भारत का बल 'बाहुबली'
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भारत का बल 'बाहुबली'

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Aug 22, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 22 Aug 2015 11:27:33

अंक संदर्भ : 2 अगस्त, 2015

आवरण कथा 'बाहुबली से खलबली' से प्रतीत होता है कि फिल्म ने चौंकाने वाला काम ही नहीं किया है बल्कि भारत के नागरिकों का मन छुआ है। साथ ही कुछ सेकुलर फिल्मकार-कलाकारों को संदेश गया है कि अगर फिल्मों में भारतीय संस्कृति और सभ्यता, इतिहास को अच्छे तरीके से दर्शाया जाए तो वे दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित करने में कामयाब होती है। बाहुबली फिल्म के आने के बाद उन फिल्मकारों और कलाकारों के मुंह पर ताले जड़ गए हैं, जो भारतीय संस्कृति और परंपरा को विकृत तरीके से पेश करते आ रहे थे।
 —आलोक कुमार अग्रवाल
 गाजियाबाद (उ.प्र.)
ङ्म मुम्बइया फिल्म  जगत 'बाहुबली' फिल्म की सफलता को सहजता से पचा नहीं पा रहा है। क्योंकि जहां देशभर में इसकी तारीफ हो रही है वहीं फिल्म जगत से किसी के मुंह से तारीफ के स्वर सुनाई नहीं दे रहे हैं। यह सब शायद इसलिए क्योंकि इसमें न तो खान तिकड़ी थी और न ही यह फिल्म हिन्दू परंपरा और भारतीयता के खिलाफ विष वमन कर रही थी। क्योंकि अब तक सेकुलर निर्देशक भारत की व्यवस्था को ही तोड़-मरोड़कर एवं उसके विकृत स्वरूप को दर्शकों के समाने परोसते आए हैं। फिर उन्हें यह फिल्म कैसे रास आ सकती है।
—सपना जोशी, रायपुर (छ.ग.)
ङ्म फिल्म ने उन निर्देशकों के सामने उदाहरण प्रस्तुत करने का काम किया है, जिनके मन में यह भरा रहता था कि भारत के दर्शक फूहड़ नाच-गाने, कम कपड़े व भारत की संस्कृति को विकृत रूप देखना पसंद करते हैं। इस फिल्म ने उनको उत्तर दिया है कि भारत का दर्शक अच्छी चीजों को पसंद करता है। बाहुबली ने दुनियाभर में भारत के फिल्म कौशल की धाक जमाई है।
—अभिनव गौतम, जयपुर (राज.)
जिहादी साये में बंगाल
रपट 'जिहादी शिकंजे में बंगाल की बेटियां'  पश्विम बंगाल में हिन्दू लड़कियों के साथ हो रहे अन्याय को बयां करती है। प्रदेश में हिन्दुओं के साथ जो हो रहा है वह शर्मनाक और दुर्भाग्यपूर्ण है। यह तब है, जब प्रदेश में एक महिला मुख्यमंत्री की सरकार है, उसके बाद भी यहां पर महिलाओं के साथ अत्याचार हो रहा है। टुकटुकी मंडल इसका ताजा उदाहरण है। जिस शासन-प्रशासन का जिम्मा अपने नागरिकों की रक्षा करना होता है, वह शासन-प्रशासन न केवल पीडि़तों को डराता-धमकाता है बल्कि आरोपियों को संरक्षण भी देता है। असल में ममता सरकार वोट बैंक के लिए मुसलमानों को खुला संरक्षण दे रही है। इसलिए वे जो चाहते हैं वह करते हैं और पुलिस उन पर कार्यवाई करने के बजाए उनको संरक्षण देती है।
—मनोहर मंजुल
पिपल्या-बुजुर्ग (म.प्र.)
अक्षय ऊर्जा की उपयोगिता बढे़
केन्द्र सरकार लगातार भारत को विश्व के विकसित देशों की पंक्ति में लाने के लिए प्रयासरत है। इसलिए वह प्रत्येक क्षेत्र में अपना ध्यान केन्द्रित कर रही है। इसी कड़ी में सरकार ने अक्षय ऊर्जा के संरक्षण का मंत्र दिया है। आज सौर ऊर्जा के प्रति देशवासियों का आकर्षण बढ़ रहा है और चार हजार मेगावाट से अधिक ऊर्जा का उत्पादन भी हो रहा है। समय की जरूरत और घटते प्राकृतिक संसाधन को देखते हुए सौर ऊर्जा के उत्पादन पर सरकार को जोर देना चाहिए। अगर इस ऊर्जा का प्रयोग बढ़ता है तो करोड़ों डालर की बचत होगी।
—कृष्ण वोहरा, सिरसा (हरियाणा)
उन्माद के अगुआ
रपट 'रह-रह कर सुलग रहा अटाली विवाद' ने स्पष्ट कर दिया है कि जिहादी मानसिकता से भरे मुसलमान समाज को किस प्रकार आग की लपटों में झांेक देते हैं। पंचायत द्वारा मानवता के तहत मुसलमानों को कब्रिस्तान के लिए दी गई जमीन पर दबंग तरीके से मस्जिद बनाने का प्रयास करना इनकी मानसिकता को जाहिर करता है। इन्हीं कारणों से इस मजहब की निष्ठा पर प्रश्न चिन्ह लगता रहा है। क्योंकि इस्लाम के रहनुमा जहां भी संख्याबल में आ जाते हैं वहां अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए दंगे करते हैं, हिन्दुओं को दबाने की जुगत में लग जाते हैं, जब हिन्दुओं द्वारा उनकी कारगुारियों  पर प्रतिक्रिया होती है तो ओवैसी जैसे लोग चीख-पुकार मचाते हैं कि भारत में मुसलमानों को जानबूझकर परेशान किया जाता है। लेकिन आज वैश्विक दृष्टि से देखें तो आवश्यक है कि मुस्लिम समाज ओवैसी जैसे लोगों के बहकावे में न आकर समय के साथ चलना सीखें। ऐसे लोग राजनीति चमकाने के लिए अपने ही समाज का शोषण करते  हैं।
—अश्वनी जांगड़ा
महम, रोहतक (हरियाणा)
ङ्म फरीदाबाद के अटाली में एक बार फिर शान्तिदूतों ने समाज की शान्ति भंग की और जमकर उत्पात मचाया। यहां तक कि पुलिस ने पहले उन्मादियों का पक्ष लिया लेकिन जब हिन्दुओं ने इसका विरोध किया तब उनका हिन्दुओं के प्रति रुख कुछ नरम हुआ। ये उन लोगों के लिए उदाहरण है, जो इस कौम को शान्तिदूत दिखाने के प्रयास में हरदम लगे रहते हैं।
—गज्जू कालिया
सासनी गेट, अलीगढ़ (उ.प्र.)

