गोआ का प्रश्न निर्दलीय आधार पर सुलझाया जाय
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पाञ्चजन्य के पन्नों से
वर्ष: 9 अंक: 11
19 सितम्बर,1955
रा.स्व.संघ के केन्द्रीय कार्यकारी मण्डल का सरकार से अनुरोध
नागपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के केन्द्रीय कार्यकारी मण्डल की बैठक यहां हुई जिसमें संगठन विषयक कई प्रश्नों पर विचार किया गया और कई प्रस्ताव स्वीकार किये गए। मण्डल ने एक प्रस्ताव में गोआ के शहीदों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की। अन्य एक प्रस्ताव में मण्डल ने कहा कि भारत सरकार ने अभी तक जो कदम उठाये हैं उनके फलस्वरूप हमारी भूमि से पुर्तगालियों के चले जाने के बजाय केवल हमारे भाई ही दण्डित हुए हैं।
प्रस्ताव में प्रधानमंत्री से अनुरोध किया गया है कि वे विभिन्न दलों के नेताओं की एक परिषद् बुलाएं तथा इस प्रश्न को तय करने के लिए एक प्रबल राष्ट्रीय नीति ग्रहण करने हेतु सबको विश्वास में लें। मण्डल ने चेतावनी दी है कि विदेशी सत्ता से हस्तक्षेप का कोई अनुरोध,प्रश्न को उलझन में डालकर कश्मीर प्रकरण की पुनरावृत्ति करेगा। प्रस्ताव में कहा गया है कि आर्थिक प्रतिबंध भी खतरे से मुक्त नहीं हैं क्योंकि इसके फलस्वरूप गोआ तथा भारत विरोधी तत्वों में अनेक सम्पर्क स्थापित हो जायंगे। अन्य एक प्रस्ताव में के न्द्रीय कार्यकारी मण्डल ने बम्बई के संघचालक श्री गोवर्धन दयाल सेठ के हाल ही के निधन पर शोक व्यक्त किया। केन्द्रीय कार्यकारी मण्डल की बैठक में सरसंघचालक श्री गुरुजी,प्रान्त प्रचारक गण तथा प्रान्त संघचालकगण उपस्थित थे।
पुर्तगालियों पर कड़ा रुख
भारत में पुर्तगाली शासन बना रहना देश की प्रभुसत्ता के लिए चुनौती है। जब तक देश की एक इंच भूमि भी विदेशी दासता में है,तब तक भारत की स्वतंत्रता पूर्ण नहीं है। के .का. मण्डल गोआ दमन व दीव के मुक्ति आंदोलन को हमारे राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम का भाग व उक्त संग्राम का चालू रहना मानता है। गोआ में रहने वाले तथा भारत के अन्य भाग में रहने वाले भारतीयों में भेद करना हमारे राष्ट्र व हमारी मातृभूमि की अंतर्निहित अक्षुण्णता के विषय में सत्तारूढ़ दल के घोर अज्ञान का सूचक है। … भारत की सरकार द्वारा अब तक लिए गए कदमों ने पुर्तगालियों को यहंा से भगाने केे बजाय अपने ही बांधवों को शिकार बनाया। आर्थिक प्रतिबंध भी गम्भीर खतरों से पूर्ण है,क्योंकि इनका परिणाम गोआ तथा भारत विरोधी तत्वों में अनेक संपर्कों की स्थापना के रूप में होगा।
उत्कल की चिट्ठी
कटक। अतिवृष्टि के कारण प्रारम्भ होने वाले भीषण हाहाकार का ताण्डव नृत्य उत्कल के कटक,बालेश्वर और पुरी जिलों,में शुरू हो गया है। विधानसभा दि. 13 तक बंद कर दी गई थी। तीनों जिलों के सिविल कोर्ट हाई कोर्ट की आज्ञा से बन्द कर दिए गए हैं।
