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पौष पूर्णिमा के साथ ही प्रयाग में संगम की रेती पर आस्था का उत्सव 'माघ मेला' शुरू हो गया। तम्बू, टेंट तथा रंग-बिरंगे विशालकाय पंडाल, उनके ऊपर फहरातीं विभिन्न रंगों की धर्म- पताकाएं, ध्वनि प्रसारक यंत्रों से गूंजती भजन-कीर्तन की मधुर आवाजें, पूरे वातावरण को बहुत ही सुरम्य तथा आकर्षक बना रही हंै। यह आयोजन पूरे माघ मास तक चलने के कारण जन सामान्य में माघ मेला के नाम से विख्यात है।
गंगा-यमुना और अंत:सलिला सरस्वती के पावन संगम तट पर आयोजन का बहुत ही धार्मिक महत्व है। माना जाता है कि सृष्टि के उद्भव काल से ही सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने प्रयाग को तीनों लोकों में महत्वपूर्ण स्थान माना था। स्वयं ब्रह्मा ने यहां गंगा के तट पर कई अश्वमेघ यज्ञ किया। उसकी स्मृति में दशाश्वमेघ घाट यहां स्थापित है। इस घाट के बारे में मान्यता है कि यहां स्नान करने से दैहिक, दैविक और भौतिक तापों से मुक्ति प्राप्त होती है।
प्रयाग के बारे में मान्यता है कि यहां सभी देवता, दिशाएं, लोकपाल, नागपाल, सिद्ध, ब्रह्मा, विष्णु, अप्सरा, महर्षि, सभी वास करते हैं। त्रिवेणी तट पर विद्यमान अक्षयवट पर स्वयं शिव जी वास करते हैं। संगम तट पर लेटे हुए हनुमान जी अपने भक्तों को अपनी उपस्थिति का आभास कराते हैं। शायद यही कारण है कि धर्म ग्रंथों में प्रयागवास को बहुत महत्व दिया गया है।
माघ मास में प्रयाग के त्रिवेणी पर वास का महत्व और बढ़ जाता है। कहा जाता है कि त्रिवेणी तट पर माघ मास तक रहकर जो व्यक्ति कल्पवास, यज्ञ, दान, ब्राह्मण भोजन, गंगा पूजन, वेणी माधव का पूजन तथा व्रतादि का नियम से पालन करता है उसे विशेष पुण्य का फल प्राप्त होता है।
माघ मासे गमिष्यन्ति गंगायमुनसंगमे।
ब्रह्माविष्णु महादेवरुद्रादिव्य मरुद गणा:।।
अर्थात् ब्रह्मा, विष्णु, महादेव, रुद्र, आदित्य तथा मरुदगण माघ मास में, प्रयागराज के गंगा, यमुना के संगम के लिए गमन करते हैं।
ब्रह्म पुराण के अनुसार प्रयाग में स्नान करने से अश्वमेघ यज्ञ के बराबर पुण्य होता है। स्कन्ध पुराण के अनुसार अमावस्या के दिन यहां स्नान करने से अन्य दिनों की अपेक्षा 100 गुना ज्यादा पुण्य प्राप्त होता है।
प्रयागे माघमासे तु त्र्यहं स्नानस्य यद्ववेत।
दशाश्वमेघसहस्त्रेण तत्फलं लभते भुवि।।
प्रयाग में माघ मास में तीन बार स्नान करने से जो फल प्राप्त होता है वह फल पृथ्वी पर दस हजार अश्वमेघ यज्ञ करने से भी प्राप्त
नहीं होता है।
धर्म ग्रंथों में वर्णित प्रयाग, त्रिवेणी के महत्व से इतर आज की वैज्ञानिक मान्यता है कि माघ मास में सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। इस समय वह पृथ्वी के बहुत नजदीक होता है। इस समय चन्द्रमा भी पृथ्वी के समीप आ जाता है। सूर्य और चन्द्र के पृथ्वी के समीप होने से इनका बहुत ही अनुकूल प्रभाव संगम के जल पर पड़ता है। इसलिए माघ मास में संगम स्नान लाभदायक है।
