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कभी सोचिए कि एक छोटा बच्चा, साल भर का, वह क्यों खुश रहता है, उसको कौन सा पैसा मिल गया, प्रमोशन मिल गया या प्रॉपर्टी उसके हाथ लग गई? अगर उसका पेट भरा रहता है तो वह खुश रहता है क्योंकि खुश रहना हमारा नैसर्गिक अधिकार है। फिर जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है, वह अपने स्वभाव से कटता जाता है क्योंकि उसकी 'कंडीशनिंग' की जाती है, उसे समझाया जाता है कि खुशी पैसा कमाने में है, जब कोई 'प्रमोशन' मिल जाए, 'प्रापर्टी' मिल जाए तो उसमें खुशी है, सम्मान है।
जब इस तरह सिखाया जाता है और ऐसा ही माहौल उसके आसपास रहता है तो वह तीस-चालीस साल का होने तक पूरी तरह भूल जाता है कि हमारे अंदर भी खुशियों का कोई स्रोत है। वह भूल जाता है बचपन में हम कैसे थे और क्या थे। उसका सारा ध्यान इसी में लग जाता है कि पैसा कमाओ। चाहे बेईमानी से कमाओ, चोरी करके कमाओ, झूठ बोलकर कमाओ, पर पैसा कमाओ, प्रॉपर्टी खड़ी करो। लेकिन वह योग करना शुरू करता है तो योग फिर उसे उसके अंतरतम से जोड़ देता है। तो उसे फिर लगता है कि उसके भीतर तो खुशी के अलावा कुछ नहीं है। फिर सारी चीजें बेमानी हो जाती हैं। तब लगने लगता है कि अब तो बेईमानी करने में तनाव है। और जो आनंद है वह तो वैसे ही जीवन में आ रहा है। फिर सारा लालच, सारे भय समाप्त हो जाते हैं। जो व्यक्ति योग करेगा वह अमूमन अच्छा इन्सान रहेगा। ऐसा 100 प्रतिशत है।
योग जितनी जल्दी शुरू किया जाए उतना अच्छा। जब मामला बहुत बिगड़ जाए तब उतना लाभ नहीं होता। जैसे आपको किसी का हृदय अच्छा रखना है तो किस उम्र में इस पर ध्यान दिया जाए? जब वह बचपन में है या जवान है, जब उसका दिल स्वस्थ है। आप यह तो नहीं इन्तजार करेंगे कि जब इसे 'हार्ट अटैक' पड़ जाए तब हम बताएंगे कि इसे कैसे अपने हृदय को स्वस्थ रखना है। तो वैसे ही जब आदमी भ्रष्टतम हो जाए और भ्रष्टाचार की सारी सीमाएं लांघ जाएं तब उसको योग सिखाने का भी क्या फायदा। योग तो तब सिखाना चाहिए जब उसके अंदर बीमारियां पनपी नहीं हैं। इसे कक्षा एक से ही सिखाया जाना चाहिए जिससे दिमाग बेईमानी की तरफ जाए ही नहीं।
स्कूली शिक्षा में योग अनिवार्य हो
दुर्भाग्य से भारत में पांच प्रतिशत से भी कम स्कूलों में योग सिखाया जा रहा है। सरकार की तरफ से योग शिक्षा अनिवार्य होनी चाहिए। बच्चे स्कूल से घर आएं तो उनके माता-पिता भी योग करें जिससे बच्चे को लगे कि स्कूल में जो बात सिखाई जा रही है वह सही है और हमारे माता-पिता भी उसे करते हैं। अभी स्कूलों में सच बोलो, ईमानदारी से रहो, ऐसे पाठ पढ़ाए जाते हैं, ये नैतिक शिक्षा का हिस्सा हैं, लेकिन बच्चा देखता है कि उसके