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पटना से संजीव कुमार
नीतीश की 'सत्ता की भूख' का नतीजा है, जो उन्हें 'पीएम इन वेटिंग से सीएम इन वेटिंग' की स्थिति में ले आई है
।—शाहनवाज हुसैन, प्रवक्ता, भाजपा
जीतन राम मांझी को बिहार का मुख्यमंत्री बनाना हमारी भूल थी, जब कोई गलती करता है तो उसका परिमार्जन भी वही करता है।
—नीतीश कुमार, पूर्व मुख्यमंत्री (बिहार)
बिहार के सत्ताधारी दल जद(यू) में क्षणिक संघर्ष विराम की स्थिति है। पटना उच्च न्यायालय ने मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को पद से अपदस्थ करने के निर्णय पर रोक लगाते हुए यह आदेश दिया है कि 17 फरवरी तक बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ही होंगे। उधर नीतीश कुमार ने समर्थित विधायकों समेत राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से 11 फरवरी को मिलकर राज्यपाल द्वारा अतिशीघ्र विधानमंडल का सत्र बुलाने का आग्रह किया है ताकि 'हॉर्स ट्रेडिंग' को रोका जा सके।
वहीं जीतन राम मांझी ने अपनी मंत्रिपरिषद् के विस्तार की भी घोषणा कर दी है। वर्तमान मंत्रियों के बीच कार्य का बंटवारा करते हुए बचे मंत्रियों को अतिरिक्त मंत्रालय का प्रभार भी आवंटित किया है। मांझी ने 34 मंत्री तथा दो उप मुख्यमंत्री बनाने की भी घोषणा की है। दो उप मुख्यमंत्रियों में एक 'महादलित' तथा एक अल्पसंख्यक वर्ग से होंगे। जद(यू)के अंदर सर्वाधिक विधायक होने का दावा करने वाले मांझी के वक्तव्य से नीतीश खेमा सन्न है। बिहार की राजनीति में इन दिनों भूचाल आया हुआ है। समाजवादियों का गढ़ माने जाने वाला बिहार इन दिनों समाजवादियों की आपसी लड़ाई का अखाड़ा बना हुआ है।
बिहार की राजनीति के प्रमुख नेता नीतीश कुमार अजीब पशोपेश में फंसे हैं। उनके सामने आगे कुआं पीछे खाई की स्थिति है। नीतीश कुमार अपने रचे चक्रव्यूह में स्वयं ही फंस गए हैं। 2012 तक प्रधानमंत्री पद का सपना देखनेवाले नीतीश कुमार को अब मुख्यमंत्री की कुर्सी पाने के भी लाले पड़ गए हैं। उन्हें उत्तराधिकारी जीतन राम मांझी ने बीच मंझधार में ला दिया है। राजनीति के धुरंधर मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद ने उन्हें बिहार में ही कैद करने की रणनीति बना रखी है। नीतीश के मुख्य सिपहासलार भी उनसे दूरी बनाते जा रहे हैं। भीम सिंह, वृष्णि पटेल सरीखे नेता अब मांझी घेमे की शोभा बढ़ा रहे हैं। वहीं कद्दावर नरेंद्र सिंह मांझी के लिए सबसे समर्थन देने की अपील भी कर रहे हैं। गत 2014 के लोकसभा चुनाव परिणाम से निराश नीतीश ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। उस समय अंदरूनी हालात कुछ और थे। जद(यू)में आंतरिक कलह के स्वर फूट रहे थे। अगर नीतीश लगातार कुर्सी पर बने रहते तो शायद पार्टी दो फाड़ हो जाती। इसे भांप कर ही नीतीश ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया था। उन्होंने मुख्यमंत्री पद की कुर्सी 'महादलित' जीतन राम मांझी को दिया। जिस 'महादलित' कार्ड को नीतीश ने वषार्ें से संभाल कर रखा था उसे तुरूप का पत्ता समझकर चला। उस समय नीतीश की सोच थी कि लोकसभा चुनाव में अपनी जमानत तक गंवा बैठे जीतन राम मांझी को वे अपनी उंगलियों पर नचा सकेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
