घूमती दुनिया - क्रिकेट के नाम पर मजहब का 'खेल'
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घूमती दुनिया – क्रिकेट के नाम पर मजहब का 'खेल'

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Sep 13, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 13 Sep 2014 15:37:47

हाल ही में पाकिस्तान के एक क्रिकेटर अहमद शहजाद ने श्रीलंका की क्रिकेट टीम के बल्लेबाज तिलकरत्ने दिलशान को बौद्ध मत छोड़कर मुसलमान बनने की सलाह दी है। यह खुलासा एक वीडियो से हुआ है। घटना दांबुला (श्रीलंका) की है। वहां श्रीलंका और पाकिस्तान के बीच एक दिवसीय क्रिकेट मैच हो रहा था।
वीडियो में मैच के बाद शहजाद और दिलशान एक साथ दिख रहे हैं। शहजाद कह रहा है, 'तुम मुसलमान नहीं हो पर अगर मुसलमान बन जाते हो तो तुम जीवन में कुछ भी करो, तुम्हें जन्नत मिलेगी।' बता दें कि दिलशान के पिता मुसलमान और मां बौद्ध हैं। पहले दिलशान का नाम था तुवान मोहम्मद दिलशान। 1999 में अन्तरराष्ट्रीय क्रिकेट में प्रसिद्धि मिलने के बाद दिलशान ने बौद्ध मत को अपना लिया था।
इस वीडियो के आने के कई दिन बाद भी पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (पी.सी.बी.) ने शहजाद से किसी प्रकार की पूछताछ की जरूरत नहीं समझी। जब दुनियाभर में शहजाद की निन्दा होने लगी तो पी.सी.बी. हरकत में आया और उससे पूछताछ की गई। शहजाद ने बहुत ही मासूमियत के साथ कहा कि यह दिलशान के साथ उसकी निजी बातचीत थी और कुछ नहीं। फिलहाल पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड इस मामले की जांच कर रहा है। लेकिन पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड और उसके क्रिकेटरों के इतिहास को देखते हुए लोग कह रहे हैं कि पी.सी.बी. जांच के नाम पर इस मामले को लटकाना चाहता है।
उल्लेखनीय है कि 2005 में पी.सी.बी. ने अपनी ही टीम के एकमात्र ईसाई क्रिकेटर
यूसुफ योहाना के मामले में भी ऐसा ही कहा था। लेकिन कुछ नहीं हुआ था और योहाना को एक दिन मुसलमान बनना ही पड़ा। बता दें कि योहाना के साथी क्रिकेटर उससे कहते थे कि यदि तुम लम्बे समय तक पाकिस्तानी क्रिकेट टीम में रहना चाहते हो तो मुसलमान बन जाओ। कहा यह भी जाता है कि योहाना पर नमाज पढ़ने और इस्लामी टोपी पहनने का दबाव डाला जाता था।
योहाना इस दबाव को कई वर्ष तक झेलते रहे, पर जब उन्हें लगा कि अब मुसलमान बने बिना पाकिस्तान की क्रिकेट टीम में रहना संभव नहीं है तो उन्होंने मुसलमान बनना कबूल कर लिया। इसके बाद उनका नाम मोहम्मद यूसुफ हो गया। लेकिन युसूफ बनने के बाद भी वे कुछ ही दिनों तक पाकिस्तानी क्रिकेट टीम में रहे। कई वर्ष तक टीम में उनका चयन भी नहीं किया गया। 10 मार्च, 2010 को पी.सी.बी. ने अचानक उनके अन्तरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलने पर प्रतिबंध लगा दिया। ऐसा क्यों किया गया, इसका जवाब आज तक नहीं मिला है। प्रतिबंध से गुस्साए यूसुफ ने 29 मार्च, 2010 को अन्तरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास ले लिया।
आज यह कहा जाने लगा है कि पाकिस्तान क्रिकेट के नाम पर मजहब का 'खेल' खेलने लगा है। इस पर अन्तरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद् को ध्यान देना चाहिए। ल्ल