प्रयाग का त्रिवेणी तट शायद एकमात्र ऐसा स्थान है जहां प्रतिवर्ष लाखों लोग कल्पवास करते हैं। सनातन धर्म के वर्णित तपों में से एक कल्पवास अपने आप में एक बड़ा तप है। योगाचार्य आनन्द गिरि बताते हैं कि कल्पवास महर्षि भारद्वाज द्वारा प्रचलित की गई एक ऐसी पद्धति है जो सांसारिक जीवन में रहते हुए मनुष्य अपने पूरे वर्ष के पापों को धो सकता है। मानव के लिए कल्पवास ही एक ऐसा सरल तप है जिससे वह ईश्वर की भक्ति और अनुराग प्राप्त कर सकता है, अपने वंश, परिवार की मंगल कामना कर सकता है तथा मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्त कर सकता है।
प्रयाग में कल्पवास पौष पूर्णिमा से प्रारंभ होकर माघ पूर्णिमा तक (एक माह) होता है। यद्यपि तमाम श्रद्धालु एक मास का कल्पवास न कर 15-20 दिन भी करते हैं। कल्पवास के लिए शास्त्रों में विधियां प्रतिपादित की गई हैं, लेकिन आम जनमानस कल्पवास अवधि में प्रात: ब्रह्म मुहूर्त बेला में और सायंकाल संगम में स्नान, सूर्य को प्रात:काल अर्घ्य, तुलसी के पौधों की पूजा, अल्पाहार या फलाहार, एक बार स्वयं या परिजनों द्वारा निर्मित सात्विक भोजन करते हैं। संध्या समय पूज्य संतों के दर्शन, विभिन्न पंडालों में चलने वाली भागवत कथाओं का श्रवण, यथाशक्ति संतों और गरीबों को अन्नदान, वस्त्रदान करना, रात्रि में भूमि पर शयन करना उनकी दिनचर्या में शामिल है। प्रयाग में संगम तथा इसके चतुर्दिश विद्यमान प्रमुख मंदिरों में पूजा-अर्चना के लिए वैसे तो पूरे वर्ष देश के विभिन्न प्रांतों से श्रद्धालु यहां आते हैं लेकिन माघ मास में यह संख्या करोड़ों में होती है। यही कारण है कि माघ मेले के लिए एकदम अलग प्रशासनिक व्यवस्था और सुविधाएं केन्द्र व राज्य सरकार के सहयोग से होती हंै।
इस माघ मास में आने वाले कल्पवासियों तथा श्रद्धालुओं के लिए कुल 1550 बीघे में मेला बसाया गया है। सारे श्रद्धालुओं को पेयजल तथा विद्युत आपूर्ति के लिए पूरे क्षेत्र में व्यवस्था की गई है। अधिकांश कल्पवासी तीर्थ पुरोहितों के बनाए गए शिविरों में रहते हैं। इसलिए इस वर्ष कुल 877 तीर्थ पुरोहितों को 650 बीघे की भूमि आवंटित की गई है। माघ मास के सबसे महत्वपूर्ण पर्व अमावस्या पर आने वाले करोड़ों श्रद्धालुओं को बिना असुविधा स्नान के लिए कुल 12 घाट बनाए गए हैं। आने वाले श्रद्धालुओं की सुरक्षा का जिम्मा 3000 जवानों को सौंपा गया है। -हरिमंगल
संगम स्नान की प्रमुख तिथियां
14 जनवरी
मकर संक्रांति
20 जनवरी
अमावस्या
24 जनवरी
बसंत पंचमी
3 फरवरी
माघी पूर्णिमा
17 फरवरी
महाशिवरात्रि
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