लोकतंत्र का वसंत :विश्वास है, कुछ खास है... यह वसंत
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लोकतंत्र का वसंत :विश्वास है, कुछ खास है… यह वसंत

by
Jan 22, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 22 Jan 2015 14:51:40

कैलाश खेर
मैं देश-विदेश बहुत घूमा हूं। हवा में ही एक परिवर्तन नजर आने लगा है। लोगों का देश के कर्णधारों, इतिहास और अध्यात्म में बढ़ रहा विश्वास मैं देख पा रहा हूं। मेरा तो ज्यादातर संबंध युवाओं से ही होता है। उनमें बहुत दिनों बाद देख रहा हूं कि सकारात्मकता बढ़ी है। यह मैं यूं ही नहीं कह रहा। देश के लाखों युवा फेसबुक पर मुझसे जुड़े हैं।
मैंने खुद जानने की कोशिश की कि युवाओं की सोच में इतनी नकारात्मकता, तटस्थता अब तक क्यों थी। फिर इसका कारण भी समझ में आया कि उन्होने जो किताबों में पढ़ा समाज के बारे में, महापुरुषों के बारे में, अपने अध्यात्म के बारे में, लोगों के आचरण के बारे में और फिर जो उनके देखने में आया… उन दोनों के बीच भीषण अंतर था। वह दूरी अब घटनी शुरू हुई है और उन्हें लगता है कि हमने जो कुछ पढ़ा था अब सचमुच वैसा भी है। यथा राजा तथा प्रजा।
हमारे तमाम जानकार कोई आईआईटी का पढ़ा हुआ, कोई आईआईएम का पढ़ा हुआ, कुछ कम पढ़े हुए भी जो धनाढ्य होते हैं, व्यापारी वर्ग के कुछ लोग थे। उनमें से कितनों ने ऐसे मन बनाए थे कि अब यह देश रहने लायक नहीं रहा, यहां व्यवस्थाएं चौपट हो चुकी हैं, हम विदेश चले जाएंगे। ऐसे कितने ही लोगों का मन बदल गया है। बल्कि अब विदेश गए लोग वहां से भारत आना चाह रहे हैं। परमात्मा ने पिछले दस साल के दौरान हमें कोई आधी दुनिया दिखा दी है। कोई डेढ़ सौ देश मैं हो आया हूं और हर यात्रा के दौरान हजारों युवाओं से मिला हूं। जो अनुभव हुआ हाल के दिनों में, सिर्फ वही आपको बता रहा हूं। पहले यहां माहौल नहीं था। अच्छी सोच से, अच्छे काम से, अच्छी नीयत से मनुष्य डरते थे। आज अगर सड़क पर दुर्घटना हो जाती है जो व्यवस्था ऐसी नहीं है कि आप वहां मानवता दिखाकर आपको कोई श्रेय देगा। लोग डरते हैं कि पूछा जाएगा जिसे चोट लगी वो आपका कोई मित्र या रिश्तेदार है क्या? पुलिस और दुनियाभर की मुसीबत अलग से। आप नेकी करना भी चाहें तो नहीं कर पाएंगे। अब यह दौर बदला है और नेकी करने की जज्बा लोगों में जागने लगा है।
प्रधानमंत्री ने हमें स्वच्छ भारत अभियान से जोड़ा। अपने नवरत्नों में शामिल किया। लेकिन मैं ऐसे बहुत से लोगों को देख रहा हूं कि जिनको नहीं भी जोड़ा वे भी खुश होकर अपने स्तर पर सफाई अभियान में योगदान कर रहे हैं। सफाई को ऐसा समझिए कि कोई मनुष्य मरणासन्न हो तो क्या वह उंगली हिलाने से जिंदा हो जाएगा। उसका एक-एक अंग हिलाना पड़ेगा। लेकिन शुरुआत कहीं से तो करेंगे। ऐसा