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तेइस सितम्बर, 2015 को नई दिल्ली से चलकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आयरलैंड पहंुचे थे। 60 साल बाद भारत के किसी प्रधानमंत्री ने आयरलैंड की राजधानी डबलिन में कदम रखा था। मोदी वहां दो दिन रहे और भारत-आयरलैंड के बीच साझे सहयोग पर चर्चा के बाद 25 सितम्बर को अमरीका के न्यूयार्क शहर पहंुचे। संयुक्त राष्ट्र संघ की 70वीं आमसभा में भाग लेने के लिए। अमरीका की धरती पर प्रधानमंत्री के नाते उनकी यह दूसरी यात्रा थी। इससे पहले वे 2014 के सितम्बर महीने में ही गए थे। और उस वक्त उन्होंने मेडिसन स्क्वायर गार्डन में जो उभरते भारत का जो खाका खींचा था, उससे वहां बसे भारतीय ही नहीं, अमरीकी सरकार के नुमाइन्दे तक बाग-बाग हो गए थे। इस बार उससे ज्यादा उत्साह, आत्मविश्वास के साथ उन्होंने अमरीका को उसकी धरती पर कदम धरते ही सम्मोहित किया। उनके साथ भरोसा था एक सौ पच्चीस करोड़ भारतवासियों के पुरुषार्थ का। और यह स्वीकार करने में मोदी ने जरा भी संकोच नहीं किया। सान जोस में सैप सेंटर में बैठे हजारों भारत-प्रेमियों और अमरीकी राजनीतिकों, सांसदों के सामने खुलकर स्वीकारा कि आज जो भारत का हौसला बढ़ा दिखता है, आज जो भारत विकास की लंबी छलांग लगाने को तैयार दिखता है, आज जो भारत 21वीं सदी को अपने नाम मानता है तो उसके पीछे एकमात्र शक्ति है एक सौ पच्चीस करोड़ भारतवासियों की। यह मोदी जैसे नेता के ही बस की बात है कि वह लोकप्रियता के शिखर पर पहंुचने के बाद भी सारा श्रेय देशवासियों को दे, सारा गौरवगान उन देशवासियों की देन माने जिन्होंने एक गरीब परिवार में जन्म लेने के बाद, संघर्षों के बीच राह बनाने वाले व्यक्ति के हाथों देश की बागडोर सौंप दी।
और शायद राष्ट्रपति बराक ओबामा को मोदी की यही साफगोई भा गई थी, जब उन्होंने फरवरी 2015 में भारत आने के बाद कहा था कि वे भारत की तरक्की में कंधे से कंधा मिलाकर चलने को, हर तरह का सहयोग देने को तैयार हैं। मोदी ने अपने उसी सूत्र को इस बार की यात्रा में नया आयाम देते हुए बरास्ते अमरीका डिजिटल भारत का खाका दुनिया के सामने रखा। उन्होंने बताया कि कैसे मेक-इन-इंडिया और डिजिटल इंडिया और ई गवर्नेंस आज भारत सरकार के मूल-मंत्र बन गए हैं, कैसे सरकार आज पूरा तंत्र डिजिटल करने को तैयार है। किसलिए? इससे क्या होगा? ऐसे सवालों के जवाब भी मोदी के पास तैयार थे। उन्होंने साफ कहा है, एक नहीं अनेक अवसरों पर कहा है, कि कागजी पुलिंदों से निजात पाने, काम को सुगम बनाने, तंत्र को चुस्त करने, दलालों की छुट्टी करने, भ्रष्टाचारियों के रास्ते बंद करने और विकास पथ पर तेजी से बढ़ने के लिए डिजिटल इंडिया का नारा अपनाना आज वक्त की मांग है।
मोदी के दिल से निकले इसी आह्वान का जादू था कि उनके अमरीका की धरती पर कदम धरते ही वहां के शीर्ष उद्योगपतियों, राजनीतिकों, आईटी के महारथियों और कूटनीतिकों में उनसे मिलने की उत्सुकता देखते ही बनती थी। अपने दो दिन के न्यूयार्क प्रवास में मोदी ने जहां संयुक्त राष्ट्र संघ की आमसभा में भाग लिया वहीं देश के चोटी के उद्योगपतियों ने गोलमेज पर मोदी से चर्चा करके भारत के विकास में सहयोग का संकल्प व्यक्त