ओछी राजनीति का चेहरा
अभी कुछ दिन पहले लालू यादव के समर्थक जाति आधारित जनगणना के आंकड़ों को जारी करवाने के नाम पर हाथों में लाठियां लेकर सड़कों पर उतरे और शहर की दुकानों को जबरदस्ती डंडे की धमक से बंद कराने लगे। आखिर सवाल है कि लालू और उनकी पार्टी को जातिगत जनगणना की इतनी फिक्र क्यों? असल में बिहार चुनाव नजदीक है और ऐसे में वे अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने के लिए बिल्कुल तैयार बैठे हैं। जैसे ही ये आंकड़े जारी होते हैं वैसे ही लालू यादव जैसे राजनेता सक्रिय होकर समाज में एक दूसरे को लड़ाने के लिए तैयार हो जाएंगे। लेकिन बिहार की जनता उनके गुंडाराज के सपने को अब समझती है और यह भी जानती है कि उनके सत्ता में आने पर बिहार क्या खामियाजा भुगतेगा।
—कान्तिमय बनर्जी
जामताड़ा (झारखंड)
जीवन को प्रकाश देता गुरू
लेख 'गुरुत्व और आत्मीयता का प्रतीक गुरु' पर भागय्या जी का लेख अच्छा लगा। विशेषकर इस लेख में सीखने-समझने की जो बातें कही गई हैं वे बेहद उच्च कोटि की हैं। वर्तमान में गुरुओं का नामआते ही कुछ लोग ह्ेय दृष्टि से देखने लगते हैं तो कई लोग कुछ गुरुओं को सम्मान के साथ प्रस्तुत करते हैं। असल में आज भी समाज में वास्तविक गुरुओं की कमी नहीं है, कमी है हममें जो हम उनको पहचान नहीं पाते।
—जमालपुरकर गंगाधर
श्रीनीलकंठ नगर,जियागुडा (हैदराबाद)
 रक्षा सामग्री का निर्माण हो
 हमारे देश को स्वतंत्र हुए अड़सठ बरस हो गए लेकिन अभी तक हम भारी मात्रा में विदेशों से हथियार मंगाते हैं, जबकि इसी अवधि में चीन ने एक बड़ा एवं अत्याधुनिक रक्षा सामग्री का उद्योग स्थापित कर लिया है तथा अपनी रक्षा पूर्ति के अलावा वह दूसरे देशों को भी हथियार निर्यात करता है। सवाल है कि अब तक की सरकारों का इस ओर ध्यान क्यों नहीं गया? क्या दस साल रही संप्रग सरकार नहीं चाहती थी कि देश स्वयं रक्षा सामग्री तैयार करने लगे? असल में इस सबके पीछे बहुत बड़ा राजनीतिक गिरोह काम करता है जो कभी नहीं चाहता कि देश में रक्षा सामग्री का उत्पादन हो। क्योंकि जब कोई रक्षा सौदा होता है तो इसमें बिचौलिये बनकर उस गुटबंदी के लोग करोड़ों डालर का हेरफेर जो करते हैं। ऐसे में वे क्यों चाहेंगे कि देश स्वयं रक्षा सामग्री तैयार करने लगे।
              —ओम प्रकाश गुप्ता
           उमा सदन, सागर (म.प्र.)

