भाषा : राजकाज में आज भी अकड़ दिखाती अंग्रेजी
July 14, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

भाषा : राजकाज में आज भी अकड़ दिखाती अंग्रेजी

by
Aug 11, 2014, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 11 Aug 2014 11:19:28

राजतंत्र में, प्रशासन की भाषा वह होती है जिसका प्रयोग राजा, महाराजा और रानी, महारानी करते हैं। लोकतंत्र में, राजभाषा शासक और जनता के बीच संवाद की माध्यम होती है। लोकतंत्र में, हमारे नेता चुनावों में जनता से जनता की भाषाओं में जनादेश प्राप्त करते हैं। जिन भाषाओं के माध्यम से वे जनादेश प्राप्त करते हैं, वही भाषाएँ देश के प्रशासन की माध्यम होनी चाहिए एवं उनको लोकसेवा आयोग की परीक्षाओं का माध्यम भी बनना चाहिए।
बीसवीं शताब्दी के आठवें दशक में, भारत-सरकार ने सिद्घांत के धरातल पर यह निर्णय ले लिया था जनतंत्र को सार्थक करने के लिए विभिन्न राज्यों में वहाँ की भाषा को तथा संघ के राजकार्य के लिए हिन्दी को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। प्रशासकों को जनता के बीच काम करना है। जनता से संवाद करना है। जनता से संपर्क स्थापित करने के लिए उनकी भाषा का ज्ञान होना अनिवार्य है। भाषा का ज्ञान है अथवा नहीं इसका पता किस प्रकार चलेगा। लोकसेवा आयोग परीक्षाओं का संचालन किस उद्देश्य से करता है। यह किस प्रकार पता चलेगा कि परीक्षार्थी को जनता की भाषा का समुचित ज्ञान है अथवा नहीं। जब सरकारी अधिकारी बनने की इच्छा रखने वाले परीक्षार्थी लोकसेवा आयोग की परीक्षाएँ जनता के लिए बोधगम्य भाषाओं के माध्यम से देकर परीक्षा पास करेंगे तभी तो उनकी भाषिक दक्षता प्रमाणित होगी। उन भाषाओं के माध्यम से परीक्षा पास करने वाले सक्षम अधिकारी ही तो उन भाषाओं के माध्यम से प्रशासन चला पाएँगे तथा जनता से संवाद स्थापित कर सकेंगे।
लेखक ने सन् 1984 से लेकर सन् 1988 तक यूरोप में एक विश्वविद्यालय में, अतिथि प्रोफेसर के रूप में कार्य किया। लेखक को यूरोप के 18 देशों में जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। यूरोप के सभी उन्नत विश्वविद्यालयों में विदेशी भाषाओं के संकाय हैं। संकाय में लगभग 40 विदेशी भाषाओं को पढ़ने और पढ़ाने की व्यवस्था होती है। विदेशी भाषा का ज्ञान रखना एक बात है, उसको जिंदगी में ओढ़ना अलग बात है। यूरोप के जिन 18 देशों की लेखक ने यात्राएँ कीं, उसने पाया कि 18 देशों में से इंग्लैण्ड को छोड़कर आस्ट्रिया, बेल्जियम, बुल्गारिया, चेकोस्लाविया (अब चेक गणराज्य और स्लोवेनिया), पश्चिमी जर्मनी, पूर्वी जर्मनी (अब केवल जर्मनी), हंगरी, इटली, लक्जमबर्ग, नीदरलैण्ड्स, पौलेण्ड, रोमानिया तथा उस समाज के यूगोस्लाविया देशों का सरकारी कामकाज अंग्रेजी में नहीं होता था। वहाँ के विश्वविद्यालयों की शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी नहीं था। वहाँ के प्रशासन का माध्यम अंग्रेजी नहीं था। जब पहली बार, मैं इटली के रोम के हवाई अड्डे पर पहुँचा, अंग्रेजी की अन्तरराष्ट्रीय भाषा होने का मेरा भ्रम टूट गया। मैंने एक सज्जन से अंग्रेजी बोलकर उस काउंटर की जगह के बारे में जानना चाहा जहाँ से मुझे होटल के वाउचर लेने थे। उस सज्जन ने मुझे घूरा और चला गया। जब मैं बार- बार ऐसा करता रहा और निराश हो गया तब मैंने संकेतों की भाषा का सहारा लिया। ऐसा करने पर मुझे सफलता मिली। यह घटना सन् 1984 के फरवरी माह की है। उपर्युक्त 17 देशों के शिक्षण एवं प्रशासन का माध्यम अंग्रेजी नहीं थी। प्रत्येक देश अपनी भाषा में अपना काम करता था। शिक्षण का काम भी। प्रशासन का काम भी। मेरा विश्व के लगभग 100 देशों के राजनयिकों से सम्पर्क हुआ। इंगलैण्ड और अमरीका देशों के राजनयिकों को