पाञ्चजन्य के पन्नों सेवर्ष: 9 अंक: 215 दिसम्बर,1955
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पाञ्चजन्य के पन्नों सेवर्ष: 9 अंक: 215 दिसम्बर,1955

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Oct 18, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 18 Oct 2014 14:27:22

नेपाली क्षेत्र पर चीन की कुदृष्टि
सीमा पद्रेश में चीनी सैनिकों की सरगर्मियां बढ़ीं
अपहरण व गोलीवर्षा की घटनाएं
काठमाण्डू। इधर कुछ समय से नेपाल में पुन: कम्युनिस्ट कार्रवाइयों का जोड़ बढ़ने लगा है। सप्तरी जिले में गठित कम्युनिस्ट उत्पातों के समाचार 'पाञ्चजन्य' में प्रकाशित हो चुके हैं। जहां तक इन उत्पातों का प्रश्न है वे आन्तरिक थे-फिर भले ही उनको प्रेरणा विदेशों से मिलती रही हो। किन्तु अब कुछ ऐसी घटनाएं प्रकाश में आई हैं जिनसे आभास मिलता है कि कम्युनिस्ट देश नेपाल में बाहर से भी हस्तक्षेप करना चाहते हैं।
अभी हाल में चीनी सैनिकों द्वारा नेपाल सीमापार दो ब्रिटिश पर्वतारोहियों तथा एक नेपाली अधिकारी को गिरफ्तार कर लिए जाने का समाचार प्राप्त हुआ है। समाचार में इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि उक्त पर्वतारोहियों को बन्दी बनाने के पश्चात् चीनी सैनिक उन्हें तिब्बत की सीमा में ले गए और अब तक उन्हें मुक्त किया नहीं गया है। पर्वतारोहियों का नाम श्री सिडनी विगनल और श्री जॉन हैरप बताए जाते हैं।
कहा जाता है,उक्त दोनों पर्वतारोही बेल्स के पर्वतारोही दल के साथ जिस समय अपनिपा,सैपाल आदि हिमालय के शिखरों पर चढ़ने जा रहे थे उसी समय चीनी अधिकारियों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। घटना की सूचना ब्रिटिश अधिकारियों को दे दी गई है।
इस प्रकार चीनी सैनिकों द्वारा यात्रियों या पर्वतारोहियों को परेशान किए जाने की या बिना सूचना के गोली से उड़ा देने की घटनाएं नेपाल-तिब्बत सीमा पर सामान्य बात हो गई है।
जिन स्थानों पर आजकल यह घटनाएं घटित हो रही है उनके संबंध में नेपाल सरकार का दावा है कि वे उसकी सीमा के अन्तर्गत हैं। जानकार क्षेत्रों का कथन है कि नेपाल सीमा अन्तरराष्ट्रीय दृष्टि से महत्वपूर्ण कुछ स्थानों को चीन सरकार हड़पना चाहती है। इसी दृष्टि से ये सब कार्रवाइयां की जा रही हैं। नेपाल की आन्तरिक दुर्बलता तथा कम्युनिस्ट कार्रवाइयों का लाभ चीन सरकार को मिल रहा है।
उक्त सूत्रों का यह भी कहना है कि चीन सरकार ने भारत के कुछ भूभाग के संबंध में भी इस प्रकार की योजना बना रखी है। समय-समय पर चीनी मानचित्रों में भारत के कुछ सीमा प्रदेशों का दिखाया जाना उसी योजना का अंग है। किन्तु भारत की सुदृढ़ता तथा सैनिक शक्ति और अन्तरराष्ट्रीय परिस्थिति इस योजना के पूर्ति के मार्ग में अभी बाधक बनी हुई है।

