आवरण कथा - भारत को सबल होना है
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आवरण कथा – भारत को सबल होना है

by
Dec 27, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 27 Dec 2014 14:33:21

ध्वस्त विरोधी शिविर, खंडित छत्र, धरती पर लोटते हुए महारथी, भग्न रथ, दुम दबा कर भाग चुकी शत्रु सेना, लहराती विजय पताकाएं, दमादम गूंजते हुए नगाड़े, बजती हुई विजय दुंदुभी, पाञ्चजन्य का गौरव-घोष, अपने ही रक्त-स्वेद में सने कराहते हुए सेकुलर अघोरी दल। इन घटनाओं के निकट प्रत्यक्षदर्शी मीडिया को ये सब देखते और इच्छा से छोड़ते अभी कुछ ही समय बीता है। इन सबको बोलने-कोसने और हाहाकार मचाने के लिए कोई विषय नहीं मिल रहा था। अचानक आगरा ने हू-हू की सियार-ध्वनि के लिए अवसर दे दिया।
आगरा में 350 लोग मुसलमान से हिन्दू बन गए और सब पर आसमान टूट पड़ा। आइये मतान्तरण पर विचार करें। सर विद्याधर सूरज प्रसाद नायपल विश्व के महानतम लेखकों में से एक हैं। उन्हें लेखन के बुकर इत्यादि अन्य सारे बड़े पुरस्कारों के साथ नोबेल पुरस्कार भी मिला है। वो 1954 से लिख रहे हैं। एक पाकिस्तानी मुस्लिम महिला नादिरा जी से विवाहित हैं। भारत के नहीं हैं और उन्हें किसी भी तरह सांप्रदायिक हिन्दू नहीं कहा जा सकता। उनकी भारत पर तीन पुस्तकों में से एक कल्ल्रिं : अ हङ्म४ल्लिीि उ्र५्र'्र९ं३्रङ्मल्ल 'भारत एक आहत सभ्यता', एक चर्चित किताब है। वो उस किताब में लिखते हैं, 'कहा जाता है कि सत्रह बरस के एक बालक के नेतृत्व में अरबों ने भारतीय राज्य को रौंदा था। सिंध आज भारत का हिस्सा नहीं है, उस अरब आक्रमण के बाद से भारत सिमट गया है। अन्य कोई भी सभ्यता ऐसी नहीं जिसने बाहरी दुनिया से निपटने के लिए इतनी कम तैयारी रखी हो, कोई अन्य देश इतनी आसानी से हमले और लूट-पाट का शिकार नहीं हुआ, शायद ही ऐसा कोई देश और होगा जिसने अपनी बर्बादियों से इतना कम सीखा होगा।' वो इसी किताब में इंडोनेशिया के बारे में कहते हैं 'मुझे ऐसे लोग मिले जो इस्लाम और प्रोद्योगिकी के समागम के द्वारा अपना इतिहास खो चुके थे'। पाकिस्तान के बारे में सर नायपल बताते हैं 'पाकिस्तान से अधिक किसी भी देश में इतिहास को एक सांस्कृतिक रेगिस्तान में नहीं बदला गया।' ये सारे शब्द बहुत महत्वपूर्ण हैं। 'भारत का सिमट जाना, इस्लाम द्वारा इतिहास खो जाना, सांस्कृतिक रेगिस्तान' ये शब्दावली कैंसर के फोड़े का फट जाना नहीं बल्कि विस्फोट हो जाना है। कोई भी देश अपने राष्ट्र द्वारा ही रक्षित होता है। चीन की रक्षा चीनी लोग ही करते हैं। जापान की रक्षा जापानी लोग ही करते हैं। रूस की रक्षा रूसी लोग ही करते हैं। इसी तरह भारत की रक्षा भारतीयों का कर्तव्य है। तो इस आगरा पर हू-हू की सियार-ध्वनि को क्या समझा जाये? भारत से अधिक इस्लाम के जघन्य हत्याकांडों का और कौन शिकार बना है? भारत से अधिक किस देश के लाखों लोग गुलाम बना कर बाजारों में बेचे गए? सदियों तक महिलाओं की लूट और उन पर नृशंस बलात्कारों की आंधी भारत से अधिक किस देश में चली? भारत के अतिरिक्त किस देश के पूजा-स्थल सदियों तक तोड़े गए? और भारत के अतिरिक्त और कौन सा देश है जहां के निवासी इन सब अत्याचारों को सदियों झेलने के बाद भी 'ईश्वर अल्ला तेरो नाम' हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई-आपस में सब भाई-भाई का गाना मय-हारमोनियम-तबले-खड़ताल-मंजीरे के पूरी तन्मयता से गाते हों?