छोड़कर, बाकी देशों के राजनयिकों ने कहा कि या तो अपने देश की भाषा में बात होनी चाहिए या सामने वाले मेहमान की भाषा में। संप्रभुता संपन्न देश के व्यक्ति को किसी तीसरे देश की भाषा में बात नहीं करनी चाहिए। या तो अपने देश की भाषा में बात करो, संवाद करो। अगर आपको अतिथि की भाषा का ज्ञान है तो आप अपने अतिथि की भाषा में बात कर सकते हैं। हर देश में पर्यटकों की सुविधा के लिए पुस्तिकाएँ मिलती हैं। उनमें उस देश की भाषा में अन्तरराष्ट्रीय लिपि में बीस-तीस कामकाज के वाक्य रहते हैं। उनका अनुवाद पर्यटक की भाषा में होता है। मसलन 1़ नमस्ते। 2़ धन्यवाद। 3़ यह … होटल कहाँ है। 4़ आप.. होटल चलोगे। 6़ क्या लोगे। 7. कमरा मिलेगा। 7़ मैं …देखना चाहता हूँ। इसके अतिरिक्त लगभग सौ शब्द का शब्द भण्डार रहता है। हम जिस देश में जाते थे, हमें उस देश की भाषा वाली तथा उसका अंग्रेजी में अनुवाद वाली पुस्तिका खरीदनी पड़ती थी। किसी भी भारतीय भाषा में अनुवाद वाली पुस्तिका नहीं मिलती थी। यूरोप के हर देश में पर्यटकों के लिए जो पुस्तिका उस देश की भाषा में निर्मित होती थी उसके अनुवाद भारतीय भाषाओं को छोड़कर यूरोप के हर देश की भाषा के साथ-साथ जापानी, चीनी, कोरियाई आदि अनेक गैर यूरोपीय भाषाओं में भी होते थे। भारतीय भाषाओं को छोड़कर प्रत्येक देश का पर्यटक अपनी भाषा में अनुवादित पुस्तिका खरीदकर अपना काम चलाता था। हमें केवल अंग्रेजी में अनुवादित पुस्तिका पर निर्भर रहना पड़ता था। भारत में 29 राज्य हैं। हर राज्य का सरकारी कामकाज उस राज्य की राज्यभाषा में होना चाहिए। संघ की राजभाषा हिन्दी है। सह राजभाषा अंग्रेजी है। संघ के राजकाज में सह राजभाषा से अधिक महत्व मुख्य राजभाषा को मिलना चाहिए।
संघ लोकसेवा आयोग की परीक्षाओं में अंग्रेजी की अनिवार्यता बनाए रखने का मतलब क्या है। क्या परीक्षार्थी की अभिक्षमता (एप्टीट्यूड) को नापने वाला प्रश्नपत्र मूलत: अंग्रेजी में ही बन सकता है। क्या भारत में ऐसे विद्वान नहीं हैं जो भारतीय भाषाओं में मूल प्रश्न पत्र का निर्माण कर सकें। मूल अंग्रेजी के प्रश्न पत्र का अनुवाद जटिल, कठिन एवं अबोधगम्य हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाओं में कराने का क्या प्रयोजन है। संघ लोकसेवा आयोग चाहता क्या है। क्या उसकी कामना यह है कि देश के प्रशासनिक पदों पर केवल अंग्रेजी जानने वाले ही पदस्थ होते रहें। क्या लोकसेवा आयोग की परीक्षाओं के प्रश्नपत्र का निर्माण मूल रूप से भारतीय भाषाओं में नहीं हो सकता। आप प्रश्नपत्र का निर्माण मूलत: भारतीय भाषाओं में कराइए। उस प्रश्नपत्र का अनुवाद अंग्रेजी में कराइए। लोकसेवा आयोग के अधिकारियों को भारतीय भाषाओं के माध्यम से परीक्षा देने वाले परीक्षार्थियों का दर्द समझ में आ जाएगा। प्रश्न पत्रों के निर्माण की प्रक्रिया को उलट दीजिए। वर्तमान स्थिति में बदलाव जरूरी है।
प्रमाणिक आकड़ों का विवरण
1. हिन्दी (परिगणित)422,048,642 41.03 % 329,518,087 39.29 %
2. बांग्ला/बंगला (परि.) 83,369,769 8.11 % 69,595,738 8.30 %
3. तेलुगू (परिगणित) 74,002,856 7.19 % 66,017,615 7.87 %
4. मराठी (परिगणित) 71,936,884 6.99 % 62,481,681 7.45 %
5. तमिल (परिगणित) 60,793,814 5.91 % 53,006,368 6.32 %
