राष्ट्रीय नायक थे आंबेडकर
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राष्ट्रीय नायक थे आंबेडकर

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May 9, 2015, 12:00 am IST
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दिंनाक: 09 May 2015 17:17:12

अंक संदर्भ: 19 अप्रैल,2015
आवरण कथा 'युगद्रष्टा डॉ. आंबेडकर' देश के उन नायकों में से एक थे, जिन्होंने सदैव समाज को एक सूत्र में पिरोकर संगठित और सशक्त बनाने का प्रयास ही नहीं किया बल्कि अपना संपूर्ण जीवन इसी कार्य को समर्पित कर दिया। इतिहास पुरुष डॉ. आबेडकर की 125वीं जयंती पर पाञ्चजन्य ने जिस प्रकार उनके पूरे जीवन को समग्रता से प्रस्तुत किया वैसा शायद ही कभी मीडिया जगत में हुआ हो। जहां तक बात है, हर दल, हर संगठन, हर व्यक्ति ने डॉ. आंबेडकर का अपने लाभ के लिए उपयोग किया और उनके समग्र जीवन की अपनी तरह से मीमांसा करके समाज के सामने उनके चेहरे को प्रस्तुत किया। किसी ने जातिवाद, किसी ने ब्राह्मण द्रोही, किसी ने हिंदू विरोधी तो किसी ने उन्हें संकुचित मानसिकता का मानव बताया। लेकिन वे वास्तव में क्या थे, उसको सदैव लोगों ने छुपाया। पाञ्चजन्य ने उनके वास्तविक स्वरूप को देश के सामने लाकर समग्रता से उनके को सबके सामने रखा है।
—गोपाल कृष्ण पण्ड्या,उज्जैन (म.प्र.)
ङ्म डॉ. आबेडकर के विषय में अनेकानेक भ्रान्तियां समाज में सदैव से रही हैं। उनको किसी न किसी प्रकार से गलत बताया और तमाम तरह के आरोपों का पुलिन्दा लादा गया। यह एक सोची समझी कुटिल राजनीति और षड्यंत्र पूर्ण कार्य का ही परिणाम है। राजनीतिक दलों का इसके पीछे एक ही उद्देश्य था कि डॉ. आंबेडकर को एक जातिविशेष का बनाकर सदैव के लिए राजनीति की रोटियां सेंकी जा सकें और इसमें कई दल और संगठन सफल भी हुए हैं और यह क्रम आज भी जारी है। यह सभी डॉ. आंबेडकर पर राजनीति करके उनके वास्तविक जीवन को बदलकर अपना स्वार्थ सिद्ध कर रहे हैं, जबकि उन्होंने सदैव दवे-कुचले, अशिक्षित, निर्धन, महिलाओं व दीन-दुखियों की ही बात की और उनके अधिकारों के लिए जीवन भर लड़ते रहे। उन्होंने संपूर्ण भारत में एक समन्वय स्थापित करने का भरसक प्रयास किया। डॉ. आंबेडकर ने अपनी कार्यप्रणाली से पूरे विश्व में भारत का नाम ऊंचा किया। वह भारत के अनमोल रत्नों में से एक हैं।
—हरिहर सिंह चौहान
जंबरीबाग नसिया, इंदौर (म.प्र.)
ङ्म पाञ्चजन्य ने डॉ. भीमराव आंबेडकर के जीवन को समग्रता के साथ प्रस्तुत कर सराहनीय कार्य किया है। यह कार्य इसलिए जरूरी था कि क्योंकि लोगों में आज तक डॉ. आंबेडकर के जीवन चरित्र के संबंध में भ्रम रहा है और यह भ्रम आज से नहीं बल्कि वर्षों से चला आ रहा है। इस भ्रम को किसी भी दल या संगठन द्वारा कभी भी दूर करने का कार्य नहीं किया गया क्योंकि इसके पीछे राजनीतिक स्वार्थ जो था। लेकिन उनके इस कार्य से समाज का कितना नुकसान हुआ इस पर कभी भी ध्यान नहीं गया। वे समाज सुधारक, देश के हित चिंतक और समाज को एकसूत्र में पिरोने वाले व्यक्ति थे। उनके विचार आज भी भारत को दिशा प्रदान करते हैं।
—छैल बिहारी शर्मा, छत्ता (उ.प्र.)
