|
भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी की मध्यरात्रि का समय… कमलनयन नारायण भगवान बालक का रूप लेकर वासुदेव-देवकी के समक्ष प्रकट हुए। भगवान ने अपने श्रीहस्तों में शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किए हैं। चारों ओर प्रकाश बिखर गया। उनका चतुर्भुज रूप यह बताता है कि उनके चरणों की शरण लेने वालों के चारों पुरुषार्थ वह सिद्ध करेंगे। 'जो भक्त अनन्यभाव से मेरी आराधना करता है, उसके धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चारों पुरुषार्थ मैं सिद्ध करता हूं।'
सम्पत्ति और संतति का सर्वनाश हो गया था, फिर भी वासुदेव-देवकी दीनतापूर्वक ईश्वर की आराधना करते रहते हैं। प्रभु ने कहा- मेरे चतुर्भुज स्वरूप का दर्शन कर लीजिए और ग्यारह वर्ष तक मेरा ध्यान करते रहिए। मैं अवश्य आपके पास आऊंगा। भगवान का चतुर्भुज स्वरूप अदृश्य हो गया और बाल कन्हैया प्रकट हुए। दो छोटे-छोटे हाथ,मुख पर अपार तेज, मनमोहक सूरत जिसे देखकर हर कोई मोहित हो जाए, ऐसा स्वरूप है गोपाल का।
प्रभु प्रत्यक्ष प्रकट हो जाएं फिर भी ध्यान की तो आवश्यकता बनी ही रहती है। ज्ञानदीप प्रकट होने के बाद भी एकाध इन्द्रिय द्वार खुला रह जाने पर विषरूपी पवन प्रविष्ट होकर, ज्ञानदीप को बुझा देती है। इस ज्ञानमार्ग में कई बाधाएं आती रहती हैं। भक्तिमार्ग बड़ा सरल है। प्रत्येक इन्द्रिय को भक्तिरस में भिगो दो। फिर विषरूपी पवन सता नहीं पाएगी। जब ग्यारह इन्द्रियां ध्यान में एकाग्र हो जाती हैं, तब प्रभु का साक्षात्कार होता है। इसी कारण से तो श्रीमद्भगवद गीता के ग्यारहवें अध्याय में अर्जुन को विश्वरूप के दर्शन होते हैं।
कंस को इस बालक के विषय में न पता चले इसलिए वासुदेव ने निर्णय लिया कि कन्हैया को नन्दगंाव छोड़ आते हैं, जहां यह पूरी तरीके से सुरक्षित रहेगा। इसके लिए उन्हांेने कन्हैया को टोकरी में बिठाया, किन्तु बाहर कैसे निकलें? कारागृह के द्वार बंद हैं और कड़ा पहरा है। लेकिन जैसे ही वासुदेव ने टोकरी सिर पर उठाई अपने आप सभी बंधन टूट गए,जेल के दरवाजे खुल गए और सैनिकों को भयंकर नींद आ गई। ऐसा लगा कि मानो वे सभी मूर्छा में हों। मस्तक में बुद्धि है। जब बुद्धि ईश्वर का अनुभव करती है, तब संसार के सारे बन्धन टूट जाते हैं। जो भगवान को अपने मस्तक पर विराजमान करता है, उसके लिए कारागृह के तो क्या, मोक्ष के द्वार भी खुल जाते हैं। हाथ-पांव की बेडि़यां टूट जाती हैं, नदी की बाढ़ भी थम जाती है। जिसके सिर पर भगवान हैं, उसे मार्ग में विघ्न-बाधा नहीं सता सकती। मात्र घर में आने से नहीं, मन में भगवान के आने पर ही बन्धन टूट जाते हैं। जो व्यक्ति वासुदेव की भांति श्रीकृष्ण को अपने मस्तक पर विराजमान करता है, उसके सभी बन्धन टूट जाते हैं। कारागृह के, सांसारिक मोह के बन्धन टूट जाते हैं, अन्यथा यह संसार मोह-रूप कारागृह में ही सोया हुआ है।