घर में और समाज में सब तरफ बेईमानी का बोलबाला है। न केवल बोलबाला है बल्कि आज ऐसा समय आ गया है कि जो जितना ज्यादा बेईमान है उसकी उतनी ज्यादा इज्जत है। तो उसको स्कूल में सिखाई गई बातें झूठ लगने लगती हैं। स्कूल में तो एक बनावटी माहौल है, नकली बातें सिखाई जा रही हैं लेकिन असली जीवन तो यहां है, स्कूल से बाहर है। वह बेईमानी का आदर होता देखता है तो स्कूल की बातें भूल जाता है और बेईमान बन जाता है।
इसे एलोपैथी का विकल्प न बनाएं
योग से सत्तर फीसदी तक बीमारियों को रोका जा सकता है। लेकिन अगर कोई बीमारी हो जाती है, तब उसका इलाज कराना चाहिए। समाज में आजकल एक बड़ा भ्रम फैला है, उसे मैं दूर कर दूं कि योग की हम 'एलोपैथिक मेडिकल साइन्स' से तुलना नहीं कर सकते। दोनों अलग-अलग चीजें हैं। योग 'एलोपैथिक मेडिकल साइन्स' का विकल्प नहीं है।
योग एलोपैथिक दवा नहीं है कि इन्जेक्शन लगा दिया और आधे घंटे में बुखार 104 या 105 से उतरकर 'नार्मल' आ जाएगा। योग का असर धीमा है लेकिन वह बहुत भीतर तक जाता है। योग मस्तिष्क और शरीर की क्रियाओं और जीन्स के प्रभाव तक में सकारात्मक बदलाव लाता है। योग के फायदे बहुत हैं। वे धीरे-धीरे आते हैं, लेकिन निश्चित रूप से आते हैं। इसे दवाओं के साथ भी अपनाना चाहिए, जैसा कि तमाम डॉक्टर और अस्पताल कर भी रहे हैं, और जब कोई बीमारी न हो तब भी अपनाना चाहिए। मैं तो कहूंगा कि बचपन से ही योग सिखाया जाना चाहिए। जितने भी अच्छे डॉक्टर हैं, वे सब सलाह देंगे कि आप योग भी करिए।
योग-एक जीवनशैली
यह वैसे ही है जैसे अगर कोई आदमी अमूमन रोज स्नान करता है तो कहा जा सकता है कि उसे त्वचा संबंधी समस्याएं नहीं होंगी। लेकिन अगर उसे कोई त्वचा संबंधी समस्या हो गई है तो फिर उसे एंडीबायोटिक्स और एन्टी फंगल क्रीम लगानी पड़ेगी, गोलियां खानी पड़ेंगी। तब सिर्फ स्नान करने से ही वह ठीक नहीं होगा। योग बीमारियों का निदान नहीं है। लेकिन हां, जो व्यक्ति लगातार योग करता है, उसे आम तौर पर बीमारियां नहीं होतीं। उसका शरीर साफ रहता है इसलिए बीमारियां नहीं होतीं। लेकिन अगर बीमारियां हो जाती हैं तो फिर दवाइयां लेनी पड़ती हैं।
जीवन में आनंद
योग का अंतिम लक्ष्य है कि आप परम आनंद को प्राप्त हों। इससे खुशियां बढ़ती हैं। ये खुशियां ऐसी हैं जो अंदर से प्रकट होती हैं। आपको पता चलता है कि खुशियों का स्रोत आपके अंदर है और कभी खत्म नहीं होता। तो योग से व्यक्ति वह परम आनंद प्राप्त कर सकता है। परम आनंद, जैसे सूर्य का प्रकाश, फिर अंधेरा वहां पर हो नहीं सकता। जिस व्यक्ति को ऐसा आनंद मिलता है फिर वह चोरी, बेईमानी या किसी नकारात्मक कार्य में कैसे संलग्न हो सकता है। (वार्ताधारित)
इनका कहना है….
