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विजय कुमार
चिरदुखी शर्मा जी इन दिनों कुछ ज्यादा ही दुखी थे। आंखें सूजने के कारण उनका दुख स्पंज की तरह शरीर के हर अंग से टपक रहा था। रक्तचाप सोने और चांदी के दामों की तरह गिर रहा था। दिल की धड़कन मुंबई के स्टॉक एक्सचेंज की तरह चढ़ रही थी।
तुलसी बाबा ने कहा है – धीरज धर्म मित्र अरु नारी, आपत काल परखिये चारी। अत: एक दिन मैंने उनके घर जाकर धरना ही दे दिया। मैंने उन्हें साफ-साफ बता दिया कि यदि वे अपना दुख मुझे नहीं बताएंगे, तो मैं हटूंगा नहीं; चाहे चाय-नाश्ते और भोजन के बाद सोना भी यहीं पड़े।
मैंने दिन भर में कई बार प्रयास किया; पर वे गुमसुम ही रहे। लेकिन शाम को चाय पीते हुए उनका दुख पिघलने लगा – वर्मा जी, यदि ऐसे ही चलता रहा, तो हमारे प्यारे देश का क्या होगा ?
– क्यों, क्या हुआ शर्मा जी; मुझे तो कोई संकट दिखायी नहीं दे रहा। पाकिस्तान और बंगलादेश अपनी घरेलू समस्याओं में फंसे हैं, और चीन को भी नयी सरकार ने कुछ नियन्त्रित किया तो है।
– तुम्हें तो बस चीन, पाकिस्तान और बंगलादेश ही दिखायी दे रहे हैं। मैं बाहर की नहीं, अंदर की बात कर रहा हूं।
– अंदर भी काफी कुछ ठीक है। काले धन के मोर्चे पर कुछ परेशानी जरूर है; पर बाकी सब काम ठीक चल रहे हैं। डीजल और पेट्रोल के दाम घटने से महंगाई की नाक में भी नकेल पड़ गयी है। अब तो नये मंत्री भी बन गये हैं, उनमें से अधिकांश बहुत योग्य हैं।
– वर्मा जी, मैं कांग्रेस की बात कर रहा हूं। जिस महान संस्था ने देश को आधा दर्जन प्रधानमंत्री दिये, उसका यह हाल।
– शर्मा जी, व्यक्ति हो या संस्था, जन्म लेने वाले की मृत्यु निश्चित है। यदि कांग्रेस मर रही है, तो इसे नियति का खेल मानकर श्मशान की तैयारी करो। कहो तो लकड़ी की व्यवस्था मैं करवा दूं ?
यह सुनकर शर्मा जी भड़क गये – बेकार की बात मत करो वर्मा। तुम मेरा दुख घटाने आये हो या बढ़ाने ?
– शर्मा जी, संतों ने कहा है कि वास्तविकता को स्वीकार कर लेने से दुख बढ़ता नहीं, घटता ही है।
– लेकिन मैं चाहता हूं कि हमारी पार्टी फले और फूले। मैडम जी तो बीमार रहती हैं। अब हमें राहुल बाबा से बहुत आशा है।
– पर राहुल बाबा तो अपनी निष्क्रियता और गलत निर्णयों से मोदी के 'कांग्रेसमुक्त भारत' अभियान में योगदान दे रहे हैं। इसी कारण संसद में उन्हें विपक्ष का स्थान तक नहीं मिला और महाराष्ट्र तथा हरियाणा में वे तीसरे नंबर पर जा पहुंचे हैं।
– वर्मा जी, मेरा दिल मत दुखाओ और ये बताओ कि अवसाद में डूबी कांग्रेस पार्टी को किस वैद्य की दवा दें, जिससे सत्ता की मंडी में फिर से हमारी जय-जयकार होने लगे? अपने वोट प्रतिशत में लगातार हो रही गिरावट को देखकर हम सब बहुत चिंतित हैं।
नये लोग जुड़ नहीं रहे, और पुराने लोग छोड़कर जा रहे हैं। यदि ऐसा ही रहा, तो दूरबीन लगाकर कांग्रेस और कांग्रेसियों को ढूंढना पड़ेगा।
– इसके लिए कांग्रेस वालों को मिल बैठकर चिंतन, मनन और मंथन करना होगा। सब दल के लोग ऐसा करते हैं।
– हमारे दल में भी लगातार ऐसा हो रहा है। लोकसभा चुनाव के बाद एक बड़ी बैठक हुई थी। उसमें यह विचार हुआ कि पार्टी अब बहुत पुरानी हो गयी है। इसलिए इसके मूल सिद्घांत और कार्यक्रम बदलने चाहिए।
इसके लिए इटली के एक एनज़ी़ओ. को ठेका भी दिया गया था। महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा के चुनावों में हुई फजीहत के बाद दूसरी महत्वपूर्ण बैठक हुई। वह पहली बैठक से भी अधिक बड़ी थी। उसमें इटली वाले एनज़ी़ओ. के मुखिया भी आये थे। उनकी रपट के आधार पर उस बैठक में सर्वसम्मति से यह निर्णय हुआ कि भविष्य में पार्टी में क्या-क्या परिवर्तन किये जाएंगे।
– पर शर्मा जी, यह निर्णय और परिवर्तन लागू कब होंगे ?
– इसका पता तो राहुल बाबा को ही होगा। क्योंकि आजकल कांग्रेस में 'पीर बावर्ची भिश्ती खर' वे ही हैं।
– पर शर्मा जी, मुझे इसका पता है।
– अच्छा, तो बताओ ये शुभ परिवर्तन कब होंगे?
– दिल्ली, झारखंड और जम्मू-कश्मीर में चुनाव हारने के बाद।
शर्मा जी ने अपना माथा पकड़ लिया। उनका दुख एक बार फिर छलछलाने लगा। ल्ल
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