संस्कृत की सहायता से सुलझाया 200 वर्ष पुराना गणितीय सूत्र
अमरीका के प्रिंस्टन विश्वविद्यालय में गणित के प्राध्यापक 40 वर्षीय मंजुल भार्गव ने गणित का नोबल पुरस्कार कहा जाने वाला 'फील्ड्स मेडल' प्राप्त किया है। पिछले दिनों सियोल (कोरिया) में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्हें यह सम्मान दिया गया है। यह सम्मान प्रत्येक चार वर्ष पर दिया जाता है। 1936 से दिया जा रहा यह सम्मान पहली बार भारतीय मूल के किसी व्यक्ति को मिला है। यह सम्मान इस बार तीन लोगों को एक साथ दिया गया है। मंजुल के अलावा ईरान की मरयम मिर्जाखानी और फ्रांस के अर्तुर अविला हैं। मिर्जाखानी इस सम्मान को पाने वाली पहली महिला हैं। मंजुल को यह पुरस्कार रेखागणित में नए सूत्र विकसित करने के लिए दिया गया है। ये वही मंजुल हैं, जिन्होंने संस्कृत की सहायता से 200 वर्ष पुराने 'नंबर थ्योरी लॉ' को सुलझाया है।
उल्लेखनीय है कि मंजुल के दादा राजस्थान में संस्कृत के प्राध्यापक हुआ करते थे। उन्हीं से उन्होंने संस्कृत का ज्ञान प्राप्त किया था। उनके दादा के पास 628 ई़ पू. के भारतीय गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त की संस्कृत में लिखी पाण्डुलिपि थी, जिसमें जर्मनी के गणितज्ञ कार्ल फ्रेडरिच गॉस के जटिल 'नंबर थ्योरी लॉ' को साधारण तरीके से समझाया गया था।
भार्गव ने ब्रह्मगुप्त के संस्कृत में लिखे सूत्र पर काफी समय तक काम किया और 18वीं सदी के गॉस के सूत्र को ज्यादा आसान तरीके से समझाने में सफलता प्राप्त की। मंजुल ने संस्कृत के श्लोकों की लय में गणित सूत्र का वाचन किया। संस्कृत के अक्षरों के क्रम में उन्होंने सूत्र की संरचना बताई है। वह विश्वविद्यालय में अपने छात्रों को गणित सूत्र समझाने के लिए भी संस्कृत के श्लोकों और गणित की समानता के उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। मंजुल ने उस्ताद जाकिर हुसैन से तबला बजाना भी सीखा है। ल्ल

आईएसआईएस के खात्मे का संकल्प
आखिर अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा को यह कहना ही पड़ा कि अमरीका आईएसआईएस के आतंकवादियों को चुन-चुन कर मारेगा। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि अमरीका आईएसआईएस के विरुद्ध लड़ने वाले देशों का नेतृत्व करेगा और जब तक उसके सारे आतंकवादी मार नहीं दिए जाते हैं तब तक हम चुप नहीं बैठेंगे। ओबामा ने आगे कहा कि जो भी आतंकी संगठन अमरीका को चुनौती देगा उसे दुनिया में कहीं भी शरण नहीं मिलेगी। इस बयान के बाद अमरीकी विदेश मंत्री जॉन केरी इराक की राजधानी बगदाद गए। उनकी इस यात्रा का उद्देश्य है आईएसआईएस के विरुद्ध की जाने वाली कार्रवाई के लिए अरब देशों का समर्थन प्राप्त करना। खबर है कि सऊदी अरब सहित 10 अरब देशों ने अमरीका का साथ देने का निर्णय लिया है। अमरीका ने यह साफ कर दिया है कि उसकी सेना इराक या सीरिया में जमीनी स्तर पर लड़ाई नहीं करेगी, केवल हवाई हमले करेगी। लेकिन एक सवाल दुनियाभर के लोगों के मन में है कि अमरीका ने इराक के मामले में इतनी देर क्यों की? जब आईएसआईएस के आतंकवादी इराक में आए ही थे उसी समय इराक सरकार ने अमरीका से मदद मांगी थी, लेकिन अमरीका ने उस समय कुछ नहीं किया था। अब जब आईएसआईएस ने इराक के एक तिहाई भूभाग पर कब्जा कर लिया है तब अमरीका क्यों सक्रिय हो रहा है? विदेश मामलों के विशेषज्ञों का कहना है कि अमरीका इराक के प्रधानमं़त्री नूर-अल-मलिकी से नाराज था। हाल ही में मलिकी ने पद छोड़ा है। अब शिया नेता हैदर-अल-आबदी प्रधानमंत्री बने हैं। माना जा रहा है कि आबदी अमरीकी 'कृपा' से प्रधानमंत्री बने हैं। यानी अमरीका जैसा चाहेगा वैसा आबदी को करना पड़ेगा। यह भी कहा जा रहा है कि अमरीकी पहल पर ही ब्रिटेन इराक को हथियार देने के लिए राजी हो गया है। उधर बगदादी के नेतृत्व में इराक में अभी भी कत्लेआम जारी है। शिया, कुर्द और यजीदियों को निशाना बनाया जा रहा है। अमरीकी इशारे पर एक शिया नेता आबदी के प्रधानमंत्री बनने से भी बगदादी का गुस्सा सातवें आसमान पर है। उसने आबदी और अमरीका को चेतावनी दी है कि यदि उसके गुगार्ें को मारा गया तो इराक और अमरीका दोनों को कब्रिस्तान में बदल देंगे। यह भी समाचार है कि इराक के जिन हिस्सों पर बगदादी ने कब्जा कर लिया है वहां के शिया, कुर्द और यजीदियों के खाली घरों और सड़कों पर बारूदी सुरंग बिछाई गई है, ताकि कोई इधर आए तो विस्फोट से उसकी जान चली जाए। ल्ल

