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पीयूष पांडे
अजीब विडंबना है कि गणतंत्र दिवस के अवसर पर ही 'गण' के 'तंत्र' में फंसकर परेशानियों से बेहाल होने की कहानी को कार्टूनों से दिलो-दिमाग में बैठा देने वाले अद्भुत कार्टूनिस्ट आर. के़ लक्ष्मण के निधन की खबर आई। वह काफी दिन से बीमार चल रहे थे, इसलिए उनके निधन की खबर ने चौंकाया नहीं, अलबत्ता अचानक उस खालीपन का अहसास करा दिया, जो कार्टून खासकर राजनीतिक कार्टून की दुनिया में आ गया।
आऱ के़ लक्ष्मण के 'द कॉमन मैन' ने उन्हें वह लोकप्रियता दी, जिसकी कल्पना कई बड़े लेखक नहीं कर सकते। 1985 में लक्ष्मण ऐसे पहले भारतीय कार्टूनिस्ट बने, जिनके कार्टून की लंदन में एकल प्रदर्शनी लगाई गई। लक्ष्मण के आम आदमी का कार्टून पहली बार 1951 में 'टाइम्स ऑफ इंडिया' अखबार में छपा था। शुरू-शुरू में लक्ष्मण का आम आदमी बंगाली, तमिल, पंजाबी या फिर किसी दूसरे प्रांत की पृष्ठभूमि का दिखता था, लेकिन फिर आम आदमी की पहचान बन गया टेढ़े चश्मे, मुड़ी-चुड़ी धोती, कोट, सिर पर बचे चंद बालों वाला एक कार्टून। 50 वर्ष से ज्यादा तक लक्ष्मण आम आदमी के जरिए आम आदमी की पीड़ा और जिन्दगी की विसंगतियों को उकेरते रहे। उनके कार्टून में समाज का चेहरा दिखता था, तो भारतीय राजनीति के बदलाव भी। अब जिस दौर में लक्ष्मण साहब ने हमारे बीच से विदा ली है, उस दौर में एक बार फिर आम आदमी हाशिए से उठकर राजनीतिक सोच के केन्द्र में है।
दुनिया में ऐसी और कोई मिसाल देखने को नहीं मिलती है जब किसी कार्टूनिस्ट के किरदार की मूर्ति बना दी गई हो। लेकिन, लक्ष्मण के 'द कॉमन मैन' के साथ ऐसा हुआ। आऱ के़ लक्ष्मण ने पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह तक के कार्टून बनाए। नरेन्द्र मोदी उनका 'शिकार' होने से बच गए। मुमकिन है कि मोदी को इस बात की खुशी हो और शायद अफसोस भी। क्योंकि लक्ष्मण ने आम आदमी के जरिए राजनेताओं पर निशाना जरूर साधा लेकिन मुद्दों के आसरे।
लक्ष्मण के बारे में पढ़ते हुए कई ऐसे किस्से आँखों के सामने से गुजरते हैं। उदाहरण के लिए एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा, '1962 में भारत-चीन जंग के बाद एक दिन मुझे पंडित नेहरू का फोन आया। नेहरू जी ने कहा कि सुबह आपके कार्टून को देखकर बहुत हंसी आई। मैं चाहता हूं कि आप मुझे अपना हस्ताक्षर किया बड़े आकार की तस्वीर दें जिसे मैं फ्रेम करा सकूं।' आऱ के़ लक्ष्मण ने ही एक अन्य साक्षात्कार में इस बात का जिक्र किया था कि कैसे शराब बिक्री और 'हॉर्स रेसिंग' पर पाबंदी की मोरारजी देसाई की योजना पर जब उन्होंने एक कार्टून बनाया तो मोरारजी देसाई गुस्सा हो गए और कैबिनेट की बैठक बुला ली और पूछा कि क्या इस कार्टून पर प्रतिबंध लगाने का कोई रास्ता है! इसी तरह, लक्ष्मण ने इंदिरा गांधी पर जमकर तंज कसे, लेकिन पद्मभूषण पुरस्कार उन्हें इंदिरा गांधी के कार्यकाल में ही मिला और जब पहली बार उन्हें इस बात की सूचना दी गई थी तो वे हैरान रह गए थे।
दरअसल, मेरी पीढ़ी के युवाओं के लिए आऱ के़ लक्ष्मण स्थापित हीरो थे, जिनका जिक्र सुबह की चाय के साथ घर के बड़े-बुजुर्ग कर दिया करते थे। आज की पीढ़ी के बच्चों को आऱ के़ लक्ष्मण होने का मतलब शायद समझ नहीं आए लेकिन उनकी जिन्दगी संघर्ष की दास्तां के बीच कुछ कर गुजरने की कहानी कहती है। इसी कड़ी में उनकी जीवनी 'द टनल ऑफ लाइफ' पढ़ना भी एक खास अनुभव है।
आर. के़ लक्ष्मण का जन्म मैसूर में हुआ था। उनके पिता एक स्कूल के संचालक थे और लक्ष्मण उनके 6 बच्चों में सबसे छोटे थे। लेकिन उनका बचपन तब संकट में आ गया जब उनके पिता पक्षाघात के शिकार बन गए और इसके एक ही वर्ष बाद उनका देहांत हो गया। लक्ष्मण ने पढ़ाई जारी रखी। हाई स्कूल के बाद लक्ष्मण ने जेजे स्कूल ऑफ आर्ट्स में नामांकन के लिए आवेदन किया, लेकिन उन्हें यह कहते हुए दाखिला नहीं मिला कि उनके चित्रों में वो बात नहीं है। दिलचस्प है कि कुछ वर्ष बाद इसी जेजे स्कूल ऑफ आर्ट्स में उन्हें मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया गया। आऱ के़ लक्ष्मण के बड़े भाई आर. के़ नारायण भारत के जाने-माने अंग्रेजी कथाकार और उपन्यासकार थे। आर. के़ नारायण की कहानियां अंग्रेजी अखबार 'हिन्दू' में छपती थीं। लक्ष्मण अपने भाई की कहानियों के लिए कार्टून और रेखाचित्र बनाते। उस वक्त उन्हें एक कृति के लिए ढाई रुपए मिलते थे। बाद में कई अखबारों के लिए कार्टून बनाते हुए लक्ष्मण 'टाइम्स ऑफ इंडिया' पहुंचे।
लक्ष्मण आम आदमी और उसकी पीड़ा की बात करते हुए खास आदमी हो गए थे, लेकिन उन्होंने कभी खुद को खास नहीं माना। आज के दौर में उनकी बहुत जरूरत थी, जब जीवन की विसंगतियों का दायरा बहुत फैल गया है। मीडिया में राजनेताओं को साधने का खेल शुरू हो गया है, और राजनेताओं के लिए मीडिया दोस्त या दुश्मन में बंट रहा है। आम आदमी भी बिना कुछ किए खुद को खास मानने के भ्रम में जीने लगा है। कितना कुछ था लक्ष्मण के पास कहने के लिए। उनका 'कॉमन मैन' कितनी परतें उधेड़ सकता था अभी। कार्टून की दुनिया के इस चितेरे को शत-शत नमन!!
(यह आलेख केवल इन्टरनेट संस्करण के लिए है।)
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