सर नायपल ने बिलकुल सही कहा है 'भारत के अतिरिक्त अन्य कोई भी सभ्यता ऐसी नहीं जिसने बाहरी दुनिया से निपटने के लिए इतनी कम तैयारी रखी हो, या कोई अन्य देश इतनी आसानी से हमले और लूट-पाट का शिकार नहीं हुआ, शायद ही ऐसा कोई देश और होगा जिसने अपनी बर्बादियों से इतना कम सीखा होगा' हैदराबाद, मुरादाबाद, अलीगढ़, रामपुर, बरेली, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, मेरठ में आये दिन सांप्रदायिक तनाव क्यों होता है? क्यों वो तनाव नैनीताल, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, टिहरी, पौड़ी जिलों में नहीं होता? क्यों दंगा अथवा साम्प्रदायिक तनाव उन स्थलों पर नहीं होता जहां मुसलमान बहुत कम संख्या में हैं? क्या हिंदू इतने भोले हैं कि उस क्षेत्र के मुस्लिम बहुल होने के कारण होने वाले खतरों को नहीं समझते ?
अभी इराक से लौटे अरीब के सम्बन्ध में जो जानकारियां अखबारों से मिल रही हैं उनमें यह भी है कि, बंगलौर में किसी आई टी कंपनी में काम करने वाला मेहंदी मसरूर बिस्वास ट्विटर के माध्यम से सारी दुनिया में आई.एस.आई.एस. के लिए अभियान चलाता है और हर महीने बीस लाख लोग उसका ट्विटर पढ़ते हैं। उसके जहरीले ट्विटर संदेशों के समर्थन में भी हजारों सन्देश आते हैं। वंदेमातरम् के रचयिता बंकिम चंद्र, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, काजी नजरुल इस्लाम के बंगाल का ही मेहंदी मसरूर बिस्वास और उसके समर्थन में हजारों सन्देश भेजने वाले ये लोग कौन हैं? कैसे ऋषियों की परंपरा के लोग, आयोंर् की संतानें अपने ही समाज, अपने ही देश, अपने ही राष्ट्र की विरोधी हो गयीं?
मित्रो! यह कोई नई बात नहीं है। भारत पर आक्रमण करने वाले सबसे दुष्ट हमलावरों में से प्रमुख नाम अहमद शाह अब्दाली का है। मित्रो ! वह भारत पर आक्रमण करने स्वयं ही नहीं आया था। उसे दिल्ली के शाह वलीउल्लाह (1703-1762) ने यह कहकर बुलाया था कि आओ और काफिरों की शक्ति को खत्म करो, हिन्दुस्तान के मुसलमान तुम्हारा साथ देंगे। विचारणीय है कि वलीउल्लाह ने भारत के मुसलमानों की तरफ से देश का विरोध करने के लिए कैसे अहमदशाह अब्दाली को आश्वस्त किया? उसे कैसे हर मुसलमान की या बहुसंख्य मुसलमानों की मानसिक स्थिति का ज्ञान था? क्या इस्लाम में कुछ ऐसा है जो मुसलमानों को अराष्ट्रीय बनाता है? बल्कान, तुर्की, अफगानिस्तान, चीन के सिंक्यांग प्रान्त, इराक, सीरिया, कश्मीर की लड़ाई में विश्व के अनेकों देशों के मुसलमानों की भागीदारी से स्पष्ट हो ही जाता है कि इस्लाम में वाकई कुछ ऐसा है जो मुसलमानों को अराष्ट्रीय बनाता है।
यहां कुछ सामायिक प्रश्न मेरे मन में उठ रहे हैं। मैं उन्हें आप तक पहुंचाना चाहता हूं। लौकिक संस्कृत का शब्दश: 'परफैक्ट' व्याकरण लिखने वाले पाणिनि का गांधार तालिबान का अफगानिस्तान किस कारण बना? पाकिस्तान का रावलपिंडी यह नाम स्वयं कहानी कह रहा है जनपद, जहां का तक्षशिला विश्वविद्यालय संसार का पहला विश्वविद्यालय था, जहां आचार्य कौटिल्य, आचार्य जीवक जैसे लोग बेबीलोन, ग्रीस, सीरिया, चीन इत्यादि देशों से आये 10,500 छात्रों को वेद, भाषा, व्याकरण, दर्शन शास्त्र, औषध विज्ञान, शल्य चिकित्सा, धनुर्विद्या, राजनीति, युद्घशास्त्र, खगोल विद्या, अंकगणित, संगीत, नृत्य इत्यादि विषयों की शिक्षा देते थे, रूप बदलकर जमातुद्दावा, हरकत उल-अंसार का पाकिस्तान कैसे और क्यों बन गया? बंगाल बंगलादेश के नाम से विहित और सबको अपनी शीतल छांव देने वाली ढाकेश्वरी मां का धाम ढाका उसके उपासकों के शत्रुओं का घर कैसे बन गया? इराक और सीरिया में फैले गरुड़ की उपासना करने वाले, यज्ञ करने वाले मूर्ति-पूजक यजदी नमाज भी पढ़ने वाले यजीदी बनने पर क्यों विवश हो गए? क्यों आई.एस.आई.एस. के लोग उनका समूल-संहार कर रहे हैं? बल्कि सदियों से क्यों उनका संहार किया जाता रहा है?
