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प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार के कूटनीतिक कौशल के परिणामस्वरूप विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में भारत के किसानों और गरीबों के हितों की बड़ी जीत हुई है। डब्ल्यूटीओ की महासभा ने गत 27 नवंबर को खाद्य सुरक्षा कार्यक्रमों के लिए 'पब्लिक स्टॉक होल्डिंग' के संबंध में एक अहम निर्णय किया है जिसके बाद भारत में गरीबों के लिए खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम और किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर मंडरा रहा संकट टल गया है।
भारत अब डब्ल्यूटीओे के सदस्य देशों के दखल के बगैर गरीबों को सस्ता अनाज देता रहेगा और किसानों को उनकी उपज के लिए उचित एमएसपी मुहैया कराएगा। 2013 में तत्कालीन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के कार्यकाल में डब्ल्यूटीओ की बाली मंत्रिस्तरीय वार्ता में बनी सहमति के बाद भारत जैसे विकासशील देशों के खाद्य सुरक्षा कार्यक्रमों के लिए अनाज के भंडारण और एमएसपी की व्यवस्था पर अनिश्चितता के बादल मंडराने लगे थे। राजग की सरकार ने 26 मई, 2014 को सत्ता में आने के बाद जुलाई में ही डब्ल्यूटीओ को साफ बता दिया कि भारत गरीबों की खाद्य सुरक्षा और किसानों के लिए एमएसपी के मुद्दे पर कोई समझौता स्वीकार नहीं करेगा।
राजग सरकार ने कहा कि बाली मंत्रिस्तरीय वार्ता का कोई भी फैसला लागू होने से पहले खाद्य सुरक्षा के सम्बंध में 'पब्लिक स्टॉक होल्डिंग' के मुद्दे का स्थाई समाधान निकाला जाए। भारत ने अपनी नाराजगी जताते हुए डब्ल्यूटीओ के व्यापार सरलीकरण समझौते पर हस्ताक्षर करने से भी मना कर दिया था जिस पर 31 जुलाई, 2014 तक हस्ताक्षर होने थे।
दरअसल विकसित देश विकासशील देशों के बाजार में अपना व्यापार बढ़ाने के लिए खाद्य छूट में कटौती की वकालत कर रहे हैं। भारत ने इस कटौती का यह कहकर विरोध किया कि खाद्य छूट में कटौती से लघु और सीमांत किसानों तथा गरीबों के हितों को चोट पहुंचेगी। गरीबों और किसानों को बड़ा नुकसान होगा। असल में कृषि पर विश्व व्यापार संगठन के समझौते के तहत विकासशील देशों को कृषि क्षेत्र में घरेलू मदद घटाकर कुल उत्पादन की 10 प्रतिशत करनी है। उत्पादन का आधार 1987-88 के मूल्य स्तर को माना गया है, जो अब काफी पुराना हो गया है। विकसित देशों के लिए यह सीमा 5 प्रतिशत थी। विकसित देश इसमें गरीबों के लिए चलायी जाने वाली खाद्य सुरक्षा योजना की छूट को शामिल करने तथा सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत होने वाले खाद्यान्न भंडारण की सीमा तय करने का दबाव बना रहे हैं।
विकसित देशों की दलील है कि छूट देकर न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कृषि उत्पादों के खरीदने और पीडीएस में सस्ती दर पर बेचने से बाजार में विसंगति पैदा होती है। भारत अगर इस प्रस्ताव को मान लेता तो 2017 के बाद गरीबों को सस्ता अनाज बांटने और किसानों को एमएसपी देने की व्यवस्था को जारी रखने पर अनिश्चितता के बादल मंडरा जाते। कृषि फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय नहीं हो पाता। पीडीएस के लिए अनाज भंडारण करना भी संभव नहीं होता। भारत के लिए खाद्य छूट के महत्व का अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि भारत फिलहाल गेंहू और धान सहित डेढ़ दर्जन फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य देता है । साथ ही पीडीएस के तहत गरीबों को बांटने के लिए हर साल लगभग 6 करोड़ टन अनाज का भंडारण करता है।
यही वजह है कि राजग सरकार ने इस मुद्दे पर सख्त रुख अपनाया। अब डब्ल्यूटीओ की महासभा ने यह निर्णय कर स्पष्ट कर दिया है कि अगर 2017 तक 'पब्लिक स्टॉक होल्डिंग'के मुद्दे पर कोई समाधान नहीं भी निकलता है तो डब्ल्यूटीओ का कोई सदस्य देश भारत के खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम को चुनौती नहीं दे सकेगा। इस तरह हमारे गरीबों के लिए खाद्य सुरक्षा और लघु व सीमांत किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की नीति को जारी रखने पर अब कोई खतरा नहीं होगा। इससे भारत की तरह के कई अन्य देशों को भी लाभ होगा। भारत को अनिश्चितकालीन छूट मिलने से डब्ल्यूटीओ के सदस्यों पर इस मुद्दे का शीघ्र ही स्थाई हल निकालने का दबाव भी बना रहेगा। वहीं भारत को जल्दबाजी में कोई समझौता स्वीकार करने को मजबूर भी नहीं होना पड़ेगा। डब्ल्यूटीओ सदस्यों को 31 दिसंबर, 2015 तक खाद्य सुरक्षा के लिए 'पब्लिक होल्डिंग' का स्थाई हल निकालने के प्रयास करने होंगे। डब्ल्यूटीओ के संबंधित प्रावधानों के अनुसार महासभा के इन निर्णयों की वैधानिक स्थिति मंत्रिस्तरीय बैठक के निर्णयों के बराबर है। इस तरह यह भारत के गरीबों और किसानों के हितों की बड़ी जीत है।
इस जीत की भूमिका उसी समय तैयार हो गई थी जब भारत ने जुलाई में डब्ल्यूटीओ के व्यापार सरलीकरण समझौते पर आम राय में शामिल होने से मना कर दिया था। उस समय उदारवादी नीतियों के कथित समर्थकों ने भारत के इस रुख की काफी आलोचना की थी। भारत पर मुक्त व्यापार की राह में रोड़ा अटकाने के आरोप भी लगे, लेकिन राजग सरकार इन आरोपों से बेपरवाह किसानों और गरीबों के हितों पर अडिग रही। बीते चार महीनों में भारत विश्व के धनी देशों को अपनी इस उचित चिंता के बारे में समझाने में कामयाब रहा। अमरीका ने भी भारत की चिंता को सही ठहराया और उसका हल निकालने पर सहमति जताई। सितंबर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अमरीकी यात्रा और उसके बाद 12 नवंबर को म्यांमार में अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से उनकी मुलाकात के बाद अमरीका इस मुद्दे पर भारत के सुर में सुर मिलाने लगा था। इस तरह राजग सरकार के कूटनीतिक कौशल और प्रभावी नेतृत्व के प्रयासों से हमारी खाद्य सुरक्षा और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर मंडराया संकट टल गया। -श्रीकांत शर्मा
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