चीन से सावधान रहने की आवश्यकता
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चीन से सावधान रहने की आवश्यकता

by
Dec 6, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 06 Dec 2014 15:38:22

वर्ष पाञ्चजन्य के पन्नों से
वर्ष: 9 अंक: 27
16 जनवरी,1955

सरसंघचालक श्री गुरुजी की सामयिक चेतावनी
रायपुर। 'जिस चीन के बारे में प्रधानमंत्री नेहरू बड़े उत्साही हैं और किसी भी हालत में जिसकी मित्रता छोड़ने के लिए तैयार नहीं, उसी चीन ने तिब्बत को हड़प लिया और हमारी एक न सुनी। … ये चेतावनीपूर्ण शब्द राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री गुरुजी ने एक शिविर के समारोह भाषण में कहे।
दिनांक 7 को स्वयंसेवकों के सामने बौद्धिक वर्ग में प.पू. गुरुजी ने संघ के कार्य का दृष्टिकोण रखा। आपने कहा कि यद्यपि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्य परिस्थिति निरपेक्ष है- किसी बाह्य परिस्थिति से प्रेरणा लेकर वह कार्य नहीं करता- फिर भी यदि बाह्य परिस्थितियों का अवलोकन किया ही जाए तो भी आज हिन्दू समाज के चारों तरफ संकट ही संकट है। मुसलमानों का संकट देश के विभाजन के बाद दूर हो गया है, इस धारणा को भ्रमपूर्ण बताते हुए आपने कहा कि उस समाज ने अभी तक हिन्दुओं के प्रति अपनी शत्रुता की भावना नहीं छोड़ी है। इस देश में आज भी उनकी गुप्त कार्यवाहियां चलती ही रहती हैं। केवल किन्हीं स्थानों पर उसका नाम बदला है और दक्षिण में तो उसी नाम से जिस नाम के साथ मातृभूमि के विभाजन के पापपूर्ण इतिहास का अमिट संबंध है अर्थात मुस्लिम लीग, इसी नाम से उनकी कार्यवाहियां चल रही हैं। आज का सर्वाधिक लोकप्रिय और शत्तारूढ़ दल उनकी राष्ट्रविरोधी हरकतों के सामने घुटने टेकने की अपनी आदत को छोड़ नहीं रहा है जबकि वह समाज केवल एक उपयुक्त अवसर की बाट देख रहा है जिसका लाभ उठाकर वह इस देश के और अधिक भूभाग पर अधिकार करना चाहता है। इसी प्रकार ईसाई समाज के कार्यकलाप भी कुछ कम राष्ट्रविरोधी नहीं हैं। संगठित हिन्दू समाज ही इन संकटों का सामना कर सकता है।
भावात्मक दृष्टिकोण
संघ के भावात्मक दृष्टिकोण को स्वयंसेवकों के सामने रखते हुए उन्होंने कहा कि, हमारा काम परिस्थितियों के आधार पर नहीं चलता है। समाज को सुसंगठित, बलवान, अनुशासनबद्ध और चारित्र्य सम्पन्न ही रहना चाहिए, इसीलिए हम काम करते हैं ताकि बाह्य परिस्थिति यदि विकट हो तो हम उससे टक्कर ले सकें और अनुकूल हो तो उसका लाभ उठा सकें- सुख के समय सुख का उपयोग कर सकें- दु:ख के समय उसका निवारण कर सकें- ऐश्वर्य की रक्षा कर सकें। श्री गुरुजी ने कहा कि अपने समाज के घटक इस नाते इसे छिन्न-भिन्न न कर दें यही हमारा कर्तव्य है- इसका असंगठित स्थिति में रहना हमारी चैतन्यता का अपमान है। जिस समाज के कारण हमें व्यक्तिगत और पारिवारिक सुख प्राप्त होते हैं- विद्या और कला की उपासना के अवसर मिलते हैं और परम्परा के रूप में पूर्वजों के गौरवमय आदर्श प्राप्त होते हैं, उस समाज की सेवा कर उसके ऋण को उतारना यह हमारा स्वाभाविक कर्तव्य है। भारत मां के प्रति, धर्म के प्रति और इस हिन्दू राष्ट्र के प्रति श्रद्धा को जागृत कर समाज को सुसूत्र एवं संगठित, अनुशासनबद्ध एवं बल संपन्न बनाना यह हमारे जीवन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य हैं- यही धारणा लेकर हमें चलना है। हिन्दू समाज के ऋषि मुनियों द्वारा वर्णित श्रेष्ठ सद्गुणों को अपने जीवन में उतारते हुए, तथा उसके कारण निर्मित अपने श्रेष्ठ व्यक्तिगत चारित्र्य का उपयोग राष्ट्र को तेजमय-अमृतमय-ज्ञानमय बनाने में करें यही अपना मार्ग है।
चीन की मित्रता भ्रामक
शिविर के सार्वजनिक समारोह के अवसर पर लगभग 1500 नागरिकों और स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए श्री गुरुजी ने आज की सारी परिस्थिति का विश्लेषण करते हुए चेतावनी दी कि केवल मित्रता और पंचशील के नारों में हमें नहीं भूलना है। जिस चीन के बार में प्रधानमंत्री श्री नेहरू बड़े उत्साही हैं और किसी भी हालत में उसकी मित्रता को नहीं छोड़ने की घोषणाएं किया करते हैं उस चीन ने तिब्बत को हड़प लिया। हमारे विरोध पर उसे अपना घरेलू मामला बनाया। नेपाल के विद्रोही डा. के. आई. सिंह को आश्रय दिया- भारत के बड़े-बड़े भूभागों को वह चीन को सीमा में दिखाता है- क्या यह मित्रता के लक्षण हैं?…

