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पाञ्चजन्य के पन्नों से
विधान-सभा को बनाए रखने की मांग अनुचित किसी भी प्रकार की अनुशासनहीनता असह्य
दिल्ली। प्रदेश जनसंघ के प्रधान प्रो.बलराज मधोक ने कोटला फिरोजशाह में जनसंघ के कार्यकर्ताओं के एक सम्मेलन में भाषण करते हुए सरकार से अपील की कि 'दिल्ली के भावी ढ़ांचे का निर्णय करते समय वह उन लोगों को प्रसन्न करने का प्रयास न करे, जिनके दिल्ली विधानसभा में बने रहने में कुछ स्वार्थ उत्पन्न हो गये हैं। राज्य पुनर्गठन आयोग ने दिल्ली के विषय में जनसंघ के दृष्टिकोन की पुष्टि की है। इससे कुछ लोगों के स्वार्थ को अवश्य धक्का लगा है। वही लोग यह कह रहे हैं कि विधानसभा समाप्त करने से,राजधानी में प्रजातंत्र समाप्त हो जाएगा,मौजूदा ढांचा बनाए रखने के लिए दौड़-धूप कर रहे हैं। '
प्रो. मधोक ने आगे कहा 'असल में आयोग की रिपोर्ट से प्रजातंत्र को नहीं,कुछ अधिकार के भूखे लीडरों के स्वार्थों को हानि पहुंचने का भय अवश्य है।'
उन्होंने सुझाव देते हुए यह भी कहा कि 'यदि केन्द्रीय सरकार विधानसभा के तोड़ने से विस्थापित हुए कुछ लीडरों को सहायता देना ही चाहती हो तो रिलीफ फण्ड प्रारंभ कर दे। उस फण्ड मे सम्भव है दिल्ली की जनता चन्दा देना खुशी से स्वीकार कर ले,परन्तु आज के खर्चीले और दूहरे शासन को कदाचित स्वीकार नहीं कर सकती।'
दिल्ली का भावी नक्शा?
दिल्ली के भावी नक्शे के विषय में ठोस सुझाव देते हुए श्री मधोक ने बताया कि डा. गोकुलचंद नारंग की अध्यक्षता में जनसंघ ने एक उपसमिति नियुक्त की है जो शीघ्र ही जनता के सामने अपनी रिपोर्ट पेश करेगी। उन्होंने यह भी मांग की कि अगली रूपरेखा निश्चित करने से पूर्व सब राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों से सरकार को परामर्श लेना चाहिए।…
गोहत्या निरोध आन्दोलन के दो वर्ष: सिंहावलोकन
भोपाल, अजमेर,उत्तर प्रदेश और बिहार में कानून बने
भगवान शंकराचार्य जी ने त्रिवेणी के जिस पवित्र संगम पर वेदों का उद्धार करने की घोषणा की थी,उसी पुण्य भूमि पर माघ शुक्ल 1 सम्वत् 2010 तद्नुसार 4 फरवरी 1954 को भिन्न-भिन्न स्थानों से आए हुए महात्माओं-संन्यासियों,विद्वान ब्राह्मणों,सद् गृहस्थों तथा गोरक्षा का सिद्धान्त मानने वाले सभी पक्षों के सज्जनों द्वारा आयोजित गोहत्या निरोध सम्मेलन ने गोहत्या बन्द करने की घोषणा करके गोहत्या निरोध समिति बनाने का निश्चय किया। सम्मेलन का उद्घाटन देश के प्रसिद्ध नेता राजर्षि पुरुषोत्तमदास जी टण्डन ने किया। सरकार द्वारा जन्माष्टमी 2011 ता. 21 अगस्त 1954 तक गोहत्या बन्द न होने पर समिति को आगे कदम उठाने का अधिकार प्रदान किया गया। गोहत्या निरोध समिति के प्रधान श्री प्रभुदत्त जी ब्रह्मचारी ने जनमत जाग्रत एवं संगठित करने के लिए देशव्यापी दौरा किया। स्थान-स्थान पर गोहत्या निरोध समितियां बनीं। 225 स्थानों पर सभाएं हुईं जिनमें 10 लाख से अधिक लोगों ने भाग लिया।
सफलता का श्रीगणेश
