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मैं यमुना हूं, हिमालय की गोद से निकली एक अनवरत बहती जलधारा, युगों-युगों से लोग मुझे पूजते, मेरे जल में स्नान-ध्यान करते आ रहे हैं। बहुत कुछ है मेरे पास बताने को, भगवान श्रीकृष्ण अपने ग्वाल बाल सखाओं संग मेरे किनारों पर खेले हैं। उनकी बंसी की तान भी मैंने सुनी है। कालिया का विष भी सहन किया है। कुरुक्षेत्र का महासंग्राम भी मैंने देखा है। राजाओं का समय देखा, मुगलों की बादशाहत देखी, अंग्रेजी हुकूमत भी देखी। समय आगे बढ़ता रहा, बहुत कुछ बदला पर मैं नहीं बदली, मैं आज भी वहीं हूं, वैसी ही हूं। हां मेरे प्रवाह का रास्ता समय के अनुसार थोड़ा जरूर बदला। लोग सदियों से मेरे पानी का प्रयोग करते आ रहे हैं। मुझे इससे कभी कोई ऐतराज भी नहीं रहा लेकिन पिछले कुछ दशकों में लोगों ने मेरी परवाह करनी छोड़ दी। मेरे जल का जरूरत से ज्यादा दोहन किया जाने लगा। लोग सिर्फ मुझ पर निर्भर होकर रह गए हैं। लोग मुझसे जल तो ले रहे हैं लेकिन बदले में मुझमें बहा रहे हैं कचरा, जहरीला दूषित पानी और मलमूत्र। ये कहां का न्याय है? मैं फिर भी चुपचाप सब कुछ सहती जा रही हूं। कभी-कभी गुस्सा होती हूं, लोगों को चेताती भी हूं लेकिन फिर यह सोचकर शांत हो जाती हूं कि जो मुझे मां कहते हैं शायद कभी तो मेरी सुध लेंगे! कभी तो उन्हें अपने किए पर पछतावा होगा, क्योंकि मेरी भी कुछ सीमाएं हैं, मर्यादाएं हैं, यदि मेरा सब्र टूटा तो उसका खामियाजा सभी को भुगतना पड़ेगा। तब मुझे भी नहीं पता कि मैं क्या करूंगी।
-आदित्य भारद्वाज-
प्रकृति का वंदन और पूजन हिन्दू संस्कृति की सदा से ही पहचान रहा है। नदियों को हमारी संस्कृति में मां का दर्जा दिया गया है। मगर हमारे ही क्रियाकलापों के चलते हमारे देश के गौरव का प्रतीक कही जाने वाली पावन व जीवनदायनी नदियां दूषित होती जा रही हैं। इन्हीं में से एक है यमुना। करोड़ोें लोगों की आस्था का केन्द्र यमुना नदी का उद्गम हिमालय के कालिंदी पर्वत पर यमुनोत्री नामक स्थान से होता है। यमुनोत्री से निकलकर यमुना पहाड़ी दर्रों और घाटियों से प्रवाहित होती हुई अनेक छोटी बड़ी नदियों,वदियर, कमलाद, वदरी अस्लौर और तोंस जैसी बड़ी पहाड़ी नदियों को अपने अंाचल में समेटती हुई आगे बढ़ती है। उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली होते हुए यमुना उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद में प्रयाग नामक स्थान पर गंगा में समाहित हो जाती है। इस बीच यमुना की राह में अनेकों छोटे-बड़े शहर, कस्बे और गांव पड़ते हैं। यमुना के रास्ते में जो सबसे बड़ा शहर पड़ता है वह है देश की राजधानी दिल्ली जहां से यमुना को मिलती है सबसे ज्यादा गंदगी।
