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हिन्दू संस्कृति तथा सभ्यता पर चतुर्दिक आघात
श्री गुरुजी द्वारा शारीरिक-शिक्षण-शिविर में भाषण
(निज प्रतिनिधि द्वारा)
नागपुर। ''हिन्दू समाज की आत्मविस्मृति की अवस्था होने के कारण स्वदेश बंधन ही उसके साथ निसंकोच खिलवाड़ कर रहे हैं एवं कानून बनाकर उसमें ऐसे परिवर्तत लाने का जबरदस्ती प्रयत्न कर रहे हैं जो समाज के लिए विनाशकारी है।'' ये शब्द राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर (श्री गुरुजी) ने संघ के ग्रीष्मकालीन शिक्षा शिविर के समापन समारोह मेंे भाषण करते हुए कहे।
देश पर संकट
संघ नेता ने सचिन्त होकर कहा कि आज अनेक प्रकार की आपत्तियां देश को खोखला कर रही हैं। आज हमारे धर्म, संस्कृति, श्रद्धा, भाषा, आदि सब पर अपने ही बांधवों द्वारा आघात हो रहे हैं। शासन की ओर से ग्रामीणों में यह प्रचार किया जा रहा है कि यह हिन्दू समाज तो अधम है। वस्तुत: समाज के सर्वनाश का यह कार्य अन्य किसी भी देश में देखने को न मिलेगा।
ईसाई और मुसलमान
आपने कहा कि आत्म विभूति के कारण इधर तो हमारा यह हाल है और उधर मुसलमान एवं ईसाई समाज को खा रहे हैं। मुस्लिम लीग ने दक्षिण में पुन: जड़ पकड़ ली है एवं आसाम की नागा पहाडि़यों में ईसाईयों ने नागाओं का विद्रोह खड़ा कर दिया है। ये राष्ट्र के लिए संकट है।
बम्बई व पंजाब की घटनाएं नेहरु सरकार के लिए चुनौती
लाठी-गोली से जनमत नहीं दबेगा
बटाला-शिमला काण्डों की निष्पक्ष जांच कराई जाए
पुलिस के घेरे में कां. महासमितिका अधिवेशन: नेहरू जी शिक्षा लें
( सम्पादकीय)
सारे देश की आंखें आजकल बम्बई और पंजाब की ओर लगी हुई हैं। दोनों ही स्थानों की जनता पर पुलिस की लाठियां बरस रही हैं, निरपराध लोगों को गोलियों का शिकार होना पड़ रहा है। बम्बई में आन्दोलन चल रहा है, 'बम्बई सहित संयुक्त महाराष्ट्र' के लिए और पंजाब में 'पंजाब, पेप्सू तथा हिमाचल प्रदेश को मिलाकर महापंजाब निर्माण' के लिए। दोनों ही मांगों के पीछे प्रबल जनमत खड़ा हुआ है। किंतु सरकार-जिसे कांग्रेस ही का दूसरा रूप कहा जाए तो अच्छा रहे-दलगत स्वार्थों के कारण इस जन-मांग की उपेक्षा ही नहीं कर रही, अपितु उसके विरुद्ध निर्णय करने हठधर्मी भी कर रही है।
यह करने की हठधर्मिता मानते हुए भी कि बम्बई ही स्थिति अनुकूल नहीं है, बम्बई में कांग्रेस महासमिति का अधिवेशन किया गया। इतना ही नहीं , संसद के अधिकारों की अवहेलना करते हुए भारत के प्रधानमंत्री तथा कांग्रेस के सर्वेसर्वा पं. नेहरू द्वारा बम्बई के सम्बन्ध में अंतिम निर्णय भी दे दिया गया कि वह केंद्र द्वारा ही शासित रहेगा। इस सम्बन्ध में काका साहिब गाडगिल की टिप्पणी काफी ठीक प्रतीत होती है: ''श्री नेहरू का सुझाव समस्या को तय नहीं करता वरन् उलझाता और है। यह वक्तव्य संसद की प्रमुखता एवं प्रभुसत्ता को निरर्थक बना देता है। यहां मन्त्री ने कहा था कि संसद ही जो चाहे निर्णय करेगी। किंतु क्या अब भी नेहरू की घोषणा के उपरांत भी यही स्थिति है? ''
