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सेवा शब्द छोटा है, लेकिन आयाम बड़ा है। सेवा कार्य निष्काम भाव से संपन्न करना प्रभु की प्राप्ति का एकमात्र उपाय है। सेवा के लिए अवसर खोजने नहीं पड़ते, स्वयं आया करते हैं, बस आपको उदात्त भावना के साथ इन अवसरों को पहचानना होता है। अब्दुल रहीम खान खाना सेवा के संबंध में कहते थे, 'देनहार कोई और है, देत रहत दिन-रैन, लोग भरम मो पे धरंे ताते नीचे नैन'। सेवा करते समय सेवार्थी के मन में यही भाव होना चाहिए। जैसे वृक्ष, जो स्वयं धूप सहकर पथिक को छाया एवं मधुर फल प्रदान करता है। नदी निर्मल जल प्रदान कर पिपासा को शान्त करती है। उसी प्रकार सेवार्थी स्वयं अनगिनत कष्ट सहकर मानवता की सेवा करता है। 4-6 अप्रैल को दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय सेवा संगम-2015 में ऐसे ही हजारों सेवार्थियों का अनूठा संगम हुआ जो जीवन के हर क्षेत्र में समाज के दुख और पीड़ा को दूर करने के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर जुटे हुए हैं।
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