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संजीव कौर बिरदी,46,भारतीय मूल की केन्या में पहली महिला सांसद हैं। उन्हें वहां पर सोनिया विरदी के नाम से भी जाना जाता है। हाल ही में केन्या में अल शबाब नामक संगठन के चरमपंथियों ने ईसाई छात्रों का कत्लेआम किया। उससे पहले चरमपंथियों ने नैरौबी के वेस्टगेट मॉल में हमला करके बहुत से लोगों को मार डाला था। तब संजीव कौर ने घायल लोगों को राहत पहुंचाने के लिए दिन-रात काम किया। संजीव कौर से हाल ही में विवेक शुक्ला ने बातचीत की। यहां उसके मुख्य अंश प्रस्तुत हैं-
ल्ल संजीव जी, केन्या में हाल ही में इस्लामिक कट्टरपंथी समूह अल शबाब ने बड़ी तादाद में छात्रों का कत्लेआम किया। इससे पहले 2013 में इस्लामिक कट्टरपंथियों ने वहां की राजधानी नैरौबी के वेस्टगेट मॉल पर हमला करके बहुत से मासूम लोगों को मार डाला था। इन हमलों के बाद वहां पर भारतवंशियों की स्थिति किस तरह की है?
हमारे देश में इस्लामिक कट्टरपंथी अब मजबूत होते जा रहे हैं। उन्हें कुचलना होगा। आपने ठीक कहा कि कुछ समय पहले केन्या के पूर्वी हिस्से में स्थित एक विश्वविद्यालय परिसर में हुए हमले में 147 लोगों की मौत हो गई थी। यह देश के लिए गंभीर मसला है। इस्लामिक कट्टरता को न केवल केन्या में बल्कि सारी दुनिया में कुचलना होगा। जाहिर है, इस हमले से भारतवंशी भी सन्न हैं। उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि केन्या में रहा जाए या यहां से निकला जाए।
कौन हैं अल शबाब से संबंध रखने वाले?
अल शबाब के चरमपंथियों ने केन्या के गरिसा शहर में हमला किया विश्वविद्यालय परिसर में घुसकर। उन्होंने छात्रों को बंधक बना लिया। उन्होंने ईसाई छात्रों को अलग खड़ा कर गोलियों का निशाना बनाया। अल शबाब घोर कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन है।
ल्ल साल 2013 में भी केन्या की राजधानी नैरोबी में मुंबई की तर्ज पर बड़ा आंतकी हमला हुआ। बहुत सी जानें गईं। उस दौरान खबरें आती रहीं कि केन्या का हिन्दुस्थानी समाज घायलों को राहत देने में सबसे आगे रहा। इतनी बड़ी त्रासदी का आपने कैसे सामना किया?
इसमें कोई शक नहीं है कि नैरोबी के वेस्टगेट मॉल में आंतकी हमले से पूरा केन्या और अफ्रीका हिल गया। बहुत से मासूम मारे गए। पर उस घटना का पूरे केन्या ने मिलकर जवाब दिया। हम हिन्दुस्थानी भी घायलों को रक्त देने से लेकर सुरक्षाबलों को भोजन उपलब्ध करवाने में सबसे आगे रहे। इस बात को केन्या की अवाम ने देखा। वैसे भी केन्या में सबको पता है कि हम भारतवंशी भले ही भावनात्मक रूप से भारत से जुड़े हों, पर वैसे हर लिहाज से केन्याई हैं। केन्या पर आने वाले हर संकट का जवाब देने के लिए हम हमेशा तैयार रहते हैं। एक बात और आपको बताना चाहती हूं कि आंतकी हमले के बाद केन्या के मंदिरों और गुरुद्वारों में राहत सामग्री और धन एकत्र करने में भी भारतीय समाज सबसे आगे रहा। आपको बताना चाहती हूं कि वेस्टगेट मॉल में साठ फीसद 'शो-रूम' भारतीयों के हैं।
ल्ल आप भारतीय मूल की पहली महिला सांसद हैं केन्या और अफ्रीका में। बताइये ये कैसे मुमकिन हुआ?
देखिए, मैं बताना चाहती हूं कि मुझे केन्या की सत्तासीन यूनाइटेड रिपब्लिकन पार्टी ने देश की संसद के लिए नामांकित किया। मैं वहां पर एशियाई समुदाय के लिए आमतौर पर और भारतीय समाज के हितों के लिए लगातार संघर्षरत रही हूं। इसी बात को ध्यान में रखते हुए मुझे संसद के लिए नामांकित किया गया। मैं संसद में मकरादा प्रांत का प्रतिनिधित्व करती हूं। मकरादा केन्या का अहम शहर है। इधर काफी उद्योग हैं। इसे वहां की अर्थव्यवस्था की जान माना जा सकता है। मैं अपने क्षेत्र में ढांचागत विकास विनिर्माण की स्थिति को सुधारने के लिए सघन अभियान चला रही हूं। मैं मकरादा में बिजली की नियमित आपूर्ति के लिए भी संघर्षरत रहती हूं। इसके चलते मेरी देशभर में पहचान बनी। इन सब बातों को देखते हुए मुझे संसद के लिए नामांकित किया गया।
ल्ल सत्तर के दशक में युगांडा में ईदी अमीन ने भारतीयों को देश से बाहर निकाल दिया था। केन्या में भारतीयों की स्थिति के बारे में बताइये?
