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लोकतंत्र का वसंतजनता के भरोसे का वसंत

by
Jan 22, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 22 Jan 2015 14:45:19

 मालिनी अवस्थी
खासकर हम कलाकारों और शायद सभी के लिए वसंत का मतलब ओज, उल्लास और उत्साह है। यह आपसे बड़े से बड़ा काम करवा लेता है। हम पुरानी बातों को छोड़कर नए को अपनाएं। पुरानी बातें मतलब जो कड़वी हैं, निरर्थक हैं, उन्म छोड़कर नई आशाओं को, संभावनाओं को समझाएं। एक नई उमंग के साथ देश ने लोकतांत्रिक रूप से अपनी सोच में एक नयापन दिखाया है। लोगों ने अपने इरादों में एकजुटता दिखाते हुए लम्बे समय बाद झूमकर, तमाम स्थापित मानदंडों को पीछे छोड़ते हुए, तोड़ते हुए, पूर्ण मन से, पूर्ण बहुमत से यह सरकार चुनी है।
स्थापित मानदंडों को तोड़ते हुए इसलिए कह रही हूं कि दशकों से जनता के मन में एक निराशा, एक पतझड़ घर कर गया था, फिर उससे उलट उसने पूरे मन से अपने नायक का चुनाव किया है। कितने राज्य हैं, कितनी भिन्न संस्कृतियां हैं, फिर उनमें अलग-अलग सोच और कुछ और कारण जिनका जिक्र करना मैं नहीं चाहती, उनमें ये सपना ही लगता था कि क्या कभी ऐसा हो पाएगा कि कोई सबकी पसंद की पूर्ण बहुमत सरकार आ पाएगी।
आप अगर चौरासी के अपवाद को छोड़ दें तो शायद 36 वर्ष बाद जनता ने ऐसा करिश्मा कर दिखाया है। अभी तक दशकों से सरकार को लेकर जनसामान्य में निराशा, आलोचना, तटस्थता का भाव रहा, कुछ नहीं हो सकता लगता है सब ऐसे ही चलेगा, यह सब पिछले चुनाव में लगा कि कहीं पीछे छूट गया है और अब यह पहला वसंत है जिसमें उम्मीदों के नए, ताजा फूल खिले हैं। उन्हें व्यवस्थाओं पर फिर से विश्वास आया है, बटन दबाने की अपनी ताकत पर भरोसा आया है कि हम चाहेंगे तो देश की तकदीर बदल सकते हैं।
मैं उत्तर प्रदेश में चुनाव आयोग से चार वर्षांे से जुड़ी हुई हूं। अपनी आंखों देखा है कि उत्तर प्रदेश अपने आप में किसी देश से कम नहीं है। 17 करोड़ जहां मतदाता हों, वहां पिछड़े गांवों तक में लड़कियां और महिलाएं जितनी मुखरता से अपनी बात कह रही थीं, वह राजनीति और लोकतंत्र में महिला भागीदारी की परिणति पहली बार दिखाई दी। यह किसी क्रांति से कम नहीं है। जनता ने माना कि हम चुनेंगे और इस बार हमसे गलती नहीं होगी, कितनी बड़ी बात है जो अभी पिछले साल तक अजूबा ही लगती थी, अब घटित हुई है।
जाहिर है कि अब आशाएं भी जगी हैं। लम्बी निराशा के बाद उत्साह आया है। अपेक्षाएं भी बहुत हैं। अभी तक तो यह हाल था कि लोगों ने अपनी चुनी सरकार से आशा करना भी दशकों से बंद किया हुआ था।
सफाई जैसे सामान्य मुद्दे को देखें तो यह भी एक नवीनता ही है। एक नया विचार आया जो कि हम सबको पता है। जैसे मैं लोक गायिका हूं। तमाम अच्छी चीजें हमारे पास पहले से रही हैं। लेकिन उसे आज के संदर्भ से जोड़ते हुए हम जब सुनाते हैं तो लोग कहते हैं आपने तो हमें आज वो सुनाया जो कभी दादी बताया करती थीं। कोई कहती है हमारी अम्मा गाती थीं। ऐसा लगा जैसे फिर से उसी पुराने घर के आंगन में पहुंच गए हैं। फिर वे उसे अपनाने भी लगती हैं। यानी उनकी चीजें थीं। उनके सामने लाकर फिर आज के संदर्भ में कहीं गईं तो नई-नई लगने लगीं।
इसी तरह सफाई का विचार है जिसे हमारे प्रधानमंत्री जी ने जनता के बीच ले जाकर और खुद हाथ में झाड़ू पकड़कर उतरे, सफाई की और करने की प्रेरणा दी, तो लोग खुद ब खुद उससे जुड़ने लगे हैं। यह जनान्दोलन बन गया है। देखिए, कोई शिक्षक ऐसा होता है कि वो पढ़ाता है और छात्र उसको अनुभव करने की कोशिश करते हैं, मोदी जी ने ऐसा ही किया है।
यह बात मैं सिर्फ कहने के लिए नहीं कर रही हूं बल्कि ऐसे कई लोग मुझे मिले हैं जिन्होंने बताया कि उनके परिवार में, बच्चों में, समाज में इतना बदलाव आ गया है कि वे सड़क पर कूड़ा नहीं डालते और दूसरों को डालने से मना भी करते हैं। कहीं दिखा तो उसे कूड़ेदान में डाल देते हैं। ये कम से कम 20 लोगों की बात है जो मुझसे मिले हैं। कम से कम अवचेतन मन में तो आ गई यह बात कि यह गलत है। जबकि यह गलत शुरू से थी। लेकिन प्रधानमंत्री जी के कहने और करने का अंदाज इतना प्रभावी है कि लोगों के मन तक गई।
उन्होंने यह बात इतनी अच्छी तरह समझ ली कि गंदगी दूर करना देश के लिए पहला जरूरी काम है। सफाई हमें विदेशों में जाने पर कितनी अच्छी लगती है लेकिन यहां खुद नहीं करते और अपेक्षा रहती है कि यह कोई दूसरा करेगा। सरकार करेगी या कोई और करेगा। पर अब सबको लगने लगा कि अपना हाथ जगन्नाथ।
अभी सरकार से लोगों को तमाम वासन्ती उम्मीदें हैं। और जैसे माहौल है उसमें बातें बनने की तरफ अग्रसर होती दिख रही हैं। सब अभी नहीं होगा, कुछ साल में कुछ दो साल में होगा, ऐसा भरोसा लोगों में आया है तो यह भरोसा भी पिछले लम्बे यथास्थिति के दौर को देखते हुए एक अप्रतिम नवीनता ही है। और मैं इसे लोकतंत्र और देश की व्यवस्थाओं पर जनता के भरोसे का वसंत भी कहना चाहूंगी। 

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