सऊदी अरब, ईरान, इराक, कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, आइजरबैजान जैसे अनेकों देशों में भग्न मंदिर, यज्ञशालाएं किसकी हैं और उन्हें किसने बनाया था? वो भग्न कैसे हो गयीं? उन्हें बनाने वाले, वहां उपासना करने वाले लोग कहां गए? कश्मीर जो तंत्र के आचायोंर् का क्षेत्र था, जहां तंत्र-कुल के लोग आज भी अपने नाम के आगे कौल लगाते हैं तंत्र-विहीन, कुल-विहीन कैसे हो गया? क्यों इन सारे क्षेत्र के लोगों में अपनी परंपरा, अपने कुल के प्रति द्वेष पैदा हो गया? अपने पूर्वजों, परम्पराओं, इतिहास के प्रति घृणा अर्थात आत्मघाती प्रवृत्ति कोई सामान्य बात नहीं है। वह एक दो लोगों में नहीं बल्कि पूरे समाज में कैसे जन्मी? कैसे इन क्षेत्रों के लोगों में एक ऐसे उत्स जिसकी भाषा भी वे नहीं जानते के प्रति लगाव कैसे जाग गया? इन भिन्न-भिन्न देशों, भिन्न-भिन्न संस्कृतियों के लोगों ने एक ऐसी विदेशी आस्था, जिसने उनके पूर्वजों को भयानक पीड़ा दी, को स्वीकार क्यों किया? इन देशों, समाजों के लोग अपने पूर्वजों की जगह अरब मूल से स्वयं को क्यों जोड़ने लगे?
इन सारे प्रश्नों का केवल एक ही उत्तर है कि वहां के हिंदू मतान्तरित होकर मुसलमान हो गए। इन ऐतिहासिक घटनाओं की तार्किक निष्पत्ति है कि 'हिन्दुओं का मतान्तरण राष्ट्रांतरण है'। हिन्दुओं से किसी अन्य मत में स्थानांतरण राष्ट्रांतरण होता है और अन्य मतों से प्रति-मतान्तरण राष्ट्र और देश को मजबूत करता है। हिन्दुओं का सबल होना भारत का सबल होना है। हिंदुओं की स्थिति का दुर्बल होना भारत को दुर्बल करता है। तो साहब देशभक्त इसे कैसे स्वीकार करें? देश के शरीर पर निकलते जा रहे फोड़ों का इलाज क्यों नहीं करें? इनका इलाज आगरा में हो रही घर-वापसी नहीं है तो क्या है? ऐसे किसी भी कार्य का विरोध तो होगा ही होगा। 350 की संख्या उल्लेखनीय है मगर हमें तो करोड़ों की संख्या का मानस बदलना है। अनेकों देशों में भूले-बिसरे, छूट गए बंधुओं की सुधि लेनी है।
हर मुहम्मद अली जिन्नाह को उसके हिन्दू दादा पुंजा भाई से मिलाना है। हर मुहम्मद इकबाल को उसके कश्मीरी हिंदू परदादा पर गर्व करने तक पहुंचाना है। हर नवाज शरीफ को उसके तीन पीढ़ी पहले के अनंतनाग में रहने वाले हिंदू पूर्वजों से जोड़ना है। हर उमर अब्दुल्लाह को उसके कौल पूर्वजों की पंक्ति में बैठाना है। हर जैक्सन को वापस जय किशन में बदलना है। हर रेम्बुल में रामबली की मानसिकता सुनिश्चित करनी है अत: इस हू-हू की सियार-ध्वनि की बिल्कुल चिंता नहीं करनी। यह तो तब तक होती ही रहेगी जब तक इस रोग की राष्ट्र के अनुकूल सर्वतोभावेन चिकित्सा नहीं हो जाती।
आखिर जिस प्रक्रिया के कारण अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बंगलादेश भारत से अलग हुए थे, उसी प्रक्रिया को उलटने से ही तो वापस आएंगे। और इस बार पूरे समाज को बाहें फैलाकर बिछड़े बंधुओं को सीने से लगाना है और भारत को तोड़ने वालों की अक्ल ठिकाने लगानी है। -तुफैल चतुर्वेदी
मोबाइल नं. 9711296239

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