अन्नदाता सुखी भव

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दिंनाक: 21 Sep 2015 13:22:21

 

भारत की माटी की उर्वरकता भरपूर है। लेकिन रासायनिक खादों के दुष्प्रभाव, सिंचाई के साधनों की कमी और उठते-गिरते बाजार के चलते आज कृषि और कृषकों की स्थिति वैसी नहीं है जैसी होनी चाहिए। इसमें संदेह नहीं कि पर्याप्त सुविधाएं मिलें, कम ब्याज में ऋण मिले और अच्छे बीज मिलें तो फसलें खुलकर लहलहाएं। भारत में जैविक खेती की ओर रुझान बढ़ रहा है। खेतों में भी बहुफसलीय खेती होने लगी है। भण्डारण और वितरण में भी खामियां दूर होनी चाहिए। उधर महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश के कपास किसानों की पीड़ा भी अभी पूरी तरह कम नहीं हुई है। दूसरी ओर जी.एम. फसलों की पैरवी करने वालों की लॉबी भी भरपूर जोर लगा रही है। ऐसे में पं. दीनदयाल उपाध्याय द्वारा दिया गया खेतों और अन्नदाताओं के हित को सर्वोपरि रखने का दर्शन ही औषधि जैसा लगता है। किसानों की शिकायतें हैं तो लाभप्रद खेती के उदाहरण भी हैं। कुछ इन्हीं बिन्दुओं पर प्रस्तुत है इस बार का यह विशेष आयोजन।    

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