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गत 25-26 मई को प्राचीन श्रीराम मंदिर, भूपतवाला, हरिद्वार में विश्व हिन्दू परिषद का दो दिवसीय केन्द्रीय मार्गदर्शक मण्डल का कार्यक्रम संपन्न हुआ। इस दो दिवसीय सत्र में विहिप ने प्रमुख रूप से दो प्रस्तावों का अनुमोदन कर उसे पारित किया। पहला प्रस्ताव था-गंगा की अविरलता ही गंगा की निर्मलता और रक्षा का एकमेव मार्ग है। गंगा को लेकर चिंता व्यक्त करते हुए इस प्रस्ताव में कहा गया है कि पतित पावनी मां गंगा आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक तीनों ही दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। भारत में गंगा के आध्यात्मिक अधिष्ठान को कोई समाप्त नहीं कर सकता। गंगा केवल हाइड्रोजन आक्सीजन का मिश्रण नहीं है, अपितु भारतीयों की मां हैं। गंगा किसी शासन व्यवस्था की भी देन नहीं है अपितु भगवद् प्रदत्त धरोहर है जिसकी रक्षा करना हम सबका राष्ट्रीय कर्त्तव्य है।
सरकार की नमामि गंगे योजना स्तुत्य है। परन्तु केन्द्रीय मार्गदर्शक मण्डल का यह दृढ़ मत है कि गंगाधारा की अविरलता के बिना निर्मलता प्राप्त करना असम्भव है। नमामि गंगे योजना के सार्थक और सकारात्मक परिणाम के लिए आवश्यक है कि (1) गंगा को परिभाषित किया जाये। (2) गंगोत्री से जितनी मात्रा में जल प्राप्त होता है उतनी ही मात्रा में जल गंगासागर तक के लगभग 2525 किलोमीटर के सम्पूर्ण प्रवाह मार्ग पर प्राप्त होना चाहिए। (3) सीवर, शहर व उद्योगों से निकलने वाले दूषित पानी को शुद्घ करके उसे सिंचाई तथा उद्योगों के उपयोग के लिए दिया जाये। दूसरा प्रस्ताव पारित किया गया वह था – श्वेतक्रान्ति और भारत के गांव व गरीब किसान के विकास का मूलाधार गोवंश की रक्षा। प्रस्ताव में कहा गया कि भारतीय ऋषि-महर्षियों द्वारा गऊ को मां सम्बोधन करके सवार्ेपरि महत्व प्रदान किया गया है। 'गावो विश्वस्य मातर:' सूत्र की व्याप्ति बहुत विशाल है। गोमाता केवल मनुष्य का ही नहीं तो जीव मात्र का रक्षण करती है फिर भी स्वतंत्र भारत में गऊ एवं गोवंश का विनाश निरन्तर जारी है।
यद्यपि अनेक प्रान्तों ने गोरक्षा के कानून बनाये है लेकिन बनाये गये कानूनों का प्रामाणिकता के साथ पालन न होने के कारण गोवंश की संख्या निरन्तर घट रही है, इसके दुष्परिणाम आजादी के 68 वर्ष बाद सर्वत्र अनुभव हो रहे है। हमारी खेती गोवंश आधारित न रहकर मशीन आधारित हो गई है, जैविक खाद के स्थान पर रसायन का प्रयोग बढ़ गया।
आज यह वैज्ञानिक आधार पर यह सिद्ध हो चुका है कि भारतीय नस्ल के गोवंश के मूत्र और गोबर में औषधीय गुण हैं, खेती के लिए हानिकारक कीटाणुओं को नियंत्रित करने की शक्ति है, शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। गोवंश पालन से पर्यावरण का संरक्षण और प्रदूषण नष्ट करने में सहायता मिलती है। इसलिए भारत के समग्र विकास और देश में श्वेत क्रान्ति लाने के लिए भारतीय नस्ल के गोवंश का संरक्षण और संवर्धन आवश्यक है। अत: भारत सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए और गोवंश के वध पर पूर्ण प्रतिबन्ध का कानून भारत सरकार को बनाना चाहिए। साथ ही केन्द्र व सभी राज्यों में गोसंवर्धन मंत्रालय की स्थापना हो ताकि गोवंश पर समग्र चिन्तन हो सके। इस अवसर पर विहिप के वरिष्ठ पदाधिकारियों सहित पूज्य साधु-संत उपस्थित रहे। ल्ल प्रतिनिधि
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