यमुना की कुल 1376 किलोमीटर की लंबाई में उसका सबसे कम हिस्सा महज 48 किलोमीटर दिल्ली में आता है। दिल्ली में आते-आते यमुना की स्थिति दयनीय हो जाती है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों के हिसाब से 70 प्रतिशत गंदगी यमुना को दिल्ली से ही पुरस्कारस्वरूप मिलती है। जबकि यमुना से पानी लिए बिना दिल्ली का काम चल ही नहीं सकता। बोर्ड के वरिष्ठ वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यदि यही स्थिति रही तो आने वाले कुछ दशकों में दिल्ली से आगे यमुना दम तोड़ देगी या यूं कहें यमुना मृतप्राय हो जाएगी। यमुना की कुल लंबाई के 1376 किलोमीटर के हिस्से में उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में इसका हिस्सा करीब 21.5 प्रतिशत है। हरियाणा में 6.1 प्रतिशत, और दिल्ली में सबसे कम करीब 2 प्रतिशत यमुना का हिस्सा है। दिल्ली के इसी हिस्से से यमुना को सबसे ज्यादा गंदगी मिलती है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में कार्यरत वरिष्ठ वैज्ञानिक आरएम भारद्वाज ने बताया कि यमुना का पहला हिस्सा यमुनोत्री से लेकर ताजेवाला (यमुना पर बनाया गया पुराना बांध, जिसकी जगह पर हथिनीकुंड बैराज बना दिया गया है) 172 किलोमीटर बेहद साफ है। इस हिस्से में यमुना का पानी बेहद साफ है। यहां पर अंजुलि में पानी लो तो उसमें से सुगंध आती है। हथिनीकुंड बैराज से दो नहरें 'पूर्वी यमुना नहर' और 'पश्चिमी यमुना नहर' निकलती हैं। दिल्ली में स्थित हैदरपुर संयंत्र यमुना की पश्चिमी नहर से ही पीने के लिए पानी उठाता है। इन्हीं नहरों के माध्यम से हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसान खेती में यमुना के पानी का प्रयोग करते हैं।
यमुना का दूसरा बड़ा हिस्सा ताजेवाला से लेकर वजीराबाद तक 224 किलोमीटर का है। इस दौरान यमुना उत्तर प्रदेश और हरियाणा के शहरों व कस्बों के पास होकर बहती है। यहां पर यमुना का प्रवाह कम हो जाता है लेकिन दिल्ली के मुकाबले इस हिस्से में भी यमुना का पानी बहुत साफ होता है। जैसे ही यमुना वजीराबाद बैराज से आगे बढ़ती है यमुना, यमुना नहीं रहती। यहां से आगे यमुना सिर्फ एक गंदे नाले की तरह दिखाई देती है। सिर्फ मानसून के समय को छोड़ दिया जाए तो वजीराबाद से लेकर ओखला बैराज के 22 किलोमीटर के हिस्से में यमुना एक गंदा नाला ही प्रतीत होती है। यही वह हिस्सा है जिसमें यमुना में सबसे ज्यादा गंदगी गिरती है। यमुना में जाने वाली कुल गंदगी का 70 प्रतिशत हिस्सा यमुना को यहीं से मिलता है।
इसके बाद अपने तीसरे चरण में यमुना चंबल नदी से मिलने तक सबसे लंबी तकरीबन 490 किलोमीटर की यात्रा करती है। ओखला बैराज से चंबल नदी तक बहती हुई यमुना बीच के कई शहरों मथुरा, वृंदावन व आगरा होते हुए यहां पहुंचती है। जानकारों की मानें तो वृंदावन और मथुरा में यमुना में खुद का जल न के बराबर ही होता है। यमुना में होती है सिर्फ गंदगी। जब यमुना चंबल से मिलती है तो उसमें गति होती है। उसका पानी यहां साफ भी होता है। अपने अंतिम चरण में यमुना तकरीबन 468 किलोमीटर की यात्रा करते हुए चंबल नदी को अपने में समाहित कर इलाहाबाद में प्रयाग पहुंचती है। यहां उसका गंगा से संगम होता है और यमुना की यात्रा समाप्त हो जाती है। प्रयाग तक पहुंचते-पहुंचते कई छोटी-बड़ी नदियों और नहरों का पानी मिलने से यमुना का पानी काफी हद तक साफ हो जाता है। केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड के अनुसार यमुना में कई जगहों पर पानी इतना प्रदूषित है कि यहां जलचर न के बराबर रह गए हैं। कहीं-कहीं तो पानी इतना दूषित है कि मीलों तक जलचर हैं ही नहीं। चंबल का पानी जब यमुना में मिलता है तो इसमें जलचर दिखाई देते हैं।