उ.प्र. सरकार की शाहखर्ची
5 विमान : 19 नई कारें : लाखों का अपव्यय जनहित या मंत्री हित?
लखनऊ। 'समाजवादी ढंग की समाज व्यवस्था' के निर्माण का नारा लगाने वाली कांग्रेस सरकार उस धन का किस प्रकार अपव्यय करती है और जनहित के बजाय मंत्री हित की लम्बी चौड़ी योजनाएं बनाती है इसके नित्य नूतन उदाहरण सामने आते रहते हैं।
पता चला है कि उत्तर प्रदेश सरकार मंत्रियों तथा उपमंत्रियों आदि के मनोरंजन तथा सुख सुविधा के लिए 6 लाख रुपए का एक विमान खरीदने के लिए तैयारी कर रही है। स्मरण रहे कि राज्य सरकार के पास पहले से ही सरकारी काम के लिए चार विमान हैं। इसके अलावा हिन्द हवाई क्लब के विमानों का तो सरकार उपयोग कर ही सकती है।
बताया जाता है कि उपर्युक्त नये विमान में सभी प्रकार की आधुनिक सुख-सुविधा व्यवस्था रहेगी।
प्रश्न उठता है कि जनहित की बर्बादी की इस प्रकार नयी-नयी योजनाएं हाथ में लेना ही क्या समाजवादी ढंग की समाज व्यवस्था का लक्षण है?
यह भी पता चला है कि गत पांच वर्षों में राज्य सरकार ने मंत्रियों आदि के लिए 19 नई कारें खरीदीं जिन पर 5 लाख रुपए खर्च हुए। मंत्रियों की कारों की मरम्मत, पेट्रोल तथा अन्य आवश्यक बातों पर 1 अप्रैल 1951 से 30 सितम्बर 1955 तक 1,52,191 रु. 10 आ. 6 पा. व्यय हुए।
इतना ही नहीं तो मंत्रियों, उपमंत्रियों तथा सभासचिवों के वेतन और भत्तों संबंधी विधेयक के अन्तर्गत और अधिक सुविधाओं की सिफारिश की गई है। इसकी आलोचना राज्य विधानसभा में हो चुकी है। .
क्या उपर्युक्त तथ्य तथा आंकड़े यह सिद्ध नहीं करते कि गांधीजी के रामराज्य की दुहाई देने वाला कांग्रेस शासन वस्तुत: नवाबों और सामंतों की शाहखर्ची को भी मात करने वाला है।
जहां जनता रोटी-कपड़े की भी मोहताज हो और उसके प्रतिनिधि कहलाने वाले मंत्रिगण मोटरकारों तथा हवाई जहाजों पर सैरसपाटा करने में लाखों रुपया उड़ा दें वहां क्या होगा कहने की आवश्यकता नहीं। क्या हमारे यहां भी आज वैसी ही स्थिति नहीं है जैसी रोम में उस समय थी जब नगर जल रहा था और नीरो आमोद-प्रमोद में मस्त था।…

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