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जनसंख्या के वे बोलते आंकड़े आखिरकार देर से सही, पर सामने आ ही गए। 25 अगस्त की देर शाम 2011 के जनसंख्या सर्वेक्षण के आंकड़े जग-जाहिर किए गए। वैसे इसकी बहुत दिनों से मांग हो रही थी। लोग जानने को उत्सुक थे कि किस मत-मतावलंबी की संख्या में बढ़त हुई, किसमें कमी आई। किस मत के लोगों ने किस इलाके/जिले/सूबे/प्रदेश में कितने पांव पसारे तो किसने सिकोड़े हैं। रपट आने के बाद से चर्चाओं-मंथनों में आंकड़ों का ऑपरेशन चल रहा है। एक बड़ी बात जो उभर कर सामने आई है, वह यह है कि हिन्दुओं की वृद्धि दर घटी है, मुसलमानों की वृद्धि दर बढ़ी है। हिन्दू 80.5 प्रतिशत से नीचे आ गए हैं तो मुसलमान 14.2 प्रतिशत हो गए हैं। बात चौंकाने वाली है पर उतनी नहीं। कारण यह कि पिछले कितने ही साल से तमाम जानकार, जनसांख्यिक विशेषज्ञ, आंकड़ों के मर्मज्ञ, समाज विज्ञानी, किताबों के ज्ञानी, दलों के नेता, विचारधाराओं के प्रणेता यही तो बताते, समझाते, दर्शाते आ रहे थे कि वह दिन दूर नहीं जब हिन्दुस्थान में हिन्दू घटते जाएंगे, मुस्लिम बढ़ते जाएंगे।
अब सरकार के आंकड़े बोलते हैं कि दस साल पहले 2001 में हिन्दू कुल आबादी के 80.5 प्रतिशत थे, अब 2011 में घटकर 79.8 रह गए हैं। इस दौरान मुस्लिम आबादी 2001 में 13.4 से अब 2011 में 14.2 हो गई है। बात साफ है, हिन्दुस्थान में हिन्दू घटते जा रहे हैं। हिन्दुस्थान में बाकी मत-पंथों की घटत-बढ़त पर भी लगे हाथ नजर डाल लें। ईसाई 2.3 प्रतिशत पर रहे और सिख 1.9 से 1.7 पर आ गए हैं।
यह बात सोलह आने सच है कि असम के 9 जिले आखिरकार पूरी तरह मुस्लिम बहुल बना ही लिए गए हैं। बंगलादेश जो है बाजू में। लोगों ने झकझोरा, सरकारों को कई बार चेताया, पर किसी ने नहीं माना, या कहें मानकर, देखकर भी आंखें भींच लीं। असम में कांग्रेस की सरकारें रही हैं ज्यादातर। उनके नेताओं को बंगलादेशी मुसलमान दिखे ही नहीं, उनको तो वहां थोक के भाव कांग्रेसी वोट दिखे। राशन कार्ड छपे और बंटे बेभाव। वोट डालने वालों की फेहरिस्त में ठोक कर नाम जोड़े। वे बढ़ते गए….बेलगाम!
