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मुजफ्फर हुसैन
महाराष्ट्र वासियों के लिए फरीद जकरिया कोई नया नाम नहीं हैं, क्योंकि वे रफीक जकरिया के पुत्र हैं। रफीक जकरिया महाराष्ट्र में वषोंर् तक औरंगाबाद से चुनाव लड़ते रहे हैं और महाराष्ट्र विधानसभा में पहुंचकर वरिष्ठ मंत्री के रूप में अपनी सेवाएं भी देते रहे। पाठकों को भली प्रकार याद होगा कि फरीद जकरिया की माताश्री फातिमा जकरिया खुशवंत सिंह के समय इलेस्ट्रेड वीकली के सम्पादकीय विभाग में काम करती रही हैं। इसलिए यह कहना अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगा कि पत्रकारिता उनकी धड़कनों में है। फरीद जकरिया लम्बे समय तक अमरीका के प्रसिद्ध साप्ताहिक न्यूज वीक के वरिष्ठ सम्पादक के रूप में भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं। इस समय वे सीएनएन इंटरनेशनल न्यूज चैनल से जुड़े हुए हैं। एक भारतीय होने के नाते वे भारत की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति से भली प्रकार परिचित हैं। कुछ समय पूर्व अपने चैनल पर भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से भी उनकी बातचीत हुई। जकरिया को दिए गए एक साक्षात्कार में जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से अलकायदा के सरगना एमन अलजवाहिरी जो स्वयं को ओसामा बिन लादेन का उत्तराधिकारी मानते हैं की आतंकी शाखा खोलने की घोषणा के बारे में प्रश्न पूछा तो भारत के प्रधानमंत्री ने दो टूक शब्दों में कहा कि आतंकी संगठन और इस्लामी स्टेट की मंशा पालने वाले कट्टरपंथी गुटों को यह भ्रम नहीं पालना चाहिए कि भारतीय मुसलमान उनके कहने में आकर उनके इशारों पर नाचने लग जाएगा। यदि उनके मन में ऐसी बात है तो फिर यह मानकर चलिए कि वे भारतीय मुसलमानों को नहीं पहचानते हैं। वे नहीं जानते हैं कि भारतीय मुसलमान अपने देश पर किस तरह से जान न्योछावर करने के लिए तैयार रहता है। भारत के विषय में यदि उन्हें तनिक भी जानकारी हो तो इतिहास के पन्ने पलटकर देख लें कि स्वतंत्रता आन्दोलन हिन्दू और मुसलमान दोनों ने मिलकर धर्म के रूप में नहीं बल्कि वतनियत (राष्ट्रीयता) के आधार पर लड़ा है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपने प्राण न्योछावर करने वाले मुसलमानों के नाम संभवत: जवाहिरी और उनकी टोली को पता नहीं हैं। भारत में ही जब पाकिस्तान की मांग उठी तो उसका विरोध करने वाले खान अब्दुल गफ्फार खान और अबुल कलाम आजाद कौन थे? इसकी जानकारी उन्हें प्राप्त कर लेनी चाहिए। भारत में यदि बहादुरशाह जफर नहीं होते तो हमारा यह स्वतंत्रता संग्राम अधूरा ही रहता। ऐसी ऊटपटांग बात वही कर सकता है जिसे भारत का इतिहास पता नहीं है। मोदी ने उन्हें लताड़ते हुए कहा कि पाकिस्तान बार-बार हम पर चढ़ाई करता रहा लेकिन हिन्दुओं के साथ भारतीय मुसलमानों ने उन दुश्मनों को ऐसा करारा जवाब दिया कि उनके दांत खट्टे हो गए। इसलिए कोई भी यदि भारतीय मुसलमानों का मूल्यांकन करने में असमर्थ है तो वह इस प्रकार की मनगढ़ंत बातें कर सकता है।
