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आवरण कथा 'शीरीन की कौन सुनेगा' से एक बात साबित होती है कि भारत में भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कैद करने का प्रयास किया जा रहा है। अपने को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पैरोकार बताने वाले वे सभी सेकुलर गिरोह इस पूरी घटना पर मुंह सिले हुए हैं। लेकिन कुछ भी हो भारत में इस प्रकार की अमानुषिक सोच को रत्तीभर भी स्थान नहीं है। भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बाधित करने वालों को मुंह की खानी पड़ेगी। शीरीन ने अपने पत्र में मोहम्मद का व्यंग्य चित्र छापकर महिलाओं के लिए एक मिसाल पेश की है। यह अफसोस की बात है कि मजहबी उन्मादी उनकी जान के प्यासे बने हुए हैं।
—राममोहन चंद्रवंशी
विट्ठल नगर, टिमरनी,हरदा (म.प्र.)
ङ्म अक्सर देखने में आता है कि छोटी-छोटी बातों को मुसलमान ऐसे तूल देते हैं जैसे कोई बहुत बड़ी घटना घटित हो गई हो। शार्ली एब्दो पत्रिका में मोहम्मद का व्यंग्य चित्र छापना और उसके बाद आतंकियांे द्वारा पेरिस में तबाही मचाना किस बात की ओर संकेत करता है। सवाल है कि क्या मोहम्मद का व्यंग्य चित्र छापना कोई गुनाह है? क्या मोहम्मद के व्यंग्य चित्र छापने से 'इस्लाम' खतरे में पड़ जाता है? कैसे इससे मोहम्मद का अपमान हुआ? क्या शीरीन के अखबार से पहले किसी ने मोहम्मद के व्यंग्य चित्र नहीं छापे? असल में इन सभी घटनाओं से 'इस्लाम' और आतंकियों के आका एक ही संदेश देना चाहते हैं कि जो भी मजहबी और कठमुल्लों की बात नहीं मानेगा, उसका भी यही हाल होगा। लेकिन यह उनकी भूल ही साबित होगी।
—विजय कृष्ण प्रकाश
हरिपुर, जिला-वैशाली (बिहार)
ङ्म इस पूरी घटना से उन सेकुलरों की पोल खुल गई, जो अपने को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिमायती समझते हैं। असल में यह अब तक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर उन तथाकथित लोगों का ही समर्थन करते रहे हैं, जो देश व समाज विरोधी रहे हैं। लेकिन शार्ली एब्दो और शीरीन के मामले से एक बात तो स्पष्ट हो गई कि इस्लाम के नाम पर आतंकी विश्व में किस प्रकार आतंक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में बाधक बनने का प्रयास कर रहे हैं। जहां भी देखो वही खूनी खेल देखने को मिलता है। फिर भी सेकुलर और कठमुल्ले इसे 'शान्ति का मजहब' बताते हैं। शर्म आनी चाहिए इन लोगों को जो इस प्रकार की बात करते हैं। संपूर्ण विश्व को चाहिए कि वह मजहबी उन्मादियों की कारगुजारियों पर नकेल कसे क्योंकि यह सभ्य समाज की सभी मर्यादाएं लांघ चुके हैं।
—निर्मल चन्द निर्मल
परकोटा सागर (म.प्र.)
ङ्म असल में जो भी लोग शीरीन का विरोध कर रहे हैं और कह रहे हैं कि उन्होंने अपने समाचार पत्र में मोहम्मद का व्यंग्य चित्र छाप कर अक्षम्य अपराध किया है, इसे क्षमा नहीं किया जा सकता। उनका ये कैसा तुगलकी फरमान है! ऐसा लग रहा है कि फरमान देने वाले भूल रहे हैं कि यह न तो पाकिस्तान है और न ही अफगानिस्तान है। उन्हें पता होना चाहिए कि यह भारत है और यहां किसी भी प्रकार की जंगली सोच और ऐसे फरमानों को स्थान नहीं है।
—प्रमोद प्रभाकर वालसंगकर
दिलसुखनगर (हैदराबाद)
ङ्म कट्टरता, उन्माद, असहिष्णुता, नफरत जैसी अमानवीयता का चोला ओढे़ इस्लामी झण्डाबरदार संपूर्ण विश्व के लिए चिंता का विषय बन गए हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से चिढ़ने वाले कठमुल्ले छोटी सी बात पर ऐसे भड़क उठते हैं जैसे इस्लाम उस घटना से मिट जायेगा। पेरिस में मोहम्मद का कोई व्यंग्य चित्र छाप दे तो दर्जनों लोगों की हत्या कर दी जाती है। भारत में शीरीन दलवी जैसी महिला पत्रकार उस व्यंग्य चित्र को अपने अखबार में स्थान देकर कुछ लिख दें तो कठमुल्लाओं के लिए वह अक्षम्य हो जाता है और उन्हें जान से मारने की साजिश की जाने लगती है। आखिर क्या है ये सब? क्या इस्लाम का यही संदेश है? या सच में यही इस्लाम की असली परिभाषा है? इसे सभी को समझना होगा।
—मनोहर मंजुल
पिपल्या-बुजुर्ग,प.निमाड (म.प्र.)