वासुदेव कारागृह से बाहर आए। घनघोर मेघ अपने साथ अथाह पानी धरती पर उडे़ल रहे थे। ऐसे में यमुना में वासुदेव ने जैसे ही चरण रखे स्वयं शेषनाग के रूप में दाऊ जी ने बाल श्रीकृष्ण पर अपने फनों के छत्र से छोटे से कन्हैया को ढक लिया। यमुनाजी को बाल कृष्ण के दर्शन से अत्यंत आनंद प्राप्त हो रहा था। यमुना में जल बढ़ गया। प्रभु ने लीला की, टोकरी में से पांव बाहर की ओर बढ़ा दिए। यमुनाजी ने चरण स्पर्श किया और कमल भेंट किया। प्रथम दर्शन और मिलन का आनंद यमुना जी को दिया। धीरे-धीरे पानी कम हो गया।
वासुदेव गोकुल आ पहुंचे। योगमाया के आवरणवश सारा गांव गहरी नींद में डूबा हुआ था। वासुदेव ने श्रीकृष्ण को यशोदा जी की गोद में रख दिया और उनके पास लेटी बालिका स्वरूप योगमाया को उठा लिया। वासुदेव ने सोचा कि अब भी उनका प्रारब्ध कर्म बाकी रह गया है, तभी तो भगवान को छोड़कर माया को गले लगाने का अवसर आया है। वासुदेव योगमाया को टोकरी में बिठाकर कारागृह वापस आ गए। ब्रह्म से संबंध होने पर सभी बन्धन टूट गए थे। अब माया आई तो बन्धन भी आ गए। वासुदेव गोकुल से माया को अपने सिर पर बिठाकर लाए सो फिर बन्धन में बंध गए और कारागृह के द्वार बंद हो गए। माया बन्धनकर्ता है। भगवान की आज्ञा के कारण ही वासुदेव ने बन्धन को स्वीकार किया है।
अब कारागृह में देवकी की गोद में सोई हुई योगमाया रोने लगीं। सेवकों ने शीघ्र ही कंस को वासुदेव के संतान जन्म का समाचार दिया। कंस दौड़ता हुआ आया- कहां है मेरा काल? मुझे सौंप दो और कंस ने वासुदेव और देवकी के हाथों से योगमाया को छीन लिया। कंस ने हाथों में लेकर योगमाया को जैसे ही पत्थर पर पटकने का प्रयास किया वैसे ही योगमाया कंस के हाथों से छूटकर सीधे आकाशगामी हो गईं। आकाश में उन्होंने अष्टभुजा जगदम्बा भद्रकाली का रूप धारण किया और कंस को पुकारकर कहा- अरे पापी, तेरा काल तो अवतरित हो गया है और सुरक्षित है।
बालकृष्ण जब नन्दजी के घर में आए तो नन्दबाबा सोए थे। उन्होंने स्वप्न में देखा कि बड़े-बड़े ऋषि-मुनि उनके आंगन में पधारे हुए हैं। यशोदा जी ने श्रृंगार किया है और गोद में एक सुंदर बालक खेल रहा है। शिवजी भी उस बालक का दर्शन करने हेतु स्वयं आए हैं।
सुबह जागने पर कई संकल्प-विकल्प करते हुए नन्दबाबा गोशाला में आए। वे स्वयं गोसेवा करते थे। गायों की जो प्रेम से सेवा करता है उसका वंश कभी नष्ट नहीं होता। नन्दबाबा ने प्रार्थना की- 'हे नारायण, दया करो। मेरे घर गायों के सेवक गोपालकृष्ण का जन्म हो।' उसी समय बालकृष्ण ने लीला की। पीला चोला पहने, कस्तूरी तिलक लगाए बालकृष्ण घुटनों के बल बढ़ते हुए गौशाला में आए। नन्दजी के मन में विचार आया कि यह तो वही बालक है, जिसे मैंने स्वप्न में देखा था। बालकृष्ण ने कहा- बाबा, मैं आपकी गायों की सेवा करने के लिए आया हूं। नन्दजी प्रेम से निहारते हुए स्तब्ध से हो गए। देहभान नहीं रहा। मानो बालकृष्ण के दर्शन से वे समाधिस्थ से हो गए। कुछ ज्ञात नहीं कि वह जाग रहे हैं या सो रहे हैं।