मोदी के इस बयान के बाद एक बात स्पष्ट हो जाती है कि उनके दिलो दिमाग में मुसलमानों के लिए कोई भ्रम अथवा कड़वापन नहीं है। भारत का मुसलमान राष्ट्र भक्त है और वह अपने देश के लिए जिएगा और देश के लिए मरेगा। भारतीय मुसलमान न तो अपने देश की सीमाओं के लिए और न ही उसकी प्रगति के लिए मन में कोई शंका रखता है। उसका विचार वही है जो करोड़ों हिन्दुओं का है, इसलिए अलकायदा और उस जैसे अन्य आतंकवादी संगठनों को कान खोलकर यह सुन लेना चाहिए कि उनका जो सपना भारत को तोड़ने का अथवा इस्लाम के नाम पर देश में किसी प्रकार का अलगाववादी आन्दोलन चलाने का है वह कभी पूर्ण नहीं हो सकता है। भारत से अलग होने अथवा तो भारत के तोड़ने की कोई बात करेगा तो यहां के मुसलमान भी अन्य देशभक्तों की तरह इसका मुंह तोड़ जवाब देंगे। इतना स्पष्ट हो जाने के बाद अब इन अलगाववादी संगठनों के लिए इस देश में कोई स्थान नहीं रह जाता है। इस साक्षात्कार से यह सिद्ध हो गया है कि अन्य नागरिकों की तरह मोदी और उनकी सरकार के बारे में भारतीय मुसलमानों को पूर्ण विश्वास है; उनका प्रधानमंत्री जो आह्वान करेगा उस पर वे खरे उतरेंगे। बाहर की कोई भी ताकत यहां के मुसलमानों को राष्ट्रीय प्रवाह से अलग नहीं कर सकती है। मोदी का यह उत्तर निश्चित ही उन आतंकवादियों के मुंह पर करारा तमाचा है जो इस्लाम के नाम पर यहां अपनी साम्प्रदायिक राजनीति करना चाहते हैं। यदि पाकिस्तानियों को इस बात पर कोई झूठा भ्रम है तो वे अपने दिल से निकाल दें। भारत की एक-एक इंच भूमि की रक्षा हिन्दुस्थान का मुसलमान अपने खून से करेगा। पाकिस्तान यदि यहां के मुसलमानों के नाम पर कोई मजहब की राजनीति करना चाहता है तो उसे निराशा ही मिलेगी। क्योंकि भारत की वफादारी हिन्दुस्थान के मुसलमान की पहली पहचान है। इसलिए विदेश का कोई भी आतंकवादी संगठन यहां के मुसलमानों पर डोरे डालने का नापाक प्रयास नहीं करे। यदि करता है तो स्वयं मुसलमान ईंट का जवाब पत्थर से देगा। यह माना जा रहा है कि पिछले दिनों पाकिस्तान की जो राजनीतिक स्थिति डांवाडोल हुई है उसमें भारतीय मुसलमानों को निशाना बनाकर मुशर्रफ कोई खेल खेलना चाहते हैं, उनकी निगाहें तो अपने विरुद्ध सुनाई गई फांसी की सजा पर हैं लेकिन निशाने पर हिन्दुस्थानी मुसलमान हैं। उनके लाख सर पटकने पर भी पाकिस्तान की यह मंशा पूरी होने वाली नहीं है। सच बात तो यह है कि पाकिस्तान आतंकवादियों के लिए दहशगर्दी का अड्डा बन गया है। वहां शिया सुन्नी भावना पैदा की जा रही है। अबूबकर अलबगदादी जिस प्रकार से दानवीय प्रवृत्तियों का पररवरदिगार बन गया है उसे भला कौन इन्सान होगा जो समर्थन देगा? इसलिए भारतीय मुसलमानों के नाम पर कोई राजनीति करना चाहता है तो वह बुरी तरह से मुंह की खाएगा। मोदी ने सीएनएन को जो साक्षात्कार दिया है उसकी राष्ट्रभक्त और उदार मुस्लिमों ने खुलकर प्रशंसा की है। मोदी को गुजरात के दंगों के नाम पर खूब बदनाम किया गया, लेकिन उसका यथार्थ यह है कि इस मामले में वे एक भी उदाहरण प्रस्तुत नहीं कर सके जिसका दाग मोदी के दामन पर हो। मोदी के विरुद्ध न तो एक भी साक्ष्य मिल सका और न ही किसी भी अदालत ने फर्जी मुठभेड़ों के मामले में इनकी संलिप्तता दर्शाई। मोदी के विरुद्ध लगभग दस पन्द्रह वषोंर् से लगातार षड्यंत्र रचे जाते रहे लेकिन इसके बावजूद वे तीन बार निर्वाचित हुए और लगातार गुजरात के मुख्यमंत्री पद पर आसीन रहे।
राजनीतिक स्वार्थों से ओत-प्रोत मुसलमानों का एक वर्ग उन पर लगातार कोई न कोई आरोप लगाता रहा। मोदी का भय बतलाकर मुसलमानों को भड़काने के असंख्य प्रयास होते रहे हैं। इसके लिए मुस्लिम बहुल उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बंगाल और असम में दंगों की आग भी भड़काई गई और वोटों का धुव्रीकरण भी किया गया। मुसलमानों के मौलाना और राजनीतिक पार्टियों के नेताओं ने अपने मंच से ये बयान भी जारी करवाए कि भाजपा और मोदी के विरोध में जीतने वाले किसी भी दल अथवा नेता को मुसमलानों द्वारा वोट देना हितकर होगा। लेकिन अंतत: इस प्रकार के सभी षड्यंत्र असफल रहे। मोदी के पक्ष में मुसलमानों ने दिल खोलकर वोट दिए जिससे विरोधियों के मंसूबे बुरी तरह से असफल हो गए। इस प्रकार जो तत्व मोदी के विरुद्ध वातावरण बनाना चाहते थे, वे बुरी तरह से असफल रहे। मोदी पर जितने आरोप लगाए गए उनका खण्डन जब स्वयं मुसलमान करने लगे तो उनके नेताओं की बोलती बंद हो गई। मोदी ने मुसलमानों पर विश्वास किया तो मुसलमानों ने भी इसका सकारात्मक जवाब देकर उन पर भरोसा जताया। बुखारी जैसे नेता ऊटपटांग बयान देते रहे लेकिन मोदी के व्यवहार ने उन साम्प्रदायिक शक्तियों को इतना निढाल कर दिया कि उन्हें मुंह छिपाने का भी स्थान नहीं मिला।
पिछले दिनों महाराष्ट्र और हरियाणा में चुनाव हुए। एक भी मुसलमान नेता इनके विरुद्ध कोई उटपटांग शब्द नहीं बोल सका और न ही उनके द्वारा जो बातें सभाओं के माध्यम से कही गईं उनका खण्डन कर सका। महाभारत के युद्ध में हर स्थान पर कृष्ण ही दिखलाई पड़ते थे उसी प्रकार कहीं का भी चुनाव हो केवल और केवल मोदी ही हर स्थान पर दिखलाई पड़ते थे। तभी तो उनकी हर जनसभा अपने आपमें उनका कार्यक्षेत्र बन गई थी। बुखारी मानस के नेता सोच रहे थे कि भारत के युवा मुसलमान अलबगदादी की फौज में शामिल होकर कट्टरवादियों का पलड़ा भारी कर देंगे लेकिन यहां तो जब चुनाव परिणाम सामने आते हैं तब यह दृश्य देखने को मिलता है कि उत्तर प्रदेश का मुसलमान हो या कि बिहार, महाराष्ट्र और हरियाणा का, उसकी जबान पर और दिल की धड़कनों में केवल और केवल मोदी का नाम सनाई पड़ने लगता है। मुशर्रफ और नवाज शरीफ को यह उम्मीद थी कि पाकिस्तान के पक्ष में भारत का मुसलमान उठ खड़ा होगा, लेकिन उन्हें निराशा तब हाथ लगी जब मालूम हुआ कि हर स्थान पर मुसलमान ने अपना नेता मोदी को स्वीकार किया है। मोदी के नेतृत्व में जितने चुनाव हो रहे हैं उनमें पलड़ा किसी का भारी है तो भारतीय जनता पार्टी का? क्योंकि उसमें तुलने वाला केवल एक ही नाम है मोदी और मोदी। मोदी अपनी हर सभा करते हैं तो भारतीय मुसलमानों को लगता है कि केवल मोदी को ही उनमें विश्वास है क्योंकि मोदी ने मुसलमानों की भक्ति और शक्ति को देखा है जो केवल और केवल अपने राष्ट्र के लिए समर्पित है।
पिछले 67 वषोंर् में पहली बार भारतीय मुसलमान इस बात को महसूस कर रहा है कि कोई उनमें भी विश्वास करने वाला नेता है। वह उनकी योग्यता और समर्पण से परिचित है। वह भारत के उन नेताओं में नहीं जो अपनी किसी भी असफलता के लिए मुसलमानों को जिम्मेदार ठहराएं। सीएनएन इंटरनेशनल चैनल के माध्यम से भारतीय मुसलमानों ने मोदी के जो विचार सुने उसके पश्चात चुनाव समीकरण बदल गए हैं। अब मुसलमानों की भीड़ भारतीय जनता की ओर बढ़ती दिखलाई पड़ रही है। उनका विश्वास बलवती हुआ है, क्योंकि पहली बार किसी ने उनमें विश्वास पैदा किया है। इसलिए जंग का मोचा हो या उत्पादन का क्षेत्र भारतीय मुसलमान का नजरिया तेजी से बदला है। इस बदलाव के कारण मोदी भी बदले हैं इसलिए इस दोहरे विश्वास ने भारत के लोकतंत्र के माध्यम से एक नया इतिहास तैयार किया है। दोनों का संकल्प इस ओर बढ़ रहा है कि भारत की प्रगति मुसलमानों में और मुसलमानों की प्रगति भारत में निहित है।
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