जब सरकार ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया तब बाध्य होकर सर्वप्रथम भगवान श्री कृष्ण द्वारा पुनीत मथुरा में जन्माष्टमी,2011 से सत्याग्रह करने का निर्णय किया गया।
जनता को जानकारी तथा सही स्थिति से अवगत कराने के लिए 26 जून 1954 को मथुरा कसाईखाने के फोटो लिए गए। फोटो लेते समय 70 बैल कटे पड़े थे। बैलों के कत्ल के इस समाचार के कारण बज्र की जनता में गोरक्षा की भावना तीव्र रूप से जाग्रत हुई,नया उत्साह उत्पन्न हुआ और ब्रज के लोगों ने गोहत्या बन्द करने का निश्चय किया। सैकड़ों सत्याग्रहियों ने प्रतिज्ञा पत्र भरे। जनता के जोश तथा दृढ़ता को देखकर 13 अगस्त 1954 को स्वयं कसाइयों ने कसाईखाने में ताले लगा दिये। नगरपालिका ने प्रस्ताव द्वारा गोवंश की हत्या सम्पूर्णतया निषिद्ध कर दी। डिस्ट्रक्टि बोर्ड ने एक पुराने प्रस्ताव का आधार लेकर गोहत्या को सख्ती से रोकने की घोषणा की।
अजमेर,भोपाल तथा पंजाब – अजमेर तथा भोपाल में गोहत्या निषेध कानून बने। पंजाब के गुड़गांव जिले के मेव मुसलमानों के गांवों में नित्य पन्द्रह सौ से दो हजार गोवंश तक का कत्ल होता था। आन्दोलन के कारण पंजाब के मुख्यमंत्री ने 1872 के कानून के आधार पर डिप्टी कमिश्नर से नोटिस जारी करवाकर अस्थाई तौर पर गोहत्या बन्द की दी। किन्तु स्थाई कानून बनाने के लिए जब आन्दोलन किया गया तो पंजाब मंत्रिमण्डल ने स्थाई कानून बनाने का निश्चय गजट में प्रकाशित कर दिया। यह विधेयक विधानसभा के आगामी अधिवेशन में उपस्थित होगा। …
व्यक्तिगत रुचि-अरुचि को स्थान नहीं -श्रीगुरुजी
संघ का स्वरूप विचित्र है। इसमें कोई छोटा, कोई बड़ा नहीं है। कभी कोई बड़ा तो कभी कोई छोटा होता है। विचार उठता है मैं कौन सा काम करूं? मुझे अमुक काम में रुचि है,अमुक में नहीं। यह विचार करने में कोई आपत्ति नहीं। पूर्व काल में डाक्टर साहब के सामने भी लोग कहा करते थे,'मुझे अमुक काम में रुचि है','मैं इतना ही करूंगा'आदि-आदि। डाक्टर साहब कहते थे कि 'जितना कर सकते हो,जो कर सकते हो,वैसा ही करो। धीरे-धीरे ठीक हो जाओगे।'वे उस पर दबाव नहीं डालते थे। प्रत्येक से उसकी रुचि एवं शक्ति के अनुसार कार्य लेते थे। धीरे-धीरे उनको संगठन के लिए उपकारक बनाने का प्रयास करते थे। उन्होंने स्वयं अपने जीवन से एक आदर्श स्वयंसेवक सबके सामने उपस्थित किया और सिद्ध किया कि एक बार कार्य को जीवन अर्पित कर देने के पश्चात् अपनी रुचि-अरुचि,इच्छा-अनिक्षा को कोई स्थान नहीं। अपने द्वारा होने वाले समस्त कायोंर् का श्रेय अपनी प्रतिभा को न देकर संगठन को ही देना चाहिए। यदि किसी मनुष्य को एकाध अधिकार दिया तो संगठन की इच्छा के अनुसार उसे करना चाहिए और यही भाव लेकर चलना चाहिए कि यदि मेरी पात्रता कम हुई तो भी वह तुम्हारा ही दोष और यदि न हुई तो उससे तुम्हारा ही यश, मेरा कुछ भी नहीं।
-श्रीगुरुजी समग्र: खण्ड 2 पृष्ठ 198
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