इस विलक्षण स्थिति का कारण दि.2 रात्रि से अनपेक्षित रूप से अनवरत चलने वाली वर्षा है। समस्त प्रदेश में यह वर्षा समान रूप से हुई है। फलस्वरूप उत्कल की आठों प्रमुख नदियों में भीषण बाढ़ इस समय आयी हुई है। संबल पुर में आठ इंच तक वर्षा हुई है। सब नदियों ने अपने बाढ़ के पुराने उच्चांक लांघ डाले हैं। कटक नगर का खतरा बढ़ने लगा है,हीराकुंड ने संबलपुर के पास करीब एक तिहाई पानी रोक लिया इससे आगे की भयानकता का दृश्य कुछ सीमित हुआ अन्यथा कटक से समुद्र तक की आबादी सब बंगाल की खाड़ी में जा मिलती ऐसा अर्थ मंत्री श्री राधानाथ राय ने भी स्वीकार किया है। 1000 वर्ष पूर्व केशरी राजाओं के द्वारा तैयार किये हुए विशाल मजबूत बांध महानदी और काठ जुड़ी की तेज बाढ़ के सामने टिक नहीं सकेंगे,ऐसा लग रहा था।… कटक नगर ने बहुत धैर्य और उत्साह से काम लिया है। प्रत्येक साही बाजारों की ओर से मारवाड़ी रिलीफ सोसायटी की ओर से,सहायता के लिए अनेक स्वयंसेवक व तैयार किया हुआ भोजन यड़ाई धाई की ओर सतत जा रहा है।
विदेशी मिशनरियों के दुष्कृत्य
नंगी तलवार दिखाकर बालकों को धमकाया जाता है
27 अगस्त 1955 'एक्जामिनर'(कैथौलिक अंग्रेजी साप्ताहिक बम्बई) में भारतीय लोक सभा के सदस्य श्री हुकुमसिंह का लेख प्रकाशित हुआ जिसमें उन्होंने विदेशी मिशनरियों की हिमायत की है और जबरिया ईसाई बनाने की बात को हंस के टाला है।… हमें आश्चर्य है कि श्री हुकुमसिंह जी क्यों और किसलिये इन विदेशी मिशनरियों क ी भारी हिमायत कर रहे हैं और जबरिया ईसाई बनाने सम्बन्धी धु्रव सत्य को झूठ बता रहे हैं? भारत सरकार यदि इन मिशनरियों के खिलाफ कोई बड़ी कार्यवाही नहीं करती है और इनकी गतिविधियों की जांच करके उसे खटाई में डाले रखती है तो इसके ये मायने नहीं कि विदेशी मिशनरी भारत में जबरिया हिन्दुओं को ईसाई नहीं बना रहे हैं।
हमारा यह दावा है कि 'भारतवर्ष के अन्दर जितने हरिजन, आदिवासी, तथा निर्धन लोग ईसाई बनाये गये हैं उनमें 95 प्रतिशत जबरदस्ती,धोखे से,लोभ लालच तथा दबाव से ही ईसाई बनाये गये हैं।…सरधने के चर्च में 6 हिंदू विद्यार्थियों को नंगी तलवार दिखाकर धमकाया गया।…'
दिशाबोध
कार्यकर्ता चारित्र्यसंपन्न बनें
'हमें उत्तम कार्य करने के लिए जनता का विश्वासभाजन बनना होगा। जनता हम पर तब विश्वास करेगी,जब हमारा बर्ताव शुद्ध होगा। हमारा व्यक्तिगत जीवन इतना निष्कलंक रहना चाहिए कि किसी के मन में स्वप्न में भी हमारे बारे में शंका न उठे। किसी समय हमारा यह सम्पूर्ण समाज शील-चारित्र्य संपन्न था। आज भी गांवों में हमें सच्चरित्रता के उदाहरण दिखाई देते हैं। रास्ते चलते किसी किसान की गाड़ी टूट जाती है,तो वह टूटा हुआ पुर्जा लेकर निकट के गांव में दुरुस्ती के लिए चला जाता है। गाड़ी और गाड़ी में लदा सामान वहीं पड़ा रहता है,पर कोई उसे उठाता नहीं। जिन्हें हम अनपढ़ या देहाती कहते हैं, उनके पास आज भी इतना शील विद्यमान है। उनकी तुलना में हम तथाकथित,सुविद्य एवं शहरी लोग हीन हैं। हमें ध्यान में रखना चाहिए कि सच्चरित्रता के बल पर ही हमारा सामाज एवं हमारा कार्य अपनी उन्नति कर सकता है।'
श्रीगुरुजी समग्र: खण्ड 3 , पृष्ठ ़135
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