जागरूकता की आवश्यकता
रपट 'पल भर ठिठकी, थमी नहीं' से पाठकों को गीता प्रेस के बारे में जानने का अवसर प्राप्त हुआ। मेरा आग्रह है कि इस प्रकार देशहित में जो सामाजिक व धार्मिक चेतना जगाने में जुटे अन्य प्रकाशन हैं, उनके बारे में भी सामग्री प्रकाशित करनी चाहिए। इससे उन प्रकाशनों के बारे में लोगों को जानकारी मिलेगी और धार्मिक रूप से लोग इनसे जुड़ेंगे। लोगों में धार्मिक व मानवीय भावना का विकास होगा।
—सुरेश कुमार पण्डा
जुमुड़ा, भैरव सिहंपुर (ओडिशा)
ङ्म कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय द्वारा श्रीमद्भगवद् गीता को दर्शनशास्त्र के विद्यार्थियों को पढ़ाये जाने का निर्णय हृदय से स्वागत योग्य है। भारत में यह कार्य सभी विद्यालयों में एवं विश्वविद्यालयों में शुरू होना चाहिए। इससे न केवल गीता को समझने का अवसर प्राप्त होगा बल्कि इसके विषय में जो कुछ लोगों के मन में भ्रान्तियां हैं वे भी मिट सकेंगी। गीता तो समस्त विश्व के कल्याण के लिए अवतरित हुई है।
—संजय गुप्ता, मुजफ्फरनगर (उ.प्र.)
हर कोने तक पहुंचे रेल
वर्तमान सरकार के लिए रेल व्यवस्था को सुचारू रूप से संभालना एक चुनौती ही है, क्योंकि रेल देश के करोड़ों लोगों से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ी हुई है। यह भी सच है पिछली सरकारों ने रेल को कैसे अपनी राजनीतिक बिसात में बांध लिया और अपने संसदीय क्षेत्र या फिर राज्य की ओर मोड़ दिया। जिससे न ही रेलवे का विकास हुआ और न ही यह वहां तक पहंुची जहां उसे पहुंचना था। नेताओं के वोट बैंक का जुगाड़ बनी रही रेल इस समय अच्छी अवस्था में नहीं है। इसलिए सरकार को ठोस एवं निर्णायक निर्णय लेने की आवश्यकता है जो आने वाले दिनों में इसका कायाकल्प करे और यह रेल पूरे भारत को जोड़े।
—हरिहर सिंह चौहान
जंबरीबाग नसिया (म.प्र.)
समाजवाद की खुलती पोल
रपट 'उत्तर प्रदेश में बेखौफ हुए अपराधी' से सपा सरकार की पोल खुली। वैसे भी सपा शासन में गुण्डाराज है, माफियाओं के हौसले बुलंद हैं और इन लोगों के असली चेहरे सामने आने लगते हैं। असल में अखिलेश यादव का ध्यान कुछ ही स्थानों पर रहता है। मुसलमानों के दुख-दर्द साझा करने की बात हो तो वे तत्काल जाग जाते हैं, लेकिन अपराध पर अंकुश लगाने की बात पर वे चुप्पी ओढ़ लेते हैं। क्या यही समाजवाद है?
—विवेक कुमार
लखीमपुरखीरी (उ.प्र.)
सनातन ही सर्वोच्च!
लेख 'हिन्दुत्व से है भारत की सनातनता' में बड़े ही कम शब्दों में मूल बात पर ध्यान केंद्रित किया गया है। वर्तमान में जिस प्रकार की परिस्थितियां विश्व में बनी हुई हैं, उस स्थिति में संपूर्ण विश्व को मानना पड़ेगा कि सनातन धर्म ही संपूर्ण सनातन दुनिया को स्वस्थ दिशा दे सकता है। धर्म सबको साथ लेकर चलने की बात करता है। सब सुखी रहें, सबका कल्याण हो, हिन्दुत्व इसका प्रवर्तक है। हिन्दुत्व एक विचारधारा नहीं बल्कि संस्कृति है। —रामगोपाल,
जालंधर (पंजाब)
एकल या संयुक्त ?
आज संयुक्त परिवार बहुत ही कम देखने को मिलेंगे। अधिकतर लोग एकल परिवार में रहना पसंद कर रहे हैं। इस प्रकार के परिवार के फायदे कम बल्कि दुष्परिणाम ज्यादा सामने आ रहे हैं। लोग कुंठा के शिकार हो रहे हैं, संस्कार समाप्त हो रहे हैं, मेल-मिलाप से दूर होते जा रहे हैं, अपनों से लगातार दूरियां बढ़ रही हैं। क्या इस दुष्परिणाम के बाद भी लोग एकल परिवार में रहना पसंद करेंगे? या फिर से संयुक्त परिवार की ओर लौटेंगे ?
