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हाराष्ट्र में गणेश महोत्सव पर्व का विशेष आयोजन सदियों से जारी है। आस्था से जुड़े इस आयोजन को लोकमान्य तिलक ने राष्ट्रभक्ति के साथ स्वाधीनता संग्राम की धारा से जोड़ा था। महोत्सव से जुड़ी सामाजिक दायित्व की परिपाटी आज भी समूचे राज्य में जारी है। यद्यपि गणेश महोत्सव के दौरान राज्य ही नहीं, पूरे देश में गणेश भक्तों की श्रद्धा एवं भक्ति अपनी चरम सीमा पर रहती है, महाराष्ट्र में ‘अष्टविनायक’ यानी गणेश जी की आठ प्रतिमाओं के दर्शन-पूजन को सर्वोपरि माना गया है। राज्य में अष्टविनायक प्रतिमाओं के ये स्थान हैं-पाली, महड़, थेऊर, राजणगांव, मोरगांव, सिद्धटेक, लेण्याद्री एवं ओझर। इन अष्ट-विनायकों के लिए महाराजा पेशवा में विशेष श्रद्धा थी और इसी श्रद्धा के कारण पेशवा राज्य में इन मंदिरों को विशेष रूप से खेती-जमीन प्रदान की गयी थी। यह इतिहास रहा है।
इन्हीं अष्ट विनायकों के साथ राज्य के विदर्भ संभाग में बसे अष्टविनायक स्थानों की गणेश प्रतिमाएं भी श्रद्धालुओं के लिए महत्वपूर्ण रही हैं। नागपुर एवं आस-पड़ोस के अष्ट विनायक क्षेत्रों में हैं- सिद्धविनायक (केलझर), वरद विनायक (भद्राबनी), भद्रगणेश (पवनी), भुशुंडगणेश (भंडारा), अष्टादश गणेश (रामटेक), विघ्नेश्वर (अडासा) एवं चिंतामणी (कलंब)।
राज्य की सांस्कृतिक राजधानी पुणे में गणेश पर्व की विशेष परिपाटी रही है। स्वयं लोकमान्य तिलक ने सार्वजनिक गणेशोत्सव की शुरुआत बड़े पैमाने पर पुणे में की थी। शहर में स्थापित-सार्वजनिक गणेशोत्सव में तिलक के काल से ही प्रथम सम्मान के साथ स्थापित-विसर्जित करने की परिपाटी आज भी पूरी श्रद्धा के साथ निभायी जाती है। इन सम्मानित गणेश प्रतिमाओं में कसबा पेठ गणेश, तांबडी जोगेश्वरी, गुरुजी तालीम, मंडई गणेश एवं केसरी बाड़ा के गणेश शामिल किए जाते हंै। इसके अलावा पुणे के दगड़ूसेठ हलवाई गणेश भी लाखों श्रद्धालुओं द्वारा पूजे जाते हैं।
पुणे में गणेश विसर्जन की भी अपनी विशेषता रही है। ‘गणपति बप्पा मोरया’ की गूंज के साथ ही गणेश विसर्जन के समय प्रतिवर्ष निकलने वाली झांकियों में शारीरिक कौशल, वीरता के दृश्य तथा उनके जरिये विभिन्न महापुरुषों-राष्ट्र पुरुषों को याद किया जाता है। लगभग 24 घंटे तक चलने वाले पुणे के गणपति विसर्जन की झांकियों में विगत वर्षों से शहर के युवा वर्ग द्वारा एक ताल में ढोल बजाने का प्रदर्शन से विसर्जन दृश्य को और भी रोमांचक बना देता है।
इतिहास साक्षी है कि पुणे में सार्वजनिक गणेश स्थापना की शुरुआत 1892 में होने के पश्चात लोकमान्य तिलक ने 1893 में केसरीबाड़े में श्रीगणेश प्रतिमा की स्थापना कर गणेशोत्सव को जन-जन तक पहुंचाने का श्रीगणेश भी किया था। इससे पहले यानी 1885 में सोलापुर में गणेशोत्सव की शुरुआत हुई थी तथा स्वयं तिलक इस गणेशोत्सव के आयोजन में शामिल होकर उससे अत्यधिक प्रभावित भी हुए थे। इस गणेशोत्सव के आयोजन में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस एवं हिन्दू महासभा के कार्यकर्ता समान रूप से शामिल हुआ करते थे।
