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गोहत्या एवं शेषजीवों की हत्या के बीच क्या अन्तर है और गाय को पूज्य क्यों माना गया है?
वेदां ने गोवंश को अवध्य माना है और विशेषरूप से देवताओं का निवास स्थान गोवंश में है। पृथ्वी का आदि दैविक रूप गाय को माना गया है। स्कन्द पुराण में एक श्लोक दो बार आया है-
गोभिर्विप्रै्रस्च वेदैस्च सतीभीसत्यवादिभी अलुबुधैस्च दानसूरस्य सत्यभिर धारयते मही।।
यज्ञ का संपादन सात तत्वों द्वारा होता है। शास्त्र सम्मत यज्ञ द्वारा पृथ्वी का धारण होता है। पृथ्वी जब स्थिर रहती है,परिपुष्ट रहती है तब स्थावत जंघम प्राणियों की रक्षा होती है। और पृथ्वी पर पलने वाले मनुष्यों द्वारा देवता-पितर आदि का भी पोषण होता है। उनमें सबसे पहला स्थान गोवंश का है पृथ्वी को धारण करने वाले तत्व में। श्रीमद्भागवद् इत्यादि पुराणों में पृथ्वी गाय का रूप धारण करके प्रस्तुत होती है। भगवान से भी कुछ प्रार्थना करती है तो गाय के रूप में । इससे सिद्ध होता है कि पृथ्वी का आदि दैविक रूप गोवंश है। व्यावहारिक दृष्टि से देखें तो पंचगव्य के माध्यम से घृत-दुग्ध आदि से जीवनी शक्ति हमकों प्राप्त होती है। हम लोग ऑक्सीजन लेकर कार्बनडाइ आक्साइड जैसी विषाक्त वायु छोड़ते हैं, जबकि जीवनीशक्ति की दृष्टि से गोवंश का अदभुत महत्व है। भगवान ने जीवों के कल्याण के लिए यज्ञ को रचा और यज्ञ की पूर्ति के लिए गोवंश की रचना की है। इसलिए अन्य प्राणियों से अधिक इसका सर्वोत्तम महत्व है।
ल्ल क्या गोहत्या पर पूर्ण प्रतिबंध एवं कठोर कानून बनाना इस समय अतिमहत्वपूर्ण है या इसका कोई अन्य विकल्प भी है?
ऐसा है जम्मू-कश्मीर में गोवंश की रक्षा के लिए कानून बना हुआ है। मुस्लिम बहुल क्षेत्र होने एवं मुख्यमंत्री भी मुसलमान होने के बाद भी कानून के बल पर वहां गोवंश की हत्या कम से कम होती है।
संविधान की दृष्टि से गोवंश की हत्या पर प्रतिबंध हो और गोवंश को राष्ट्र का प्रतीक या राष्ट्रीय पशु घोषित किया जाए यह आज आवश्यक लगता है। साथ ही गोवंश की जो उपयोगिता टैक्टर व ट्रक के माध्यम से विलुप्त कर दी गई और खेती का प्रारूप ही बदल दिया गया खेती की इस पूरी संकल्पना पर गहराई से विचार की आवश्यकता है। जिसकी उपयोगिता को शासनतंत्र तिरोहित कर देता है, उसके अस्तित्व की रक्षा कठिन हो जाती है। भारतीय परम्परा प्राप्त जो कृषि विधा है, उसके अनुसार गोबर व खाद इत्यादि का विशेष महत्व है। संपूर्ण गोवंश इस भूमि के रक्षण का विशेष गुण रखता है। लेकिन कुछ लोग बैल को अनुपयोगी समझते हैं। एक गोशाला में पचास गाय हैं तो सात-आठ बछड़े होना स्वाभाविक है। लेकिन उसमें से कुछ सोचते हैं कि यह भार हो गया। आप पूरा कृषि का प्रारूप एवं देश का प्रारूप जब संस्कृति के अनुसार डालेंगे तो गोचर भूमि उपलब्ध होगी, किसान उपलब्ध होंगे तब ही गोवंश की रक्षा होगी। अगर हम कृषि इत्यदि का प्रारूप आधुनिक ढंग से निर्धारित करते हैं तो गोवंश की रक्षा में कठिनाई पड़ेगी।
ल्ल इस समय केन्द्र में हिन्दुत्वनिष्ठ सरकार है, गोसंवर्द्धन के क्षेत्र में आप केन्द्र सरकार से क्या अपेक्षाएं करते हैं?
