द्वितीय पंचवर्षीय योजना का रूप यथार्थवादी
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द्वितीय पंचवर्षीय योजना का रूप यथार्थवादी

by
Mar 23, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 23 Mar 2015 14:14:17

जनता बढ़े हुए करों का भार वहन करने में असमर्थ
छपरा। भारतीय जनसंघ के मंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इस जिले के चकरी ग्राम में अपने एक सार्वजनिक भाषण में कहा कि यदि देश की विकास योजनाओं के लिए सरकार को अधिक धन चाहिए, तो उसे अधिकतम आय की सीमा निर्धारित करनी चाहिए। अतिरिक्त मुनाफा कर लगाना चाहिए। पूंजी कर में वृद्धि करनी चाहिए। सट्टे व हिस्सों के लाभ पर कर लगाना चाहिए और विदेशी शराब तथा विलास-सामग्री पर भारी कर करना चाहिए।
श्री वाजपेयी ने विकास-योजनाओं की पूर्ति के लिए सर्वसाधारण जनता पर कर का अधिकाधिक बोझ लादे जाने की सरकारी नीति की तीव्र निंदा की और इस काम के लिए धन की आवश्यकता पूरी करने की दृष्टि से ही उपयुक्त विशिष्ट कर आदि लगाए जाने का सुझाव रखा। उन्होंने यह भी सुझाव रखा कि इतना सब कुछ करने के बावजूद अगर सरकार का घाटा पूरा न होता हो, तो उसे निजाम की अपार संपत्ति को, उनके लिए उचित भाग छोड़कर, अनिवार्य ऋण के रूप में ले लेना चाहिए। प्रशासनिक व्यय में कमी करने की भी उन्होंने मांग की।
'लगान आधा हो' : 'दस गुना वापस हो'
जनसंघ के नेतृत्व में हजारों किसानों का प्रदर्शन
मांगें पूरी न होने पर लखनऊ में किसान सम्मेलन किया जाएगा
(निज प्रतिनिधि द्वारा)
लखनऊ। 10 मई को भारतीय जनसंघ के नेतृत्व में टिहरी- गढ़वाल, नैनीताल, अल्मोड़ा, तथा लखनऊ को छोड़कर उत्तर प्रदेश के सभी जिला स्थानों पर सहस्रों किसानों द्वारा 'लगान आधा हो' आंदोलन के सिलसिले में विशाल प्रदर्शन किए गए। इस अवसर पर जिलाधीशों की सेवा में स्मृति पत्र भी भेंट किए गए। जिनमें किसानों की कठिनाइयों का वर्णन करते हुए प्रमुख रूप से 'लगान आधा हो' ' दसगुना वापस हो' मांगें प्रस्तुत की गईं।
जनसंघ के कार्यकर्ता महीनों से गांव-गांव घूमकर 10 मई के प्रदर्शन के लिए किसानों को तैयार कर रहे थे। इस दौरान कार्यकर्ताओं को जहां किसानों का पूर्ण सहयोग प्राप्त हुआ, वहां कांग्रेस के तीव्र विरोध का सामना भी करना पड़ा। कांग्रेसियों ने स्थान-स्थान पर किसानों को भय, प्रलोभन तथा आतंक के द्वारा प्रदर्शन में भाग लेने से रोकना चाहा। अंतिम दिपस अर्थात् 10 मई को तो कहीं-कहीं स्थिति यह भी आ गई कि कांग्रेसियों ने गुण्डों तथा पुलिस से सांठ-गांठ करके प्रदर्शनकारियों को रोकने का भरसक प्रयास किया।
किन्तु सब प्रयास व्यर्थ रहे। किसी-किसी गांव से तो जिला स्थान 50-50, 60-60 मील दूर
भी था किन्तु फिर भी वे दोपहर की कड़ी धूप को झेलते हुए पैदल ही वहां पहुंचे।