2001 के जनसंख्या सर्वेक्षण में असम के छह जिले मुस्लिम बहुल निकले थे। बरपेटा, धुबरी, करीमगंज, गोलपाड़ा, हैलाकांडी और नौगांव। अब 2011 के आंकड़े आने पर इन जिलों में 3 और जुड़ गए-बोंगाईगांव, मोरीगांव और दरंग। ताजा आंकड़ों पर फिर पलटकर नजर डाल ली जाए। धुबरी में अब 15.5 लाख मुस्लिम हैं तो हिन्दू कुल 3.88 लाख। गोलपाड़ा में 5.8 लाख मुस्लिम हैं तो 3.48 लाख हिन्दू। बरपेटा में 11.98 लाख मुसलमान हैं तो 4.92 लाख हिन्दू। नौगांव में 15.6 लाख मुसलमान हैं तो कुल 12.2 लाख हिन्दू। मोरीगांव में 5.03 लाख मुसलमान हैं तो 4.51 लाख हिन्दू। करीमगंज में 6.9 लाख मुसलमानों के बीच 5.3 लाख हिन्दू बसे हैं। दरंग में 5.97 लाख मुस्लिम रह रहे हैं तो 3.27 लाख हिन्दू रहते हैं। हैलाकांडी में 3.97 लाख मुस्लिमों के बीच 2.5 लाख हिन्दू हैं। बोंगाईगांव में 3.71 लाख मुसलमान हैं तो 3.59 लाख हिन्दू बसे हैं। ये तो वे जिले हैं जिनमें मुस्लिम आबादी हिन्दू आबादी से ऊपर हो गई है। और बहुत से जिले ऐसे हैं जो छोर पर हैं, और नजर चूकते ही मुस्लिम बहुल बनने में देरी नहीं करेंगे। कछार। कामरूप। नलबाड़ी। सरकार अब भी गोगोई की कांग्रेस की है। घुसपैठ करने वालों और सदियों से असम को मातृभूमि मानकर रह रहे मुसलमानों में फर्क तो करना पड़ेगा।
प. बंगाल में तीन सदी से ज्यादा लंबे चले 'भोद्रोजोन' कामरेडों के राज में बंगलादेश से ढेरों घुसपैठिए रेखा टापते रहे और बोली, भाषा के छद्मावरण में खुद को ढांपकर 'शोनार बांगला' को छलते, छेदते, भेदते, लूटते, पीसते रहे। अलीमुद्दीन स्ट्रीट मस्जिदों से गूंजती अजान की आवाजों में सब अनदेखा, अनसुना करती रही। संख्याबल बढ़ता गया। वोट मिलते रहे। वामपंथी मस्त रहे। रिक्शा वालों के भेस से शुरुआत करके बंगलादेशी मुस्लिम सब काज-कारोबार को लीलते रहे। सेकुलरवाद के नाम पर यूं हमारे नेताओं ने हवा दी मुसलमानों की बढ़ती जनसंख्या को।
समाजनीति समीक्षण केन्द्र के निदेशक डॉ. जितेन्द्र बजाज जनसंख्या में धीरे-धीरे आ रहे इस असंतुलन को चिंताजनक बताते हैं। जिस केन्द्र के वे निदेशक हैं वह वर्षों से पंथानुसार जनसांख्यिकी का गहन अध्ययन करता आ रहा है। पाञ्चजन्य से बातचीत में उन्होंने कहा कि इस असंतुलन के कारणों पर अध्ययन होना चाहिए। उनके अनुसार, 1981 से हर दशक में ऐसा बड़ा बदलाव दिखता आ रहा है तो इस बार भी वही 'ट्रेंड' दिखा है। मुस्लिम आबादी का .8 प्रतिशत बढ़ना तब और हैरान कर जाता है जब हम देखते हैं कि हिन्दू, सिख और बौद्ध का मिलकर इतनी ही मात्रा में घटना वास्तव में अध्ययन का विषय है। डॉ. बजाज बताते हैं, असम में मुस्लिम आबादी 30 प्रतिशत वृद्धि दर से कुल आबादी की 31 से 34 प्रतिशत हो गई है। वहां हिन्दुओं वृद्धि दर 11 प्रतिशत है। उनके अनुसार, हरियाणा में मुस्लिम 5.8 से 7 प्रतिशत हुए हैं, उनकी वृद्धि दर 46 प्रतिशत रही है। वहां के मेवात जिले में 79 प्रतिशत मुस्लिम हो गए हैं। केरल की बात करें तो यह सबसे शिक्षित राज्य है, लेकिन वहां भी मुस्लिम आबादी की वृद्धि दर 12.8 से 16 हो गई है। यह चीज दिखाती है कि शिक्षा से जनसंाख्यिक असंतुलन दूर होता है, यह एक भ्रांति ही है।