किसी भी प्रकार के दर्शन, धर्म या संस्कृति के लिए अस्तित्व में बने रहना सरकार के सहयोग के बिना असंभव है। योग अब तक एक अनाथ की तरह से अस्तित्व में था, लेकिन संयुक्त राष्ट्र के द्वारा योग के महत्व को समझ लिए जाने के बाद अब सारे विश्व को योग से लाभ होगा।
भारत ही वह देश है जहां योग की शुरुआत हुई और अब समय आ गया है जब योग को सभी जगह फैलाने की जिम्मेदारी हमारे देश को ले लेनी चाहिए। योग का आरंभ कक्षाओं से किया जाना चाहिए। योग युवाओं को हथियार और हिंसा से दूर रखेगा। योग एक जीवनशैली है और इसे सिर्फ आसन समझना गलत है। बीमारीमुक्त शरीर, हिचकिचाहट से मुक्त आवाज, चिंतामुक्त दिमाग, आत्मविश्वास से भरा व्यक्तित्व और सोच, आसक्तिमुक्त यादें, गर्व की अनुपस्थिति और दुखों से मुक्त आत्मा ही एक श्रेष्ठ योगी के लक्षण हैं।
—श्रीश्री रविशंकर
संयुक्त राष्ट्र में विश्व योग दिवस मनाने के प्रस्ताव को 173 देशों का समर्थन मिलना भारत की योग-विद्या की विश्वव्यापी स्वीकृति का प्रमाण है। महर्षि पतंजलि और गुरु गोरखनाथ द्वारा समृद्ध बनायी गयी इस वैज्ञानिक पद्धति का आधुनिक काल में जिन महात्माओं और साधकों ने प्रचार प्रसार किया है उन्हें भी इसका श्रेय है, जैसे मुंगेर के स्वामी सत्यानन्द, बी.के. अयंगर और श्रीश्री रविशंकर जी आदि। आध्यात्मिकता भारत की पहचान है। योग मानव मात्र को दासता से मुक्त करता है तथा शरीर को हर प्रकार के रोगों से छुटकारा दिलाता है। आशा है सरकार योग को शिक्षण संस्थाओं में अनिवार्य विषय बनाएगी तथा अस्पतालों में इसे एक चिकित्सा पद्धति के रूप में मान्यता मिलेगी।— बाबा रामदेव
डॉ. विपिन मिश्रा
योग ही दुनिया को जोड़ेगा
अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का आयोजन महत्वपूर्ण है। इसका सदुपयोग हो ताकि उस दिन दुनियाभर में योग को उसकी पूरी गरिमा व महत्ता के साथ सामने रखा जा सके, उसका उत्सव मनाया जा सके। इससे दुनिया भर के लोग न सिर्फ इसके विशुद्ध स्वरूप से परिचित हो सकेंगे, बल्कि योग की अतुलनीय और सार्वभौमिक अपील के बारे में जान सकेंगे और महसूस कर सकेंगे। योग किसी भी मत और संप्रदाय से नहीं जुड़ा है। योग प्रेम, अहिंसा, करुणा और सबको साथ लेकर चलने की बात करता है। योग मत, नस्ल, जाति, वर्ण, क्षेत्र या भाषा के आधार पर जन्मे भेदभाव से परे है, इसलिए इसमें पूरी दुनिया को एक परिवार के तौर पर बांधने की क्षमता है।
योग, जीवन की प्रक्रिया की छानबीन है। इसने मानव के सामने संभावनाओं को खोलने का काम किया जिससे इंसान कुदरत की ओर से तय की गई सीमाओं से परे जा सके। योग विज्ञान को उसके विशुद्ध रूप में दुनिया को मुहैया कराने की जिम्मेदारी इस पीढ़ी की है। आंतरिक व आत्मिक विकास, मानव कल्याण व मुक्ति से जुड़ा यह विज्ञान भावी पीढ़ी के लिए एक महानतम तोहफा है।
यह एक बेहद विशेष और गंभीर मौका है। आज योगिक विज्ञान जितना महत्वपूर्ण हो उठा है, इससे पहले यह कभी इतना महत्वपूर्ण नहीं रहा। आज हमारे पास विज्ञान और तकनीक के तमाम साधन मौजूद हैं, जो इस दुनिया को बना और मिटा सकते हैं। ऐसे में यह बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है कि हमारे भीतर जीवन के प्रति जागरूकता और ऐसा भाव बना रहे कि हम हर दूसरे प्राणी को अपना ही अंश महसूस कर सकें। वरना अपने सुख और भलाई के पीछे की हमारी दौड़ सब कुछ बर्बाद कर देगी। अगर दुनिया की कुछ आबादी भी इसका अनुभव कर ले, सचमुच ध्यान के मार्ग पर चलने लगे तो निश्चित तौर पर दुनिया की गुणवत्ता और स्तर में सुधार आएगा। खासकर विश्व के नेताओं ने अगर अपने जीवन में एकात्मकता को, जीवन के योग को समझ लिया और उसे महसूस कर लिया तो दुनिया में खासा बदलाव आ जाएगा। जीवन के प्रति अपने नजरिए में विस्तार लाने, व्यापकता लाने में ही मानव-जाति की सभी समस्याओं का समाधान है। उसे निजता से सार्वभौमिकता या समग्रता की ओर चलना होगा। विश्व योग दिवस इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो इस पूरी धरती पर एक लहर पैदा कर सकता है।
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