अमेरिका समझ ले
कश्मीर में जनमत-संग्रह नहीं हो सकता
-डा. तारक नाथ दास-
गत पांच वषों में राजनैतिक तथा भौतिक दृष्टि से कश्मीर की स्थिति में अत्यधिक परिवर्तन हो चुका है। जनता के द्वारा निर्वाचित संविधान परिषद् ने अपना निर्णय भारत के पक्ष में दिया है। जहां तक भारत का संबंध है कश्मीर में मत-संग्रह का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। कुछ दिन पूर्व लोकसभा में भाषण देते हुए भारत के गृहमंत्री पंडित पंत ने भारत सरकार की स्थिति एकदम स्पष्ट कर दी थी। भाषण का सारांश निम्न प्रकार था: जहां तक भारत सरकार का संबंध है कश्मीर भारत का अंग है तथा वो भारत का ही रहेगा। पाकिस्तान कश्मीर में आक्रांता है तथा पाक-सेनाओं को भारत की भूमि से हटना ही पड़ेगा। भारत हरसंभव तरीकों से अपनी भूमि की रक्षा करेगा।
अमेरिका तथा अन्य दूसरे राष्ट्रों को स्पष्टत: समझ लेनी चाहिए कि कोई भी किसी विषय के संबंध में निश्चित नीति से बंधा नहीं रहता। विश्व की राजनीति में परिवर्तन होने के कारण भारत को बाध्य होना पड़ा है कि वह नीति का पुनरावलोकन और आवश्यकता हो तो अन्य राष्ट्रों से अपने संबंधों की पुनर्घोषणा करे और विशेष रूप से इस बात की उस समय आवश्यकता और भी अधिक प्रतीत होती है। जबकि पाकिस्तान ने भारत के साथ मैत्रीपूर्ण एवं अनाक्रमक समझौता करने की बात अस्वीकार करके तुर्की,इराक के साथ संधि की हो और अमेरिका से शस्रास्त्र प्राप्त किए हों। इस संबंध में यह समझ लेना आवश्यक रहेगा कि अमेरिका,ब्रिटेन या फ्रांस ने संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य रहते हुए भी अपने हितों के संबंध में स्वतंत्र नीतियां निर्धारित करने का अधिकार त्यागा नहीं है। इसलिए भारत को भी अधिकार है कि वह अपनी स्वतंत्र नीति निर्धारित करे और विशेष रूप से उन विषयों के संबंध में जिनका उनके हितों से सीधा संबंध है।
दूसरी समस्याएं
अन्तिम बात यह है कि भारतीय जनतंत्र का निर्माण असाम्प्रदायिकता,मानव अधिकारों (जिनमंे जाति और धर्म का स्थान नहीं है)के आधार पर हुआ है जबकि पाकिस्तान का निर्माण अंध विश्वाश,अधिनायकवाद,इस्लाम तथा अल्पसंख्यकों को समान अधिकारों से अस्वीकरण के आधार पर हुआ है। कश्मीर में जनमत,संग्रह का प्रस्ताव केवल इस कारण किया जा रहा है कि भारत का छोटा सा मान (जो भारत का ही है)इस्लामी राज्य का भाग्य हो जाय। और अपनी जनतांत्रिक स्वतंत्रता गंवा दे। इसलिए संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्यों को, विशेष रूप से अमेरिका तथा ब्रिटेन को,जो भारत के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बनाए रखना चाहते हैं,समझ लेना चाहिए कि भारत अपने सीमा प्रदेश कश्मीर को,जो अपनी सुरक्षा की दृष्टि से अत्यंत आवश्यक है, अपने हाथ से निकलने नहीं दे सकता।
भारत शांति का इच्छुक है। किन्तु यदि पाकिस्तान विदेशी सैनिक सहायता के बल पर आक्रमण करता है तो भारत अपनी सीमा तथा अधिकारों का रक्षण उसी प्रकार हर सम्भव तरीकों से करेगा जैसा उसने पांच साल से कुछ समय पूर्व किया था। यह ठीक है कि कश्मीर के प्रश्न पर शान्ति या युद्ध की समस्या केवल पाकिस्तान तक सीमित रहेगी किन्तु फिर भी भारत इस सम्बंध में किसी भी प्रकार का बाहरी दबाव सहने को तैयार
नहीं होगा।

दिशाबोध
सुख का मूलाधार आत्मीयता – श्रीगुरुजी
हम देखेंगे कि मनुष्य को सुखी करने वाली किसी भी प्रणाली का मूलाधार आत्मीयता के अतिरिक्त और कुछ नहीं हो सकता। किन्तु इन विचार प्रणालियों में उसका कहीं पता नहीं है। उसी से दलगत स्वार्थ,मनुष्य की हत्या,युद्ध पिपासा,साम्राज्य लालसा उत्पन्न होती है। एक व्यक्ति तथा परिवार के अधिकार तथा सम्मान को बढ़ाने के लिए साम्राज्य बनाए जाते हैं। मनुष्य-मनुष्य की सहायता करे इसके लिए आत्मीयता के अतिरिक्त और कारण हो भी क्या सकता है?
यदि यह आत्मीयता नहीं है और सबका पशु जीवन ही है तो स्वयं खाकर दूसरे को न खाने देने की वृति से समाज कैसे चल सकेगा?…
(श्री गुरुजी समग्र:खण्ड 3 पृष्ठ 189)

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