काबुल में भारत के नए दूतावास का उद्घाटन
10 सितम्बर को विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज ने काबुल में लगभग 4 करोड़ डॉलर से नवनिर्मित भारतीय दूतावास का उद्घाटन किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान के नवनिर्माण में भारत हर तरह की मदद करेगा। श्रीमती स्वराज ने अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करजई से भी भेंट की और नाटो सेना की वापसी के बाद संभावित स्थितियों पर चर्चा की। उल्लेखनीय है कि भारत अफगानिस्तान को संवारने के लिए लगभग 2 अरब डॉलर का निवेश कर चुका है। सड़कों के निर्माण से लेकर शिक्षण संस्थान और विद्युत संयंत्रों को स्थापित करने में भी भारत अफगानिस्तान की मदद कर रहा है। इसके अलावा अफगानिस्तानी सैन्य अधिकसरियों को भी भारत में प्रशिक्षण दिया जा रहा है। -प्रस्तुति: अरुण कुमार सिंह

ब्रिटेन से अलग होगा स्कॉटलैण्ड?
ब्रिटेन से स्कॉटलैण्ड आजाद होगा या नहीं इसके लिए जल्दी ही जनमत संग्रह होने वाला है। इस मामले में महारानी एलिजाबेथ ने दखल देने से इनकार कर दिया है। इस कारण कैमरन सरकार संकट में है। सरकार चाहती थी कि महारानी इस मामले में दखल दें, तो ब्रिटेन की एकता बनी रहेगी। अब ब्रिटेन के बंटवारे को रोकने के लिए वहां के राजनीतिक दल और खुद प्रधानमंत्री डेविड कैमरन स्कॉटलैण्ड के निवासियों को भरोसा दिलाने का भरसक प्रयास कर रहे हैं कि उनकी सारी मांगें पूरी की जाएंगी।
पाकिस्तान का दाव पड़ा उल्टा
11 सितम्बर को ब्रिटिश संसद के एक कक्ष में 13 सांसदों ने कश्मीर पर चर्चा की । ब्रिटेन में बसे पाकिस्तानी मूल के लोगों के दबाव में हुई इस चर्चा में पाकिस्तानियों का दाव उल्टा पड़ गया। ब्रिटिश सांसदों ने कश्मीर मामले पर भारत के रुख का पक्ष लिया और कहा कि इस मुद्दे पर ब्रिटेन को दखल देने की कोई जरूरत नहीं है। उल्लेखनीय है कि ब्रिटेन के ब्रेडफोर्ड में पाकिस्तानी मूल के लोग सबसे अधिक हैं। इन लोगों ने अपने क्षेत्र के सांसद डेविड वार्ड पर दबाव बनाया कि वे संसद में कश्मीर पर बहस कराने की मांग करें। डेविड उनकी बात के आगे झुक गए और यह मांग उठाने लगे। अन्तत: चर्चा हुई। चर्चा में डेविड यार्ड ने कश्मीर समस्या को विश्व शान्ति के लिए खतरा बताते हुए कहा कि कश्मीर के लोगों को अपना निर्णय लेने का अधिकार मिलना चाहिए। इसके जवाब में ब्रिटेन के पूर्व मंत्री और सांसद ग्रेगरी बार्कर ने कहा कि भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। कश्मीर समस्या पर ब्रिटेन के हस्तक्षेप से कुछ नहीं होगा। वहीं लेबर पार्टी के सांसद बैरी गार्डनर ने कहा कि ब्रिटेन को कश्मीर समस्या में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। प्रस्तुति: अरुण कुमार सिंह

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