नदियां जो बन गई नाला
यमुना में दिल्ली से गिरने वाले 18 बड़े नाले उसमें सबसे ज्यादा जहर फैलाते हैं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रपट के अनुसार दिल्ली की 60 प्रतिशत आबादी का कचरा बिना साफ किए सीधे यमुना में गिरता है। नजफगढ़ नाला (किसी समय में साहिबी नदी हुआ करती थी जो अलवर से निकलकर नजफगढ़ होते हुए वजीराबाद से आगे यमुना में जाकर मिलती थी) यमुना को सबसे ज्यादा गंदगी देता है। दिल्ली से यमुना में जाने वाली सबसे ज्यादा गंदगी करीब 61 प्रतिशत नजफगढ़ नाले से ही मिलती है। इसके बाद शाहदरा नाले से 17 प्रतिशत, दिल्ली गेट नाले से 6 प्रतिशत, बारापूला से 2.2 प्रतिशत और तुगलकाबाद नाले से 2.2 प्रतिशत प्रदूषित पानी यमुना में पहुंचता है। यमुना में जाने वाले कुल बीओडी (बॉयोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड यानी प्राकृतिक तौर पर पानी में ऑक्सीजन की मात्रा का स्तर) का 91 प्रतिशत इन्हीं नालों से यमुना को मिलता है। यमुना में गिरने वाले बड़े नालों पर कहीं भी 'इंटरसेप्टर' नहीं है जिसके चलते बिना शोधित हुए गंदा पानी यमुना में पहुंचता है।
दिल्ली जलबोर्ड के पास कुल 21 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट हैं। इनमें कई बेहद पुराने हैं या यूं कहा जाए चलते ही नहीं हैं। इनकी क्षमता 2460 एमएलडी यानी 246 करोड़ लीटर गंदे पानी का शोधन करने की है। जबकि वास्तविकता यह है कि व्यवस्थाएं सही न होने के चलते 150 करोड़ लीटर गंदा पानी ही इनमें शोधन के लिए पहुंच पाता है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार जलबोर्ड ने जो प्लांट ट्रीटमेंट के लिए लगाए हैं। उनमें से कुछ की ही क्षमता पानी को 30 बीओडी तक लाने की है।
राजधानी में स्थित औद्योगिक क्षेत्रों से करीब 218 एमएलडी गंदा पानी निकलता है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार मंगोलपुरी, लॉरेंस रोड, एसएमए नांगलोई, झिलमिल, ओखला, वजीरपुर, नरेला और बवाना की औद्योगिक इकाइयों का प्रदूषण मानक के हिसाब से सही नहीं हैं। इन इकाइयों में शोधन के लिए जो उपकरण लगे हैं। वे क्षमता के हिसाब से पानी का शोधन नहीं कर पा रहे हैं।
दिल्ली के ग्रामीण क्षेत्रों में कोई 'सीवेज सिस्टम' नहीं है। इस कारण इन क्षेत्रों का गंदा पानी सीधे तौर पर यमुना में जा रहा है। नई दिल्ली नगर पालिका परिषद के इलाके से 200 एमएलडी गंदा पानी निकलता है।
पानी के लिए सीपीसीबी के मानक
ल्ल श्रेणी ए के तहत बिना शोधित किए हुए पानी में घुलित ऑक्सीजन छह मिलीग्राम प्रति लीटर होनी चाहिए। पानी का पीएच स्तर 6.5 से 8.5 के बीच होना चाहिए।
ल्ल श्रेणी बी के तहत नहाने के लिए जिस पानी का इस्तेमाल किया जाना चाहिए उसमें घुलित ऑक्सीजन का स्तर पांच मिलीग्राम प्रति लीटर होना चाहिए।
ल्ल श्रेणी सी के तहत शोधित किए हुए पीने के पानी में पीएच का स्तर 6 से 9 व घुलित ऑक्सीजन चार मिलीग्राम प्रतिलीटर होनी चाहिए।
न्यूनतम प्रवाह भी नहीं होता यमुना का प्रवाह
