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माता अमृतानंदमयी मठ

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Apr 11, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 11 Apr 2015 13:44:57

माता अमृतानंदमयी उपाख्य अम्मा देश-दुनिया में करुणा और प्रेम की साक्षात मूर्ति मानी जाती हैं। सेवा के क्षेत्र में उनका संस्थान अमृतानंदमयी मठ मानवता की सेवा में लगा हुआ है। यह संसथान प्रत्येक क्षेत्र में सेेवा कार्य कर रहा है। प्रकल्पों में शिक्षा, चिकित्सा, गरीबोें के भोजन की व्यवस्था, महिला स्वावलंबन, वृद्धों की चिंता, व्यावसायिक प्रशिक्षण,आपदा में पीडि़त लोगों के लिए घर की व्यवस्था एवं अन्य क्षेत्रों में अम्मा मानवता की प्रतिक्षण सेवा कर रही हैं। प्रदर्शनी में उनकी शिष्या डॉ. सुष्मिता पाण्डेय कहती हैं कि 'जीवन का ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं है जहां पर अम्मा सेवा कार्य नहीं कर रही हैं। देश ही नहीं विश्व में भी वे इसी प्रकार मानवता की सेवा में लगी हुई हैं। उनकी एक ही इच्छा है कि एक दिन ऐसा आए कि जब कोई बीमार न हो, कोई दु:खी न हो, सभी को भोजन मिलें , सभी को वस्त्र मिलें, सभी को शिक्षा प्राप्त हो, सब प्रसन्न रहें, कोई दुखी और पीडि़त न हो।
देशभर में चलने वाले सेवा प्रकल्प
ल्ल संपूर्ण भारत में गरीबों के लिए 45,000 घरों का निर्माण। आने वाले दिनों में यह लक्ष्य 1,00,000 है।
ल्ल स्थानीय विकास हेतु मूलभूत सुविधाएं देकर, छात्रवृत्तियां एवं पेंशन देकर, विद्यालय खोलकर अनेक कार्यक्रम आरंभ किए। इसके अन्तर्गत भारत के 101 गांवों को चुना गया।
ल्ल 69,000 निराश्रित महिलाओं तथा शारीरिक, मानसिक रूप से अक्षम लोगों को पेंशन। आगामी लक्ष्य 1,00000 महिलाओं को पेंशन देना।
ल्ल अति निर्धन किसानों के बच्चों को 46,000 छात्रवृत्तियां ।
ल्ल केरल में 500 अनाथाश्रमों की व्यवस्था।
ल्ल प्रतिवर्ष लगभग एक करोड़ गरीबों को भारत में तथा 2.5 लाख लोगों को भारत के बाहर अन्न दान।
स्वास्थ्य सेवा
ल्ल संपूर्ण भारत में एक वर्ष में 100 से अधिक चिकित्सा केन्द्र।
ल्ल दूरवर्ती क्षेत्रों में चिकित्सा संबंधी सभी उपचार उपलब्ध कराए जाते हैं।
ल्ल 1,00000 महिलाओं के 6,000 से अधिक स्वयं सहायता समूह व 'नर्स' बनने के लिए प्रशिक्षण।
ल्ल त्रिरुअनंतपुरम में एड्स सुश्रूशालय तथा मुंबई में कैंसर अस्पताल।
ल्ल केरल के तीन अस्पतालों में, कर्नाटक एवं अंदमान-निकोबार में लोगों को नि:शुल्क चिकित्सा।
ल्ल अमृता अस्पताल 1300 बिस्तर का अस्पताल है जो गरीबों को नि:शुल्क स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराता है, जिसमें 210 'आईसीयू' बिस्तर हैं।
ल्ल अब तक इन चिकित्सा केन्द्रों के जरिए लगभग 30 लाख से भी अधिक रोगियों का नि:शुल्क इलाज ।
ल्ल 43 विशेष विभाग तथा 24 ऑपरेशन कक्ष हैं।
अमृता विश्व विद्यापीठम्
ल्ल पांच परिसर वाले इस विश्वविद्यालय में पत्रकारिता, इंजीनियरिंग, मेडिकल, नर्सिंग, बिजनेस, आयुर्वेद, कला एवं विज्ञान व अन्य पाठ्यक्रमों की शिक्षा ।
ल्ल उच्च शिक्षा एवं शोध कार्य को बेहतर बनाने के लिए यह संस्थान विश्व के अनेक विश्वविद्यालयों के साथ परस्पर संबंध स्थापित किए हुए है।
मानवतावादी अनुसंधान
ल्ल ग्रामीण विद्यालयों में पढ़ने वाले 27,000 से भी अधिक विद्यार्थी, आज हमारे शोधकर्ताओं द्वारा विकसित, कम्प्यूटर की सहायता से चलने वाले भारत के प्रथम 'अडॉप्टिव असेसमेंट एंड लर्निंग प्रोग्राम' का प्रयोग कर रहे हैं।
ल्ल संस्थान 3,000 से अधिक महिलाओं को अपने प्रगतिशील 'कंप्यूटराइज्ड वोकेशनल कार्यक्रम' के अन्तर्गत सफलतापूर्वक प्रशिक्षत कर चुका है।

