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नेपाल में नए संविधान में अपनी अनदेखी किए जाने से क्षुब्ध मधेशियों के आंदोलन के कारण भारत से नेपाल जाने वाले सामान की आपूर्ति ठप पड़ गई। इस पर नेपाल ने संयुक्त राष्ट्रसंघ में यह मुद्दा उठाते हुए कहा कि भारत नेपाल में दवाइयों व पेट्रोल जैसी चीजों की आपूर्ति रोक रहा है। इतना ही नहीं, नेपाल ने चीन की तरफ जाने की चेतावनी भी दे डाली। हालांकि भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि नेपाल में हो रहे प्रदर्शनों में उसका कोई हाथ नहीं है। भारत से नेपाल जाने वाली किसी भी चीज की आपूर्ति नहीं रोकी गई है। जहां तक चीन की बात है तो बता दें कि पिछले कुछ वर्षों से चीन नेपाल में विशेष रुचि दिखा रहा है। वह नेपाल की राजधानी काठमांडू को अपनी ल्हासा-बिजिंग रेलवे लाइन से जोड़ने के साथ-साथ नेपाल में रेलमार्ग बनाने के लिए भी तैयारी कर रहा है। चीन नेपाल में निवेश बढ़ा रहा है। उसने वहां पन बिजली योजनाओं में भी निवेश किया है। इसके अलावा चीन नेपाल में चीनी भाषा और संस्कृति के केंद्र भी खोल रहा है। दरअसल चीन चाहता है कि नेपाल की निर्भरता भारत पर न होकर उस पर रहे और वह नेपाल के जरिए दक्षिणी एशिया में अपना व्यवसाय बढ़ा सके। इसके अलावा चीन की मंशा सदैव से भारतीय सीमा में घुसपैठ करने की रही है। यदि भारत और नेपाल संबंधों की बात करें तो दोनों देशों के पुराने और गहरे संबंध हैं। पिछले वर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेपाल की यात्रा की थी। करीब दो दशक बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने तब नेपाल का दौरा किया था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उस दो दिवसीय नेपाल यात्रा के दौरान नेपाली जनता द्वारा जिस जोर-शोर से उनका स्वागत किया था वह सबने देखा। शायद ऐसा भी पहली बार ही हुआ कि नेपाल में किसी देश के प्रधानमंत्री के स्वागत में दो दिन का राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया गया था। पड़ोसी धर्म निभाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी खुले दिल से नेपाल की सहायता करने का वायदा किया उन्होंने वायदा निभाया भी। इसके बाद जब अप्रैल 2015 में नेपाल में भूकंप आया तो दुनिया जानती है कि वहां मदद पहुंचाने में भारत सबसे आगे रहा। ये बात अलग है कि इस पर भी राजनीति की गई। बहरहाल नेपाल में नया संविधान लागू हो चुका है। 20 सितंबर 2015 को नेपाल में नया संविधान लागू हुआ। इसके बाद नेपाल हिंदू राष्ट्र नहीं रहा बल्कि पंथनिरपेक्ष राष्ट्र बन गया। इसके अलावा भी नेपाल के संविधान में कई संशोधन हुए जो नेपाल में रहने वाले मधेशियों को रास नहीं आए । आने भी नहीं थे। क्योंकि उनका कहना है कि नए संविधान में उनकी और उनके क्षेत्रों की अनदेखी की गई है जबकि नेपाल में दो तिहाई से ज्यादा संख्या मधेशियों की है। नए संविधान के अनुसार नेपाल की संसद में 165 सदस्य होंगे। इनमें से 100 सीटें पर्वतीय इलाकों को दी गई हैं, जहां 50 प्रतिशत से भी कम आबादी रहती है। जबकि बाकी की 65 सीटें तराई के उन इलाकों को दी गई हैं जहां आबादी ज्यादा है। इनमें ज्यादा संख्या मधेशियों की है। इसके अलावा संविधान में कई ऐसे प्रावधान हैं जिनके कारण मधेशी संतुष्ट नहीं हैं। जैसे संविधान में प्रावधान किया गया है कि राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश, संसद के अध्यक्ष, राज्यों के मुख्यमंत्री, राज्य विधानसभा के अध्यक्ष आदि पदों पर केवल मूल नेपालवंशी ही चुने जा सकते हैं। इसका अर्थ हुआ कि जन्म से नेपाल की नागरिकता लेने वाले या वहां शताब्दियों से रह रहे मधेशी इन पदों के लिए अपनी दावेदारी नहीं कर सकते। मधेशियों की बड़ी संख्या में शादी भारत में होती है। नए संविधान में नागरिकता के लिए अलग से आवेदन करने का प्रावधान किया है जबकि पहले ऐसा नहीं होता था। यदि किसी मधेशी की भारत में शादी होती थी तो उसकी पत्नी को स्वत: ही वहां की नागरिकता मिल जाती थी। फिलहाल नेपाल में मधेशियों का विरोध जारी है। मधेशियों के विरोध के चलते नेपाल में हो रहे हिंसक प्रदर्शनों में अभी तक 50 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। मधेशियों के बंद के चलते नेपाल में भारत की ओर होने वाला निर्यात ठप सा पड़ गया है। इस कारण नेपाल में तेल व अन्य बुनियादी वस्तुओं की किल्लत हो गई है। नेपाल इसका कारण भारत को मान रहा है। खुफिया एजेंसियों द्वारा भेजी गई रपट में भी कहा गया है कि नेपाल के लोगों को लग रहा है कि वहां जो प्रदर्शन हो रहे हैं वे भारत के इशारों पर हो रहे हैं। भारत में नेपाल के राजदूत दीपकुमार ने तो यहां तक कह दिया कि भारत हमें दूसरे देशों से संपर्क करने के लिए मजबूर न करे। उन्होंने कहा कि 'सामान भेजने में दिक्कते हैं लेकिन यदि कोई विकल्प नहीं बचेगा तो नेपाल चीन सहित अन्य देशों से इस बारे में संपर्क करेगा'। वहीं भारत ने भी यह स्पष्ट किया है कि मधेशियों के बंद में उसकी कोई भूमिका नहीं है। नेपाल में तैनात भारत की कॉन्सुलेट जनरल अंजू रंजन का कहना है कि बंद भारत ने नहीं बल्कि नेपाल के अपने मधेशियों ने किया है।
मधेशी नए संविधान में अपनी मांगों को शामिल करवाना चाहते हैं। जिसके लिए वे आंदोलन और प्रदर्शन कर रहे हैं। वहीं चीन जो हमेशा से भारतीय सीमा में घुसपैठ करता रहा है वह अपनी मंशा पूरी करने के लिए नेपाल में पैर जमाना चाहता है ताकि नेपाल में पैर जमाकर वह आसानी से भारत पर दबदबा बढ़ा सके। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का भारत का नाम लिए बिना यह कहना कि बड़े देशों को चाहिए कि वह छोटे देशों के अंदरूनी मामलों में दखल न दें, उनकी मंशा स्पष्ट करता है। नेपाल इस बात को समझते हुए अपने अंदरूनी मामलों को सुलझाकर शांति से तमाम मसलों का हल निकाले। प्रस्तुति: आदित्य भारद्वाज
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