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गणतंत्र दिवस विशेष – हरीश मेहरा
दिल्ली-6 के चांदनी चौक के कटरा नील के उस घर में पहुंचने के लिए अच्छा खासा समय लगता है। आपके पास अगर उनके घर का सही पता है तो भी उनके घर को खोजना आपके धैर्य की परीक्षा तो लेता ही है। पर उस घर में रहने वाले व्यक्ति का हमारे गणतंत्र दिवस से इतना गहरा रिश्ता है कि आप उनसे मिले बिना वापस नहीं लौटना चाहते। हम बात कर रहे हैं हरीशचंद्र मेहरा की, गणतंत्र दिवस के आते ही वे गुजरे दौर की यादों में खो जाते हैं। वे उन दिनों को याद करने लगते हैं जब वे देखते ही देखते 'सेलेब्रिटी' बन गए थे। ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि उन्होंने मात्र 14 साल की उम्र में अपनी जान की परवाह किए बिना पंडित नेहरू समेत अन्य गणमान्य नागरिकों को बचाया था। उनकी बहादुरी के चलते ही सरकार ने उन्हें पहले बाल वीर पुरस्कार से सम्मानित किया था। उसके बाद ही सरकार द्वारा हर साल बालवीर पुरस्कार देने का सिलसिला शुरू हुआ।
श्री मेहता ने 2 अक्तूबर,1957 के उस दिन के बारे में बताया कि उस दिन वे राजधानी के ऐतिहासिक रामलीला मैदान में चल रही रामलीला के कार्यक्रम के दौरान वॉलंटियर की ड्यूटी निभा रहे थे। अतिविशिष्ट मेहमानों के लिए आरक्षित कुर्सियों पर पंडित नेहरू, श्रीमती इंदिरा गांधी, केन्द्रीय मंत्री बाबू जगजीवन राम भी उपस्थित थे। तभी उस शामियाने के ऊपर तेजी से आग की लपटें फैलने लगीं, जहां तमाम महत्वूपर्ण लोग बैठे हुए थे। 'मैं तुरंत 20 फीट ऊंचे खंभे के सहारे उस जगह पर चढ़ने लगा जिधर आग लगी थी। मेरे पास स्काउट का चाकू भी था। जिधर से आग फैल रही थी, वहां पर पहुंचकर मैंने उस बिजली की तार को अपने चाकू से काट डाला। इस सारी प्रक्रिया में मात्र पांच मिनट का वक्त लगा।'
शामियाने के नीचे बैठे तमाम आम और खास लोगों ने उनके अदम्य साहस और सूझबूझ को देखा। पर इस दौरान उनके दोनों हाथ बुरी तरह से झुलस गए। उन्हें राजधानी के इरविन अस्पताल (अब लोकनायक जयप्रकाश नायक अस्पताल) में भर्ती कराया गया। अगले दिन अस्पताल में उनका हालचाल जानने के लिए बाबू जगजीवन राम स्वयं आए। जब वे पूरी तरह से स्वस्थ हो गए तो उन्होंने फिर से स्कूल जाना शुरू कर दिया।
उन दिनों की यादों को बांटते हुए श्री मेहरा बताते हैं, मैं एक दिन अपनी कक्षा में बैठा था,उसी दौरान हमारे स्कूल के प्रधानाचार्य आ गए। उनके आते ही सारी कक्षा सम्मान में खड़ी हो गई। जब सारे बच्चे बैठे तो उन्होंने बताया कि मुझे प्रधानमंत्री पंडित नेहरू की तरफ से शुरू किए गए राष्ट्रीय बाल वीरता पुरस्कार से सम्मानित करने का फैसला हुआ है। उसके बाद मुझे फरवरी,1958 में प्रधानमंत्री निवास तीनमूर्ति में पंडित नेहरू ने बुलाया। उन्होंने मेरे माता-पिता से कहा कि आपका पुत्र आगे चलकर देश का नाम रोशन करता रहेगा। हमें उस पर नाज है। वे हमारे साथ करीब 12-15 मिनट तक रहे। इस उपलब्धि से प्रसन्न मेरे माता-पिता ने उस दिन सारे मोहल्ले में मिठाई बांटी।
मेहरा की उपलब्धि पर स्थानीय अखबारों ने उनके साक्षात्कार छापने शुरू कर दिए। डीएवीपी ने उन पर एक वृतचित्र तैयार किया, जिसे देशभर के सिनेमा घरों में चलाया जाने लगा। आकाशवाणी ने भी उन पर एक कार्यक्रम तैयार किया।अब आया 26 जनवरी,1959 का दिन। उस दिन उन्हें गणतंत्र दिवस परेड में शामिल होने का मौका मिला जब उनकी उम्र मात्र 14 वर्ष थी। इसी के साथ वे पहले बाल वीर बने जिनको ये पुरस्कार दिया गया।
अब वे बाल वीर वृद्ध हो चुके हैं। उनकी आयु करीब 68 वर्ष है। उनके चेहरे पर झुरियों को देखा जा सकता है। बाल सफेद हो चुके हैं। उनसे मंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक ने वादे किए थे कि उनकी उपलब्धि के चलते सरकार उन्हें पदोन्नति देगी। उनसे बार-बार आश्वासन तो मिला लेकिन हुआ कुछ नहीं । हरीश चन्द्र मेहरा ने सपने देखे थे बेहतर और उज्जवल भविष्य के। पर सारे सपने चूर हो गए। आगे चलकर उन्हें परिवार की खराब आर्थिक हालत के कारण सरकारी नौकरी करनी पड़ी। वे क्लर्क के पद पर भर्ती हुए और उन्हें 35 सालों की सरकारी नौकरी में मात्र एक पदोन्नति मिली। हरीशचंद्र आठ वर्ष पहले सेवानिवृत्त हो गए। भले ही नेताओं के वायदे अधूरे रह गए और उन्हें पदोन्नति नहीं मिली लेकिन जब भी वे इस बारे में बात करते हैं तो उनके चेहरे की चमक देखते ही बनती है कि चाहे उन्हें उनकी बहादुरी का प्रतिफल वह नहीं मिला जो वे चाहते थे लेकिन कुछ समय के लिए ही सही लोगों की नजरों में वे 'सेलेब्रेटी' तो बन गए थे। देश में हर जगह लोगों ने उनके साक्षात्कार पढ़े,आकाशवाणी ने उन पर कार्यक्रम बनाया। उस समय उन्हें सैकड़ों की संख्या में बधाई पत्र मिलते थे। इन तमाम यादों को वे आज तक अपने पास सहेज कर रखे हुए हैं। ल्ल
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