किया। संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा में अपने भाषण में प्रधानमंत्री मोदी ने कई ऐसे बिन्दुओं की विस्तार से चर्चा की जो आज दुनिया के हर देश के मानस को मथ रहे हैं। सबसे पहले गरीबी। उन्होंने कहा, 'हम सब गरीबी से मुक्त विश्व का सपना देख रहे हैं। हमारे निर्धारित लक्ष्यों में गरीबी उन्मूलन सब से ऊपर है। आज दुनिया में 1़3 अरब लोग गरीबी की दयनीय जिंदगी जीने के लिए मजबूर हैं। हमारे सामने प्रश्न केवल यह नहीं है कि गरीबों की आवश्यकताओं को कैसे पूरा किया जाये। और न ही यह केवल गरीबों के अस्तित्व और सम्मान तक ही सीमित प्रश्न है।' उन्होंने सदस्य देशों का आह्वान करते हुए कहा कि अगर हम सब का साझा संकल्प है कि विश्व शांतिपूर्ण हो, व्यवस्था न्यायपूर्ण हो और विकास सस्टेनेबल हो तो गरीबी के रहते यह कभी भी संभव नहीं होगा। इसलिए गरीबी को मिटाना हम सबका पवित्र दायित्व है। भारत के महान विचारक पंडित दीनदयाल उपाध्याय के विचारों का केंद्र अन्त्योदय रहा है। यूएन के एजेंडा 2030 में भी अन्त्योदय की महक आती है। भारत दीनदयाल जी का जन्मशती वर्ष मनाने की तैयारी कर रहा है, ऐसे में यह निश्चित ही एक सुखद संयोग है।'
मोदी ने आज दुनिया के सामने मुंहबाए खड़ी पर्यावरण की समस्या और वैश्विक ताप के दानव पर खुलकर अपने विचार रखे। इनको सुधारने के लिए भारतीय संस्कृति में से ही सूत्र सामने रखे। उनका कहना था, 'अगर हम जलवायु परिवर्तन की चिंता करते हैं तो कहीं न कहीं हमारे निजी सुख को सुरक्षित करने की बू आती है। लेकिन यदि हम पर्यावरण न्याय की बात करते हैं तो गरीबों को प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षित रखने का एक संवेदनशील संकल्प उभरकर आता है। पर्यावरण परिवर्तन की चुनौती से निपटने में उन समाधानों पर बल देने की आवश्यकता है जिनसे हम अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफल हो सकें। हमें एक वैश्विक जन-भागीदारी का निर्माण करना होगा, जिसके बल पर तकनीकी, इन्नोवेशन और वित्त का उपयोग करते हुए हम साफ और 'रीन्यूएबल' ऊर्जा को सर्व सुलभ बना सकें।'
प्रधानमंत्री मोदी ने आमसभा के एजेंडे के मुख्य बिन्दु, यूएन के ढांचे में बदलाव के बारे में कहा कि यह परिवर्तन होना चाहिए। उन्होंने सुरक्षा परिषद सहित समग्र बदलाव की बात की। उल्लेखनीय है कि भारत की सुरक्षा परिषद में स्थायी भागीदारी की प्रबल दावेदारी है। अब अमरीका सहित अनेक देशों ने भारत की इस दावेदारी का समर्थन किया है। बदलते वक्त और बढ़ती चुनौतियों के संदर्भ में ये बदलाव होने ही चाहिए। अपने भाषण का समापन भी मोदी ने 'सर्वे भवन्तु सुखिन:…' श्लोक के साथ किया।
जिस राजनेता की संस्कृति उसे 'सर्वे भवन्तु सुखिन:…' का मार्ग दिखाती हो उसके साथ सहयोग के लिए सभी का तत्पर रहना स्वाभाविक ही है। कई शीर्ष उद्योपतियों ने प्रधानमंत्री मोदी के साथ 'स्टार्ट-अप इंवेस्टमेंट' वार्ता में भाग लिया। शामिल होने वालों में जे. पी. मॉरगन के सीईओ और अध्यक्ष जेमी डिमोन, ब्लैकस्टोन के सह संस्थापक, अध्यक्ष और सीईओ स्टीव श्वार्त्जमेन, वार्गबर्ग पिनकस के सह-सीईओ चार्ल्स केए, केकेआर के सह अध्यक्ष और सह सीईओ हेनरी क्रेविस, जनरल अटलांटिक के सीईओ बिल फोर्ड, एआईजी इंश्योरेंस के अध्यक्ष और सीईओ पीटर हेनकॉक, टाइगर ग्लोबल के सह संस्थापक और प्रबंध साझीदार चेज कॉलमेन और एन.