ङ्म राष्ट्रवाद और सामाजिक समानता के प्रतीक डॉ. भीमराव आंबेडकर ने अपने कार्यों से राष्ट्र को पहचान दी और समाज में उस वंचित और कमजोर वर्ग को अपनी आवाज दी जो सदियों से असमानता और अपमान के दंश को झेल रहा था। उन्होंने वंचित समाज की आवाज को सुना ही नहीं बल्कि स्वयं सहन किया और वे इस दुख के समय द्रवित हुए लेकिन कभी किसी पर अप्रिय नहीं बोले। उन्होंने अपमान की घड़ी में धैर्य बनाए रखा और समाज में फैली कुरीतियों और आडम्बर के विरुद्ध लड़ते रहे। लेकिन उनका तप आज सफल हो रहा है। आज वंचित समाज मुख्य धारा में समाहित हो रहा है। उसको वही सम्मान मिल रहा है जो अन्य वर्ग को मिलता था। वह भी सशक्त और समृद्ध हो रहा है। समाज से जातिवाद का दिन- प्रतिदिन क्षय हो रहा है। इसका पूर्ण श्रेय डॉ. आंबेडकर को ही जाता है।
—मनोहर मंजुल,पिपल्या-बुजुर्ग (म.प्र.)
ङ्म बाबा साहेब ख्यातिलब्ध व्यक्ति थे। उनकी ख्याति भारत में नहीं वरन् विश्व में थी। उनके जीवन का एक ही ध्येय था कि उनको हक दिलाना है जो वास्तव में हकदार हैं और इसी ध्येय को लेकर वे पूरे जीवनभर लड़ते रहे। उनका जीवन ही शोषितों को समर्पित था। वह हिन्दू धर्म में पूरी आस्था रखते थे और कहते थे कि लोग बुरे हो सकते हैं पर धर्म नहीं। हां,उन्होंने समाज में फैली कुरीतियों और भेदभाव पर प्रतिक्षण वार किया। उनका मत था कि हिन्दू समाज में सामाजिक समरसता के बिना एकता हो ही नहीं सकती। सभी हिन्दू परस्पर सगे भाई हैं और यह भान हमें सदैव बनाए रखना है। जिस दिन समग्र समाज में यह भावना आ जायेगी उस दिन हम सबसे शक्तिशाली होंगे।
—मालीराम, झुंनझुंनू (राजस्थान)
ङ्म डॉ. भीमराव आंबेडकर संस्कृत भाषा को अच्छी तरह से जानते थे और उनका इस भाषा से आत्मीय प्रेम था। वह कहते थे कि संस्कृत ही सब भाषाओं की जननी है। इसी कारण उन्होंने संस्कृत को राजभाषा बनाने का समर्थन किया। कई बार तो वे संसद में नेताओं से संस्कृत में आसानी से बात करते हुए देखे गए। असल में उनका इसके पीछे एक ही उद्देश्य था कि वे समाज को भारतीय संस्कारों से युक्त संस्कृत भाषा का बोध कराना चाहते थे।
—एसो.प्रो. सुमन मिश्रा, हरिद्वार (उत्तराखंड)
सर्वे भवन्तु सुखिन:…
लेख 'वैदिक धर्म से ही विश्व सुरक्षित' पूरी तरह से यथार्थ का भान कराता है। यही एक ऐसा धर्म है जो इस जगत में सभी जीवों के कल्याण की बात ही नहीं करता बल्कि सिद्धांत प्रस्तुत करता है। संपूर्ण विश्व में सुख की स्थिति हो,सब सुखी और समृद्ध रहें, इसके मूल सिद्धांतों में है। लेकिन आज इस्लाम और ईसाइयत खून की नदियां बहा रहे हैं, लेकिन फिर भी अपने को शान्ति का मजहब बताते हैं। शर्म आनी चाहिए ऐसे मत और संप्रदाय को जो मानवता के दुश्मन हैं। वे सनातन धर्म से सीख लें और उसके पदचिन्हों पर चलें तभी उनको शान्ति और सुख की प्राप्ति हो सकती है।
—देशबंधु
संतोष पार्क, उत्तम नगर (नई दिल्ली)
हकीकत से उठता पर्दा!
