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उत्तराखण्ड जल संसाधन की दृष्टि से सबसे धनी प्रदेशों में से एक है। परम्परागत 'घराट' पर गांव-गांव में आटा पीसने का काम उस समय से यहां चल रहा है जब किसी ने वैकल्पिक ऊर्जा को एक अभियान के रूप में कभी लेने की कल्पना भी न की होगी। सूदूर गांवों में,जहां सड़क-बिजली जैसी सुविधाएं कभी पहुंची भी न थीं, वहां उस दौर में गांव से निकलने वाली जलधाराओं के सहारे आटा, मसाला, दाल पीसने का काम 'पनचक्की' के सहारे चला करता था और आज भी चल रहा है। 'पनचक्की' अब केवल आटा-मसाले ही नहीं पीस रही बल्कि अब अपनी खुद की बिजली भी पैदा कर रही है। नैनीताल जिले में सडि़याताल के आस-पास ऐसे सोलह 'घराट' हैं जिनमें बिजली पैदाकर गांव वाले न सिर्फ अपने घर बल्कि आस-पास के घरों को भी रौशनी दे रहे हैं। भारत सरकार के वैकल्पिक ऊर्जा विभाग ने इन्हें आर्थिक अनुदान देकर बिजली उत्पादन के लिए प्रेरित किया है।
बागेश्वर में सरयू-गोमती नदी के किनारे रहने वाली एक जाति है 'चुनेरे'। ये लोग सैकड़ों वर्षों से पीढ़ी दर पीढ़ी, नदी की धार पर लकड़ी के बर्तन बनाने का काम करते आ रहे हैं। सर्दियों में बर्फ जमने से जब पानी कम हो जाता है तो ये लोग स्थानांतरित होकर भाबर में कोसी-गौला-रामगंगा की धाराओं पर बर्तन बनाने का काम जारी रखते हैं। लकड़ी के ये बर्तन दही जमाने, दाल-राशन रखने के काम आते हैं।
उत्तराखण्ड में नैनीताल जिले में हल्दूचौड़ में नित्यानंद आश्रम की गोशाला में लगभग तीन सौ गायों को रखा गया है, पहले इनके गोमूत्र-गोबर को इस्तेमाल में लाया जाता था, अब इनके गोबर को एक ऊर्जा संयंत्र में डालकर पन्द्रह किलोवाट बिजली पैदा की जा रही है, साथ ही गोबर के पानी से आश्रम के गैस चूल्हे जलाए जा रहे हैं। गाय बिजली गैस-खाद पैदा कर रही है, यह संदेश जब तमाम नगर परिषद्, ग्रामसभाएं सुनती हैं तो उन्हें भी अपने यहां बिजली उत्पादन की प्रेरणा मिलती है। वैकल्पिक ऊर्जा विभाग और रामगाड़ के गांववासियों ने मिलकर जलधारा पर सौ किलोवाट का बिजली संयंत्र लगा दिया है जो कि आसपास के नब्बे गांव वालों को चौबीस घण्टे बिजली दे रहा है। गांव वालों ने यहां से दो मोबाइल टावरों को भी बिजली आपूर्ति कर अपने गांव की बिजली को आमदनी का जरिया भी बना दिया है। इस आमदनी से उन्हें इस संयंत्र के रख-रखाव का खर्चा निकालने में मदद मिलती है। ऐसे प्रयोग यदि उत्तराखण्ड के सूदूर गांवों में और हो जाएं तो पहाड़ों में बडे़ बांधों की जरूरत ही न पड़े।
पिथौरागढ़ के रहने वाले डॉ. विपिन चंद्र जोशी ने बारिश का पानी एकत्र करके पेयजल और सिंचाई में उपयोग किया और साथ में 'सौर हीटर' लगाकर पानी गरम करने में खर्च होने वाली बिजली की भी बचत की। कार्बेट पार्क के पास गांव छोई-गेबुआ में श्री कुबरेराम जलधारा से बिजली उत्पादन कर अपने पड़ोस के पांच घरों को रौशन कर रहे हैं। उत्तराखण्ड में जल-संसाधनों में कमी नहीं है। जरूरत यहां के लोगों की प्रेरित करने की है। अभी तक जितनी भी कोशिशें सफल हुई हैं वे ऐसे स्थानों पर हुईं जहां सरकार की विकास की किरणें नहीं पहुंचीं, लोगों ने खुद ही अपने प्रयासों से अपनी जरूरतों को पूरा किया और दूसरों के लिए मिसाल भी बने। सरकारी तौर पर चीड़ के पत्तों (पिरुल) से कोयला बनाकर ईंधन के रूप में उसका प्रयोग लकड़ी का विकल्प तो बना है लेकिन इसका अभी तक व्यावसायिक उपयोग नहीं हो पा रहा है। यदि इसे पहाड़ के लोग अपना लेेंगे तो जलावन लकड़ी की समस्या का समाधान हो सकेगा। रसोई गैस की भी बचत होगी।
हाल ही में सौर ऊर्जा से भारत संचार निगम के मोबाइल टावर, वन विभाग के जंगलों में गश्त करने वाले सिपाहियों के वायरलैस और मोबाइल रिचार्ज करने जैसे ऊर्जा बचत के कार्य हुए हैं। उत्तराखण्ड के उधमसिंह नगर में औद्योगिक परिसर में 'डेल्टा सॉफ्टवेयर कम्पनी' देश की पहली 'ग्रीन कम्पनी' बनी है, ये कंपनी सौर ऊर्जा से चलायी जाती है।
नैनीताल और देहरादून के राजभवनों में भी सौर ऊर्जा से बिजली मिलती है। ग्राम्य विकास विभाग के जरिए सौर ऊर्जा लालटेन मिलती हैं। इसमें संदेह नहीं है कि उत्तराखण्ड में वैकल्पिक ऊर्जा के प्रयास तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं इनके प्रोत्साहन की आवश्यकता है।
दिनेश
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