प्रदर्शनकारियों में जहां युवकों ने भारी संख्या में भाग लिया, वहां वृद्धों और महिलाओं की संख्या भी कोई कम नहीं थी। अनेक महिलाओं को तो अपनी गोद में बच्चों को लेकर भी लंबी-लंबी यात्राएं करनी पड़ीं।
10 मई को सभी जिला स्थानों पर अपार जनसमूह उमड़ पड़ा। ठीक समय 'लगान आधा हो' ' दसगुना वापस हो' 'सिंचाई घटाया जाए' 'भारत माता की जय' 'जनसंघ अमर है' नारे लगाते हुए जुलूस जिलाधीश की कोठियों पर पहुंचे। जहां जिलाधीश की सेवा में स्मृतिपत्र भेंट किए गए। कहीं-कहीं स्मृतिपत्र भेंट करने के पश्चात जनसभा का आयोजन भी किया गया। कहीं-कहीं पर दफा 144 लगाकर प्रदर्शनों को रोकने का भी प्रयास किया गया। परंतु प्रदर्शनकारी 114 के भय से रोके न जा सके। उन्होंने किंचित भी चिंता न करते हुए जुलूसों व सभाओं का आयोजन किया। इस अवसर पर श्री पीताम्बर दत्त, एडवोकेट एम.एल.सी. व प्रधान उ.प्र. जनसंघ ने नगीना में श्री नाना जी देशमुख ,मंत्री उ.प्र. जनसंघ ने, गोंडा में श्री यादवेन्द्र दत्त जी दूबे, उपाध्यक्ष उत्तर प्रदेश जनसंघ ने जौनपुर में एवं श्री शारदा भक्त स्िंाह एम.एल.ए. ने हरदोई में प्रदर्शन का नेतृत्व किया ।
उ.प्र. जनसंघ के मंत्री श्री नाना जी देशमुख द्वरा प्रसारित वक्तव्य के आधार पर प्राय: सभी जिलाधिकारियों ने प्रदर्शनकारियों को आश्वासन दिया है कि वे अपनी मांगो को सरकार के पास पहुंचा देगें। वक्तव्य में यह भी बताया गया कि मांगों को पूरा कराने के लिए हर जिले का प्रतिनिधि मंडल मुख्यमंत्री से भेंट करेगा।
वक्तव्य में इस बात की घोषण की गई कि यदि सरकार मांगो की पूर्ति के लिए उपयुक्त हल प्रस्तुत नहीं करती तो लखनऊ में प्रदेश के किसानों कर विशाल सम्मेलन बुलाया जाएगा,जो आन्दोलन की भावी रुप रेखा पर विचार करेगा।
कर प्रणाली
1961 में कर प्रणाली के संबंध में गुजरात की एक सभा में दीनदयाल जी ने कहा था-अपनी पंचवर्षीय योजना में कितना ही धन पानी के समान बहाया जाता है। योजना के लिए पैसा कम पड़ने लगता है तो सरकार जनता पर नये-नये कर लगाती है। अकेली केंद्रीय सरकार ने ही अब तक एक हजार करोड़ रुपये से भी अधिक के कर लगाए हैं। राज्य सरकारें और नगरपालिकाएं भी कर वृद्धि करती हैं, सो अलग। इसके अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के नए करों का सुझाव देने के लिए सरकार ने एक 'वित्त आयोग' नियुक्त किया है। इस निरंतर कर-वृद्धि के कारण महंगाई बढ़ती जाती है और रुपए की क्रयशक्ति घट जाती है। इसे स्पष्ट करते हुए दीनदयाल जी आगे कहते हैं-इस प्रकार करों में वृद्धि होने के कारण वस्तुओं के दाम फिर बढ़ते हैं। अत: सरकार को चाहिए कि वेतन वृद्धि के स्थान पर वस्तुओं के भाव स्थिर रखने पर अपना ध्यान केंद्रित करे।
(पं. दीनदयाल उपाध्याय विचार दर्शन-खंड-4 एकात्म अर्थनीति )

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