वजीराबाद से ओखला बैराज के तकरीबन 22 किलोमीटर के हिसे में यमुना सबसे ज्यादा जहरीली है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक निजामुद्दीन पुल के नीचे यमुना का पानी सबसे ज्यादा प्रदूषित है। यहां पर बीओडी की मात्रा 99 तक मिली है। आंकड़ों के लिहाज से यमुना का बाढ़ जनित क्षेत्र करीब दो से तीन किलोमीटर का है। मानसून को छोड़ दिया जाए तो यमुना न्यायालय द्वारा तय किए गए अपने न्यूनतम प्रवाह के हिसाब से भी नहीं बह पाती। इसका कारण है कि यमुना में उतना पानी ही नहीं बचता। हरियाणा से ड्रेन-2 के जरिए दिल्ली के लिए पानी छोड़ा जाता है। दिल्ली में सप्लाई के लिए वजीराबाद से पहले यमुना से 840 एमजीडी पानी उठा लिया जाता है। इससे पहले हैदरपुर प्लांट यमुना की पश्चिमी नहर से आने वाले पानी को उठा लेता है।
दिल्ली में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक यमुना में कुछ मुख्य जगहों पर प्रदूषण की स्थिति
ल्ल 37 बीओडी है निजामुद्दीन पुल के नीचे
ल्ल 40 बीओडी आगरा कैनाल के कालिंदी कुंज के पास
ल्ल 99 बीओडी सबसे अधिक ओखला बैराज के बाद होती है पानी में
(बीओडी यानी बॉयोलॉजीकल ऑक्सीजन डिमांड पानी और प्रदूषण के बीच मानक है इसके तहत सिर्फ तीन बीओडी ही सुरक्षित स्तर है)
क्या है दिल्ली की स्थिति
ल्ल 3814 एमएलडी पानी यानी 381 करोड़ लीटर पानी रोजाना जलबोर्ड दिल्ली में आपूर्ति के लिए लेता है। भूजल भी इसमें शामिल है
ल्ल 2460 एमएलडी यानी प्लांटों की पानी साफ करने के लिए 246 करोड़ लीटर क्षमता है
यमुना की सफाई के लिए हुए काम का ब्यौरा
ल्ल 1993 में की गई थी यमुना एक्शन प्लान की शुरुआत
ल्ल 23 वर्षों में लगभग 1500 करोड़ से ज्यादा खर्च किए जा चुके हैं यमुना की सफाई पर
क्या सलाह है प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की
ल्ल पुराने सीवेज शोधन संयंत्रों की कार्यक्षमता में करना होगा इजाफा।
ल्ल दिल्ली सरकार को अपने अगले एक्शन प्लान में ऐसे सीवरेज शोधन संयंत्रों लगाने होंगे जो बीओडी के स्तर को 10 तक ला सकें
ल्ल ऐसी औद्योगिक इकाइयों की पहचान कर सख्त कदम उठाने होंगे कि वे उनके यहां से निकलने वाले प्रदूषित पानी को बिना शोधित किए हुए न छोड़े।
जहरीली मछली खाने से मर चुके हैं सैकड़ों घडि़याल
यमुना से मिलने वाली चंबल नदी में सैकड़ों की संख्या में घडि़याल पाए जाते हैं। घडि़यालों की बढ़ी संख्या के कारण 1979 में चंबल के 400 किलोमीटर इलाके को राष्ट्रीय चंबल सफारी घोषित किया गया। राजस्थान के कोटा से लेकर इटावा-औरैया की सीमा पचनदा तक के इलाके के घडि़यालों के संरक्षण के लिए अभ्यारण्य घोषित किया गया है। यमुना से चंबल में पहुंची तलापिया नाम की मछली खाने को इन घडि़यालों की मौत का कारण बताया गया। दरअसल मछली की यह प्रजाति चंबल में नहीं पाई जाती। जिस इलाके में घडि़यालों की सबसे ज्यादा मौत हुई वहां पर यमुना चंबल से मिलती है। वर्ष 2008 से 2014 तक 100 से ज्यादा घडि़यालों की मौत हो चुकी है। इनकी मौत का कारण घडि़यालों के जहरीली मछली खाने से उनका लीवर और किडनी फेल होना है। जब मामले की जांच की गई तो पता चला कि यह मछलियां यमुना के प्रदूषण के कारण जहरीली हो गई है और इनमें बड़ी मात्रा में कैडमियम, आर्सेनिक और शीशे की मात्रा ज्यादा पाई गई जिसके चलते मछलियां खाने से घडि़यालों की मौत हो गई।
