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अगले बरस तू जल्दी आ…

by
Oct 5, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 05 Oct 2015 12:05:39

 

““सब वोट बैंक की राजनीति- समाज में कुछ ऐसे लोग होते हैं जिन्हें लोगों को सताने में आनन्द आता है।””
 

हिन्दू त्योहारों के आते ही चाहे वह गणेश विसर्जन की बात हो या फिर होली की बात इन सभी त्योहारों पर जो विरोध दिखाई देता है  वह सब वोट बैंक की राजनीति होती है।लेकिन जिस प्रकार आज सरकारें हिन्दुओं  की  शास्त्रसम्मत व्यवस्था में खलल डाल रही हैं वह गलत है। कोई भी सनातन धर्मियों को उनके रीति-रिवाजों और शास्त्रों के अनुरूप चलने से नहीं रोक सकता।  हमारा जीवन धर्मशास्त्रों के अनुसार चलता है।  हम सहिष्षणु हैं,लेकिन जानबूझकर अगर कोई इस प्रकार का कार्य करेगा तो हम उसका जवाब देने के लिए भी सक्षम हैं। देश में अब यह नहीं चलने वाला। अगर हमें कोई दिशा-निर्देशन देना है तो हमारे धर्मशास्त्रों के अनुसार  दें।  हम अपनी परंपरा अनुसार ही जीवन जिएंगे।
— स्वामी श्री अविमुक्तेश्वरानंद
प्रतिनिधि, श्रीशंकराचार्य, ज्योतिष पीठ एवं शारदापीठ  अश्वनी मिश्र

 गणपति बप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ… के उद्घोष के साथ गत दिनों महाराष्ट्र सहित पूरे देश में चल रहा गणपति महोत्सव बड़े ही धूमधाम व हर्षोल्लास के साथ संपन्न हुआ। गणपति महाराज को देश के सुदूर क्षेत्रों में विदाई देने के लिए लोगों का हुजूम उमड़ रहा था। महिलाएं, बच्चे, युवा और वृद्ध सहित लाखों भक्त रंग-गुलाल खेलते और ढोल-नगाड़ों की धुन पर नाचते-गाते विसर्जन यात्रा की शोभा बढ़ा रहे थे। लेकिन जिस बात से लोगों के मन में आक्रोश उत्पन्न हुआ वह यह थी कि गणेश प्रतिमा के विसर्जन के समय प्रशासन ने पर्यावरण प्रदूषण व नदी प्रदूषण के नाम पर प्रतिमाएं प्रवाहित करने पर पूरी तरह रोक लगा दी। यहां तक कि कई स्थानों पर पुलिस ने बल प्रयोग भी किया। इस तुष्टीकरण के रवैये के प्रति देश में आक्रोश दिखाई दिया।
 खासकर उत्तर प्रदेश के काशी में प्रशासन ने गणेश प्रतिमा के विसर्जन पर न्यायालय का हवाला देते हुए रोक लगा दी और न मानने पर पुलिस ने साधु-संन्यासियों और भक्तों पर बेरहम होकर लाठियां भांजी। वहीं सेकुलरों ने भी मौका पाते ही सदैव की भांति इस बार भी विसर्जन से होने वाले प्रदूषण का राग अलापा। लेकिन सवाल है कि आखिर हिन्दुओं के त्योहार आते ही प्रदूषण का ऐसा शोर क्यों उठता है? इसी विषय पर जब हमने नासिक, महाराष्ट्र के गणेश पुंडलिक से उनकी प्रतिक्रिया जाननी चाही तो वे कहते हैं ‘जब भी कोई हिन्दू त्योहार आता है तब ही क्यों सेकुलरों को पानी और पर्यावरण की चिंता होती है। उन्हें पूरे वर्ष भर इसकी चिंता क्यों नहीं रहती? वे आगे कहते हैं ‘आज के समय महाराष्ट्र के गणपति उत्सव में पहले से मंडलों द्वारा यह ध्यान रखा जाता है कि हमारे किसी भी कार्य से पर्यावरण प्रदूषण न हो।
  इसलिए मंडल के कार्यकर्ता गणपति की कागज या फिर घास-मिट्Þटी की मूर्ति तैयार करते हैं।’ वहीं जयपुर के साहित्यकार डॉ. इंदुशेखर तत्पुरुष कहते हैं ‘हिन्दू विरोधी समाज को दिग्भ्रमित करने के लिए ऐसे ‘सॉफ्ट कार्नर’ तलाशते हैं। ऐसे में कुछ इनकी बात को सहज रूप में ले लेते हैं और विरोध शुरू कर देते हैं। अगर हमारे किसी कार्य से पर्यावरण प्रदूषण हो रहा है तो हम उसके रूप में परिवर्तन कर सकते हैं, बशर्ते वह हमारी व्यवस्था के अनुकूल हो। क्योंकि हिन्दुत्व युगानुकूल परिवर्तन के लिए ही जाना जाता है।’ वे आगे कहते हैं कि ‘हिन्दू समाज के सामने जब भी ऐसी कोई  बात आई है तो उसने तर्कों के साथ उसका जवाब भी दिया है।’     

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