युंगाडा और केन्या की स्थिति में जमीन-आसमान का अंतर है। केन्या में भारतवंशी मजबूत स्थिति में हैं आर्थिक रूप से। ये सामाजिक रूप से भी बहुत सक्रिय हैं। ये जीवन के सभी क्षेत्रों में अपने लिए जगह बना चुके हैं। भारतवंशी व्यवसाय, कानून, विनिर्माण व्यवसाय आदि क्षेत्रों में तो खासी ठोस हालत में हैं।
ल्ल भारतवंशियों का कब केन्या में आना शुरू हुआ?
अंग्रेज सन 1896 से लेकर 1901 के बीच करीब 32 हजार मजदूरों को पंजाब से केन्या लेकर गए थे। उनमें मेरे पुरखे भी थे। इन्हें केन्या में रेल पटरियों को बिछाने के लिए लाया गया था। सिखों का संबध रामगढि़या समाज से था। केन्या का सारा रेल नेटवर्क पंजाब के लोगों ने तैयार किया था। इन्होंने बेहद कठिन हालातों में रेल नेटवर्क तैयार किया। उस दौर में गुजराती भी केन्या में आने लगे। पर वे वहां पहुंचे व्यवसाय करने के इरादे से। रेलवे नेटवर्क का काम पूरा होने के बाद अधिकतर पंजाबी श्रमिक वहां पर ही बस गए। उन्हें नैरोबी में बसने की इजाजत मिल गई। उस दौर में नैरोबी में अंग्रेज ही रहते थे, अश्वेतों के लिए कोई जगह नहीं थी। अब तो केन्या के हर बड़े छोटे शहर में भारतवंशी और उनके पूजा स्थल हैं। केन्या के तमाम बड़े शहरों जैसे नैरोबी और मोंबासा में बहुत सारे मंदिर और गुरुद्वारे हैं। नैरोबी में विशाल श्रीनारायण मंदिर है। इसमें हम सब भारतवंशी पहुंचते हैं। मोंबासा में 80 साल पुराना श्रीगुरुद्वारा सिंहसभा है। इसमें सभी सिख गुरुओं के जन्मदिन, बलिदान दिवस और अन्य तमाम अवसरों पर शबद-कीर्तन के कार्यक्रम चलते हैं। लंगर का आयोजन तो होता ही है। हम भारतीय केन्या में बहुत सारे अपने स्कूल-कॉलेज भी चला रहे हैं।
ल्ल केन्या से खबरें आ रही थीं कि वहां पर एशियाई समाज के साथ भेदभाव के मुद्दे को लेकर एशियाई मूल के सांसदों ने कड़ा विरोध जताया था। क्या था वह सारा मसला?
दरअसल एक केन्याई मूल के सेनेटर जनस्टोन मुथुम्मा ने एशियाई समाज को लेकर बेहद आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। उसको लेकर हम सारे एशियाई सांसदों ने सरकार के सामने अपना विरोध दर्ज कराया था। दरअसल वहां के एक प्रांत के गवर्नर ने कुमार धर नाम के एक भारतवंशी को उद्योग मंत्री नियुक्त किया था। इस पर मुथुम्मा ने एशियाई समाज पर घटिया टिप्पणी की थी। मुथुम्मा ने कहा था कि जब तमाम योग्य लोग हैं, तो भारतवंशी कुमार को इतना अहम पद देने की क्या जरूरत थी? केन्या की संसद में चार एशियाई मूल के सांसद हैं। हम सबने मुथुम्मा की शिकायत हर स्तर पर की। उनकी हर स्तर पर निंदा हुई।
आप प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में भी आई थीं दिल्ली में। मोदी जी के बारे में आपकी क्या राय है?
मुझे भाजपा नेता विजय जौली ने मोदी जी के प्रधानमंत्री पद के शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेने के लिए बुलाया था। भारत में मैं आती रहती हूं। भारत में तो हमारा गुरुघर है। हम सिखों के लिए भारत का खास महत्व है। जहां तक मोदी जी का सवाल है, वे गजब की शख्सियत हैं।
आप पूरी तरह से केन्याई हैं, पर जरा बताइये कि क्या अब भी दिल के किसी कोने में भारत बसता है?
(कुछ रुककर भावुक होते हुए) भारत तो हर भारतवंशी के लिए किसी बेहद पवित्र शब्द के समान है। भारतवंशियों के दिलों में बसता है भारत। मेरे लिए भारत का खास महत्व है। मेरी पहचान इस रूप में भी होती है कि मैं मूलत: भारत से आती हूं। मैं भारतीय हूं। भारत में होने वाली हर बड़ी घटना पर मेरी नजर रहती है।
मैं इस साल अगस्त में लंदन में गई थी। तब मैं लंदन स्थित भारतीय उच्चायोग में आयोजित स्वतंत्रता दिवस समारोह में शामिल हुई। हमें भारत से बाहर गए भले ही कितने बरस गुजर गए हों पर भारत से भावनात्मक स्तर पर जुड़े रहेंगे। हमारे दिल से भारत को कोई नहीं निकाल सकता।
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