इस साल की परीक्षा में, मूल अंग्रेजी के प्रश्न पत्र का जैसा अनुवाद भारतीय भाषाओं में हुआ है। वह इस बात का प्रमाण है कि लोकसेवा आयोग भारतीय भाषाओं को लेकर कितना गम्भीर है। हमने प्रश्नपत्र का हिन्दी अनुवाद टी़ वी़ चैनलों पर सुना है। हम कह सकते हैं कि हमारे लिए प्रश्नपत्र की हिन्दी बोधगम्य नहीं है। क्या लोकसेवा आयोग यह चाहता है कि जो अमीर परिवार अपने बच्चों को महंगे अंग्रेजी माध्यम के कान्वेन्ट स्कूलों में पढ़ाने की सामर्थ्य रखते हैं, केवल उन अमीर परिवारों के बच्चे ही आईएएस और आईएफएस होते रहें। समाज के निम्न वर्ग के तथा ग्रामीण भारत के करोड़ों करोड़ों किसान, मजदूर, कामगार परिवारों के बच्चे कभी भी यह सपना न देख सकें कि उनका बच्चा भी कभी उन पदों पर आसीन हो सकता है। भविष्य में, संसार में वे भाषाएं ही टिक पाएंगी जो भाषिक प्रौद्योगिकी की दृष्टि से इतनी विकसित हो जायेंगी जिससे इन्टरनेट पर काम करने वाले प्रयोक्ताओं के लिए उन भाषाओं में उनके प्रयोजन की सामग्री सुलभ होगी।
सूचना प्रौद्योगिकी के संदर्भ में भारतीय भाषाओं की प्रगति एवं विकास के लिए, मैं एक बात की ओर विद्वानों का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ। व्यापार, तकनीकी और चिकित्सा आदि क्षेत्रों की अधिकांश बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अपने माल की बिक्री के लिए सम्बंधित साफ्टवेयर ग्रीक, अरबी, चीनी सहित संसार की लगभग 30 से अधिक भाषाओं में बनाती हैं मगर वे हिन्दी, बांग्ला, तेलुगु, मराठी, तमिल जैसी भारतीय भाषाओं का पैक नहीं बनातीं। मेरे अमरीकी प्रवास में, कुछ प्रबंधकों ने मुझे इसका कारण यह बताया कि वे यह अनुभव करते हैं कि हमारी कम्पनी को हिन्दी, बांग्ला, तेलुगु, मराठी, तमिल जैसी भारतीय भाषाओं के लिए भाषा पैक की जरूरत नहीं है।
हमारे प्रतिनिधि भारतीय ग्राहकों से अंग्रेजी में आराम से बात कर लेते हैं अथवा हमारे भारतीय ग्राहक अंग्रेजी में ही बात करना पसंद करते हैं। उनकी यह बात सुनकर मुझे यह बोध हुआ कि अंग्रेजी के कारण भारतीय भाषाओं में वे भाषा पैक नहीं बन पा रहे हैं जो सहज रूप से बन जाते। हमने अंग्रेजी को इतना ओढ़ लिया है जिसके कारण न केवल हिन्दी का अपितु समस्त भारतीय भाषाओं का अपेक्षित विकास नहीं हो पा रहा है। जो कम्पनी ग्रीक एवं अरबी में सॉफ्टवेयर बना रही हैं वे हिन्दी, बांग्ला, तेलुगु, मराठी, तमिल जैसी भारतीय भाषाओं में सॉफ्टवेयर इस कारण नहीं बनातीं क्योंकि उनके प्रबंधकों को पता है कि उनके भारतीय ग्राहक अंग्रेजी मोह से ग्रसित हैं। इस कारण हिन्दी, बांग्ला, तेलुगु, मराठी, तमिल जैसी भारतीय भाषाओं की भाषिक प्रौद्योगिकी पिछड़ रही है। इस मानसिकता में जिस गति से बदलाव आएगा उसी गति से हमारी भारतीय भाषाओं की भाषिक प्रौद्योगिकी का भी विकास होगा। अधिकांश बहुराष्ट्रीय कम्पनियां अपने माल की बिक्री के लिए सम्बंधित सॉफ्टवेयर ग्रीक, अरबी, चीनी सहित संसार की लगभग जिन 30 से अधिक भाषाओं में बनाती हैं, उनमें से चार पांच भाषाओं के अतिरिक्त शेष 24 या 25 भाषाएं ऐसी हैं जिनके प्रयोक्ताओं की संख्या 50 मिलियन (05 करोड़) से भी कम है। भारत में कम से कम पांच भाषाएं ऐसी हैं जिनके प्रयोक्ताओं की संख्या 50 मिलियन (05 करोड़) से बहुत अधिक है। सारणी में प्रस्तुत है। प्रामाणिक आंकड़ों के आधार पर उनका विवरण निम्न है।
हिन्दी, बांग्ला, तेलुगु, मराठी, तमिल जैसी भारतीय भाषाओं की सूचना प्रौद्योगिकी के विकास के लिए कम से कम विदेशी कम्पनियों से भारतीय भाषाओं में व्यवहार करने का विकल्प चुने। उनको अपने अंग्रेजी के प्रति मोह का तथा अपने अंग्रेजी के ज्ञान का बोध न कराए।
जो प्रतिष्ठान आपसे भाषा का विकल्प चुनने का अवसर प्रदान करते हैं, कम से कम उसमें अपनी भारतीय भाषा का विकल्प चुनें। आप अंग्रेजी में दक्षता प्राप्त करें। यह स्वागत योग्य है। आप अंग्रेजी सीखकर, ज्ञानवान बनें यह भी वेल्कम है। मगर जीवन में अंग्रेजी को ओढ़ना बिछाना बंद कर दें। ऐसा करने से आपकी भाषाएँ विकास की दौड़ में पिछड़ रही हैं। भारत में, भारतीय भाषाओं को सम्मान नहीं मिलेगा तो फिर कहाँ मिलेगा। इस पर विचार कीजिए। चिंतन कीजिए। मनन कीजिए।