आस्था, श्र्रद्धा, भावना और विश्वास की सतत् धारा है यमुना
यमुना मैय्या सूर्यनंदिनी यानी भगवान सूर्यनारायण की पुत्री और यमराज की बहन हैं। इन्हें भगवान श्रीकृष्ण की पटरानी भी कहा गया है। लाखों लोगों की भावना यमुना मैय्या से जुड़ी हुई है। भगवान सूर्य नारायण पूरे संसार को ऊर्जा देते हैं, शक्ति देते हैं। पिता का अंश उसकी संतान में भी होता है। इसलिए यमुना मैय्या में स्नान कर लोग स्वयं को धन्य मानते हैं। यम द्वितीया पर सैकड़ों की संख्या में लोग यमुना में स्नान करते हैं। मान्यता है कि जो इस दिन यमुना में श्र्रद्धापूर्वक स्नान करता है उसे यम के पाश से छुटकारा मिल जाता है अर्थात् उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती और उसे यमपुरी में यातना भी नहीं सहनी पड़ती है। वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है। हम यमुना के अविरल प्रवाह के लिए यात्रा लेकर दिल्ली तक जा चुके हैं। वृंदावन से आगे दिल्ली तक यमुना में यमुना का पानी आता ही नहीं है। हम अविरल प्रवाह की मांग को लेकर यात्रा लेकर निकले थे। तब तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने संत समाज को आश्वासन दिया था कि यमुना में अविरल प्रवाह होगा और यमुना साफ की जाएगी। अब केंद्र में भाजपा की सरकार है, हमारी सरकार के सभी प्रबुद्ध लोगों से बातचीत हो चुकी है। हमें फिर से आश्वासन मिला है कि यमुना जल्दी से जल्दी साफ हो जाएगी। – श्री ज्ञानानंद जी महाराज, शीर्ष आध्यात्मिक विभूति एवं यमुना बचाओ आंदोलन के अध्यक्ष
पुरानी व्यवस्थाओं से लें सबक
पुराने दौर में जब राजाओं का शासनकाल था, तब की व्यवस्थाओं को अगर देखें तो राजा प्रजा के लिए पानी की व्यवस्थाएं करते थे। तालाब और कुएं खुदवाए जाते थे। बारिश के पानी का उसमें संचयन किया जाता था। खेती की बात करें तो रहट से कुओं से पानी निकाला जाता था और खेत सींचे जाते थे, लेकिन पानी उतना ही निकाला जाता था जितनी आवश्यकता होती थी। हरित क्रांति के नाम पर गांवों में ट्यूबवैल लगा दिए गए। भूजल निकाला जाने लगा। खेती बढ़ी लेकिन पानी का इस्तेमाल भी जरूरत से ज्यादा होने लगा। जितना पानी खेत को चाहिए था उससे ज्यादा पानी धरती के गर्भ से निकाला जाने लगा। पानी की जरूरत से उसकी बर्बादी होने लगी। जब तालाबों में पानी नहीं बचा, कुओं में नहीं बचा तो हमने नदियों से नहरें निकाल लीं। कुल मिलाकर हम नदी पर निर्भर होकर रह गए। पहले का जो समाज था उसकी कुछ व्यवस्थाएं थीं। उन्हीं व्यवस्थाओं के तहत हर चीज का उपभोग किया जाता था। हमें सामाजिक तौर पर बदलना होगा या यूं कहें कि हमें फिर से व्यवस्थित होने की जरूरत है। यदि हम पुरानी व्यवस्थाओं से सबक लेकर उन्हें नूतन तरीके से अपनाते हैं तो नदियां स्वत: ही साफ हो जाएंगी।
एस . ए. नकवी, संयोजक, सिटीजन्स फ्रंट फॉर वाटर डेमोक्रेसी
कम करनी होगी नदियों पर निर्भरता
