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नवाज शरीफ का फौज के साथ प्यार और नफरत का रिश्ता रहा है। फौजी तानाशाह जिया उल हक उन्हें राजनीति में लाए। इतना ही नहीं । शरीफ खानदान के पारिवारिक उद्योग का जुल्फिकार अली भुट्टो ने अन्य उद्योगों के साथ राष्ट्रीयकरण कर दिया था। जिया ने भुट्टो को फाँसी के तख्ते तक पहुँचा दिया और शरीफ परिवार को अपने उद्योग वापस मिले। स्वाभाविक रूप से जिया के प्रति उन्हें हमदर्दी थी।
शरीफ पहली बार प्रधानमंत्री बने तब जिया की हत्या हो चुकी थी। चुनाव में उन्हें आईएसआई का समर्थन मिला। 1990 में सत्ता में आने के बाद उन्होंने जिया के पाकिस्तान के इस्लामीकरण के एजेंडे को आगे बढ़ाया। 1993 आते-आते फौज को लगने लगा कि शरीफ उसके पर कतरने की फिराक में हैं। फौज ने उन्हें इस्तीफा देने पर विवश कर दिया। 1996 में दोबारा सत्ता में लौटे तत्कालीन सेना प्रमुख जहाँगीर करामात ने सेना को पाकिस्तान के राजनैतिक क्षेत्र में काम करने का संवैधानिक अधिकार दिलवाने की मुहीम चलाई। करामात पर नवाज लगाम लगाने में सफल रहे। उन्होंने करामात को इस्तीफा देने पर मजबूर कर दिया, लेकिन सेना से ठन गयी। 1999 का कारगिल दुस्साहस पाक फौज को भारी पड़ा। बात बढ़ने पर कारगिल के षड्यंत्रकर्ता जनरल परवेज मुशर्रफ ने प्रधानमंत्री नवाज शरीफ पर दोष डाल दिया। नवाज शरीफ ने मौका देखकर, जब मुशर्रफ श्रीलंका के दौरे पर थे, उन्हें हटाने और वापसी पर गिरफ्तार करने का आदेश दे दिया। मुशर्रफ ने फोन पर फौज के अफसरों से बात की, और फौज ने नवाज का ही तख्ता पलट दिया। फौजी अदालत मे नवाज पर अपहरण, हत्या की कोशिश, हाइजैकिंग, आतंकवाद और भ्रष्टाचार का मुकदमा चला। आजीवन कारावास व 4 लाख डॉलर का जुर्माना हुआ। फिर खबरें आईं, कि उन्हें जुल्फिकार अली भुट्टो की तरह फाँसी दे दी जाएगी। इस समय नवाज की सऊदी सुल्तान फहद से मित्रता काम आई। बिल क्लिंटन और फहद के दबाव के सामने फौज को झुकना पड़ा। नवाज 10 वर्ष के लिए पाकिस्तान से निष्कासित कर दिए गए। 15 वर्ष पहले ये सारा बखेड़ा भारत (कारगिल) के मुद्दे पर हुआ था। इसलिए आज नवाज फिर आशंकित हैं, क्योंकि वे जानते हैं, कि फौज हिन्दुस्थान से मित्रता पसंद नहीं करती।
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