जम्मू-कश्मीर में सेवा का अनुपम उदाहरण
जम्मू-कश्मीर में विपरीत परिस्थितियों के बीच सेवा भारती वर्षों से कार्यरत है। यहां सेवा भारती, सेवा समिति, वेद मंदिर और विद्या मंदिर की ओर से छह विद्यालय चलाए जा रहे हैं। इनमें करीब 350 बच्चे पढ़ रहे हैं। यहां पर हिन्दू के अलावा बौद्ध और मुस्लिम बच्चे भी शिक्षा ग्रहण करते हैं। कश्मीर में लोगों को संस्कृति की रक्षा के लिए जागृत किया जा रहा है।

संपूर्ण बंबु केन्द्र
यह प्रकल्प बांस से चीजों का निर्माण करता है। यह केन्द्र अमरावती, महाराष्ट्र,में है। सुनील देशपाण्डे और निरुपमा देशपाण्डे इस प्रकल्प को संचालित करते हैं। व्यवस्थापक माधव नरसापुरकर से जब इस केन्द्र की प्रेरणा के बारे में बात की तो वे कहते हैं कि हमारे यहां बांस काफी मात्रा में होता है। यह क्षेत्र पूरी तरह से वनवासी क्षेत्र है। यहां रोजगार की तलाश में लोग चिंतित रहते हैं। दो समय की रोटी के लिए कठिन संघर्ष करना पड़ता है। संचालक सुनील पांडे को लगा कि इस क्षेत्र में कुछ करना चाहिए जिससे अपने लोगों को जीवन जीने के लिए दो समय की रोटी तो उपलब्ध हो। वह काम करके कुछ पैसे कमा सकें जिससे अपना व अपने परिवार का भरण-पोषण कर सकें। यहीं से इस कार्य की नींव पड़ी। फिर हमारा केन्द्र शुरू हुआ। किसी भी अच्छे कार्य करने में समस्या तो आती ही हैं। लेकिन इन समस्या से लड़ते हुए इस संस्था ने लोगों को जीवन जीने की एक दिशा दी है।

आई.ए.डी.
जिसको सेवा करनी होती है वह एक बार संकल्प लेता है और पूरी तन्मयता से उसमें लग जाता है। आईएडी एक ऐसा ही प्रकल्प है। यह संस्था उन लोगों के लिए काम करती है जो समाज द्वारा उपेक्षित कर दिए गए हैं। इसके अन्तर्गत फाइलेरिया, हाथी पांव, विटिलिगो, सोरायसिस जैसे गंभीर रोगों से ग्रसित रोगियों का इलाज करती है। यह संस्था दक्षिण भारत के केरल के कासरगोड में स्थित है। केन्द्र के संचालक डॉ. एस. के. बोस कहते हैं कि इस केन्द्र को खोलने के लिए प्रेरणा हाथी पांव के रोगियों को देखने के बाद हुई। मुझे लगा कि इस बीमारी पर कुछ करना चाहिए। मैंने इस पर अध्ययन किया तो पाया एशिया में ही अकेले 3 करोड़ मामले हैं, जिनमें अकेले भारत में ही 2.3 करोड़ रोगी हैं। इन आंकड़ों के बाद वे इस क्षेत्र में जुट गए । आईएडी इस रोग का उपचार करने के लिए ऐलोपैथी, आयुर्वेद, होम्योपैथी के मिश्रण से दवाइयों को तैयार करता है और उससे रोगियों का उपचार किया जाता है।

हजारों महिलाओं को बनाया स्वावलंबी
सेवा भारती के 'अथरूट' (अथरूट कश्मीरी शब्द है जिसका अर्थ होता है किसी की मदद करना) परियोजना की प्रमुख अंजलि राधू कहती हैं कि कश्मीरी विस्थापित महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के लिए इसका निर्माण किया गया। इसके तहत महिलाओं को कढ़ाई, सिलाई, ब्यूटी पॉर्लर, मसाले बनाना, संगीत सिखाना, वाहन चलाना व कंप्यूटर चलाने जैसे रोजगारपरक कार्य सिखाए जाते हैं। वर्ष 2003 में अथरूट की स्थापना की गई थी। जम्मू-कश्मीर में नगरौटा, जगति, नदौर, मुढ़ी और पुरुखू में अथरूट ने अपने केन्द्र बनाए हैं। 800 से ज्यादा स्वयंसेवी कार्यकर्ता अथरूट से जुड़े हैं। लगभग 2000 महिलाएं यहां काम सीखने के बाद अपने परिवार का भरण-पोषण कर रही हैं।

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