—राम प्रताप सक्सेना
खटीमा (उत्तराखंड)
अच्छी शुरुआत
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने हरियाणा राज्य से 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' योजना की शुरुआत करके देश के सामने एक प्रेरक योजना प्रस्तुत की है। उन्होंने अपने संबोधन में बेटियों की घटती संख्या पर सवाल खड़ा किया और पूछा कि आखिर बेटियों से इतनी दुश्मनी क्यों? वास्तविक रूप में देखें तो प्रधानमंत्री की इस विषय पर चिंता उचित है क्योंकि दिन-प्रतिदिन बेटियों की संख्या घट रही है। इसलिए सभी राज्यों में इस योजना का सफल क्रियान्वयन हो इसके लिए राज्य सरकारों को बढ़-चढ़कर आगे आना चाहिए, क्योंकि एक नारी कितने लोगों को दिशा दे सकती है इसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता।
—लक्ष्मी चन्द्र
बंाध कसौली,सोलन (हि.प्र.)
निंदनीय
अमरीका में हाल में हुए हिन्दू मंदिरों पर हमलों की जितनी भी निंदा की जाये वह कम है। इस प्रकार की घटनाएं अमरीकी प्रशासन पर सवाल खड़ा करती हैं कि कैसे सख्ती के बाद भी ऐसे कार्य हो जाते हैं।
—वीरेन्द्र सिंह
कंपू,ग्वालियर(म.प्र.)
मीडिया और राजनीति
मजहबी उन्मादी मानवता के लिए खतराभारत की राजनीति में धूमकेतु की तरह अवतरित हो दिल्ली की गद्दी पर अपार जनसमर्थन के साथ आए केजरीवाल ने भारत में राजनीति को एक गलत दिशा देकर अहितकारी परिपाटी की शुरुआत की। यह शुरुआत दिल्ली के लिए ही घातक नहीं है, बल्कि पूरे देश के लिए घातक है। इस प्रकार की राजनीति से आने वाले दिनों में अन्य दल भी सत्ता पाने के लिए अवसरवादिता का प्रयोग करेंगे और लोकलुभावन योजनाओं द्वारा जनता को बरगलाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करेंगे। दिल्ली विधानसभा चुनाव में मीडिया की भूमिका संदिग्ध रही। मीडिया का कार्य तथ्यात्मक समाचारों को दिखाना और सच बताना। लेकिन ऐसा नहीं दिखा। अरविंद केजरीवाल के मीडिया के अंदर के हमदर्द विभिन्न समाचार चैनलों के स्टूडियो से समाचारों के बजाए उनकी पैरोकारी करते दिखाई देते थे। इस चुनाव ने दो सवाल खड़े किए। पहला,अरविन्द केजरीवाल जो जनता को मुफ्त बिजली-पानी,वाई-फाई व अन्य कुछ ऐसी चीजों का लालच दे रहे हैं, क्या वे पूरी भी कर पाएंगे? या फिर यह सब जनता को बरगलाने और सत्ता पाने का माध्यम भर है? जितने भी वादे केजरीवाल कर रहे हैं वे पूरे करने अगर आसान होते तो अन्य दल भी ऐसी राजनीति में डुबकी लगाकर अपने को डूबने से बचा लेते। दूसरा, जो मीडिया कोसों दूर से अत्याधुनिक कैमरों से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कपड़ों पर महीन धागों से लिखा 'नरेन्द्र दामोदरदास मोदी' देख लेता है,उसने कभी केजरीवाल के वायदों को आंकने की कोशिश क्यों नहीं की? उसने यह जानने की हिम्मत क्यों नहीं जुटाई कि आआपा जो दिल्ली की जनता से वादे कर रही है वे पूरे भी होंगे या फिर हवा-हवाई साबित होंगे?
सवाल है कि मीडिया क्यों मुफ्तखोरी बढ़ाने की राजनीति की पैरोकारी कर अरविन्द केजरीवाल को हीरो बनाने पर तुला है ? क्या मीडिया का यही काम है कि वह झूठ को सच और सच को झूठ दिखाए? अपने लालच और लाभ के लिए देश के प्रधानमंत्री पर तंज कसे? खैर कुछ भी हो सरकार बनने के कुछ दिन बाद ही आम आदमी पार्टी काम जनता के सामने आ जायेगा और अरविंद केजरीवाल के वादों की पोल खुल जाएगी।
-ओम हरित
ग्राम व पोस्ट-फागी,जिला-जयपुर (राजस्थान)
मानसिकता में खोट
मुफ्ती साहिब को नहीं, था ऐसा अनुमान
लेकिन कुर्सी मिल गयी, और हुआ सम्मान।
और हुआ सम्मान, मगर अब बौराए हैं
सुन उनके वक्तव्य लोग सब चकराए हैं।
कह 'प्रशांत' पिछली बातें हैं बहुत पुरानी
उनको छोड़ो, नये सिरे से लिखो कहानी॥
—प्रशांत
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