वाई. स्टेट कॉमन रिटायरमेंट फंड के विकी फुलर प्रमुख थे। मोदी ने भारत सरकार के उद्योगों को खास तरजीह देने, कानूनी अड़ंगे खत्म करने, कायदों को सरल बनाने के संकल्प के बारे में बताया। मेक-इन-इंडिया के जरिए भारत की तरक्की में साथ देकर उससे फायदा उठाने का आह्वान किया। बात हजम होनी ही थी, सो हुई भी। अमरीकी उद्योगपतियों ने कहा कि वे भारत में पूंजी निवेश की संभावनाओं को ख्ंागालने को तैयार हैं। नरेन्द्र मोदी ने एक बड़ा दिलचस्प नाम भी गढ़ा इस पहल का-'पर्सनल सेक्टर'। प्रधानमंत्री ने ही खुलासा किया कि 'प्राइवेट सेक्टर' और 'पब्लिक सेक्टर' की तर्ज पर ही है यह 'पर्सनल सेक्टर', जिसमें व्यक्तिगत स्तर पर शुरुआत करने वालों और उद्यमियों को प्रोत्साहन दिया जाएगा।
इससे बाद प्रधानमंत्री दो दिन (27-28 सितम्बर) के लिए कैलिफोर्निया गए। वहां भी एक के बाद एक बड़े नेताओं, राजनीतिकों, अधिकारियों और प्रवासी भारतीयों का उनसे मिलने आना जारी रहा। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण रही मोदी की सिलिकन वैली के आईटी क्षेत्र के दिग्गजों से मुलाकात, जो डिजिटल इंडिया के बढ़ते कदमों और मोदी के नेतृत्व में भारत में आईटी क्षेत्र में बढ़ती संभावनों से अभिभूत थे। माइक्रोसॉफ्ट के बिल गेट्स और सत्या नडेला के अलावा उनसे मिलने वालों में थे फेसबुक के मार्क जुकरबर्ग, गूगल के सुंदर पिचई, अडोबे के शांतनु नारायण, सिस्को के जॉन चैम्बर्स, एप्पल के टिम कुक और क्वालकॉम के पॉल जैकब्स। सिलिकन वैली की दिग्गज कंपनियों ने कुछ कमाल की घोषणाएं कीं। गूगल कंपनी 500 रेल स्टेशनों पर मुफ्त वाई-फाई लगवाएगी। माइक्रोसॉफ्ट 5 लाख गांवों में ब्रॉडबेंड इंटरनेट उपलब्ध कराएगी। जल्द ही भारत में माइक्रोसॉफ्ट डाटा सेन्टर चालू होंगे। गुजराती सहित गूगल 10 भारतीय भाषाओं में टाइप करने की सुविधा देगी। क्वालकॉम स्टार्ट-अप्स के लिए डेढ़ करोड़ डालर का अनुदान देगी। एप्पल भारत में उत्पादन करेगी। फेसबुक ने तो डिजिटल इंडिया को हाथोंहाथ लिया है। मोदी का फेसबुक मुख्यालय में 40 हजार सवालों में से चुनिंदा 4 सवालों का जवाब दिया। फेसबुक के प्रमुख मार्क जुकरबर्ग द्वारा उनके माता-पिता के उनके जीवन में योगदान के बारे में पूछे जाने पर वे भावुक हो गए और उन दुखों-कष्टों की चर्चा की जो उन्होंने गरीबी के कारण झेले थे। वे गूगल मुख्यालय में भी गए और वहां भी डिजिटल भारत के साकार होते सपनों की जानकारी दी।
मोदी के ऐसे प्रयासों को असाधारण सहयोग और समर्थन से उत्साहित अनिवासी भारतीयों ने सान जोस का सैप सेन्टर मोदी के अभिनन्दन के लिए ठसाठस भर दिया। मुसलमानों की भी अच्छी-खासी संख्या थी वहां। भारत माता की जय और मोदी जिंदाबाद के नारे सेन्टर के बाहर बहुत दूर तक गूंज रहे थे। तिरंगों से माहौल तिरंगा था। उमंग और आनन्द का वातावरण था। मोदी आए और अपनी अनूठी शैली में छा गए। उन्होंने कहा कि अमरीका को भारतीयों का बौद्धिक निवेश प्राप्त हुआ है। भावी भारत का आशावादी चित्र खींचते हुए उन्होंने अपनी सरकार की प्रधानमंत्री जन-धन योजना, बीमा योजना, किसान हित योजनाओं और युवाओं के लिए विशेष प्रावधानों का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि 21 वीं सदी भारत की है, इसमें कोई संदेह नहीं है। आतंवाद पर तीखा प्रहार करते हुए उन्होंने कहा, 'आतंकवाद की स्पष्ट परिभाषा होनी चाहिए। आतंकवाद अच्छा या बुरा नहीं होता, वह आतंकवाद होता है।' संयुक्त राष्ट्र तय करे कि किसको आतंकवादी मानता है, किसको मानवतावादी मानता है। मोदी ने बिना नाम लिए आतंकवाद को पोसने वालों को सावधान किया कि आतंकवाद नहीं चलेगा। 