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कुरुक्षेत्र स्थित विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान में पिछले दिनों 'शिक्षा के माध्यम से धर्म तथा सेवा की संकल्पना' विषय पर संगोष्ठी आयोजित हुई। मुख्य अतिथि थे प्रदेश के राज्यपाल श्री कप्तान सिंह सोलंकी एवं मुख्य वक्ता थीं सुश्री अलका गौरी। इस अवसर पर राज्यपाल ने डॉ़ प्रीतम सिंह द्वारा रचित अटल बिहारी वाजपेयी सृजन और मूल्यांकन' पुस्तक का लोकार्पण भी किया। यह पुस्तक डॉ़ प्रीतम सिंह के कुमायूं विश्वविद्यालय में किए गए शोध विषय का संकलन रूप है। शोध की अनुमति 1999 में प्रदान की गई थी।
श्री सोलंकी ने अपने संबोधन में कहा कि धर्म एवं सेवा के अनेक प्रकल्प हैं, परंतु शिक्षा के साथ यदि यह कार्य किया जाए तो यह सोने में सुहागा जैसा होता है। जब हमारा समाज शिक्षित होगा तो हम अपने देश, संस्कृति और धर्म के विषय में बेहतर ज्ञानार्जन कर सकते हैं और उसी का अनुकरण करते हुए आम जनमानस की सेवा में भी भागीदार बन सकते हैं। उन्होंने कहा कि शिक्षा के बिना जीवन में अनेक ऐसी समस्याएं आ रही हैं जिनका समाधान संभव नहीं हो पाता। यदि समाज शिक्षित होगा तो बेटी व बेटे में भेदभाव का भाव नहीं पनप पाएगा। अलका गौरी ने रामकृष्ण परमहंस और गार्गी का वर्णन करते हुए शिक्षा की व्याख्या की और कहा कि शिक्षा ही एक ऐसा माध्यम है जो धर्म और सेवा की संकल्पना को पूर्ण कर सकता है। शिक्षा के माध्यम से ऐसे मनुष्य का निर्माण हो जो मूल्य सहित, संवेदनशील होने के साथ-साथ वास्तविक एवं विवेकपूर्ण ज्ञान से परिपूर्ण हो। उन्होंने स्पष्ट किया कि धार्मिकता वह है जो मनुष्य को सत्यनिष्ठ बनाए और बताए कि दायित्व का पालन, वातावरण और सामर्थ्य अनुसार विवेकपूर्ण और समाज हित के भाव से होता है और यही धर्म है। विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान के शोध निदेशक डॉ़ हिम्मत सिंह सिन्हा ने कहा कि धर्म वह है जो मनुष्य को देवता और ब्रह्मत्व का ज्ञान कराता है। विद्वत गोष्ठी के संयोजक एवं संस्थान के निदेशक डा़ रामेन्द्र सिंह ने भी गोष्ठी को सम्बोधित किया। इस अवसर पर अनेक वरिष्ठ जन उपस्थित थे।
ल्ल डॉ. गणेश दत्त वत्स
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