सुनन्दा को यशोदा की गोद में बालकृष्ण की झांकी हुई तो वह गोशाला में भाई को खबर करने आई- भैया! भैया! लाला भयो है।
आनंद ही आनंद हो गया। श्रीकृष्ण हृदय में आ गए। नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैयालाल की।
नन्दबाबा ने बड़ी उदारता सम्पूर्ण ब्रज क्षेत्र के पात्र जनों को दान आदि दिया। दान से धन की शुद्धि होती है। गायों का दान किया ।
कई वर्षांे तक तपश्चर्या करने पर भी महान ऋषि-मुनियों का काम नष्ट न हुआ, अभिमान नि:शेष न हुआ तो वे सब गोकुल में गाय का अवतार लेकर आए। उन्होंने सोचा कि ब्रह्मसंबंध होने पर वे निष्काम होंगे।
गांव के एक-एक व्यक्ति को लगता था कि कन्हैया उसी का है। कन्हैया के जन्म की खबर सुनकर गांव की सभी गोपियां उनके दर्शन के लिए दौड़ चलीं। मानो नवधा भक्ति ईश्वर से मिलने के लिए जा रही हो।
गोपियों का एक-एक अंग कृष्णमिलन और कृष्णस्पर्श के लिए आंदोलित हो रहा है। इसकी पावनता और प्रगाढ़ता देखिए।
उनकी आंखें कहने लगीं- हमें ही कृष्ण दर्शन का आनंद मिलेगा।
तो हाथों ने कहा- हम ही भाग्यशाली हैं, हम ही प्रभु को भेंट देंगे।
गोपियों के कान कहने लगे- हमारे ही कारण तुम सब भाग्यशाली हुए हुए हो क्योंकि कृष्ण प्राकट्य के समाचार हमने सबसे पहले जाने हैं। हम तो कन्हैया का बांसुरी वादन भी सुनेंगे।
पांव बोल पड़े- हजारों जन्मों से हम यौवन सुख और धन-सम्पत्ति के पीछे भागते आए हैं और आज प्रभु दर्शन के लिए दौड़ पड़े हैं। अब जन्म-मृत्यु के दुख से छुटकारा होगा। मानो सभी अंग आनंद से नाच रहे थे।
आनन्द, आनन्द, आनंद। नन्द-यशोदा के घर कृष्ण जन्म के समारोह की शोभा देखकर ऋषि-मुनि और देवताओं तक की आंखें प्रफुल्लता से भरी हैं। यशोदा की गोद में खेलते बालकृष्ण का गोपियां दूध-दही से अभिषेक कर रही हैं। गोपियां दूध और दही लेकर आई हैं। आनंदावेश में वे यह भूल गईं और स्वयं को ही दूध-दही से नहलाने लगीं। हजारों जन्मों से बिछड़ा हुआ जीव आज प्रभु से मिल पाया। ईश्वर से मिलन होने पर जीव आनंद से झूम उठता है। पुरुष तो सभी बाहर रह गए किंतु गोपियां तो अंदर पहुंचकर आनंद से नाच रही हैं। पुरुष अहंकार, अभिमान का रूप है और स्त्री नम्रता का। जो गोपियों की भांति नम्र बनकर जाता है, उसे ही ईश्वर की राजसभा में प्रवेश मिलता है। अहंकारी को वहां प्रवेश नहीं मिल सकता।
नन्द के घर यानी सभी को आनंद देने वाले के घर परमानंद (कन्हैया) प्रकट हुए। वाणी, वर्तन, व्यवहार और विचार से जो सभी को आनंद देता है वही नन्द है। सभी का आदर करो। आदरदान उत्तमोत्तम दान है। सभी का आशीर्वाद प्राप्त करोगे तो तुम्हारे घर सर्वेश्वर आएंगे। -अजय विद्युत (श्रीमद्भागवत-रहस्य/दशम स्कन्ध (पूर्वार्द्ध) से संपादित अंश)
Leave a Comment