कांग्रेस का शायद विश्वास था कि उसके प्रति महाराष्ट्र की जनता में जो अंसतोष का भाव निर्माण होता जा रहा है, उसे पं. नेहरू के व्यक्तित्व के प्रभाव से शान्त कर लिया जाएगा। किंतु इस बार पंडित जी का व्यक्तित्व भी प्रभावहीन सिद्ध हुआ है। कोई भी दिन (अधिवेशन काल में) ऐस प्रतीत नहीं हुआ कि महासमिति का कार्यक्रम शांतिपूर्वक चल सका हो। एक ओर महासमिति के कार्यक्रम चलते रहे और दूसरी और कांग्रेस द्वारा बंबई के संबंध में किए गए निर्णय के विरुद्ध उग्र प्रदर्शन होते रहे व प्रदर्शनकारियों पर अहिंसक कांग्रेसियों के समक्ष लाठी-डण्डे बरसते रहे, यहां तक कि अनेक बार गोली-वर्षा की नौबत भी आ गई। यदि वास्तव में कहा जाए तो महासमिति का अधिवेशन पुलिस के घेरे में हो सका। स्थिति यहां तक पहुंची कि 3 जून को जिस समय पंडित नेहरू ने चौपाटी की सभा में भाषण किया, उस समय भी सभा स्थल के चारों ओर प्रदर्शनकारियों द्वारा जोरदार प्रदर्शन किया जाता रहा। इधर पंडित नेहरू भाषण करते रहे और उधर प्रदर्शनकारियों पर डण्डे और अश्रुगैस के गोले बरसते रहे। पं. नेहरू के व्यक्तित्व की प्रभावहीनता इस बात से और भी प्रकट हो गई कि उनकी सभा में (प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया के अनुसार) केवल 1 लाख जनता थी, जबकि संयुक्त महाराष्ट्र समिति द्वारा आयोजित सभा में 3 लाख से भी अधिक।
भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन
''भ्रष्टाचार एवं जनता-विरोधी शासन के विरोध में आंदोलन करना जनता का मूलभूत अधिकार है।'' उत्तर प्रदेश में वहां की अकाल-पीडि़त जनता की चार मांगों के लिए जनसंघ ने सत्याग्रह किया था। वे मांगे थीं-अकाल पीडि़त क्षेत्र में लगान वसूली बंद की जाए, हर पांच हजार की बस्ती के लिए सस्ते अनाज की दुकान हो, अकाल पीडि़त क्षेत्र के छात्रों की शिक्षा नि:शुल्क (फीस माफ) की जाए और सर्वथा असहाय हो गए लोगों को बिना मूल्य अनाज दिया जाए। इस आंदोलन के निमित्त दीनदयाल जी ने स्पष्ट करते हुए कि अन्य दलों के और जनसंघ के द्वारा चलाए गए आंदोलन में क्या अंतर होता है, कहा था-'' प्रजा समाजवादी दल ने सरकारी गोदामों पर अधिकार करने का कार्यक्रम हाथ में लिया है। किन्तु ऐसे कार्यक्रमों के कारण राज्य में अराजकता फैलने की पूरी संभावना होती है। अत: जनसंघ ने 'घेरा डालो' कार्यक्रम प्रारम्भ किया है। सरकारी कचहरियों का घेराव करना और सरकारी कर्मचारियों को अपने कार्यालय में जाने से रोकना, इस कार्यक्रम का अंग है।
(पृष्ठ संख्या, 76 पं. दीनदयाल उपाध्याय विचार-दर्शन खंड-3 राजनीतिक चिन्तन)हेडगेवार, पृष्ठ 70)
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