वर्ष 1911 में दिल्ली में 800 तालाब हुआ करते थे व असंख्य कुएं। जितनी भी सभ्यताएं जन्मीं वे सब नदियों के आसपास जन्मीं, लेकिन किसी समय में ऐसा नहीं था कि मनुष्य सिर्फ नदियों के पानी पर निर्भर था। साहिबी जैसी कई छोटी-छोटी नदियां जिन्हें आज नाला कहा जाता है यमुना में आकर गिरती थीं। भूजल समृद्ध था। बारिश होती थी पानी तालाबों में भर जाता था, कुंओं में भर जाता था और प्राकृतिक तौर पर साफ हो जाता था। लोग इस पानी का प्रयोग किया करते थे। नदी का पानी भी प्रयोग किया जाता था लेकिन सिर्फ जरूरत के अनुसार। आबादी बढ़ी जरूरते बढ़ी। कुओं की जगह नालों ने ले ली। अंग्रेजी शासनकाल के दौरान शादियों में महिलाएं एक लोकगीत गाया करती थीं। जिसका अर्थ होता था 'फिरंगी नल मत लगवाए दीजो' इसका अर्थ होता था कि हमें नल नहीं चाहिए। हम अपने कुंओं और तालाबों से पानी लेकर काम चला लेंगे। बहरहाल व्यवस्थाएं बदल गईं तो जरूरतें भी बदली। आबादी बढ़ी तो तालाब खत्म हुए, टयूबवैल लगाकर धरती का पानी खींचा जाने लगा तो भूजल का स्तर भी निरंतर गिरने लगा। तालाबों पर कब्जा हो गया, भूजल पर्याप्त नहीं रहा, बावडि़यों का पानी दूषित हो गया तो बारी आई नदी की। अब कोई भी सरकार इतनी निष्ठुर तो नहीं हो सकती कि लोगों को पानी मुहैया न कराए। अब बारी आई यमुना की। पानी के लिए सारी निर्भरता यमुना पर हो गई। यमुना से खेती के लिए पानी लिया जाता तो ठीक था लेकिन बाकी जरूरतों के लिए यमुना का ही दोहन शुरू हो गया। अब जब यमुना में प्रवाह ही नहीं रहेगा तो यमुना साफ कैसे होगी?
यमुना को साफ करने के लिए हमें किसी चीज की जरूरत नहीं है। ऐसा नहीं है कि नदियों में गंदगी पहले नहीं आती थी, लेकिन तब नदियों का प्रवाह तेज होता था। नदी अपने प्रवाह के साथ बहती थी। उछलते-कूदते पानी प्राकृतिक तौर पर साफ हो जाता था। यदि हम तकनीक की बात करें तो संयंत्रों में भी पानी को साफ करने के लिए ऑक्सीजन मिलाई जाती है। नदी प्राकृतिक तौर पर ऐसा स्वत: कर लेती थी लेकिन अब ऐसा नहीं हो पा रहा क्योंकि नदी में पानी का प्रवाह ही नहीं है। इसका कारण है अपनी नदी के पानी पर निर्भरता। बारिश पहले भी कम नहीं होती थी। एक दो वर्षों को यदि छोड़ दिया जाए तो बारिश का औसत लगभग वही रहता है। पहले बारिश का पानी तालाबों में जाता था, कु ओं में जाता था। उनसे भूजल समृद्ध होता था, लेकिन अब पानी के एकत्रीकरण के लिए न तालाब बचे न कुएं। उस पर भी मनुष्य लगातार भूजल का दोहन किया जा रहा है। ऐसे में भूजल लगातार नीचे जा रहा है। इसी कारण पारिस्थतिक तंत्र पर भी प्रभाव पड़ रहा है। बारिश जो होती है उसका पानी गंदे नालों से होता हुआ नदी में जाकर गिरता है और आगे चला जाता है। यमुना की ही नहीं सभी नदियों के साथ कमोबेश यही स्थिति है। यदि हमें नदियों को साफ रखना है तो जलसंरक्षण के उपाय करने होंगे। ठीक है आबादी बढ़ गई है उतने तालाब नहीं बनाए जा सकते जितने पहले हुआ करत थे तो हम कुछ बड़े तालाब बनाएं। 'रेन वाटर हार्वेस्टिंग' करें। इससे भूजल भी समृद्ध होगा और नदियों पर हमारी निर्भरता भी कम होगी। यदि हम ऐसा करते हैं तो हमें नदियों को साफ करने के लिए बड़ी-बड़ी योजनाएं बनाने की जरूरत नहीं होगी।
(पर्यावरणविद् श्री अनुपम मिश्र से बातचीत के आधार पर)
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