लेख 'नेती कर कुएं में डाल' अरविंद केजरीवाल की सचाई को उजागर करता है। सरकार बनने के बाद से उनके वायदे हवा-हवाई हो रहे हैं। अगर इस समय पार्टी में कुछ हो रहा है तो सिर्फ और सिर्फ आपस में खीचतान। वर्तमान में दिल्ली की जनता का आआपा और अरविंद से पूरी तरह से भरोसा उठ गया है और नेताओं की कुर्सी के लिए मारामारी भी सामने आ गई है। चुनाव के समय वे जितनी बड़ी-बड़ी बातें करते थे उनकी हकीकत अब शीशे की तरह साफ है। इसलिए अब जनता अपने को ठगा महसूस कर पार्टी से किनारा करने लगी है।
—मृत्युंजय दीक्षित
गल्लामंडी,लखनऊ (उ.प्र.)
बढ़ती कीर्ति से चिंतित
लेख 'बात घुमाने की आदत' देश में ईसाई षड्यंत्र को बेनकाब ही नहीं करता बल्कि हकीकत क्या है उससे भी पर्दा उठाता है। जो लोग अभी तक यह समझते हैं कि ईसाई मिशनरियां देश में सेवा कर रही हैं तो वह गलत सोच रहे हैं। असल में उस सेवा के पीछे कन्वर्जन का एक घृणित मंतव्य छिपा हुआ है। कांग्र्रेस की दस साल तक रही सरकार में इन मिशनरियों को देश में खुली छूट दी गई लेकिन सरकार बदलते ही इनके घ्रणित कार्यों में लगाम कसनी शुरू हुई तो मिशनरी बौखला गईं और चोरी और लूट की घटना को भी साम्प्रदायिक रंग देने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। लेकिन उन्हें अब पता होना चाहिए कि देश में अब उनका घ्रणित कार्य और छल-प्रपंच चलने वाला नहीं है।
—कृष्ण वोहरा
जेल मैदान, सिरसा (हरियाणा)
विश्व में जहां भी भारत के प्रधानमंत्री जाते हैं वहां पर वह देश का मान बढ़ाकर ही वापस लौटते हैं। चहुंओर भारत का यश फैल रहा है। अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर आज तक शायद ही किसी नेता की ऐसी प्रतिभा पूरे विश्व में बनी हो। लेकिन नरेन्द्र मोदी की बढ़ती प्रतिभा को देखते हुए ईसाई मिशनरियां अत्यधिक चिंतित हैं। उन्हें लगता है कि अब तक जो वे कन्वर्जन का खेल खेल रही थीं वह अब भारत में नहीं चलने वाला। इसलिए वह नरेन्द्र मोदी सरकार पर मिथ्या आरोप-प्रत्यारोप करके उन्हें कभी साम्प्रदायिक तो कभी ईसाई समुदाय का विरोधी भी घोषित करने में देर नहीं कर रहे हैं। इसलिए देश को मिशनरियों की कुपित चाल को समझना होगा और जहां भी कोई कन्वर्जन जैसी गतिविधि होती है तो समाज के प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह तत्काल जागरूक होकर उस पर लगाम लगाए।
—केशव प्रसाद, रायपुर (छ.ग.)
सकारात्मक शुरुआत
भारतीय जनता पार्टी ने जम्मू-कश्मीर में साझा सरकार बनाकर एक अच्छी शुरुआत की। आज तक यह प्रदेश विकास के अभाव में है। लोगों में कश्मीर को लेकर एक अलग तरह की छवि व्याप्त है। लेकिन इस सरकार से आशा है कि जो देश के मनों में कश्मीर के लिए छवि बनी हुई है उसको समाप्त करेगी और जिस तरह से सभी प्रदेशों में वातावरण है उसे स्थापित करेगी। यह देश व प्रदेश दोनों के लिए अच्छा होगा।
—वीरेन्द्र गौड़, इंदौर (म.प्र.)