29 सितम्बर की देर शाम प्रधानमंत्री नई दिल्ली लौटे तो उनके चेहरे पर एक सफल, सार्थक यात्रा से उपजा आत्मविश्वास झलक रहा था। ल्ल
मोदी से मिले अमरीका के चोटी के उद्योगपति
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अमरीका दौरे का वहां के शीर्ष उद्योगपतियों ने पूरा लाभ उठाया और उनसे विशेष तौर पर भेंट की। ध्यान देने वाली बात यह है कि अमरीका के राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक समीकरणों पर इन उद्योगपतियों का अच्छा-खासा असर रहता है। गोलमेज वार्ता में मोदी से मिलने वाले अमरीकी उद्योगपतियों में प्रमुख थे-जे. पी. मोरगन के सीईओ और अध्यक्ष जेमी डिमोन, ब्लैकस्टोन के सह संस्थापक, अध्यक्ष और सीईओ. स्टीव श्वार्त्जमेन, वार्गबर्ग पिनकस के सह-सीईओ चार्ल्स केए, के.के.आर. के सह अध्यक्ष और सह सीईओ हेनरी क्रेविस, जनरल अटलांटिक के सीईओ बिल फोर्ड, एआईजी इंश्योरेंस के अध्यक्ष और सीईओ पीटर हेनकॉक, टाइगर ग्लोबल के सह संस्थापक और प्रबंध साझीदार चेज कॉमेन और एन.वाई. स्टेट कॉमन रिटायरमेंट फंड के विकी फुलर।
आईटी के दिग्गजों से भेंट
प्रधानमंत्री मोदी की आईटी क्षेत्र में तेजी से विकास करने और डिजिटल इंडिया को साकार करने की संकल्पना को समझते हुए अमरीका में आईटी क्षेत्र के दिग्गजों ने सान जोस में मोदी से खास मुलाकात की। इसके जरिए उन्होंने भारत में आईटी में साझे सहयोग और निवेश के प्रति इच्छा ही नहीं व्यक्त की बल्कि भारत को पूरी तरह से इस क्षेत्र में स्वावलंबी बनने की प्रक्रिया में मदद का आश्वासन दिया। मोदी से मिलने वाले अमरीका में आईटी के शीर्ष नाम थे-माइक्रोसॉफ्ट के बिल गेट्स, सत्या नडेला, फेसबुक के मार्क जुकरबर्ग, गूगल के सुंदर पिचई, अडोबे के शांतनु नारायण, सिस्को के जॉन चैम्बर्स, एप्पल के टिम कुक और क्वालकॉम के पॉल जैकब्स।
मोदीमय हुआ सैप सेंटर
सान जोस का सैप सेंटर पहले शायद ही कभी ऐसे जोश और उमंग का साक्षी रहा हो जैसा 28 सितम्बर को प्रधानमंत्री मोदी के स्वागत के वक्त दिखी थी। सेंटर के बाहर दूर तक भारत-अमरीका के झंडे लगे थे, सड़क पर लोग टोलियां बनाकर भारत माता की जय के नारे लगाते हुए सेंटर की तरफ बढ़ रहे थे। वहां के अनिवासी भारतीय भारतीय परिधानों में सजे थे। कार्यक्रम शुरू होने से घंटो पहले ही सेंटर खचाखच भर गया था। बड़ी संख्या में मुस्लिम भी पहंुचे थे। सबके मन में एक ही इच्छा थी कि भारत के भाग्य को बदलने का बीड़ा उठाने वाले उस व्यक्ति की एक झलक मिल जाए, भारत को दुनिया में चोटी पर ले जाने के संकल्प के साथ निकले देश के प्रधानमंत्री की राह का खाका उसी के मुंह से सुना जाए। और जब मोदी ने बोलना श्ुारू किया तो बस चारों तरफ मोदी-मोदी के नारे लगने लगे। -आलोक गोस्वामी
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