लोग देश के खिलाफ किसी षड़यंत्र का हिस्सा बन चुके हैं।
एबीपी न्यूज चैनल ने बीते हफ्ते सनातन संस्था के विरुद्घ एक स्टिंग ऑपरेशन प्रसारित किया। नीयत कहीं न कहीं हिंदू धर्म को लांछित करने की दिखाई दी। दावा किया कि संस्था ने दो लड़कियों का वशीकरण करके अपने पास बंधक बनाया है।
दोनों लड़कियों की उम्र 18 साल से अधिक थी। उन्होंने अगले ही दिन प्रेस कांफ्रेंस करके सारी सच्चाई बता दी। लेकिन बेशर्मी ऐसी कि खुद को अंधश्रद्घा निर्मूलन कार्यकर्ता बताने वाले एक सज्जन टीवी पर रट लगाते रहे कि वशीकरण की बात सही है। ऐसे लोगों के भरोसे अंधविश्वास भला कैसे खत्म होगा? इसी समाचार के बारे में ट्विटर पर एक मजेदार टिप्पणी रही कि 'हो सकता है कि कुछ दिन में अंधश्रद्घा के विरोध में अभियान चलाने वाले लोग यह कहने लगें कि नरेंद्र दाभोलकर की हत्या जादू-टोने से की गई है।'
संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक के सिलसिले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमरीका के दौरे पर गए थे। कांग्रेस प्रायोजित पत्रकारों ने इस दौरान विवाद पैदा करने की हरसंभव कोशिशें कीं। न्यूयार्क के होटल में एक भारतीय मूल के शेफ ने मूक बधिर बच्चे की बनाई तिरंगे की पेंटिंग पर प्रधानमंत्री के आटोग्राफ लिए तो मीडिया ने बिना कुछ भी सोचे-समझे हंगामा मचा दिया। कुछ बड़े संपादकों ने सोशल मीडिया के जरिए इस झूठ को फैलाने में मदद की। कहा गया कि प्रधानमंत्री ने तिरंगे का अपमान किया है। क्या मीडिया के लिए यह शर्म की बात नहीं है कि सरकार को बयान जारी करके उन्हें बताना पड़े कि तिरंगे से जुड़े क्या नियम हैं?
जिस वक्त संयुक्त राष्ट्र में प्रधानमंत्री देश का सिर ऊंचा कर रहे थे, उसी समय कांग्रेस के 'शहजादे' राहुल गांधी अमरीका में छुट्टियां मना रहे थे। अब तक गांधी परिवार का कोई भी सदस्य जब विदेश दौरे पर जाता था तो मीडिया गांधीजी के तीन बंदरों की तरह आंख, मुंह और कान बंद कर लेता था। लेकिन शायद पहली बार हुआ जब मीडिया ने राहुल गांधी की खोज खबर ली। शायद इस 'हिमाकत' की वजह से कांग्रेस के प्रवक्ता थोड़ी उलझन में आ गए। कांग्रेस के प्रवक्ता मीडिया में आकर राहुल की 'गुप्त यात्रा' पर सफाई देते रहे, लेकिन जनता की नजर में और भी हंसी के पात्र बनते रहे।
2 अक्तूबर को टीवी टुडे के स्वच्छ भारत कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शामिल हुए। उन्होंने अपने भाषण में बताया कि स्वच्छता के अभियान को लेकर उनकी कल्पना क्या है। स्वच्छ भारत अभियान को लेकर खास तौर पर इलेक्ट्रानिक मीडिया में चलने वाले कार्यक्रमों की उन्होंने प्रशंसा भी की और साथ ही देशहित से जुड़े इस कार्यक्रम को लेकर चुटकुलेबाजी करने वालों को चेताया भी कि अगर वे इस अभियान में साथ नहीं दे सकते तो कम से कम मजाक न उड़ाएं। प्रधानमंत्री का यह वक्तव्य मुख्यधारा मीडिया और सोशल मीडिया में नकारात्मकता फैला रहे एक वर्ग के लिए खुला संदेश था।
नेपाल में नया संविधान लागू होने के साथ ही मधेशी समुदाय का आंदोलन भी शुरू हो गया। यह आवाज हर तरफ उठ रही है कि नेपाल का नया संविधान बराबरी के बजाय भेदभाव पर आधारित है। लेकिन भारतीय मीडिया का बड़ा तबका खुश है कि नेपाल ने खुद को हिंदू देश नहीं बनाया है। यह अलग बात है कि खुद नेपाल के मुसलमान ही बीते कई दिनों से आंदोलन कर रहे हैं कि नेपाल को दोबारा हिंदू राष्ट्र बनाया जाए, क्योंकि तब वे ज्यादा सुरक्षित थे।
भारत ने नया संविधान लागू होने पर नेपाल को बधाई क्यों नहीं दी, इस पर लगभग सभी समाचार चैनलों पर चुटकियां ली गईं। बिना यह सोचे कि यह दो देशों के रिश्ते का मामला है, भारत सरकार देश के हितों को लेकर अगर किसी तरह की रणनीति अपनाती है तो उसके असर के लिए थोड़ा इंतजार तो किया ही जा सकता है। बजाय यह कहने के कि भारत नेपाल के मामलों में दखलंदाजी कर रहा है।
नारद
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