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जम्मू-कश्मीर में आई बाढ़ को 100 वर्षों में सबसे बड़ी त्रासदी माना गया है। इस संकट की घड़ी में सेना के साथ एनडीआरएफ (राष्ट्रीय आपदा मोचन बल) ने एक बार फिर से बाढ़ में फंसे लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहंुचाने में अपनी अद्भुत क्षमता का परिचय दिया। ह्यऑपरेशन केदारनाथह्ण की कमान संभाल चुके एनडीआरएफ के उप महानिरीक्षक (प्रशासन) जयकृत सिंह रावत से विशेष बातचीत की पाञ्चजन्य संवाददाता राहुल शर्मा ने, प्रस्तुत हैं उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश :
जम्मू-कश्मीर में आई बाढ़ के दौरान एनडीआरएफ के जवानों ने जोखिम की परवाह न करते हुए लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहंुचाया है। शुरुआत कैसे हुई,काम कैसे बांटा।
एनडीआरएफ को जम्मू-कश्मीर के ह्यराहत आयुक्तह्ण की ओर से त्रासदी के संबंध में सूचना दी गई थी। इसके तुरंत बाद गाजियाबाद, भटिंडा, पुणे, चेन्नै और बडोदरा से 45 सदस्यों वाली 22 टीमें जम्मू-कश्मीर रवाना कर दी गईं। तीन टीम जम्मू क्षेत्र, जबकि 19 टीमों को श्रीनगर क्षेत्र में तैनात किया गया। श्रीनगर में टीम को बचाव कार्य के लिए तीन हिस्सों में बांटा गया। जम्मू क्षेत्र में कार्यरत टीम के सदस्यों ने भूस्खलन से देवगांव से 14 लोगों के शवों को निकाला तथा श्रीनगर में बाढ़ में फंसे लोगांे को टीम ने सुरक्षित स्थानों पर पहंुचाने का कार्य शुरू किया। इस पूरे ह्यऑपरेशनह्ण में एनडीआरएफ की कुल 22 टीम और 148 नावों को राहत कार्य में लगाया गया था। राहत दल 50 हजार से अधिक लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहंुचाने के साथ-साथ 6 हजार से अधिक लोगों को प्राथमिक उपचार भी मुहैया करा चुका है और अभी भी राहत कार्य जारी है।
राहत कार्य के दौरान एनडीआरएफ को किन-किन चुनौतियां का सामना करना पड़ा?
एनडीआरएफ के राहत दल में शामिल अधिकांश जवान पूर्व में अर्द्धसैनिक बलों में सेवा के दौरान जम्मू-कश्मीर में तैनात रह चुके थे। इस वजह से उन्हें ज्यादातर स्थानों की भौगोलिक स्थिति की बखूबी जानकारी थी। इस आपदा के दौरान मोबाइल तथा लाइन संचार सेवा उपलब्ध नहीं थी। ऐसे में थोड़ी असुविधा महसूस हुई क्योंकि खराब मौसम होने पर संचार सुचारु रूप से कार्य नहीं करता है। परन्तु एनडीआरएफ की टीम के पास सेटेलाइट एवं रेडियो संचार की सुविधा थी। टीम के सदस्य सुबह से लेकर देर रात तक ह्यसर्च लाइट्सह्ण की मदद से बाढ़ में फंसे लोगों को तलाशने का कार्य जारी रखते थे। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर में लोगों ने अपने मकानों के बाहर तारबंदी की हुई थी। इससे लोगों तक नाव पहंुचाने में वह क्षतिग्रस्त भी हुई जिससे लोगों को नाव में बैठाने में खासी मशक्कत भी करनी पड़ी। बाढ़ में फंसे लोगों को 10 से 15 किलोमीटर लंबा सफर तय कर सुरक्षित स्थान पर पहंुचाया गया। इस दौरान नाव चालक को पानी के उफान से बचने के साथ-साथ लोगों को ढाढ़स भी बंधानी होती थी, यह अपने आप में बहुत बड़ी चुनौती थी। कुछ स्थानों पर दो-तीन दिन से बाढ़ में फंसे लोगों में आक्रोश भी था जिनके गुस्से का जवानों को सामना भी करना पड़ा, लेकिन उन्होंने अपने धैर्य से काम किया और सभी को सुरक्षित स्थानों पर पहंुचाया।
जम्मू-कश्मीर ऑपरेशन के दौरान सेना और वायुसेना के साथ एनडीआरएफ का तालमेल कैसा रहा?
हमें श्रीनगर के हुमामा में बीएसएफ और सीआरपीएफ के ह्यबेसह्ण पर ठहराने की व्यवस्था की गई थी। उनकी ओर से हमारी नावों के लिए पेट्रोल और जवानों के भोजन की पूरी व्यवस्था की गई थी। वायुसेना की मदद से जवानों को बचाव कार्य में आने वाले उपकरण एवं नावों को गंतव्य स्थानों तक पहंुचाने में काफी लाभ मिला। एनडीआरएफ महानिदेशक के स्वयं ह्यऑपरेशन एरियाह्ण में उपस्थित रहने से जवानों का मनोबल काफी बढ़ा और दूसरे विभागों से तालमेल करने में किसी प्रकार की असुविधा नहीं हुई।
ऑपरेशन केदारनाथह्ण की कमान आपने स्वयं संभाली थी। वहां के अनुभव को देखते हुए जम्मू-कश्मीर त्रासदी को लेकर क्या कुछ भिन्न रहा, क्या केन्द्र सरकार व राज्य सरकार के बीच तालमेल इस बार पहले से बेहतर दिखाई दिया। क्या दोनों आपदाओं में कोई विशेष अन्तर था?
देखिए जहां तक केन्द्र व राज्य सरकार के तालमेल की बात है तो केदारनाथ त्रासदी के समय भी केन्द्र की ओर से हरसंभव मदद की गई थी और हालात की जानकारी मिलते ही सेना, वायुसेना, एनडीआरएफ, आईटीबीपी और राज्य पुलिस को राहत कार्य में युद्ध स्तर पर लगा दिया गया था। दोनों जगह हुई प्राकृतिक आपदा की तुलना किसी प्रकार से नहीं की जा सकती है, लेकिन जम्मू-कश्मीर में लोगों को नाव की मदद से बचाने में ज्यादा सफलता मिली क्योंकि केदारनाथ में बचाव का एकमात्र साधन वायुसेना के हेलीकॉप्टर थे और उनकी उड़ान भी खराब मौसम में प्रभावित रहती थी। केदारनाथ में लोगों की जान की क्षति अधिक थी, लेकिन श्रीनगर में आई आपदा में लोगों के घर पानी में डूबने से निजी संपत्ति की क्षति ज्यादा हुई है।
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