ईसाई समुदाय भी अपने प्रभाव क्षेत्रों में ऊंची वृद्धि दर रखता है। केरल में ईसाइयों की वृद्धि दर 1.4 प्रतिशत रही तो हिन्दुओं की 7.4 से घटकर 2.6 पर आ गई। अरुणाचल के आंकड़े हैरान करने वाले हैं। डॉ. बजाज कहते हैं, वहां ईसाई आबादी तेजी से बढ़ रही है। कुल आबादी में ईसाइयों की संख्या 19 से बढ़कर 30 प्रतिशत हो गई है। तिरप जिले में तो ईसाई 77 प्रतिशत हो गए हैं। आस-पास के जिले भी ईसाई बहुल हो गए हैं। मेघालय में समाज पहले ईसाई मिशनरियों की कन्वर्जन साजिशों के खिलाफ डटकर खड़ा था, लेकिन अब ईसाई आबादी का 6 प्रतिशत होना सोचने पर विवश करता है। उधर सिक्किम में भी ईसाई आबादी 10 प्रतिशत हो गई है।
समाज में एक दशक के भीतर ऐसा जनसांख्यिक असंतुलन राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से प्रभाव तो डालता ही है। वे कहते हैं, 'अगर कोई राजनीतिक दल इस असंतुलन को दूर करने की राजनीति नहीं कर रहा है तो फिर वह राष्ट्रवादी राजनीति नहीं कर रहा है।' देश के मुख्य समाज की संख्या घटना उस देश के भविष्य के लिए ठीक नहीं है।
धुबरी (असम) से कुछ समय हिन्दुओं का बड़ी संख्या में पलायन हुआ था। तब यह पता लगाना चाहिए था कि वहां उनकी रोजी-रोटी कैसे छिन गई? जनसांख्यिक असंतुलन से समाज व्यवस्था बिगड़ती है। उत्तर-पूर्व में मुस्लिम आबादी बढ़ने में बंगलादेशी घुसपैठियों का बड़ा हाथ है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता। हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों ने अनेक वर्षों से वहां घुसपैठियों के विरुद्ध अभियान चलाया हुआ है। असम में तो एक बार ऐसा अभियान भी चला था कि घुसपैठियों का आर्थिक बहिष्कार किया जाए, उनसे आर्थिक लेन-देन न की जाए। कई अन्य आंदोलन भी हुए। वहां एक पार्टी ए.आई.यू.डी.एफ. और उसके नेता बदरुद्दीन अजमल विधानसभा में लगातार अपनी संख्या बढ़ाते जा रहे हैं। उस दल को बंगलादेशी घुसपैठियों का कथित समर्थन प्राप्त है।
सुप्रसिद्ध समाजसेवी रिखब चन्द जैन ने भी पाञ्चजन्य से बात करते हुए कहा, 'इसका (मुस्लिम आबादी में बढ़ोत्तरी) अंदेशा तो पहले से था इसलिए यह सामने आने पर अचंभा नहीं हुआ। यह असंतुलन आगे जारी रहने वाला है बल्कि इसके और बढ़ने के ही आसार हैं। इसे साधने का एक ही तरीका है कि मुस्लिम जगत में शिक्षा का प्रसार हो। परिवार नियोजन के नियम सब पर बराबरी से लागू हों।' श्री जैन कहते हैं, जैसा कदम चीन ने जनसंख्या की बढ़त रोकने के लिए उठाया वह भारत में संभव नहीं होगा। बहुदलीय लोकतंत्र है यहां। उनका यह भी कहना है कि भारत में समान नागरिक संंहिता लागू हो तो आबादी का असंतुलन रोका जा सकता है। नागरिकों की पहचान मत-पंथ से नहीं, राष्ट्रीयता से हो। रिखब चंद जी की बात तो सही है, पर गैर कानूनी रूप से यहां आकर बसने और सेकुलर नेताओं की मदद से खुद को नागरिक बनवा लेने वालों पर लगाम लगाए बिना पूरा उपचार कैसे होगा? वैसे समान नागरिक संहिता लागू किए जाने की मांग कई दिशाओं से सुनाई दी है।
