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इन नवरात्रों का स्वास्थ्य की दृष्टि से भी बड़ा महत्व है। पित्त को और शरीर को शांत करने वाली सब्जियां जा रही होती हैं तथा शरीर में गर्मी व विटामिन बढ़ाने वाली सब्जियां आ रही होती हैं। ऐसे समय में हमारे शरीर को एक बदलाव के दौर से गुजरना पड़ता है। इसलिए इन नवरात्रों में रखे गए व्रत और दूध व फलाहार का बहुत महत्व है। जो लोग सही रूप से व्रत रखते हैं, उन्हें मौसम में बदलाव के कारण साधारणतया सर्दी, खांसी व कफ और पित्त की समस्या नहीं होती। माता के आह्वान और कलश स्थापना का मुहूर्त अवश्य जान लें।
ल्ल इन नौ दिनों में साधना कैसे की जाए जिससे हमारा व्यक्तित्व और भाग्य सुधरे?
पहली बात जो बहुत मुख्य है वह है साधना के लिए स्वयं को मानसिक रूप से तैयार करें। और ये तैयारी होगी पितृ पूजन के बाद। सूर्यास्त के उपरांत घर की सफाई करें। घर के मुख्य दरवाजे पर बंदनवार लटकाएं, घर में पूजा के कमरे को साफ करें और पूजा के स्थान पर एक छोटी सी अलग जगह बना लें, वहां पर आटे और रोली की एक छोटी सी रंगोली बना लें जहां पर आपको देवी जी को स्थापित करना है। एक दीपदान रखें, और इसे देवी के बायीं ओर रखें तथा दाहिनी ओर अगरबत्ती दान रखें। प्रयास करें कि इन नवरात्रों में अखंड ज्योति जलाएं। इसके अतिरिक्त जौ जरूर बोएं व कलश की स्थापना जरूर करें।
ल्ल इन नवरात्रों में कलश स्थापना का समय क्या है?
25 सितम्बर, बृहस्पतिवार को अभिजीत मुहूर्त में दोपहर 11 बजकर 36 मिनट से 12 बजकर 24 मिनट के बीच।
कलश के ठीक सामने मिट्टी और रेत मिलाकर ज्वार बोयें।
फिर, माता को दूध व जल से स्नान कराएँ। यह कार्य स्त्रियां ही करें।
तदोपरान्त उन्हें वस्त्र पहनाएं और श्रृंगार करें।
फिर उनका आह्वान करें। इस समय शंख बजाएं और ह्यऊँ, जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी, दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुतेह्ण का 11 बार जोर से जप करें।
माता के बायीं ओर वाला दीपक जलाएं।
यंत्र या सिद्ध करने वाली सामग्री स्थापित करें।
दुर्गा सप्तशती का पाठ करें या अन्य अनुष्ठान करें।
क्षमा प्रार्थना करके ही उठें।
ल्ल क्या कुछ ऐसी बातें भी हैं, जो हम इन दिनों न करें?
1. आवश्यकता से अधिक भोजन नहीं करें।
2. माँ को भोग लगाये बिना भोजन नहीं करें।
3. प्रतिदिन गाय, मंदिर अर्चकों तथा आठ वर्ष से छोटी बच्चियों के लिए भोजन अवश्य निकालें।
4. तामसिक भोजन का प्रयोग बिलकुल नहीं करें।
5. खट्टे भोजन का प्रयोग बिलकुल नहीं करें।
6. चमड़े की चीजों का प्रयोग न करें।
7. संध्या पूजन अवश्य करें तथा पूजा के उपरांत भूखा नहीं रहना चाहिए।
8. विशिष्ट गृहस्थ कर्म नहीं करना चाहिए।
9. झूठ नहीं बोलना चाहिए।
10. दुर्गा सप्तशती का गलत पाठ नहीं करें।
11. माता की ज्योति को पीठ न दिखाएँ।
12. कलश स्थापना के उपरांत पूरे नौ दिन घर को अकेला न छोड़ें।
13. बाहर के जूते-चप्पल उस स्थान से दूर रखें जहाँ माता तथा कलश की स्थापना की हुई है।
14. तामसिक भोजन करने वाले लोगों को घर में न आने दें।
15. माता की पूजा में आडम्बर न करें।
नवरात्र में व्रत व साधना हमें शक्ति, भक्ति, संपन्नता और ज्ञान से परिपूर्ण करती है। लेकिन आम लोग इतनी बड़ी बातें नहीं समझते कि उनकी रोजमर्रा जिंदगी में नवरात्र क्या बदलाव लाते हैं। मानसिक बल प्राप्त करने के लिए ये 9 दिन बहुत उत्तम होते हैं। जिन लोगों को शनि व राहु के कारण समस्याएं हो रही हैं, व भी अपनी पीड़ा से मुक्ति पा सकते हैं बशर्ते आप सही उपासना करते हैं और कलश स्थापना करते हैं। झूठे मुकदमे में फंस गये हैं तो मुक्ति मिलेगी।
यदि आपको महसूस होता है कि आप या आपका परिवार तंत्र से प्रभावित है तो भी सही तरीके से की गई पूजा आपको निजात दिला सकती है।
संतान, वह भी उच्च कोटि की संतान प्राप्ति के लिए भी इन दिनों में की गई साधना रंग लाती है।
ल्ल धन और वैभव हर आदमी चाहता है। इसकी प्राप्ति के लिए नवरात्र में क्या करना चाहिए?
