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'सुशासन' शब्द विकास संबंधी साहित्य और चर्चाओं में आजकल बहुत चलन में है। विशेषज्ञों द्वारा इसकी अलग-अलग परिभाषाएँ दी जाती हैं। मूल रूप से सुशासन लोगों को सशक्त बनाने, सभी को न्याय दिलवाने और लोक-सेवाएँ आसानी से उपलब्ध करवाने में निहित है। इस बात पर लगभग आम सहमति है कि विरासत में मिले प्रशासन में हमने जो भी परिवर्तन किये हैं, उन्हें और आगे बढ़ाने की जरूरत है।
नीतियों और कार्यक्रमों का विश्लेषण तथा उनके प्रभावों का आकलन करने के लिये मध्यप्रदेश सरकार ने अटल बिहारी वाजपेयी सुशासन एवं नीति विश्लेषण संस्थान की स्थापना की है। यह संस्थान वैश्विक और स्थानीय, दोनों संदर्भ में सरकार के लिये वैचारिक स्रोत के रूप में कार्य कर रहा है। यह सरकार की नीतियों का बारीकी से विश्लेषण करने के अलावा संबंधित लोगों पर उनके प्रभाव का भी आकलन करता है। साथ ही लोगों की समस्याओं की पहचान कर उनके समाधान के लिये सुझाव भी देता है।
संस्थान ने अभी तक 20 से ज्यादा कार्यक्रम का अध्ययन और आकलन कर अपना प्रतिवेदन सौंपा है, जिसमें कमियों को पूरा करने के संबंध में सुझाव भी दिये गये हैं। संस्थान ने आजीविका परियोजना, पंचायत राज संस्थाओं और पदाधिकारियों के क्षमता-निर्माण, लाड़ली लक्ष्मी, तेजस्विनी ग्रामीण महिला सशक्तिकरण, जननी सुरक्षा, बलराम तालाब, सूक्ष्म सिंचाई, कपिल-धारा, राष्ट्रीय कृषि बीमा, अनुसूचित जाति-जनजाति किसानों को प्रशिक्षण, दीनदयाल अंत्योदय उपचार योजना, गरीब परिवारों के युवाओं को रोजगार संबंधी प्रशिक्षण, हरित-क्रांति जैसे कार्यक्रम का अध्ययन कर इनके निष्कषोंर् का अपने प्रतिवेदन में समावेश किया है।
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लोगों की रोजमर्रा की दिक्कतों को समझते हुए लीक से हटकर अनेक निर्णय लिये हैं। इसमें उन्होंने सूचना, संचार प्रौद्योगिकी का भी भरपूर उपयोग किया है। लोक-सेवाओं के प्रदाय की गारंटी कानून लागू किया गया है, जो एक समय-सीमा में लोक-सेवाएँ प्रदान करने की गारंटी देता है। इससे लाल फीताशाही पर प्रभावी अंकुश लगा है और शासन-प्रशासन में बैठे लोगों की 'माई-बाप' सोच पर भी प्रहार हुआ है। इस कानून को संयुक्त राष्ट्र का पुरस्कार तो मिला ही है, इसे देश के अनेक राज्यों ने लागू किया है। इस कानून में निर्धारित समय-सीमा में लोक-सेवा न देने वाले शासकीय कर्मचारी को 250 रुपये से 5000 रुपये तक का जुर्माना देना पड़ता है। यह राशि उसकी तनख्वाह में से काटकर संबंधित आवेदक को दी जाती है। अभी तक करीब 200 अधिकारी-कर्मचारियों पर लगभग 10 लाख रुपये का जुर्माना किया गया है। इस कानून में फिलहाल 21 विभाग की 102 सेवा शामिल हैं। इनमें 16 विभाग की 47 सेवा ऑनलाइन उपलब्ध हैं। अभी तक 3 करोड़ से अधिक लोग इस कानून के प्रावधानों में सेवाएँ प्राप्त कर चुके हैं। साथ ही एक करोड़ 40 लाख से अधिक आवेदन का ऑनलाइन निराकरण किया गया है।
मध्यप्रदेश सरकार ने बीते 10 साल में सूचना-संचार प्रौद्योगिकी का मजबूत बुनियादी ढाँचा खड़ा किया है। इससे मध्यप्रदेश ई-शासन में श्रेष्ठता का पर्याय बन गया है। एक तरफ जहाँ सूचना प्रौद्योगिकी समर्थित लोक-सेवाओं को बढ़ावा मिला है, वहीं सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में बड़ी मात्रा में निवेश भी आया है। सूचना-संचार प्रौद्योगिकी के उपयोग ने सरकार के चेहरे को ही बदल दिया है। इससे प्रशासन में ऐसे बदलाव आये हैं, जिनसे आम जनता को काफी राहत मिली है। इससे एक तरफ तो प्रशासन में सभी स्तर पर कार्य-कुशलता बढ़ी है, वहीं दूसरी ओर लोगों को जानकारी की कमी के कारण होने वाली परेशानियाँ काफी हद तक दूर हो सकी हैं। इस प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल से प्रशासन में पारदर्शिता आयी है और लोगों को शासन की सेवाएँ ज्यादा आसानी से मिलने लगी हैं।मध्यप्रदेश में अब 99 प्रतिशत शासकीय भुगतान इलेक्ट्रॅानिक होने लगे हैं। केन्द्र सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक एग्रीगेशन एण्ड एनेलाइजर लेयर (ई-टल) पोर्टल में इलेक्ट्रॉनिक ट्रांजेक्शन के मामले में मध्यप्रदेश को गुजरात के बाद देश में दूसरे नम्बर पर रखा है। अभी तक ई-ट्रांजेक्शन के माध्यम से 5 करोड़ 90 लाख से ज्यादा ट्रांजेक्शन किये जा चुके हैं। लगभग 5 लाख शासकीय कर्मचारियों का डाटा-बेस संधारित किया जा रहा है। शासकीय सेवकों को सभी भुगतान इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से किये जा रहे हैं। साथ ही लगभग 75 लाख वेण्डर्स को भी भुगतान ई माध्यम से किया जा रहा है। इनमें ठेकेदार, सप्लायर और गैर-शासकीय व्यक्ति शामिल हैं। अभी तक लगभग 14 लाख चेक का इलेक्टॉ्रनिक भुगतान किया गया है। प्रदेश में साइबर ट्रेजरी की लोकप्रियता भी बढ़ी है। वर्ष 2013-14 में 25 लाख 78 हजार से अधिक ट्रांजेक्शन साइबर ट्रेजरी द्वारा हुए हैं। मध्यप्रदेश ऐसा पहला राज्य है, जिसे सुशासन के लिये सूचना प्रौद्योगिकी के सफल प्रयोग पर तीन प्रधानमंत्री पुरस्कार मिले हैं। ल्ल
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