और बात सिर्फ असम या प. बंगाल की ही नहीं है, दूसरे राज्यों में भी मुस्लिम जनसंख्या तेजी से बढ़ी है। मिजोरम (46.9), हरियाणा (45.5), चंडीगढ़ (44.7), नागालैण्ड (39.9), पंजाब (40.2), उत्तराखण्ड (39), राजस्थान (29.8), गुजरात (27.3), बिहार (28) और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (33) में मुस्लिम जनसंख्या में भारी बढ़त दर्ज की गई है।
1947। देश का मजहब के आधार पर बंटवारा कराकर जिन्ना ने हिन्दुस्थान के दो टुकड़े करा दिए थे। कटे पश्चिमी हिस्से पर पाकिस्तान बना। जिन्ना ने अंग्रेजों के सामने मुस्लिम समाज की दुहाई दी, कहा, वे हिन्दुओं के साथ नहीं रह सकते। पाकिस्तान नाम से मुसलमानों के द्वारा, मुसलमानों का, मुसलमानों के लिए नया मुल्क खड़ा कर लिया गया। तब के सेकुलर नेता दबा-ढका विरोध करके रह गए। जिन्ना का तर्क था कि मुसलमान अलग राष्ट्र हैं। द्विराष्ट्र का सिद्धांत। तब भारत की कुल आबादी में हिन्दू 84.1 हुआ करते थे। पर एक तथ्य और भी है। आज पाकिस्तान से ज्यादा मुसलमान हिन्दुस्थान में हैं, और बेरोक-टोक, तरक्की के रास्ते पर बढ़ रहे हैं। कोई बैर नहीं, कोई अड़ंगा नहीं। इतना ही नहीं तो, खुद को अल्पसंख्यक हितैषी दिखाने के लिए कई राज्यों में सेकुलर सरकारें मुसलमानों को वजीफे, छूट, बेब्याज कर्ज आदि देने में होड़ लगाकर रखती हैं। इसके बरअक्स पाकिस्तान में झांकिए जरा। हिन्दुस्थान से '47 में रेखा पार कर गए मुसलमान आज भी वहां मन से नहीं अपनाए गए हैं। जबरन मुहाजिर का तमगा टांगे घूमते हैं और गाहे-बगाहे उनको याद दिला दिया जाता है कि तुम हिन्दुस्थान से आए हो, थम कर रहो।
बहरहाल, जनसंख्या के ये आंकड़े चौंकाने वाले तो हैं, साथ ही झकझोर कर जगाने वाले भी हैं। डॉ. बजाज की उस बात में बहुत वजन है कि जिस देश का मुख्य समाज संख्या में घटता जाए उस देश का भविष्य सुनहरा तो नहीं रह सकता। इसे समझकर, पहचानकर चेतना जरूरी है। -आलोक गोस्वामी
भारत में समान नागरिक संंहिता लागू हो तो आबादी का असंतुलन रोका जा सकता है। नागरिकों की पहचान मत-पंथ से नहीं, राष्ट्रीयता से हो।
– रिखब चंद जैन
अध्यक्ष, राष्ट्रीय मतदाता संगठन
धुबरी (असम) से एक समय हिन्दुओं का बड़ी संख्या में पलायन हुआ था। वहां उनकी रोजी-रोटी कैसे छिन गई? जनसांख्यिक असंतुलन से समाज व्यवस्था बिगड़ती है।
– डॉ. जितेन्द्र बजाज
निदेशक, समाजनीति समीक्षण केन्द्र
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