अब तक जो गतिविधि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आई है उससे लगता है वह बहुत ही सूझ-बूझ के साथ सूक्ष्मरीति से गोवंश रक्षा का प्रकल्प चला रहे हैं। जैसे आदर्श गांव बनाने का प्रकल्प उन्होंने सांसदों को दिया। उन गांवों में गोबर गैस की बात निकलकर सामने आई है। इससे एक प्रकार से उन्होंने गोवंश की रक्षा का एक मार्ग प्रशस्त किया है। आदर्श गांव के साथ गोवंश व खेती की बात न सही पर गोबर गैस की बात की। लेकिन गाय जब जीवित होगी तभी तो गोबर गैस होगी। दूसरी बात जो गाय दूध नहीं देती है या जो बैल कृषि कार्य में उपयोग नहीं आते हैं, लेकिन गोबर व गोमूत्र तो भी देते हैं। इस प्रकार से युक्ति पूर्वक वह यह कार्य कर रहे हैं। क्योंकि राष्ट्र में वर्ग विशेष आदि को संतुष्ट करने के लिए जो भाषा का प्रयोग होता है वह हमें पता है। इससे लगता है कि माननीय प्रधानमंत्री जी के मस्तिष्क में गोवंश रक्षा की योजना है। अब वह किस क्रम से कब उसको क्रियान्वित करते हैं, अपनी गद्दी को अपनी पार्टी को देखते हुए वह समय सापेक्ष है।
ल्ल गोचर भूमि जो कभी दस लाख एकड़ हुआ करती थी आज वह समाप्त हो गई है या उस स्थान को अवैध तरीके से कब्जा लिया गया है इसके लिए कोई विशेष प्रयास साधु-सन्तों की ओर से आने वाले समय में किया जायेगा?
जब पाठ्यपुस्तकों में गोवंश का महत्व ही नहीं बताया जा रहा है, धर्म की भावना नहीं है, तो गोचर भूमि को लोग अपने कब्जे में ले आते हैं। पंजाब सहित देश में तो बहुत ही विचित्र स्थिति है। अब धान का उत्पादन होने लगा है तो जो उसके ऊपर का हिस्सा है वह काट लेते हैं और बचे हुए भाग को खेत में जला देते हैं। अब जो गाय के पेट में पदार्थ जाना चाहिए उसको भी जाने नहीं देते। कोई ध्यान ही नहीं रह गया गोवंश की रक्षा का।
आज जरूरत है सामाजिक संगठनों व सांस्कृतिक संगठनों को कि वह समाज में इस बारे में चेतना जगाएं। पाठ्य पुस्तकों में गोवंश का महत्व देना होगा और विशेषकर के शासनतंत्र कटिबद्धता का परिचय देगा तो गोचर भूमि को मुक्त कराया जा सकता है। आज महंगाई की स्थिति यह है कि सामान्य व्यक्ति तो गोवंश को पाल ही नहीं सकता। गोचर भूमि ही नहीं है, वन में जाने पर प्रतिबंध है ऐसे में गोवंश जीवित रहे तो कैसे रहे? बूचड़खानों की लगातार होती वृद्धि से गोवंश को नष्ट करने का प्रारूप चल रहा है। भाजपा ने देश में गायों की नस्लों को संरक्षित करने का संकल्प उठाया है, यह अच्छा है। सरकार का दृष्टिकोण इस ओर होगा तो गोवंश की रक्षा का मार्ग प्रशस्त होगा। इसके लिए कुछ सत्तालोलुप मुख्यमंत्री ऐसे हैं, जो उसका विरोध भी कर सकते हैं लेकिन धीरे-धीरे जब जनता में जागरूकता आयेगी तो गोवंश की रक्षा होगी।
देशवासियों को गोपाष्टमी पर आपका क्या संदेश है?
हमारे भगवान अवतार लेकर पवित्रमुहूर्त में गोचारण लीला प्रारम्भ करते हैं और वह गोवंश को इष्ट देव मानते हैं। एक प्रसंग है जब यशोदा ने कृष्ण से कहा कि लाला आप पैर में कुछ पहन लें तो कृष्ण ने कहा कि जब हमारी गाय ऐसे चलती हैं तो मैं कैसे कुछ पहनंू। इससे अधिक हमारे लिए आदर्श क्या होगा? भगवान स्वयं भगवान होते हुए भी गोचारणलीला संपादित करते हैं। गोवंश और वहां के जन को बचाने के लिए गोवर्धन को धारण करते हैं।
भगवान का नाम गोपाल, गोविन्द से प्रयोग होता है। देश को गोपाष्टमी के अवसर पर व्रत लेना चाहिए कि हम गोवंश की रक्षा करेंगे और तहसील और गांव स्तर पर लोगों के सहयोग से गोशाला खोलेंगे, ताकि जिसको भूल के कारण नादानी एवं परिस्थिति के कारण हम अनुपयोगी समझते हैं उनके गोबर और मूत्र से अन्य सामग्रियों व औषधियों आदि का निर्माण हो। ऐसा सभी देशवासी गोपाष्टमी पर व्रत लें।
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