ही समाज में है। स्वच्छता करनी इसलिए जरूरी है कि अपना घर, मोहल्ला, देश तो बुद्धि भ्रष्ट नहीं होगी। गंदगी में जो भी रहते हैं आप उनकी बुद्धि देखिए। हमेशा नकारात्मक दिशा में चलेगी। ये तो साधारण सी बात है कि जब पूरा भारत स्वच्छ होगा तो पूरा भारत स्वस्थ होगा। पहले तो नेक काम करने से डर लगता था न भइया। व्यवस्थाएं ऐसी नहीं थीं। हां, आप बुरा काम करिए तो उसमें आपको 'अंदरूनी' 'सपोर्ट' मिलेगा। इसीलिए तो देखिए कि बुराई इतनी फैल रही है कि लोग किसी पर भी आघात कर रहे हैं, अनर्थ कर रहे हैं।
मनुष्यों के जीवन जीने की व्यवस्थाएं भी हैं, एक तरीका भी है। मनोवैज्ञानिक भी, सामाजिक भी और कानूनी भी। उसके ढांचे बने हुए हैं। लेकिन क्या वे सचारु रूप से कार्य कर रहे हैं, यह एक बहुत बड़ा प्रश्न था। लेकिन अब यह बदला है कि कम से कम वे नौकरी ही समय से जा रहे हैं, नौकरी ईमानदारी से कर रहे हैं। डिजिटल व्यवस्था से लोगों को काफी सुविधा हुई है। एक परिवर्तन का युग आया है।
बचपन से ही अपने पिता से जो बातें सुनता था बड़ी प्रेरणादायक होती थीं। फिर समझ बढ़ी, समाज देखा तो उनकी बातें झूठी लगने लगीं। लगा कि इस देश में कोई महापुरुष हुआ नहीं, अच्छाइयां कभी रही नहीं, वरना उसका कुछ तो अवशेष व्यावहारिक जीवन में देखने को मिलता। अभी देखिए जिनको हम बड़ा कहते हैं और उनके काम देखते हैं तो कितना अजीब लगता है। और जो लोग कुछ अच्छा करना भी चाह रहे थे, वे वैसा कर नहीं पा रहे थे। तब अच्छे समाज का निर्माण कैसे हो पाता।
महापुरुषों के सम्मान की कितनी बातें पढ़ते आए। और जो समाज सामने था उसमें ऐसे-ऐसे महापुरुष दिखते थे कि युवाओं की उनकी इज्जत करने की इच्छा नहीं होती थी। अब युवा इतने भ्रमित हो गए कि कोई पलायन कर जाता है। जो पढ़-लिख लेते हैं उनमें कई अपने माता-पिता तक से वास्ता नहीं रखना चाहता। वो भाग जाता है अमरीका, चल वहीं कोई भी जो गोरी या काली मिलेगी उसे पटा कर अपना जीवन जी लूंगा, लेकिन यहां चारों तरफ व्यवस्था और जीवन में फैले भ्रष्टाचार और गंदगी में तो नहीं ही आऊंगा। ऐसे ही बीज बोए गए। लेकिन ईश्वर का धन्यवाद कि प्राकृतिक और नैसर्गिक एक बहुत बड़ा पविर्तन अब हुआ है। मैं तो इसे ईश्वरीय संयोजन मानता हूं।
ये जो लोकतंत्र का वसंत कहा जा रहा है, मैं तो कहूंगा कि मन का वसंत अब आया है। हृदय परिवर्तन हो रहे हैं लोगों के। लोगों का विश्वास बढ़ा है कि हां, अब जीने का मजा आएगा। अच्छे विचारों का सम्मान प्रारंभ होगा। जब विश्वास बढ़ता है, तो अराजकता घटती है। अच्छाई कि तरफ लौटने की, पुराना गौरव फिर हासिल करने की शुरुआत हो चुकी है। हमारे उत्साह, उम्मीदों का यह वसंत है और आगे बहुत कुछ अच्छा होगा, ऐसा लग रहा है।

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