बेटियों को पढ़ाए-लिखाए मुस्लिम समाज

भारत में मनुष्य के  सामाजिक जीवन का ढांचा श्रम विभाजन के आधार पर था। शरीर के अंगों के तालमेल जैसा ही जातियों का निर्माण हुआ था। सामाजिक समरसता, समन्वय और एकता इसका मुख्य उद्देश्य था। प्रत्येक जातियों को निर्धारित कर्तव्य करने की स्वायत्तता थी। परन्तु कालान्तर में जातियां अपने कर्मों में इतनी रूढ़ हो गईं कि जन्म के आधार पर ही मनुष्य की जातियां और वंश निर्धारित होने लगे। सामाजिक ताना-बाना टूटने लगा। कुछ समय बाद जातियों में ऊंंच-नीच तथा वर्चस्व के लिए संघर्ष प्रारंभ हो गया। आपस में एक दूसरे को नीचा दिखाने का दौर बढ़ता गया, जो आज तक कायम है। इसका परिणाम यह हुआ कि समाज में यह खाई चौड़ी होती गई। जिस विविधता के लिए भारतीय समाज को जाना जाता था वह टूटता चला गया। अंग्रेजों की 'फूट डालो और राज करो' की नीति ने हिन्दू समाज को बांट दिया। हर जाति एक दूसरे से घृणा करने लगी। स्वतंत्रता के बाद आरक्षण के दांव ने इन जातियों में खाई और चौड़ी कर दी। अल्पसंख्यक के नाम पर ईसाई और मुसलमानों को आरक्षण मिलता देख इन जातियों में भी कन्वर्जन का जाल बिछता गया। ईसाई मिशनरियां और मजहबी ताकतें तो पहले से ही हिन्दुओं को तोड़ने पर तुली थीं और उनको अपने लक्ष्य में सकारात्मक परिणाम भी मिल रहे थे। आज भी यही स्थिति कायम है। हिन्दू समाज उसी संकुचित मानसिकता में जीवन यापन कर रहा है। लेकिन वर्तमान में आवश्यकता है कि फिर से हिन्दू समाज पुरातन व्यवस्था को अंगीकार करे और जिस व्यवस्था पर सभी को गौरव होता था उसे स्थापित करे। सदियों से हमारी संस्कृति की विश्व में ख्याति रही है। किसी पर भी भारत के समाज ने परंपराएं थोपी नहीं हैं न ही जबरन आधिपत्य किया है। धर्म ने समाज को एक सूत्र में बांधने का कार्य किया है ।
 —वीरेन्द्र गौड़
श्रीकान्त पैलेस कॉलोनी
वैभव नगर, इन्दौर (म.प्र.)

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