महाराष्ट्र के कोंकण संभाग में गणेशोत्सव की अपनी विशेषता रहती है। कोंंकण के गांवों के घर-घर में गणेश जी की स्थापना की जाती है। भगवान गणेश की प्रतिमाओं को श्रद्धालु अपने सिर पर रखकर उन्हें विराजमान करते हैं। कोंकण की जनता में गणेशजी के प्रति श्रद्धा का अनुमान इस बात से भी लगाया जा सकता है कि इस संभाग के वसई-पालघर क्षेत्र के ईसाई ही नहीं, बल्कि अलीबाग-रायगढ़ में बसे चिड़ियाघर के कर्मचारी भी अपने-अपने घरों में गणेश जी की पूजा करते आये हैं।
कोंकण संभाग का पेण शहर वहां के कारीगर एवं उनके द्वारा सदियों से बनाए जा रही गणेश प्रतिमाओं के लिए देश-विदेश में जाना जाता है। पेण की गणेश प्रतिमाएं विदेशों तक भेजी जाती हैं। श्रीगणेश की कलात्मक प्रतिमाओं के लिए पेण के मशहूर मूर्तिकार और वहां के संघचालक रहे राजाभाऊ देवधर को पद्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
महानगरी मुम्बई में मध्य मुम्बई के लालबाग में आयोजित गणेशोत्सव में गणेश मूर्ति को ‘लाल बाग चा राजा’ के नाम से जाना जाता है। आम आदमी से लेकर नेता-अभिनेता तक, सब यहां दर्शन करने आते हैं। गणेश महोत्सव आयोजन के दिनों में सुबह से लेकर देर रात तक भक्तों का तांता लगा रहता है और श्रद्धालुओं की प्रतिवर्ष बढ़ती संख्या से नया कीर्तिमान लालबाग के राजा की अलग पहचान बना चुका है। राज्य की उप राजधानी नागपुर में सार्वजनिक आयोजन की विशाल प्रतिमाओं एवं उनके साथ विशेष रूप से बनायी गई झांकियां और दृश्य सभी को आकर्षित करते हैं। नागपुर के मशहूर कलाकार पुरी पेंटर ने अपने जमाने में प्रचलित तथा समकालीन समस्याओं के साथ गणेश जी की प्रतिमा को प्रस्तुत करने की परम्परा प्रचलित की थी। कई बार तो उनके द्वारा बनाई गणेश प्रतिमाओं के साथ किसी राष्ट्रीय मुद्दे का प्रस्तुतिकरण किया जाता है।
नागपुर के गणेशोत्सव आयोजन की एक अजीबो-गरीब विशेषता है कि पूरे महाराष्ट्र में मात्र नागपुर में ही प्रचलित है ‘हाउपवया गणेश’। इस गणेशोत्सव का आयोजन गणेश विसर्जन के पश्चात किया जाता है। जानकारों के अनुसार ‘हाउपवया गणेशोत्सव’ का आयोजन नागपुर के राजा रघुजी भोसले की पहल पर शुरु हुआ था और यह परंपरा आज भी जारी है।
बदले हुए हालात के अनुसार महाराष्ट्र के गणेशोत्सव में बदलाव हुए हंै जिसके चलते गणेशोत्सव का आयोजन करने वाले आयोजन मंडल अपने-अपने ढंग से अपना सामाजिक योगदान देते आए हैं। तिलक द्वारा स्थापित मुम्बई का 123 वर्ष पुराना केशवजी नाईक गणेश मंडल छात्रों के मार्गदर्शन से लेकर मरीजों की सेवा तक का काम करता है।
मुम्बई के ही लालबाग चा राजा गणेश मंडल द्वारा जरूरतमंद मरीजों को आर्थिक सहायता देने के अलावा संकट में फंसे लोगों की मदद की जाती है। पुणे के दगड़ूशेठ गणेश मंडल द्वारा शहर के ससून अस्पताल के मरीजों को प्रतिदिन नाश्ता दिया जाता है तथा अन्य जरूरतमंद लोगों की सहायता की जाती है। पुणे के ही सार्इंनाथ मंडल ट्रस्ट द्वारा प्रतिवर्ष दीपावली के अवसर पर वंचित देशवासियों के घरों में दीपक जलाकर खुशियां फैलाई जाती हैं।
इसी सामाजिक परिपाटी के चलते राज्य के गणेश मंडलों द्वारा इस वर्ष राज्य में जारी पानी की किल्लत एवं सूखे की स्थिति को भांपकर राज्य के संकटग्रस्त क्षेत्रों के लिए पेयजल, जानवरों को चारा, वंचित छात्रों की शिक्षा के सामाजिक दायित्व की ओर अग्रसर होने की सामाजिक पहल का भी श्री गणेश किया गया है। द.वा. आंबुलकर
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