चराचर में ब्रह्म की अनुभूति
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चराचर में ब्रह्म की अनुभूति

by
Mar 7, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 07 Mar 2015 12:28:14

अक्सर लोगों को हम सवाल करते हुए पाते हैं कि भगवान कब जन्म लेंगे? कहां उनका जन्म स्थान होगा? कैसे वह पुन: एकछत्र धर्मध्वजा की स्थापना करेंगे? इस तरह के विभिन्न सवाल हमारे मन-मस्तिष्क में उमड़ते-घुमड़ते रहते हैं। शायद वे लोग अपने ज्ञानचक्षु से सही प्रकार भगवान को देख नहीं पाते? क्योंकि सचाई यह कि वे जानते ही नहीं हैं कि भगवान कैसे होते हैं। उनके अंदर वही कल्पनातीत भगवान हैं, जिनके हाथ में चक्र सुदर्शन है, एक हाथ में गदा और एक हाथ में शंख। लेकिन अगर हम अपने ज्ञान भरे चक्षुओं से देखेंगे तो हर काल में कुछ ऐसी ही दिव्य आत्माओं का अवतरण होता है, जो भगवान के ही कायोंर्ं को करते हैं और देश व समाज को शाश्वत मूल्यों के साथ सटीक रास्ते की अनुभूति कराते हैं।
रामकृष्ण परमहंस इस कड़ी में एक ऐसा नाम हैं, जिन्होंने न केवल हिन्दू धर्म के प्रणेता की भूमिका निभाई बल्कि मनुष्य में एक सच्ची श्रद्धा जगाई कि ईश्वर का साक्षात्कार बिल्कुल भी मुश्किल नहीं है। इसलिए हम उनको एक अवतार ही कहेंगे क्योंकि उन्होंने समस्त संसार को जो संदेश दिया वह अत्यंत महत्वपूर्ण एवं अद्भुत है। उनके अथक परिश्रम और आस्था ने स्वामी विवेकानंद के रूप मे ऐसा शिष्य अर्पित किया जिसने हिन्दुत्व की धर्मध्वजा को विश्व मंच पर स्थापित ही नहीं किया बल्कि डंके की चोट पर सिद्ध किया कि हिन्दू धर्म से बड़ा और कोई भी मत-पंथ नहीं है। वैसे श्री परमहंस के अभूतपूर्व व्यक्तित्व व कृतित्व पर अनेक पुस्तकों का सृजन होता रहा है। इसी कड़ी में लेखिका डॉ. रश्मि ने रामकृष्ण परमहंस के जीवन से जुड़े रोचक व कुछ प्रेरणादायक प्रसंगों को पुस्तक रूप में 'रामकृष्ण परमहंस के 101 प्रेरक प्रसंग' में समेटा है।
आज जब हम देखते हैं कि हर स्थान पर एक ही चीज को पाने के लिए भागदौड़ चल रही है वह है पैसा…। लेकिन जब हम शान्त चित्त होकर बैठें और सोचें कि मानव जीवन हमें इसीलिए मिला है कि सिर्फ यहां आकर हम पैसा कमाते रहें या पैसा कमाना ही मानव जीवन का मुख्य उद्देश्य है? लेकिन इसी रुपये के विषय में रामकृष्ण परमहंस एक अध्याय 'रुपया: जीवन का लक्ष्य नहीं' में एक शिष्य, गुरु परमहंस से पूछता है कि 'स्वामी जी, मैंने देखा है कि संसार में रुपये की बड़ी ताकत है। रुपये के बिना कोई काम नहीं हो सकता' तो स्वामी जी मुस्कुराए और उससे पूछा कि 'तुम रुपये से क्या-क्या खरीद सकते हो' तो उसने उत्तर दिया 'कि रुपये से संसार की हर वस्तु खरीदी जा सकती है।' तो स्वामी जी ने कहा कि यही तो मैं कह रहा हूं कि रुपये से संसार की हर वस्तु खरीदी जा सकती है। दाल-रोटी-कपड़ा… बस यही न। क्या तुम रुपये से ईश्वर को खरीद सकते हो? यह उत्तर पाते ही सभी शिष्य हतप्रभ रह गए । परमहंस जी कहा करते थे कि आज मनुष्य सिर्फ धन कमाना ही अपने जीवन का लक्ष्य मान बैठा है,जबकि धन से वह दुनिया की हर चीज खरीद सकता है लेकिन मन की शान्ति,प्रेम और ईश्वर की कृपा कभी भी प्राप्त नहीं कर सकता।
वर्तमान समय में जब लोग बिना परखे किसी को गुरु बना लेते हैं और जब ठगे जाते हैं तो पूरे धर्म पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करते हैं। इस पुस्तक के 'सच्चा गुरु' अध्याय में रामकृष्ण परमहंस बताते हैं कि गुरु को परखना आसान नहीं। अक्सर एक अच्छा गुरु पाने में पूरा जीवन निकल जाता है। एक अच्छे गुरु के बारे में वह बताते हैं कि सच्चा और ज्ञानी गुरु लकड़ी के गोले के समान होता है,जो भीतर से खोखला यानी अहंकार रहित होता है। यदि उस गोले को पानी में डाल दिया जाये तो वह स्वयं भी तैरता हुआ पार होगा बल्कि कई और लोगों को अपने ऊपर आश्रय देकर पार करायेगा किन्तु अज्ञानी गुरु स्वयं तो डूब ही जाता है, साथ ही औरों को भी डुबो देता है।
लेखक ने 101 प्रसंगों में छोटे-छोटे विषयों को लेते हुए गूढ़ बातों को बताने का प्रयास किया है। परमहंस के जीवन में घटने वाली उन तमाम चीजों को जिनसे लोगों को कुछ शिक्षा मिलती है उनको भी स्थान दिया गया है।

पुस्तक का नाम – 'रामकृष्ण परमहंस
के 101प्रेरक प्रसंग'
लेखक – डॉ.रश्मि
प्रकाशक – प्रभात प्रकाशन
मूल्य – 125 रु.
पृष्ठ – 184
समीक्षक: अश्वनी मिश्र

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