चिंता का विषय
सुशासन तथा सुनियोजित विकास का जो क्रम लोकसभा में है वह राज्यसभा में नहीं दिखाई पड़ता। कारण स्पष्ट है वहां कांग्रेस सदस्यों की बहुतायत, जो चाहते ही नहीं हैं कि देश का विकास हो। उनका तो एक ही ध्येय है कि हमें तो विरोध करना है, चाहे आप अच्छा करें या बुरा।
—हिम्मत जोशी
लक्ष्मीनगर,नागपुर (महाराष्ट्र)

सार्थक पहल हो !
देश में हिन्दुओं के अनेक प्रमुख मंदिर हैं, जहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु जाते है,चढ़ावा चढ़ाते है। इस अकूत संपत्ति का प्रयोग हिन्दू समाज के उत्थान, विकास, संरक्षण एवं प्रोत्साहन पर व्यय किया जाए तो हिन्दू समाज के लिए अच्छा होगा। जो प्रमुख मंदिर या आस्था के केन्द्र हैं, उनको छोड़ दिया जाए तो सैकड़ों ऐसे मंदिर हैं, जो जीर्णशीर्ण अवस्था में हैं उनकी देखभाल ठीक से नहीं हो पा रही है, इनको चिन्हित करके मंदिर प्रबंधकों की सहमति से उनका जीर्णोद्धार कराया जाए। दूसरी बात, इस सम्पत्ति का उपयोग निर्धन हिन्दुओं की शिक्षा, चिकित्सा एवं बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने पर हो।, क्योंकि इन्हीं अभावों के कारण हिन्दुओं का कन्वर्जन होता है। मिशनरियां इसी ताक में रहती हैं कि कब हिन्दू अभाव में हो और कब वह अपने कार्य को अंजाम दे सकें। साथ ही एक प्रमुख विषय है, जिसको हम सभी देखते और महसूस भी करते हैं। वह है जाति व्यवस्था। कन्वर्जन के बाद जब घर वापसी होती है तो उन परिवारों के सामने समाज में उनके उचित स्थान और सम्मान की समस्या आ जाती है। घर लौटे व्यक्ति के सामने ऐसी कोई समस्या न आए इसलिए कुछ ऐसी व्यवस्था हो ताकि आने वाले जीवन में उनको किसी भी सरकारी कार्य एवं सुविधा के लिए अपने को परिभाषित करने के लिए भटकना न पड़े। इसके बाद भी हिन्दू समाज के सामने कई समस्या आती रहती हैं, उन समस्याओं का समाज के सभी लोगों द्वारा एकत्र होकर निवारण करना जरूरी है। ऐसी ही कुछ चीजें हैं, जिनका हिन्दुओं को सदैव भान रखना है। हमारे आस्था के केन्द्र मूल बात पर ध्यान केन्द्रित करें और हिन्दुओं के पुनरोत्थान में जुटकर उनको दिशा प्रदान करें, क्योंकि कन्वर्जन पर आक्रोश व्यक्त करने से कोई फायदा नहीं है। इसके मूल कारणों पर चोट करनी जरूरी है। जब हमारे आस्था के केन्द्र ऐसा कार्य करने लगेंगे तो हिन्दू समाज जो निर्धन और अभाव ग्रस्त है, थोड़े से लोभ में कन्वर्ट हो जाता है, उन सभी में एक आशा जगेगी और इसका परिणाम होगा कि जो कन्वर्जन ईसाई मिशनरियां कर रही हैं, उस पर लगाम लगेगी।
प्रदीप कुमार चौरसिया
एन.16/ 128, विनायका, वाराणसी (उ.प्र.)
संकट के साथी
सूट-बूट की तुम जिसे, बतलाते सरकार
सूझ-बूझ से हो रहा, उसका हर व्यवहार।
उसका हर व्यवहार, विश्व में मान बढ़ा है
हर संकट में भारत सबके साथ खड़ा है।
कह 'प्रशांत' राहुल बाबा कहते मनमानी
नाटकबाजी में जिनका ना कोई सानी॥
-प्रशान्त

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