-प्रो. महावीर सरन जैन, (लेखक केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के पूर्व निदेशक हैं)

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

नूंह में शोभायात्रा पर किया गया था पथराव (फाइल फोटो)

नूंह: ब्रज मंडल यात्रा से पहले इंटरनेट और एसएमएस सेवाएं बंद, 24 घंटे के लिए लगी पाबंदी

गजवा-ए-हिंद की सोच भर है ‘छांगुर’! : जलालुद्दीन से अनवर तक भरे पड़े हैं कन्वर्जन एजेंट

18 खातों में 68 करोड़ : छांगुर के खातों में भर-भर कर पैसा, ED को मिले बाहरी फंडिंग के सुराग

बालासोर कॉलेज की छात्रा ने यौन उत्पीड़न से तंग आकर खुद को लगाई आग: राष्ट्रीय महिला आयोग ने लिया संज्ञान

इंटरनेट के बिना PF बैलेंस कैसे देखें

EPF नियमों में बड़ा बदलाव: घर खरीदना, इलाज या शादी अब PF से पैसा निकालना हुआ आसान

Indian army drone strike in myanmar

म्यांमार में ULFA-I और NSCN-K के ठिकानों पर भारतीय सेना का बड़ा ड्रोन ऑपरेशन

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

नूंह में शोभायात्रा पर किया गया था पथराव (फाइल फोटो)

नूंह: ब्रज मंडल यात्रा से पहले इंटरनेट और एसएमएस सेवाएं बंद, 24 घंटे के लिए लगी पाबंदी

गजवा-ए-हिंद की सोच भर है ‘छांगुर’! : जलालुद्दीन से अनवर तक भरे पड़े हैं कन्वर्जन एजेंट

18 खातों में 68 करोड़ : छांगुर के खातों में भर-भर कर पैसा, ED को मिले बाहरी फंडिंग के सुराग

बालासोर कॉलेज की छात्रा ने यौन उत्पीड़न से तंग आकर खुद को लगाई आग: राष्ट्रीय महिला आयोग ने लिया संज्ञान

इंटरनेट के बिना PF बैलेंस कैसे देखें

EPF नियमों में बड़ा बदलाव: घर खरीदना, इलाज या शादी अब PF से पैसा निकालना हुआ आसान

Indian army drone strike in myanmar

म्यांमार में ULFA-I और NSCN-K के ठिकानों पर भारतीय सेना का बड़ा ड्रोन ऑपरेशन

PM Kisan Yojana

PM Kisan Yojana: इस दिन आपके खाते में आएगी 20वीं किस्त

FBI Anti Khalistan operation

कैलिफोर्निया में खालिस्तानी नेटवर्क पर FBI की कार्रवाई, NIA का वांछित आतंकी पकड़ा गया

Bihar Voter Verification EC Voter list

Bihar Voter Verification: EC का खुलासा, वोटर लिस्ट में बांग्लादेश, म्यांमार और नेपाल के घुसपैठिए

प्रसार भारती और HAI के बीच समझौता, अब DD Sports और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर दिखेगा हैंडबॉल

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies