मैना एक अनोखी चिडि़या

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दिंनाक: 15 Nov 2014 15:09:27

बच्चो! आपने मैना के बारे में सुना ही होगा, जो मनुष्यों की आवाज की हूबहू नकल कर लेती है। आज हम आपको मैना के बारे में बता रहे हैं। मैना-कौए, गौरेया, कबूतर व अन्य पक्षियों की तरह मनुष्यों के आसपास के वातावरण में हिल मिल कर रहती है। यह केवल एशिया महाद्वीप के कुछ देशों में पाई जाती है। भारत में यह देश के हर भाग में पाई जाती है। अक्सर गांव के पास तालाबों और खेतों के आसपास नजर आती है।
मैना कत्थई रंग की होती है। इसका सिर गर्दन, पूंछ व सीना काले रंग का होता है और इसकी पूंछ सफेद होती है। नर और मादा के रूप-रंग में कोई ज्यादा अंतर नहीं होता। यह दूसरे पक्षियों के घोंसलों में अपने अंडे देती है। इसके अंडों की संख्या चार या पांच होती है। इसके अंडे नीले रंग के होते हैं। मैना की और भी कई प्रजातियां पाई जाती हैं। जिनमें गुलाबी मैना, तेलिया मैना अलबखा, पहाड़ी मैना और पवई मैना प्रमुख हैं। देसी मैना देश के सभी भागों में पाई जाती है। भोजन के मामले में यह सर्वभक्षी होती है। मैना सब कुछ खाती है,यह दाना चुगती है, कीड़े खाती है और कभी-कभी छिपकलियों और मरे हुए पक्षियों को अपना आहार बनाती है।
मैना जून-जुलाई के महीने में अंडे देती है। यह पेड़ों की कोटरों, कुओं के सुराखों में घोंसले बनाती है। किलहटा मैना 11 इंच की होती है। खैरा रंग, सिर, गर्दन काली, पूंछ का सिरा सफेद, आंखों की पुतली भूरी और पैर पीले होते हैं। इसका सिर, गर्दन काली, शरीर का बाकी हिस्सा भूरा होता है। चोंच नारंगी रंग की और आंखों के चारों ओर का हिस्सा लाल होता है। नदी, तालाबों और कुओं के पास घोंसला बनाने के कारण इसका नाम दरिया मैना पड़ा है। गुलाबी मैना देखने में काफी सुंदर होती है। इसके सिर और डैने तथा शरीर का शेष भाग गुलाबी होता है। पहाड़ी मैना मनुष्य की बस्तियों के आसपास न रहकर जंगलों में रहती है। मनुष्य की आवाज की सबसे अच्छी नकल भी यही करती है। फल इसका मुख्य भोजन होता है। इसकी दुम और डैने, चोंच और पैर छोटे और मजबूत होते हैं। चोंच लाल, आंखें काली, पैर और सिर पीले रंग के होते हैं। यह म्यामार, थाईलैंड आदि देशों में भी पाई जाती है। इसकी बोली बेहद मीठी होती है। अलबखा मैना का शरीर काला होता है। इसकी आंख की पुतली और पैर पीले होते हैं। कीड़े के अलावा यह फल भी खाती है। इसका घोंसला घास-फूस का बना होता है। नवई मैना, जिसे ब्राह्मणी मैना भी कहते हैं, रूप-रंग में अलबखा की तरह होती है। यह भुने हुए आटे की गोलियां आसानी से खा सकती है। यह पेड़ों के सुराखों में घोंसला बनाती है और वहां अंडे देती है। मैना की एक खास आदत होती है कि ये दूसरे पक्षियों के खाली घोंसले में घुस जाती है। इसके चलते इनका आसानी से शिकार किया जाता है।

… धरती पर रहती थी विशालकाय चिडि़या

हाल ही में वैज्ञानिकों ने एक ऐसी विशालकाय चिडि़या के बारे में पता लगाया है जिसके पंखों की लंबाई 24 फीट थी और यह अपने विशाल पंखों के जरिए आसमान में उड़ान भरती थी। यह अपने आप में अनोखी बात है क्योंकि आज भी पृथ्वी पर पाया जाने वाला सबसे बड़ापक्षी शुतुरमुर्ग अपने भारी वजन के कारण उड़ान भर पान में असमर्थ होता है पर यह चिडि़या खुले आसमान में खूब ऊंचाई तक उड़ान भरा करती थी।
वैज्ञानिकों ने इस दुनिया की सबसे बड़ी चिडि़या 'पैलागोरनिस सेंडेर्सी' को बताया है। इस चिडि़या का नाम कॉनडोर भी है जो धरती पर 280 लाख वर्ष पहले रहती थी। कॉनडोर का भी वजन 81.5 किलोग्राम था। उसके पंख 24 फुट तक के थे। 24 फुट का मतलब एक पंख लगभग चार मीटर का। पंखों के इसी फैलाव के चलते यह उड़ान भी पाने में सक्षम थी। कॉनडोर के अवशेष साउथ कैरोलिना में खुदाई के वक्त पाए गए थे। साल 1983 में जब मजदूरों ने हवाई अड्डा बनाने के लिए सड़क की खुदाई चालू की थी तब उन्हें कॉनडोर का अवशेष मिला था। जांच के बाद पता चला कि इस चिडि़या से बड़ी चिडि़या अभी तक इतिहास में कोई नहीं मिली है। – प्रतिनिधि 

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