राजनीति के धुरंधर जीतन राम मांझी ने सधे कदमों से अपना दांव खेलना शुरू किया। बिहार में 22 प्रतिशत से अधिक 'महादलितों' की आबादी है। इस वर्ग को उनकी भाषा में मांझी ने संदेश देना शुरू कर दिया। उनके वक्तव्य पर भले ही लोग हंसी ठट्ठा करते हों, लेकिन मांझी की दूरदृष्टि स्पष्ट थी कि 'महादलित' मतदाताओं के वे सर्वमान्य नेता के रूप में स्थापित हों। इसमें मांझी को काफी सफलता भी मिली। पहले तो मांझी नीतीश के कथनानुसार कार्य करते रहे, लेकिन जल्द ही वे अपने मनोनुकूल निर्णय लेने लगे।
उन्होंने अपने वक्तव्य में भी कहा कि दो महीने तक उन्होंने नीतीश के साथ काफी मेल-मिलाप से सरकार चलाने की सोची तो काफी अड़चनें आने लगीं। मांझी ने जब अपने मन से निर्णय लेने शुरू किए तो नीतीश के पेट में दर्द होने लगा। कहानी 'क्लाइमेक्स' पर तब पहुंची जब मांझी ने नीतीश के सबसे करीबी ललन सिंह के मंत्रालय पर तल्ख टिप्पणी करते हुए उन्हें मंत्री पद से गत 6 फरवरी को बर्खास्त कर दिया। इससे स्वयं को ठगा महसूस जानकर नीतीश खेमे ने मांझी पर जमकर निशाना साधा और आर-पार की लड़ाई शुरू हो गई। मांझी ने नीतीश के विश्वस्त मंत्रियों को चुन-चुनकर बर्खास्त कर दिया। पलटवार करते हुए नीतीश ने जद(यू) से ही मांझी को निष्कासित कर दिया। 130 विधायकों के बहुमत का दावा करते हुए नीतीश ने अपनी दावेदारी पेश की। गत 7 फरवरी की शाम चार बजे जद(यू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव के निर्देश पर जदयू विधायक दल की बैठक बुलाई गई। उसमें नीतीश को विधानमंडल दल का नेता चुना गया। इसके पूर्व दोपहर में जीतन राम मांझी ने मंत्रिमंडल की बैठक बुलाई और विधानसभा भंग करने का प्रस्ताव पेश किया। इस मुद्दे पर मंत्रिमंडल दो हिस्से में बंट गया।
21 मंत्रियों ने विधानसभा भंग करने का विरोध किया, जबकि 7 ने समर्थन किया। देर शाम मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने राज्यपाल को पत्र लिखकर अपने 15 मंत्रियों को तुरंत पद से हटाने की सिफारिश कर डाली। इसके अलावा पांच मंत्रियों ने राजभवन जाकर राज्यपाल को अपने इस्तीफे सौंप दिए। 8 फरवरी को मांझी बिहार की वर्तमान स्थिति के संबंध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले। वहीं पत्रकार वार्ता करते हुए उन्होंने अपनी बात रखी। 9 फरवरी की दोपहर नीतीश राजभवन पहुंचे और विधायकों की परेड राज्यपाल के समक्ष करवाई। राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी ने मुख्यमंत्री मांझी को मंत्रिमंडल का विस्तार करने से मना कर दिया। तभी जद(यू) से मुख्यमंत्री मांझी को निष्कासित और विधानसभा से भी असंबद्ध घोषित कर दिया गया। मांझी ने इसे चुनौती दी जिसके संदर्भ में पटना उच्च न्यायालय ने 11 फरवरी को निर्णय दिया कि 17 फरवरी तक बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी बने रहेंगे।
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