धन लाभ के लिए नौ दिनों तक पीपल के पत्ते पर ह्यरामह्ण लिखकर तथा कुछ मीठा रखकर हनुमान मंदिर में चढ़ाएं।
और वैभव के लिए कुबेर यंत्र है। कुबेर यंत्र की स्थापना नवदुर्गा के दिन करें और नवमी तक इसे मन्त्र से सिद्ध करें। फिर इसकी नियमित पूजा करें या इसे सिद्ध करके आप किसी को भेंट भी कर सकते हैं पर नवमी के दिन जिन्हें भेंट करनी है उन्हीं के नाम से पूजा करें। मन्त्र है- श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं कमलवासिन्यै स्वाहा।
प्रतिदिन 1008 मन्त्रों का जप करना है। यह जप कमलगट्टे की माला से होना चाहिए। इन्द्र और कुबेर ने इसी मंत्र के द्वारा ऐश्वर्य प्राप्त किया था।
ल्ल कुछ लोग अपने दोष या नजर दोष से पीडि़त होते हैं, वे नवरात्र में क्या उपाय कर सकते हैं?
अपनी सामर्थ्य के अनुसार आटे से बने नौ दीपकों में शुद्ध घी डालें। अपनी लम्बाई के बराबर कच्चे सूत का धागा लेकर उसे पांच बार मोड़ कर उनकी बत्ती बनाएं। इन्हें रात को प्रज्वलित करके मां के सामने बैठकर ह्यऊँ एं ह्रीं क्लीं चामुण्डाये विच्चेह्ण का 11 माला जप करें। ल्ल
साधक को नवरात्र में क्या करना चाहिए?
ल्ल यदि किसी कारण विशेष के लिए पूजा कर रहे हों तो स्वयं को श्रृंगार, मौजमजा, काम से दूर रखें। निश्चित समय में पूजा पाठ करें तथा निश्चित संख्या में जप करें।
ल्ल जप अवश्य करें। जप के समय मुंह पूर्व या दक्षिण दिशा में हो।
ल्ल पूजा के लिए लाल फूल, रोली, चंदन, फल, दूर्वा, तुलसी दल, व कोई प्रसाद अवश्य लें।
ल्ल नवरात्र के प्रथम दिन देवी का आह्वान करें और नियमित पूजा करें।
ल्ल दुर्गा सप्तशती का पाठ प्रतिदिन करें। इसका नियम समझ कर करें।
ल्ल पूजा के उपरान्त क्षमा प्रार्थना अवश्य करें।
ल्ल इस दिन प्रात: 6 से 7.30 बज के बीच देश में अलग-अलग स्थानों में सूर्योदय अलग-अलग समय पर होगा। अपने स्थान के सूर्योदय के साथ सर्वप्रथम सूर्य को जल दें। फिर माँ की स्थापना करें। स्थापना करते समय मां के दाईं ओर कलश की स्थापना करें।
उपवास के प्रकार
सामान्य उपवास : जिसमें आप सामान्य रूप से पूजा करते हैं और फलाहार प्राप्त करते हैं। इस प्रकार के व्रतों में जिसका जैसा संकल्प होता है वैसा ही उपवास व पूजा करता है। इस उपवास में दूध, फल और किसी नमक की तथा मीठी वस्तु का सेवन करना चाहिए।
एकभक्त : इस व्रत में सूर्यास्त से पूर्व भोजन ले लेना होता है। इसमें पूर्ण भोजन नहीं करना चाहिए। व्रत विवेक के अनुसार साधक को व मुनि को 8 ग्रास, वानप्रस्थी को 16 ग्रास, और गृहस्थ को 32 ग्रास खाने चाहिए.
नक्त : इस उपवास में सूर्योदय के पश्चात डेढ़ मुहूर्त में ही भोजन करना चाहिए। इस उपवास में भीख का तिहाई हिस्सा ही खाना चाहिए।
अयाचित : यह हठ योग का हिस्सा है। इस उपवास में एक बार भोजन करना चाहिए। भोजन तभी करना चाहिए जब कोई स्वयं और आपके बिन मांगे दे। इसमें भी भर पेट भोजन न करें।
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