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छपरा (बिहार) में 17 फरवरी को पूज्य रज्जू भैया स्मृति व्याख्यानमाला के अन्तर्गत 'धर्मान्धता और साम्राज्यवाद' विषय पर एक गोष्ठी आयोजित हुई। गोष्ठी के मुख्य वक्ता थे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह-सरकार्यवाह डॉ़ कृष्णगोपाल। उन्होंने 'धर्मान्धता' शब्द पर आपत्ति व्यक्त करते हुए कहा कि धर्म आंखें खोलता है, न कि अंधापन लाता है। पाश्चात्य जगत में धर्म नहीं, 'रिलिजन' शब्द है। धर्म हमें ज्ञान, कर्तव्य और दायित्व का बोध कराता है। सत्य-असत्य का विवेक बताने वाला, नीति, न्याय व कर्तव्य का द्योतक है धर्म। उन्होंने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए अपना-अपना व्यक्तिगत धर्म होता है। व्यापक अर्थ में सूर्य, अग्नि, नदी, आदि का भी अपना धर्म होता है। धर्म को आगे ले जाने के लिए मत, पंथ, संप्रदाय, 'रिलिजन' आदि होते हैं। पाश्चात्य मतों के अनुसार परमेश्वर एक है, वह सर्वशक्तिमान है, किन्तु वह हमसे बहुत दूर किसी अज्ञात स्थान पर रहता है और हमारे बीच नहीं आता है। भारतीय दर्शन में भी सर्वशक्तिमान परमात्मा की कल्पना है, परन्तु वह एक होते हुए भी सबमें व्याप्त है। प्रत्येक जीव में हम ईश्वर का रूप देखते हैं। हमारी मान्यता में ईश्वर सर्वत्र विद्यमान है और सबके लिए समान है। उन्होंने कहा कि ईश्वर से हम सीधे साक्षात्कार कर सकते हैं, मंदिर, मूर्ति, कीर्तन, पूजा, साधु-संत तो साधनमात्र हैं। पाश्चात्य जगत में इन सबका अभाव है। उनके पंथ में, उनके ईश्वर में विश्वास न करने वालों के लिए कोई स्थान नहीं है। ईश्वर के नजदीक पहुंचने की अनुभूति के लिए मध्यस्थ के रूप में दूत, पुत्र, पैगम्बर की आवश्यकता पड़ती है। वहां के लोग एक मजहबी पुस्तक को थामे अपने मतावलंबियों की संख्या बढ़ाने और विश्व में अपना साम्राज्य फैलाने में विश्वास करते हैं। वस्तुत: यही अपने 'रिलिजन' के प्रति मतान्धता है। उन्होंने कहा कि हिन्दुत्व एक गतिमान व्यवस्था है। गोष्ठी के अन्य वक्ता थे तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति श्री रामाशंकर दुबे एवं डी़ ए़ वी़ महाविद्यालय, सीवान के जन्तुविज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष व संघ के प्रान्त संपर्क प्रमुख श्री रवीन्द्रनाथ पाठक। गोष्ठी की अध्यक्षता डॉ़ राजीव कुमार सिंह ने की। इस अवसर पर कुछ वयोवृद्ध कार्यकर्ताओं को सम्मानित भी किया गया।
-प्रतिनिधि
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